ग्रहण सूतक | ग्रहण के समय ध्यान देने योग्य 60 नियम | ग्रहण की वैज्ञानिक मान्यता | ग्रहण काल | पौराणिक मान्यता
ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें :- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में कई नियमो
का पालन करते है किन्तु ग्रहण के सूतक के समय पर सभी मनुष्यो को कुछ विशेष
नियमो का पालन करना अति आवश्यक माना गया है। चन्द्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण के
सूतक का सनातनी हिन्दू धर्म में अत्यंत विशेष महत्त्व है। सामान्यतः ग्रहण प्रत्येक
वर्ष में चार बार आते है। ग्रहण सूर्य, चंद्रमा तथा पृथ्वी के एक रेखा में एक साथ
आने की स्तिथि के कारण होता है। अमावस्या को सूर्य ग्रहण तथा पूर्णिमा के दिन चंद्र
ग्रहण आता है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण पृथ्वी पर दिखाई
देने पर ही सूतक मान्य होता है अन्यथा ग्रहण दिखाई ना दे तो उनकी कोई भी
धार्मिक मान्यता नहीं होती है।
सूतक का अर्थ
होता है की कोई दोषयुक्त समय या ऐसा समय जब प्रकृति अति संवेदनशील होती है , अतः घटना, धनहानी, रोग व दुर्घटना होने की संभावना भी अधिक
होती है। अतः ऐसे समय में सचेत रहना चाहिए तथा भगवान का ध्यान, मंत्रजाप तथा नियमो का पालन करना चाहिए।
दोस्तो आज हम
आपको बताएँगे,
वैदिक धर्म-शास्त्र में बताए गए, ग्रहण के सूतक में कौन कौन
से कार्य करने चाहिए तथा कौन कौन से नहीं करने चाहिए। इस से पहले हम जानेंगे ग्रहण
काल क्या है? तथा ग्रहण की वैज्ञानिक मान्यता एवं पौराणिक
मान्यता-
ग्रहण काल :
सूतक में
सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण का काल अलग अलग होता है। यदि सूर्य ग्रहण है तथा आपके
क्षेत्र में दिखाई दे रहा है, चाहे कम समय के लिए ही क्यों ना हो उसकी धार्मिक मान्यता अवश्य
होती है। सूर्य ग्रहण में सूतक का प्रभाव 12 घंटे
पहले तथा चंद्र ग्रहण में सूतक का प्रभाव 9 घंटे पहले ही
प्रारम्भ हो जाता है।
ग्रहण की वैज्ञानिक मान्यता
ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक
शक्ति का संचार होता है। अतः इस समय को अशुभ माना जाता है। ग्रहण के समय अल्ट्रावॉयलेट
किरणें अर्थात पार-जांबली तरंगे उत्पन्न होती हैं जो हमारे जैविक कोषोको
प्रभावित करती हैं, अतः ग्रहण के समय सावधानी रखी
जाती है। इस समय चंद्रमा, पृथ्वी के अति निकट होता है, जिससे गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी को अधिक प्रभावित
करता है। इसी कारण समुद्र में ज्वार भाटा आते हैं। भूकंप भी गुरुत्वाकर्षण
के घटने तथा बढ़ने के कारण आ सकता हैं, अतः
ग्रहण काल के समय या उसके पश्चात ज्वार भाटा तथा भूकंप आने की सम्भावना अधिक रहती
है।
पौराणिक मान्यता
ज्योतिष
के अनुसार राहु ,केतु अनिष्टकारक तथा पापी
ग्रह माने गए हैं। ग्रहण के समय राहु तथा केतु की छाया सूर्य तथा चंद्रमा पर पड़ती
है, इस कारण सृष्टि अपवित्र तथा
दूषित हो जाती है। अतः ग्रहण के समय सूतक के नियमो का पालन अवश्य करना चाहिए।
ग्रहण
के समय ध्यान देने योग्य 60 नियम
१.
ग्रहण काल में ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहिए।
२.
भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- 'सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया
पुण्यकर्म जैसे की जप, ध्यान,
दान आदि एक लाख
गुना तथा सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगाजल पास में हो तो
चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना तथा सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।'
३.
ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
४.
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन तथा श्राद्ध तथा अंत में सचैल
स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।
५.
सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर अर्थात 12 घंटे पूर्व तथा
चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर अर्थात 9 घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक तथा रोगी डेढ़ प्रहर अर्थात साढ़े चार घंटे पूर्व तक खा सकते हैं।
६.
ग्रहण के समय सोने से रोगी,
लघुशंका करने से
दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सुअर तथा उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती
महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।
७.
ग्रहण के समय गर्भवती महिलाए, अपने होने वाले संतान की रक्षा के लिए
संतान गोपाल मंत्र का निरंतर जाप करे।
८.
ग्रहण को कभी भी ना देखे। प्रतिबिंब भी देखना अच्छा नहीं
माना जाता है।
९.
ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके,
लकड़ी तथा फूल
नहीं तोड़ने चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना
चाहिए। ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, भार्या-संघ तथा भोजन – यह सभी कार्य वर्जित हैं।
१०. सूतक में भोजन ग्रहण ना करे। दूध , फल, जूस या सात्विक भोजन कर सकते है। तथा गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग , बच्चे तथा बीमार व्यक्ति पर यह नियम लागू
नहीं होता है। वे इस समय फल, जूस, पानी
का सेवन कर सकते है।
११.
ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग
भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए तथा ग्रहण प्रारम्भ होने से अंत तक
अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
१२.
ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की
पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न
का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना उत्तम
माना गया है।
१३. सूतक में भोजन ना बनाये। भोजन बना हुआ है, तो उसे गोबर, गौमूत्र या गंगाजल से पवित्र कर के खाये।
१४. गर्भवती महिलाएं चाकू छुरी से कुछ भी ना
काटे।
१५. सूतक में सिलाई कढ़ाई का कार्य ना करे। विशेषकर
गर्भवती महिलाएं ऐसा कार्य ना करे।
१६. देवी भागवत पुराण के अनुसार भूकंप एवं
ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए।
१७. ग्रहण के समय शौचालय ना जाये। किन्तु
गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग, बच्चे तथा बीमार व्यक्ति पर यह नियम लागू
नहीं होता।
१८. ग्रहण के समय भगवान की मूर्ति को स्पर्श
ना करे। मंदिर या पूजा के स्थान को ढँक के रखे।
१९. व्यसन से दूर रहे। अपराध बुरे काम, बुरे विचार तथा मिथ्या-वचन
से दूर रहे। क्योंकि इस समय किये गए बुरे कार्य का प्रभाव एक लाख गुना बढ़
जाता है।
२०. ग्रहण के पश्चात घी तथा खीर से हवन करे, इससे आपको लाभ होगा तथा
लंबे समय से चल रहे रोग से रोग से मुक्ति प्राप्त होगी।
२१. ग्रहण के समय यदि आपकी कुंडली में सूर्य
या चंद्र दोष है तो यह समय ग्रहण संबंधी उपचार के लिए उपयुक्त है।
२२. यदि चंदमा निर्बल है तो “ॐ चन्द्राय: नमः” मन्त्र का जप करे।
२३. यदि आपका सूर्य निर्बल है तो इस समय
मंत्र“ॐ
सूर्याय: नमः” का जप करे।
२४. पितृ दोष निवारण के लिए भी सूर्य ग्रहण
का समय उपयुक्त होता है। अतः इस समय नियमो का पालन अवश्य करे।
२५. यदि आप किसी तीर्थ स्थल पर है, तो वहाँ स्नान करे एवं
मंत्र-जाप तथा दान करे।
२६.
ग्रहण के समय गायों को घास,
पक्षियों को
अन्न, तथा जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक
गुना पुण्य प्राप्त होता है।
२७.
स्कन्द पुराण के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का दिया अन्न
खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्यकर्म नष्ट हो जाता है।
२८. ग्रहण के समय तुलसी पत्ता भूल से भी नहीं
तोड़ना चाहिए, यदि आवश्यकता है तो, सूतक
से पहले ही तोड़ कर रख ले।
२९. यदि घर में दूध तथा दही है तो उसमें तुलसी
पत्ता डाल दे। जिस से ग्रहण का दुष्प्रभाव नहीं होगा।
३०.
ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने
खाता है, उतने वर्षों तक 'अरुन्तुद' नरक में वास करता है।
३१. सूतक के समय भोजन ना बनाये। सूतक से पहले
भोजन तैयार कर ले तथा सूतक के समय ही समाप्त कर ले यदि भोजन बच जाता है तो उसे पशु
,पक्षी
को दान कर दे।
३२. यदि कुछ विशेष भोजन है जो आप त्याग नहीं करना
चाहते तो उसमे सूतक से पहले तुलसी पत्ता डाल दे।
३३. गीता, रामायण, शांति पाठ
जैसे धार्मिक पुस्तक का पाठ करे।
३४. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार ग्रहण-अस्त
के समय सूर्य तथा चन्द्रमा को रोगभय के कारण नहीं देखना चाहिए।
३५. गर्भवती महिलाये अपनी सोच को सकारात्मक
रखे क्योंकि उसका सीधा प्रभाव आपके होने वाली संतान पर दिखाई देता है।
३६. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती
है।
३७. अच्छे विचार तथा अच्छे भाव मन में लाये।
नकारात्मक बातें ना करे।
३८. अपने सामान्य दैनिक कार्य करें। किन्तु
घर से बाहर केवल विशेष प्रयोजन से ही जाये।
३९. स्नान कर भगवान का ध्यान तथा समरण करे।
जो भी आपके आराध्य देव है उनका ध्यान लगाना अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।
४०. ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि
की शुद्धि हेतु ग्रहण के पश्चात में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित
स्नान करना चाहिए।
४१.
ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए। ग्रहण के
स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले
हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का तथा गंगा
की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है।
४२. ग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से
कई गुना फल प्राप्त होता है। श्रेष्ठ साधक ग्रहणके समय उपवास-पूर्वक ब्राह्मी घृत
का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने के पश्चात उस घृत को पी
ले। ऐसा करने से वह मेधा अर्थात धारणशक्ति, कवित्वशक्ति तथा वाक्-सिद्धि का स्वामी
बन जाता है।
४३.
तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में
महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण तथा
संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।
४४.
ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
४५. ग्रहण के उपरांत स्नान कर यथासंभव किसी निर्धन
एवं योग्य व्यक्ति को दान करे आपको इस दान का लाभ कई गुना अधिक प्राप्त होगा।
४६. ग्रहण में सभी वस्तुओं में कुश डाल देनी
चाहिए कुश से दूषित किरणों का प्रभाव नहीं पड़ता है,
क्योंकि कुश
जड़ी- बूटी का काम करती है।
४७. ग्रहण के समय तुलसी तथा शमी के पेड़ को
नहीं छूना चाहिए। कैंची, चाकू या फिर किसी भी धारदार वस्तु का
प्रयोग नहीं करना चाहिए।
४८. ग्रहण में किसी भी भगवान की मूर्ति तथा
तस्वीर को स्पर्श नहीं चाहिए। इतना ही नहीं सूतक के समय से ही मंदिर के दरवाजे बंद
कर देने चाहिए।
४९. ग्रहण के दिन सूतक लगने के पश्चात छोटे
बच्चे, बुजुर्ग तथा रोगी के अलावा कोई व्यक्ति
भोजन नहीं करे।
५०. ग्रहण के समय खाना पकाने तथा खाना नहीं
खाना चाहिए, इतना ही नहीं सोना से भी नहीं चाहिए। ऐसा
कहा जाता है कि ग्रहण के वक्त सोने तथा खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
५१. क्योंकि ग्रहण के वक्त वातावरण में
नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो कि बच्चे तथा मां दोनों के लिए
हानिकारक मानी जाती है।
५२. गर्भावस्था की स्थिति में ग्रहण काल के
समय अपने कमरे में बैठ कर के भगवान का भजन ध्यान मंत्र या जप करें।
५३. ग्रहण काल के समय प्रभु भजन, पाठ , मंत्र,
जप सभी धर्मों
के व्यक्तियों को करना चाहिए, साथ ही ग्रहण के समय पूरी तन्मयता त था
संयम से मंत्र जाप करना विशेष फल पहुंचाता है। इस समय अर्जित किया गया पुण्य अक्षय
होता है। कहा जाता है इस समय किया गया जाप तथा दान,
सालभर में किए
गए दान तथा जाप के बराबर होता है।
५४. ग्रहण के दिन सभी धर्मों के व्यतियों को
शुद्ध आचरण करना चाहिए।
५५. किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं
देना चाहिए, सब के साथ करना चाहिए।
५६. सभी के साथ अच्छा व्यवहार करें, तथा मीठा बोलें।
५७. ग्रहण के समय जाप, मंत्रोच्चारण, पूजा-पाठ तथा दान तो फलदायी होता ही है।
५८. ग्रहण मोक्ष के पश्चात घर में सभी
वस्तुओं पर गंगा जल छिड़कना चाहिए, उसके पश्चात स्नान आदि कर के भगवान की
पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा हवन करना चाहिए तथा भोजन दान करना चाहिए। धर्म सिंधु
के अनुसार ग्रहण मोक्ष के उपरांत हवन करना, स्नान,
स्वर्ण दान, तुला दान, गौ दान भी श्रेयस्कर है।
६०. ग्रहण के समय इस पाठ तथा मंत्र का करें
जाप
पाठ: दुर्गा
सप्तशती कवच पाठ
मंत्र: ऐं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
गर्वभती महिलाये, बच्चे, बुज़ुर्ग तथा बीमार
व्यक्तियों के लिए भोजन लेना, शौचालय जाना, दवाई लेने पर कोई नियम नहीं है।