26 March 2019

शीतला सप्तमी व्रत कथा व पूजा विधि | शीतला सप्तमी 2019 | शीतलामाता की आरती | Sheetala Saptami Puja

शीतला सप्तमी व्रत कथा व पूजा विधि | शीतला सप्तमी 2019 | शीतलामाता की आरती | Sheetala Saptami Puja #शीतलाष्टमी #SheetalaSaptami

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sheetla mata puja vidhi
🚩जय शीतला माता की🚩

शीतला सप्तमी 2019व्रत कथा व पूजा विधि


शीतला सप्तमी के दिन सफेद पत्थर से बनी माता शीतला की मूर्ति की पूजा की जाती हैं। उत्तर भारत में विशेषकर भगवती शीतला की पूजा विशेष रूप से की जाती हैं।
शीतला सप्तमी श्रावण माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती हैं। वैसे तो शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत केवल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता हैं अर्थात होली के पश्चात जो भी सप्तमी या अष्टमी आती हैं, उस तिथ पर, किन्तु कुछ पुराण ग्रंथों में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ तथा श्रावण में शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत रखने का विधान भी बताया गया हैं। शीतला सप्तमी पर कलश स्थापित कर उस पर शीतला की प्रतिमा का पूजन एवं पाठ वर्ष या उससे कम अवस्था की 7 कुमारियों को भोजन कराया जाता हैं।

कब हैं शीतला सप्तमी का व्रत

शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत केवल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता हैं अर्थात होली के पश्चात जो भी सप्तमी या अष्टमी आती हैं उस तिथि को किन्तु कुछ पुराण ग्रंथों में चैत्र बैसाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़ आदि चतुर्मासी शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत रखने का विधान भी बताया गया हैं। यदि आप शीतला सप्तमी का उपवास रखते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान दें कि परिवार का कोई भी सदस्य भूल से भी गरम भोजन न ग्रहण करना चाहिए। मान्यता हैं कि ऐसा करने से माता कुपित हो जाती हैं।

शीतला माता सप्तमी
27 मार्च 2019 को हैं दिन बुधवार



प्रेम से बोलिये शीतला माता की जय

हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी व्रत त्यौहार आदि के रूप में मनाया जाता हैं किन्तु कुछ दिन विशेष रूप से विशेष होते हैं जिनकी लोक जीवन में अत्यंत अधिक मान्यता होती हैं। शीतला सप्तमी इन्हीं विशेष दिनों में से एक हैं। शीतला माता विशेष कर उत्तर भारत में तो रोगों को दूर करने वाली मानी जाती हैं। चिकन पोक्स अर्थात चेचक नामक रोग को आम बोलचाल की भाषा में माता ही कहा जाता हैं। शीतला माता की कृपा पूरे परिवार बनी रहे इसलिये शीतला सप्तमी-अष्टमी का उपवास भी रखा जाता हैं तथा इस दिन माता की पूजा की जाती हैं। इस उपवास की विशेष बात यह हैं कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता तथा माता के प्रसाद सहित परिवार के समस्त जनों के लिये भोजन पहले दिन ही बकाया जाता हैं अर्थात बासी भोजन ग्रहण किया जाता हैं। इसी कारण इसे बसौड़ा, बसौरा आदि भी कहा जाता हैं।

शीतला माता की पूजा का फल

इस व्रत को रखने से शीतला देवी खुश होती हैं l
शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप हैं। चैत्र महीने में जब गर्मी प्रारंभ हो जाती हैं, तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी होने लगते हैं।
#शीतलाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति के पीत ज्वर, फोड़े, आंखों के सारे रोग, चिकनपॉक्स के निशान व शीतला जनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं।
इस दिन सुबह स्नान करके शीतला देवी की पूजा की जाती हैं। 

🎪 भोग प्रसाद ॥

माता को एक दिन पहले तैयार किए गए बासी खाने का भोग लगाया जाता हैं।  यह दिन महिलाओं के विश्राम का भी दिन हैं, क्योंकि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता हैं।
भोग मे ठंडे गुड के चावल ,दही मीठै पूए ( गुड़ बेसन के गुलगुले ) नारियल हैं।
शीतला माता को किसी भी गर्म वस्तु का भोग नही लगाया जाता हैं।

क्या हैं शीतला सप्तमी व्रत व पूजा की विधि

इस दिन श्वेत पाषाण रूपी माता शीतला की पूजा की जाती हैं। उत्तर भारत में तो विशेष रूप से मां भगवती शीतला की पूजा की जाती हैं। इस दिन व्रती को प्रात:काल उठकर शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ होना चाहिये। तत्पश्चात व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिये। व पहले दिन बने हुए अर्थात बासी भोजन का भोग लगाना चाहिये। साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा भी सुनी जाती हैं। रात्रि में माता का जागरण भी किया जाये तो अत्यंत अच्छा रहता हैं।

व्रत तथा पूजा-विधि

शीतला सप्तमी के दिन सफेद पत्थर से बनी माता शीतला की मूर्ति की पूजा की जाती हैं। उत्तर भारत में विशेषकर भगवती शीतला की पूजा विशेष रूप से की जाती हैं। इस दिन व्रती को प्रात:काल उठकर शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ होना चाहिए। फिर व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से माता शीतला की पूजा करनी चाहिए। पहले दिन बने हुए अर्थात बासी भोजन का भोग लगाना चाहिए। साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा भी सुननी चाहिए। रात में माता का जागरण भी किया जाना अच्छा माना जाता हैं।

शीतला माता की आप पर कृपा बनी रहे बोलो शीतला मात की जय।

🎪 शीतलामाताकी कथा 🔔

एक समय की बात हैं, शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता हैं, कौन मुझे मानता हैं।
यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई तथा देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही हैं, ना मेरी पुजा हैं।
माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।
शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा हैं, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। किन्तु उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो अत्यंत जल गई हैं। इसके पुरे शरीर में तपन हैं। इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये हैं। यह तपन सहन नही कर पा रही हैं।
तब उस कुम्हारन ने कहा हैं माँ तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानकौशिा तथा बोली हैं माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी हैं थोड़ा दही भी हैं। तू दही-राबड़ी खा लेना चाहिए।
जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी तथा दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।
तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु तथा कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं।
यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ।
मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता हैं। कौन मेरी पुजा करता हैं। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।
माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली हे बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा- हैं माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता हैं बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी हैं, ना बैठने का आसन।
तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया तथा उस कुम्हारन से कहा हे बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।
कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा हैं माता मेरी इक्छा हैं अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो तथा जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के पश्चात कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना तथा आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना।
साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को पकड़े धुलने ना दे तथा पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़कर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।
तब माता बोली तथाअस्तु हे बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । हे बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई तथा उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी।
शील कि डुंगरी भारत का मुख्य मंदिर हैं। शीतला सप्तमी वहाँ अत्यंत विशाल मेला भरता हैं। इस कथा को पड़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती हैं।

प्रेम से बोलिये  शीतला माता की जय

यह अन्य कथा अत्यंत पुरानी हैं।

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एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता हैं, कौन मुझे मानता हैं। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई तथा देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही हैं, ना मेरी पुजा हैं।
माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।
शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा हैं, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। किन्तु उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बाहर एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो अत्यंत जल गई हैं। इसके पुरे शरीर में तपन हैं। इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये हैं। यह तपन सहन नही कर पा रही हैं।
तब उस कुम्हारन ने कहा हैं माँ तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला तथा बोली हैं माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी हैं थोड़ा दही भी हैं। तू दही-राबड़ी खा लेना चाहिए। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी तथा दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।
तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु तथा कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालो के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता हैं। कौन मेरी पुजा करता हैं। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।
माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली हे बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा- हैं माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता हैं बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी हैं, ना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया तथा उस कुम्हारन से कहा हे बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।
कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा हैं माता मेरी इक्छा हैं अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो तथा जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के पश्चात कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना तथा आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को पकड़े धुलने ना दे तथा पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़कर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।
तब माता बोली तथाअस्तु हे बेटी! जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । हे बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई तथा उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। शील कि डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर हैं। शीतला सप्तमी वहाँ अत्यंत विशाल मेला भरता हैं। इस कथा को पड़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती हैं।..
शीतला सप्तमी के एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया), खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी, सब्जी आदि बना लेना चाहिए। कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए।
माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। इसी दिन अर्थात सप्तमी के एक दिन पहले छठ को रात को सारा भोजन बनाने के पश्चात रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करना चाहिए। रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर पूजा करना चाहिए। इस पूजा के पश्चात चूल्हा नहीं जलाया जाता।

प्रेम से बोलिये  शीतला माता की जय

1 . शीतला सप्तमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ तथा एक दीपक कुम्हार के यहां से मंगवा लेने चाहिए।
2. बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाएं।
3. एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ, बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखना चाहिए।
4. एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मोली), वस्त्र, होली वाली बड़कुले की एक माला व सिक्का रखना चाहिए।
5. शीतल जल का कलश भर कर रखना चाहिए।
6. पानी से बिना नमक का  आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लेना चाहिए। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लेना चाहिए ।
7. यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता हैं। 
8. पूजा के लिए साफ सुथरे तथा सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए।
9. पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करना चाहिए। खुद के भी टीका कर लेना चाहिए।
10. हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना करना चाहिए, “हे माता, मान लेना तथा शीली ठंडी रहना”।
11. इसके पश्चात मन्दिर में जाकर पूजा करना चाहिए। यदि शीतला माता घर पर हो तो घर पर पूजा कर सकते हैं।
12. सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं।
13. रोली तथा हल्दी से टीका करना चाहिए।
14. काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करना चाहिए।
15. पूजन सामग्री अर्पित करना चाहिए।
16. बड़बुले की माला व आटे का दीपक बिना जलाए अर्पित करना चाहिए।
17. आरती या गीत आदि गा कर मां की अर्चना करना चाहिए।
18. अंत में वापस जल चढ़ाएं तथा चढ़ाने के पश्चात जो जल बहता हैं, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लेना चाहिए। यह जल पवित्र होता हैं। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती हैं पॉजिटिव एनर्जी आती हैं।
19. इसके पश्चात जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करना चाहिए। थोड़ा जल चढ़ाएं, पूजन सामग्री चढ़ाएं।
20. घर आने के पश्चात पानी रखने की जगह पर पूजा करना चाहिए। मटकी की पूजा करना चाहिए। बचा सारा सामान कुम्हारी को, गाय को तथा ब्राह्मणी को दें।

इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती हैं। ठंडे व्यंजन सपरिवार मिलजुल कर खाएं तथा शीतला  माता पर्व का आनंद उठाए।

प्रेम से बोलिये  शीतला माता की जय

🌷🔔 शीतलामाताकी आरती 🔔🔔


जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता...
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता...
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता...
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता...
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता...
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता...
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता...
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता...
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता...
शीतल करती जननी तू ही हैं जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता...
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे तथा न कुछ भाता।

जय शीतला माता....🌷🌷

धार्मिक लेखों के लिये आप आई डी, फोलो कर सकते हैं। @vkjpandey
कृपा शीतला माता की कथा अन्य भक्तजनों को भी सुनाये या साँझा करना चाहिए, तथा पुण्यकर्म के भागीदार बने ॥

             #भक्तों प्रेम से बोलिये .
🌷🌷... शीतला माता की जय ..🌷🌷

शीतला सप्तमी व्रत की कथा

शीतला सप्तमी के व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं एक कथा के अनुसार एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा। उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था। किन्तु दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोट सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया। जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई। उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई तथा उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले। जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थी कि एक बरगद के पास रूक विश्राम के लिये ठहर गई। वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से अत्यंत परेशान थी। दोनों बहुओं को उन पर दया आयी तथा उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला तथा बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई हैं इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई तथा क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी तथा उनके मृत बालक जीवित हो गये। तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इस चमत्कार को देखकर सब हैंरान रह गये। इसके पश्चात पूरा गांव माता को मानने लगा।

🌷🌷प्रेम से बोलिये शीतला माता की जय🌷🌷
                   🙏🙏🙏🙏

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