27 March 2019

श्री शीतला चालीसा | शीतला माता की कृपा | अवश्‍य पढ़ें | Sheetla Mata Chalisa

श्री शीतला चालीसा | शीतला माता की कृपा | अवश्‍य पढ़ें | Sheetla Mata Chalisa

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शीतला माता की कृपा से दूर होंगे दुख और दरिद्रता | अवश्‍य पढ़ें

श्री शीतला चालीसा हिंदी में


मां शीतला एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इस देवी की महिमा प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक है। ये देवी हाथों में कलश, सूप, मार्जन यानी झाड़ू तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। यह चेचक आदि कई रोगों की देवी बताई गई है। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं शीतला माता चालीसा।
माता शीतला एक बहुत ही प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक महत्व रहा है। स्कंद पुराण में शीतला माता का वाहन गर्दभ यानि के गधा बताया गया है। माता के हाथों में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते रहते हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है।
शीतला माता के संग ज्वरासुर यानि बुखार का दानव, ओलै चंडी बीबी हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके एक हाथ में कलश में दाल के दानों के रूप में शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।
देवी शीतल माता की स्कन्द पुराण में अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
श्री शीतला माता के वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की सबसे बड़ी देवी हैं। हाथ में झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
जगतजननी दुर्गा स्वरूपा माता शीतला की पूजा मनुष्य को रोग, शोक, अभाव व दरिद्रता से और घर-परिवार को बचाने की कामना से किया जाता है।
तो चलिए दोस्तों हम भी माता शीतला के चालीसा का पाठ करैं और उनसे चेचक, हैजा, चर्म रोग न होने और अपने परिवार को इनसे बचाने की कामना करैं।

श्री शीतला चालीसा हिंदी में

श्री शीतला चालीसा


॥दोहा॥
जय-जय माता शीतला, तुमहिं धरै जो ध्यान।
होय विमल शीतल हृदय, विकसै बुद्धि बलज्ञान॥

॥चौपाई॥
जय-जय-जय शीतला भवानी।
जय जग जननि सकल गुणखानी॥
गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित।
पूरण शरदचन्द्र समसाजित॥
विस्फोटक से जलत शरीरा।
शीतल करत हरत सब पीरा॥
मातु शीतला तव शुभनामा।
सबके गाढ़े आवहिं कामा॥
शोकहरी शंकरी भवानी।
बाल-प्राणरक्षी सुख दानी॥
शुचि मार्जनी कलश करराजै।
मस्तक तेज सूर्य समराजै॥
चौसठ योगिन संग में गावैं।
वीणा ताल मृदंग बजावै॥
नृत्य नाथ भैरो दिखरावैं।
सहज शेष शिव पार ना पावैं॥
धन्य-धन्य धात्री महारानी।
सुरनर मुनि तब सुयश बखानी॥
ज्वाला रूप महा बलकारी।
दैत्य एक विस्फोटक भारी॥
घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत।
रोग रूप धरि बालक भक्षत॥
हाहाकार मच्यो जगभारी।
सक्यो न जब संकट टारी॥
तब मैया धरि अद्भुत रूपा।
करमें लिये मार्जनी सूपा॥
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो।
मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो॥
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा।
मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा॥
अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं।
जहँ अपवित्र सकल दुःख हरिहौं॥
भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं।
विस्फोटक भयघोर नसइहैं॥
श्री शीतलहिं भजे कल्याना।
वचन सत्य भाषे भगवाना॥
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई।
भजै देवि कहँ यही उपाई॥
कलश शीतला का सजवावै।
द्विज से विधिवत पाठ करावै॥
तुम्हीं शीतला, जग की माता।
तुम्हीं पिता जग की सुखदाता॥
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी।
नमो नमामि शीतले देवी॥
नमो सुक्खकरणी दुःखहरणी।
नमो-नमो जगतारणि तरणी॥
नमो-नमो त्रैलोक्य वन्दिनी।
दुखदारिद्रादिक कन्दिनी॥
श्री शीतला, शेढ़ला, महला।
रुणलीह्युणनी मातु मंदला॥
हो तुम दिगम्बर तनुधारी।
शोभित पंचनाम असवारी॥
रासभ, खर बैशाख सुनन्दन।
गर्दभ दुर्वाकंद निकन्दन॥
सुमिरत संग शीतला माई।
जाहि सकल दुख दूर पराई॥
गलका, गलगन्डादि जुहोई।
ताकर मंत्र न औषधि कोई॥
एक मातु जी का आराधन।
और नहिं कोई है साधन॥
निश्चय मातु शरण जो आवै।
निर्भय मन इच्छित फल पावै॥
कोढ़ी, निर्मल काया धारै।
अन्धा, दृग-निज दृष्टि निहारै॥
वन्ध्या नारि पुत्र को पावै।
जन्म दरिद्र धनी होई जावै॥
मातु शीतला के गुण गावत।
लखा मूक को छन्द बनावत॥
यामे कोई करै जनि शंका।
जग मे मैया का ही डंका॥
भनत रामसुन्दर प्रभुदासा।
तट प्रयाग से पूरब पासा॥
पुरी तिवारी मोर निवासा।
ककरा गंगा तट दुर्वासा॥
अब विलम्ब मैं तोहि पुकारत।
मातु कृपा कौ बाट निहारत॥
पड़ा क्षर तव आस लगाई।
रक्षा करहु शीतला माई॥

॥दोहा॥
घट-घट वासी शीतला, शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छइयां में झुलई, मइया पलना डार॥

॥ इतिश्री शीतला माता चालीसा समाप्त॥

हिन्दू धर्म मैं विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को श्री शीतला माता के चालीसा का नियमित पाठ करना चाहिए।
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