25 April 2020

अक्षय तृतीया पूजा तथा सोना खरीदने सबसे शुभ मुहूर्त | Akshaya Tritiya Puja Shubh Muhurat kab hai 2020

अक्षय तृतीया पूजा तथा सोना खरीदने सबसे शुभ मुहूर्त | Akshaya Tritiya Puja Shubh Muhurat kab hai 2020

akshaya tritiya puja shubh muhurat 2020
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🙏🏻 थोड़े से चावल को केसर में रंगकर शंख में डालें। घी का दीपक जलाकर नीचे लिखे मंत्र का कमल गट्टे की माला से 11 माला जप करें-


🌷 अक्षय तृतीया पूजा मंत्र 🌷

सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी।
मंत्र पुते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।

भारतवर्ष में विविध धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के अनुसार सांस्कृतिक विभिन्नताएं प्राप्त होती हैं। बड़े-बड़े त्यौहारों के साथ-साथ कुछ विशेष दिन ऐसे भी होते हैं, जिन्हें हमारी धार्मिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार अत्यंत सौभाग्यशाली दिवस माना जाता हैं। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि एक ऐसी ही तिथि हैं, जिसे अत्यंत ही सौभाग्यशाली माना जाता हैं। प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में जब सूर्य तथा चन्द्रमा अपने उच्च प्रभाव में होते हैं, तथा जब उनका तेज सर्वोच्च होता हैं, उस तिथि को सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं। तथा इस शुभ तिथि को अक्षय तृतीयाअथवा ‘आखा तीज कहा जाता हैं। मान्यता हैं कि, इस दिवस जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका परिणाम सदैव सुखद ही प्राप्त होता हैं। सनातन हिन्दू धर्म के समस्त पर्वों में अक्षय तृतीया पर्व का विशेष महत्व हैं। यह पर्व विशेष रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश सहित सम्पूर्ण उत्तर भारतवर्ष में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता हैं।

अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त 2020

इस वर्ष, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 25 अप्रैल, शनिवार की दोपहर 11 बजकर 51 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 26 अप्रैल, रविवार की दोपहर 01 बजकर 22 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष, 2020 में, अक्षय तृतीया का पर्व 26 अप्रैल, रविवार के दिवस मनाया जाएगा।

इस वर्ष, अक्षय तृतीया के शुभ दिवस पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त, 26 अप्रैल, रविवार की प्रातः 07 बजकर 34 मिनिट से दोपहर 12 बजकर 24 मिनिट तक का रहेगा।

अक्षय तृतीया के अन्य महत्वपूर्ण समय इस प्रकार हैं-

26 अप्रैल 2020, रविवार
सोना खरीदने का समय:- 09:11 से 12:24
अभिजित मुहूर्त:- 11:59 से 12:51
राहुकाल:- 17:16 से 18:52
सूर्योदय:- 05:57 सूर्यास्त:- 18:52
चन्द्रोदय:- 08:06 चन्द्रास्त:- 21:59

अक्षय तृतीया सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त

यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिवस आए तो इस दिवस किए गए दान, जप-तप का फल अत्यंत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पूर्व प्रारम्भ होकर प्रदोष काल तक व्याप्त रहे तो सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।

24 April 2020

भगवान परशुराम जयंती कब हैं 2020। परशुराम जयंती 2020 में कब हैं। Parshuram jayanti kab ki hai। 2020 Parshuram jayanti। शुभ मुहूर्त

भगवान परशुराम जयंती कब हैं 2020। परशुराम जयंती 2020 में कब हैं। Parshuram jayanti kab ki hai। 2020 Parshuram jayanti। शुभ मुहूर्त #ParshuRamJayanti

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भगवान विष्णु जी के छठे अवतार की जयंती परशुराम जयंती के रूप में मनाई जाती हैं। यह पर्व वैशाख के मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के शुभ दिवस आता हैं। यह माना जाता हैं कि परशुराम का जन्म प्रदोष काल के समय हुआ था। अतः जिस दिन प्रदोष काल के समय तृतीया आती हैं, उसे परशुराम जयंती समारोह के लिए उपर्युक्त माना जाता हैं। जिस दिन परशुरामजी अवतरित हुए थे उस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। साथ ही, यह शुभ दिवस देश के अधिकांश प्रदेशों में अक्षय तृतीया के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। जैसे राम भगवान विष्णु के अवतार थे उसी प्रकार परशुराम भी विष्णु के अवतार थे अतः परशुराम को विष्णु तथा राम जी के समान शक्तिशाली माना जाता हैं। भगवान विष्णु जी के छठे अवतार का उद्देश्य पापी, विनाशकारी तथा अधार्मिक राजाओं का वध कर के पृथ्वी को भार मुक्त करना था। इस प्रकार, भगवान परशुराम जी ने क्रूर क्षत्रियों के अत्याचारों के विनाश हेतु पृथ्वी पर जन्म लिया था।
परशुराम दो शब्दों को जोड़ कर बना हैं, परशुराम अर्थात कुल्हाड़ी तथा राम इन दो शब्दों को मिलने पर कुल्हाड़ी के साथ राम अर्थ निकलता हैं।
परशुराम के अनेक नाम हैं जैसे- रामभद्र ,भार्गव ,भृगुपति (ऋषिभृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से जाना जाता हैं।
अन्य सभी अवतारों के विपरीत हिंदू मान्यता के अनुसार, परशुराम अभी भी पृथ्वी पर जीवित हैं। अतः श्रीराम तथा कृष्ण भगवान के विपरीत, परशुरामजी की पूजा किसी-किसी स्थान पर नहीं की जाती हैं। किन्तु, दक्षिण भारत में, उडुपी के समीप पवित्र स्थान पजाका में, एक प्रमुख मंदिर हैं, जहां परशुराम की पूजा पूर्ण श्रद्धा से की जाती हैं। भारत के पश्चिमी तट पर कई मंदिर हैं जो भगवान परशुराम को समर्पित हैं। कोंकण तथा चिप्लून के परशुराम जी के मंदिरों में परशुराम-जयंती अत्यंत धूमधाम से मनायी जाते हैं।
कल्कि पुराण में कहा गया हैं कि भगवान विष्णु के 10 वें तथा अंतिम अवतार श्री कल्कि के गुरु परशुरामजी होंगे। यह प्रथम समय नहीं हैं कि, भगवान विष्णु के छठे अवतार एक अन्य अवतार से मिलेंगे। रामायण के अनुसार, परशुराम सीता तथा भगवान राम के स्वयंवर समारोह में आए तथा भगवान विष्णु के 7 वें अवतार से मिले।

इस वर्ष, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 25 अप्रैल, शनिवार की दोपहर 11 बजकर 51 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 26 अप्रैल, रविवार की दोपहर 01 बजकर 22 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

इस वर्ष, 2020 में भगवान परशुराम जयंती का पर्व या परशुराम जन्मोत्सव 25 अप्रैल, शनिवार के दिन मनाया जाएगा।

इस वर्ष, भगवान परशुराम जयंती के शुभ दिवस पर भगवान परशुराम जी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त, 25 अप्रैल, शनिवार की प्रातः 07 बजकर 36 मिनिट से 09 बजकर 10 मिनिट तक का रहेगा।

परशुराम जयंती के अन्य महत्वपूर्ण समय इस प्रकार हैं-
25 अप्रैल 2020, शनिवार
अभिजित मुहूर्त:- 11:59 से 12:51
राहुकाल:- 09:11 से 10:48
सूर्योदय:- 05:58 सूर्यास्त:- 19:24
चन्द्रोदय:- 06:52 चन्द्रास्त:- 20:54

       

भगवान परशुराम जयंती पूजा सामग्री

भगवान परशुराम जी की मूर्ति या प्रतिमा, चौकी या लकड़ी का पटरा, धूपबत्ती, शुद्ध घी का दीपक, नैवेद्य, अखंडित अक्षत, चंदन, वस्त्र, कपूर, पुष्प, पुष्पमाला, शुद्ध जल से भरा एक लोटा आदि Parshuram Jayanti Puja सामग्री हैं।

भगवान परशुराम जयंती पूजा विधि

parshu ram
परशुराम जयंती के दिन साधक को प्रातः काल उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद पूजा स्थल को शुद्ध कर ले। उसके बाद उत्तर या पूर्व मुखी होकर आसन पर बैठ जाये। फिर चौकी या लकड़ी के पटरे पर श्री परशुराम जी की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित करें। अब हाथ में अक्षत, जल, एक सिक्का तथा पुष्प लेकर नीचे बताये गए निम्न मंत्र के द्वारा परशुराम जयंती पूजा व्रत का संकल्प करें :

मम ब्रह्मत्व प्राप्तिकामनया परशुराम पूजनमहं करिष्ये

इसके बाद हाथ के सिक्का, पुष्प तथा अक्षत को श्री परशुराम जी के चरणों में अर्पित कर दें। उसके बाद षोडशोपचार विधि से पूजन करके नैवेद्य अर्पित करें। तथा फिर धुपबत्ती तथा शुद्ध घी का दीपक जलाये तथा निम्न परशुराम जयंती पुजा मंत्र के द्वारा श्री परशुराम जी को अर्घ्य अर्पित करें
जमदग्निसुतो वीर क्षत्रियान्तकर प्रभो।
गृहाणार्घ्य मया दत्तं कृपया परमेश्वर ॥

उसके बाद आप बताये गए मंत्र की एक माला का जाप भी करें।
भगवान परशुराम जयंती पूजा मंत्र
ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।

उसके बाद श्री परशुराम जी की कथा सुने तथा चालीसा तथा आरती करें।

16 April 2020

वरुथिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Varuthini Ekadashi 2020

वरुथिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Varuthini Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

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वैदिक विधान कहता हैं कि, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस एकादशी व्रत के दिवस भगवान श्री विष्णु जी के वराह अवतार की पूजा की जाती हैं। अतः वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशीकहलाती हैं। वरुथिनी एकादशी को बरूथिनी ग्यारस भी कहा जाता हैं। इस व्रत को करने से जातक को सुख तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। इस व्रत के दिन दान करने से कन्यादान तथा हजारों वर्षों के तपस्या के समान फल की प्राप्ति होती हैं तथा प्रत्येक प्रकार के दु:ख दूर हो जाते हैं। मनुष्य इस लोक के प्रत्येक सुख भोग कर अंत मे स्वर्गलोक को प्राप्त होता हैं। वरुथिनी एकादशी व्रत से अभागिनी स्त्री को भी सौभाग्य प्राप्त होता हैं। कथा के अनुसार वरूथिनी एकादशी के प्रभाव से ही राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुयी थी। वरूथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तपस्या करने के समान माना गया हैं। सूर्यग्रहण के समय स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता हैं वही फल वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से प्राप्त हो जाता हैं। इस व्रत का फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक माना गया हैं। वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए तथा इस दिन खरबूजे का सागर लेना चाहिए।



वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की प्रथम एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।


इस वर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 अप्रैल, शुक्रवार की साँय 08 बजकर 03 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 18 अप्रैल, शनिवार की रात्रि 10 बजकर 16 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2020 में वरुथिनी एकादशी का व्रत 18 अप्रैल, शनिवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 19 अप्रैल, रविवार की प्रातः 06 बजकर 08 मिनिट से 08 बजकर 36 मिनिट तक का रहेगा।
द्वादशी समाप्त होने का समय –00:42 मध्यरात्रि
  

वरुथिनी एकादशी का व्रत कब किया जाता हैं?

सनातन हिन्दू पंचाङ्ग के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत सम्पूर्ण उत्तरी भारत-वर्ष में पूर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी के दिन किया जाता हैं। साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार यह व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन आता हैं। वहीं, अङ्ग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह व्रत मार्च या अप्रैल के महीने में आता हैं।

05 April 2020

हम दीप प्रज्वलन क्यों करते हैं? दीपक जलाते समय मंत्र | Sandhya Deep Prajwalan Mantra | Diya Kaise Jalaye

हम दीप प्रज्वलन क्यों करते हैं? दीपक जलाते समय मंत्र | Sandhya Deep Prajwalan Mantra | Diya Kaise Jalaye

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सनातन हिन्दू धर्म के अनुयाई प्रतिदिन अपने घर में दीप प्रज्वलित करते हैं। हमारे धर्म में भगवान की उपासना दीप प्रज्वलित करके ही की जाती हैं। कोई भी पूजा हो या किसी भी मांगलिक कार्य का शुभारम्भ भी द्वीप प्रज्वलित करके ही किया जाता हैं। आत्मा को परमात्मा से जोड़ने या उनकी उपासना करने के लिए दीप प्रज्वलित किया जाता हैं। घर परिवार में प्रातः तथा सांय काल में दीप प्रज्वलित करने की प्रथा हैं। दीप प्रकाश का द्योतक हैं, तो प्रकाश ज्ञान का द्योतक हैं। परमात्मा से हमें संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो, अतः दीप प्रज्वलन करने की परंपरा हैं।


सनातन धर्म में दीप उस निराकार, अनादि, निर्गुण, निर्विशेष तथा अनन्त परब्रह्म परमेश्वर का प्रतीक हैं, जो की समस्त सृष्टि के आधार हैं। ब्रह्मपुराण में कहाँ गया हैं की, पूर्ववर्ती प्रलयकाल में केवल ज्योति-पूँजय अर्थात केवल दीपक ही प्रकाशित होते थे। जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्य के समान ही थी। वह ज्योतिर्यमंडल नित्य हैं तथा वही असंख्य विश्व का कारण हैं। वह स्वेछामय, सर्वव्यापी परमात्मा का परम उज्ज्वल तेज़ हैं। उसी तेज़ के भीतर मनोहर रूप में तीनों ही लोक विद्यमान रहते हैं।
यह भी ध्यान देने बात है की, दिये का मुख पूर्व या उत्तर पूर्व की दिशा में रहे, दक्षिण की दिशा में केवल यम का दीपक रखा जाता हैं। साथ में दीपक की बाती 1, 3 या 5 जैसी विषम संख्या में होनी चाहिए। संध्या-दीपक वंदना के लिए मिट्टी का दिया उपर्युक्त हैं तथा आप घी, सरसों का तेल या तिल के तेल का प्रयोग कर सकते है।

दीप प्रज्वलन क्यों किया जाता हैं?

सामान्यतः प्रत्येक भारतीयों के घरों में प्रत्येक संध्याकाल दीप का प्रज्वलन ईश्वर की पूजा से पहले किया जाता हैं। कुछ घरों में केवल संध्याकाल को तथा कुछ में दिन में प्रातःकाल तथा संध्याकाल दो बार दीपक प्रज्वलित किया जाता हैं। कई स्थानों पर निरंतर दीपक जलता रहता हैं, जिसे अखंड दीप नाम से जाना जाता हैं।
दीपक शिक्षा को प्रदर्शित करता हैं, घोर अंधकार में प्रकाश को प्रदर्शित करता हैं। ईश्वर चैतन्य हैं, जो कि प्रत्येक चेतना के गुरु हैं, अतः दीप की पूजा ईश्वर के समान ही की जाती हैं।
जिस प्रकार से शिक्षा जड़ता को नष्ट करती हैं, वैसे ही, दीपक अँधेरे को नष्ट करता हैं। शिक्षा आंतरिक शक्ति हैं जिससे बाहरी विश्व की प्रत्येक उपलब्धियों को पाया जा सकता हैं। यही कारण हैं कि हम दीपक का प्रज्वलन करते हैं तथा नमन करते हैं जो कि शिक्षा का सर्वोत्तम स्तर हैं।
बल्ब तथा ट्यूब लाइट भी प्रकाश के स्रोत हैं, किन्तु सांस्कृतिक घी या तेल का दीपक धार्मिक मान्यताएं भी अपने में समाहित किये रहता हैं। तेल या घी का दीपक नकारात्मक सोच, वासना तथा घमंड को प्रदर्शित करता हैं जैसे-जैसे ये जलता हैं वैसे-वैसे हमारी वासना, घमंड आदि धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। दीपक की लौ सदैव ऊपर की ओर जलती हैं, जैसे हमारी शिक्षा हमको ऊपर की ओर ले जाती हैं।

संध्या दीप दर्शन श्लोक

शुभम करोति कल्याणम अरोग्यम धनसंपदा।
शत्रुबुद्धि विनाशायः दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरहु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

भावार्थ- मैं उस दिव्य दीपज्योति की उपासना करता हूँ जो शुभ, कल्याण की प्रदायक हैं, जो आरोग्यता, धन सम्पदा प्रदान करने वाली हैं तथा मेरे शत्रुओं का विनाश करती हैं। दीप ज्योति साक्षात् परब्रह्म हैं तथा दीप ज्योति ही साक्षात् जनादर्न हैं, मैं उस दीपज्योति की उपासना करता हूँ तथा दीपज्योति से प्रार्थना करता हूँ की वह मेरे समस्त पाप हर ले।

“शत्रुबुद्धिविनाशाय” यह पंक्ति दो प्रकार से व्याख्यायित होती हैं -
1- इस दीपक से प्रकाश अज्ञानता के अंधेरे को नष्ट करता हैं जो ज्ञान का शत्रु हैं।
2- यह प्रकाश शत्रुओं की अल्पबुद्धि (बुद्धि) को नष्ट कर सकता हैं।

इसी प्रकार मनुष्य के मन को विकारों से दूर ले जाने हेतु दीप प्रज्वलित किया जाता हैं। प्रत्येक सनातन धर्मी प्रभु से यही कामना करता हैं की, जिस प्रकार दीप की ज्योति हमेशा ऊपर की ओर उठी रहती हैं, उसी प्रकार मानव की वृत्ति भी सदा ऊपर ही उठे, यही दीप प्रज्वलन का अर्थ हैं। दीपक जलाना शुभ हैं, तथा हमें अच्छे स्वास्थ्य तथा समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करता हैं। जो शुभ करता हैं, कल्याण करता हैं, आरोग्य रखता हैं, धन संपदा करता हैं तथा शत्रु बुद्धि का विनाश करता हैं, ऐसे दीप यानी दीपक के प्रकाश को मैं नमन करता हूं। समस्त कल्याण की कमाना रखने वाले प्रत्येक मनुष्य को दीप जलाते समय यह मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। निश्चित ही आपका कल्याण होगा।

ॐ असतो मा सद्गमय,
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय,
ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय॥

भावार्थ- हे ओमकार रुपी भगवान! हमें असत्य से बचा कर सत्य का मार्ग दिखाओ। हमारे मन के भीतर के अन्धकार तथा अज्ञानता को नष्ट कर ज्योति तथा सत्यता की ओर अग्रसर करो। हमें मृत्यु से अमरता की ओर अग्रसर करो।

दीप प्रज्वलन के दौरान यह मंत्र भी पढे जाते हैं:-


वक्रतुंड महाकाय
सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव
सर्व कार्येषु सर्वदा।।

दीपज्योतिः परब्रह्म दीपः सर्वतमोऽपहः
दीपेन साध्यते सर्वं संध्यादीपो नमोस्तु ते।।

।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

02 April 2020

कामदा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Kamada Ekadashi 2020 Kamda Ekadashi Vrat

कामदा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Kamada Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

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वैदिक विधान कहता हैं कि, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस एकादशी का व्रत जातक की प्रत्येक कामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता हैं। अतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। यह एकादशी प्रत्येक प्रकार के कष्टों का निवारण करने वाली तथा मनोवांछित फल प्रदान करने वाली होने के कारण ही कामदा कही जाती हैं। इसका शाब्दिक अर्थ भी हैं काम तथा दा अर्थात प्रत्येक प्रकार के कामनाओ को पूर्ण करने वाला व्रत। कामदा एकादशी अत्यंत शीघ्र फलदायी होने कारण ही इस एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता हैं, चैत्र नवरात्रि तथा राम नवमी के पश्चात हिन्दू नववर्ष की यह प्रथम एकादशी हैं। हिन्दु धर्म में ब्राह्महत्या करना सबसे भयंकर पाप माना गया हैं। किन्तु, पौराणिक विधान हैं कि, ब्राह्महत्या का पाप भी कामदा एकादशी का व्रत करने से नष्ट किया जा सकता हैं। इस व्रत में भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस व्रत को भगवान् जी का उत्तम व्रत कहा गया हैं। कामदा एकादशी के फलों के विषय में कहा जाता हैं कि, यह एकादशी सर्व पाप विमोचिनी हैं। कामदा एकादशी के प्रभाव से पापों का शमन होता हैं तथा संतान की प्राप्ति भी संभव हो जाती हैं। इस व्रत को करने से परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। जिस प्रकार से अग्नि लकड़ी को जला देती हैं उसी प्रकार से इस व्रत को करने से मनुष्य के प्रत्येक पापों का नाश हो जाता हैं तथा संतान सुख के साथ-साथ अन्य प्रकार के पुण्य की भी प्राप्ति होती हैं। मनुष्य को इस व्रत के करने से वैकुंठ की प्राप्ति संभव हो जाती हैं। यह भी कहा गया हैं कि कामदा एकादशी पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली हैं। मान्यता यह भी हैं कि, कामदा एकादशी का व्रत रखने व्रती को प्रेत योनि से भी मुक्ति प्राप्त हो सकती हैं। इस व्रत में नमक खाना वर्जित माना जाता हैं। कामदा एकादशी हिंदू संवत्सर की प्रथम एकादशी होती हैं। अतः इसका महत्व अधिक बढ़ जाता हैं।


कामदा एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की प्रथम एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।


इस वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 03 अप्रैल, शुक्रवार की मध्यरात्रि 12 बजकर 57 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 04 अप्रैल, शनिवार की रात्रि 10 बजकर 29 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2020 में कामदा एकादशी का व्रत 04 अप्रैल, शनिवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, कामदा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 05 अप्रैल, रविवार की प्रातः 06 बजकर 21 मिनिट से 08 बजकर 46 मिनिट तक का रहेगा।
द्वादशी समाप्त होने का समय – 19:24
  

कामदा एकादशी का व्रत कब किया जाता हैं?

चैत्र नवरात्रि तथा राम नवमी के पश्चात यह प्रथम एकादशी हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान में यह मार्च या अप्रैल के महीने में आती हैं।
सनातन हिन्दू पंचाङ्ग के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत सम्पूर्ण उत्तरी भारत-वर्ष में पूर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी के दिन किया जाता हैं। साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार यह व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन आता हैं। वहीं, अङ्ग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह व्रत मार्च या अप्रैल के महीने में आता हैं।

01 April 2020

कैसे करें कन्या पूजन चैत्र नवरात्रि 2020 | लॉक डाउन | नवरात्र के व्रत का समापन | ज्योतिष की सलाह | Navratri Kanya Pujan Vidhi

कैसे करें कन्या पूजन चैत्र नवरात्रि 2020 | लॉक डाउन | नवरात्र के व्रत का समापन | ज्योतिष की सलाह | Navratri Kanya Pujan Vidhi

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Navratri Kanya Pujan Vidhi
नवरात्रि महापर्व का समापन छोटी कन्याओं के पूजन के पश्चात होता हैं। नौ दिनों तक व्रत करने वाले प्रत्येक भक्त कन्या पूजन के पश्चात ही अपना व्रत खोलते हैं। नवरात्र में घरों तथा मंदिरों में कन्याओं का पूजन किया जाता था। किन्तु इस वर्ष विषाणुजन्य महामारी के कारण सम्पूर्ण देश में लॉकडाउन चल रहा हैं, जिस के कारण सामूहिक रूप से कन्या पूजन करना संभव नहीं हैं। इस वर्ष की नवरात्रि में परिस्थितियां अत्यंत भिन्न प्रकार की हैं। मंदिर के कपाट बंद हैं तथा हम सभी घर में ही रहने के लिए विवश हैं। पूजन-अर्चन के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग तथा नेशनल लॉकडाउन के नियमों का पालन भी अति आवश्यक हैं। ऐसे में कन्या पूजन करना, एक चुनौती साबित हो रही हैं।


प्रत्येक भक्तों के मन में जाने अनजाने यह शंका हैं तथा यह चिंता का विषय हैं कि, इस वर्ष नवरात्रि में कन्या पूजन कैसे किया जाए? कैसे कन्याओं को भोजन करवाया जाए? यह जानकारी हम आपको हमारे इस विडियो के माध्यम से प्रदान करेंगे, मानव कल्याण हेतु यह विडियो अधिक से अधिक शेयर अवश्य करें।

सर्वप्रथम, अति आवश्यक सूचना।

                            १:-      कृपया ध्यान दे कि यदि आपके घर-परिवार में आपके या किसी भी अन्य सदस्य के संक्रमित होने का संदेह हैं, जैसे की अधिक बुखार, खांसी या जुकाम, तो आप डाक्टर को अवश्य दिखाये, साथ ही, आपके घर का प्रसाद या भोग किसी को भी ना बांटे, यहाँ तक की, गाय को भी न दें। इस बार माताजी से प्रार्थना कर क्षमा मांग लें। माता आप की विवशता अवश्य समझेंगी।
                            २:-      यह सदैव ध्यान रहे की, किसी को संक्रमित करके, आपको पुण्य नहीं प्राप्त होगा, किन्तु आप एक महा-पाप के भागी बन जाएंगे। अतः भूल कर भी ऐसा कभी भी ना करें।
                            ३:-      साथ ही यह भी ध्यान दे की, किसी भी कन्या को घर पर बुलाकर पूजा ना करें, इससे कन्या तथा आपके जीवन को संकट हो सकता हैं।
                            ४:-      विषाणुजन्य आपदा के संक्रमण के खतरे को देखते हुए प्रत्येक महिलाओं की चाहिए की वे, अपने घर की बेटियों को भी कन्या भोज के लिए घर से बाहर ना जाने दें।

लॉक डाउन में कन्या पूजन

                            १:-      शास्त्र कहते हैं कि, नवरात्रि में 1, 3, 5, 9 या 11 जैसी विषम संख्या में अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्या का पूजन करना चाहिए, यदि संभव हो तो एक ही कन्या का भी पूजन कर सकते हैं। नौ कन्या की जगह एक कन्या को खिलाने से भी संकल्प सिद्ध होता हैं। एक कन्या का पूजन कर शेष कन्याओं के निमित्त पूजन का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प को किसी निर्धन या असहाय परिवार की कन्या को भेंट कर देना चाहिए।
                            २:-      इस बार नवरात्र में जब आप घर के बाहर से कन्याओं को अपने घर में आमंत्रित नहीं कर सकते हैं तो, आप अपने घर की ही छोटी बेटियों, भतीजियों या भांजियों को भोजन करवा कर उनकी पूजा कर सकते हैं। किन्तु, पूजन से पूर्व आप हाथ में जल लेकर यह संकल्प करें कि, “नवरात्र में कन्या पूजन हेतु, मैं अपनी पुत्री को देवी मानकर उनका पूजन कर रहा हूं।” तथा माता रानी से क्षमा प्रार्थना कर लें। पूजन के दौरान कन्या का अपमान ना करें। यह भी ध्‍यान रहे कि, कन्या की आयु 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
                            ३:-      यदि आपके घर में कोई बालक हैं तो, कन्या पूजन में उसे भी बैठाएं। बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता हैं। भगवान शिव ने प्रत्येक शक्ति पीठ में माताजी की सेवा हेतु, बटुक भैरव को तैनात किया हैं। यदि किसी शक्ति पीठ में माताजी के दर्शन के पश्चात भैरव के दर्शन न किए जाएं तो दर्शन अधूरे माने जाते हैं।
                            ४:-      यदि घर में कोई भी छोटी कन्या नहीं हैं तो, आप घर में स्थित मंदिर में माता का पूजन करें तथा उन्हें विभिन्न प्रकार की सामग्री भेंट करें। घर में माता रानी की मूर्ति या प्रतिमा के समक्ष 9 कन्याओं की दक्षिणा रख कर कन्या पूजन करें।
                            ५:-      वर्तमान में मोबाइल के विडियो कॉलिंग या कॉन्फ्रेंसिंग से भी 9 कन्याओं को जोड़ सकते हैं। उनके उपहार या भेंट को संकल्प करके अपने पास रख लें तथा सही समय होने पर उन्हें भिजवा सकते हैं। उनके या उनके अभिभावकों के अकाउंट में ऑनलाइन या PayTM, GooglePay जैसी सुविधाओं से उपहार राशि दे सकते हैं। या तो कन्याओं के उपहार संकल्प करके अपने पास रखें तथा सही समय होने पर उन्हें भिजवा सकते हैं।
                            ६:-      एक थाली लगाकर या आप जो भी निवेदित करना चाहते हैं, वह सामग्री किसी देसी गाय को खिला दें, माना जाता हैं कि, गाय में 33 कोटि देवी-देवता का निवास हैं। जो सामान आपने माता को प्रसाद के रूप में चढ़ाया हैं, उस प्रसाद का कुछ हिस्सा माता का ध्यान करते हुए गाय को खिला दें। इसके पश्चात ही आप तथा परिवार के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करें।
                            ७:-      नवरात्रि में देवी को सुहाग की सामग्री भी चढ़ाई जाती हैं। मान्यता हैं कि इससे सौभाग्य तथा सुख समृद्धि की वृद्धि होती हैं। शास्त्रों में बताया गया हैं कि, माता को सुहाग की सामग्री चढ़ाने के लिए बाहर जाना आवश्यक नहीं हैं। नवरात्रि के दिनों में माता कन्या रूप में, उनकी जितनी भी मूर्तियां हैं, उनमें निवास करती हैं। अतः घर में माता की मूर्ति तथा प्रतिमा के समक्ष एक लाल वस्त्र में चावल, सिंदूर, हल्दी का टुकड़ा, चूड़ियां, बिंदी, काजल तथा कुछ पैसे रखकर माता के सामने रखें तथा उनसे सौभाग्य वृद्धि की प्रार्थना करें तथा लॉकडाउन समाप्त होने के पश्चात आप उसे सुहागिन महिलाओं को जरूर बांटे अथवा स्वयं भी प्रयोग करें।
                            ८:-      इस आपदा के समय कई परिवार को भोजन प्राप्त नहीं हो रहा हैं। कन्या पूजन ना कर पाने की स्थिति में, किसी निर्धन तथा असहाय व्यक्ति को भोजन कराएं। इसका पुण्य भी उतना ही प्राप्त होगा। साथ ही, कन्या पूजन, नवरात्रि के भंडारे तथा माताजी के जागरण आदि में खर्च होने वाले धन को इस विषाणुजन्य आपदा के नाम पर प्रधानमंत्री जी के “पीएम-केयर्स फंड” को दान कर दें। यही माताजी की सच्ची सेवा होगी।
                            ९:-      कन्या पूजन में प्रसाद स्वरूप सूखे नारियल, मखाना, मूंगफली, मिसरी भेंट कर सकते हैं। यह प्रसाद लंबे समय तक टिकते हैं तथा स्थिति सामान्य होने के पश्चात इन्हें किसी कन्या को अथवा माता के मंदिर में भेंट कर सकते हैं।

                      १०:-      कन्या पूजन करने से पूर्व या सुहाग की सामग्री देने से पूर्व आप मन ही मन संकल्प अवश्य लें तथा मां भगवती से पूजा-पाठ तथा हवन पूजन स्वीकार करने की विनती करें। उसके पश्चात सभी जरूरी सामग्री के साथ पूजा-पाठ करें। इस प्रकार घर में रहकर आप कन्या पूजन तथा सुहाग की सामग्री देने की परंपरा का पालन करके पुण्य तथा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।