|
Karwa Chauth Pooja Vidhi |
करवा चौथ सनातन
हिन्दु धर्म का एक प्रमुख पर्व हैं। यह त्यौहार पंजाब, उत्तर
प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश
तथा राजस्थान के साथ साथ सम्पूर्ण भारत में भिन्न भिन्न विधि तथा भिन्न-भिन्न
परंपराओ के साथ मनाया जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ शरद पूर्णिमा से
चौथे दिन अर्थात कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता हैं। वहीं गुजरात,
महाराष्ट्र, तथा दक्षिणी भारत में करवा
चौथ आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता हैं। तथा अङ्ग्रेज़ी कलेंडर
के अनुसार यह पर्व अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है। इस दिन सम्पूर्ण
शिव-परिवार अर्थात शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी तथा कार्तिकेय जी की पूजा करने
का विधान हैं। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति की दिर्ध आयु तथा अखंड
सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं तथा अविवाहित कन्याए भी उत्तम जीवनसाथि की
प्राप्ति हेतु इस दिवस निर्जला उपवास रखती हैं तथा चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही अपने
व्रत का पारण करती हैं। यह व्रत प्रातः सूर्योदय से पूर्व ४ बजे से प्रारम्भ होकर रात्री
में चंद्र-दर्शन के पश्चात ही संपूर्ण होता हैं। पंजाब
तथा हरियाणा में सूर्योदय से पूर्व सरगी के साथ इस व्रत का शुभारम्भ होता हैं।
सरगी करवा चौथ के दिवस सूर्योदय से पूर्व किया जाने वाला भोजन होता हैं। जो
महिलाएँ इस दिवस व्रत रखती हैं उनकी सासुमाँ उनके लिए सरगी बनाती हैं। वहीं,
उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में इस पर्व पर गौर माता की पूजा की
जाती हैं। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गौ-माता के गोबर से बनाई जाती हैं।
करवा चौथ के दिवस चंद्रमा उदय होने का समय
सभी महिलाओं के लिए अत्यंत विशेष महत्वपूर्ण होता हैं क्योंकि वे अपने पति की दिर्ध
आयु के लिये सम्पूर्ण दिवस निर्जल व्रत रखती हैं तथा केवल उदित सम्पूर्ण चन्द्रमाँ
को देखने के पश्चात ही जल ग्रहण कर सकती हैं। यह मान्यता हैं कि, चन्द्रमाँ
देखे बिना यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता हैं तथा कोई भी महिला कुछ भी खा नहीं सकती
हैं ना ही जल ग्रहण सकती कर हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूर्ण माना जाता हैं जब महिला उदित
सम्पूर्ण चन्द्रमाँ को एक छलनी में घी का दीपक रखकर देखती हैं तथा चन्द्रमा को अर्घ्य
देकर अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं।
करवा चौथ के व्रत का संपूर्ण विवरण “वामन
पुराण” में किया गया है। करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख
त्योहार है। शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की
चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए
निर्जला व्रत रखती हैं।
दोस्तों यह व्रत सही विधि से न करने के कारण, इसका सही फल प्राप्त नहीं हो पाता। सुहागिन महिलाओं के
लिये यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह व्रत पति की लंबी आयु तथा घर
के कल्याण के लिये रखा जाता हैं। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक
सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत श्रद्धाभाव एवं हर्ष-उत्साह के साथ रखती हैं। स्त्री
किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय
की हो,
सभीको यह व्रत करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ
अपने पति की आयु, स्वास्थ्य
व प्रगति की कामना करती हैं, वे
यह व्रत अवश्य रखती हैं।
देखा
गया है की, अक्सर महिलाएं अपनी
मां तथा अपनी सास से करवा चौथ व्रत करने की विधि सीखती हैं, किन्तु यदि आप अपने घर से दूर रहते हैं तथा यह व्रत करना
चाहते हैं तो इसकी विधि जाननी अत्यंत आवश्यक है।
आइये
आज हम आपको बताएँगे करवा चौथ के व्रत की सही विधि तथा व्रत के लिए आवश्यक सामग्री।
करवा चौथ व्रत के लिये आवश्यक सामग्री
1. करवा चौथ कि किताब:- यह किताब कथा पढ़ने के लिये आवश्यक है। इस किताब में लिखी
हुई कथा को घर की वरिष्ठ महिलाए अन्यथा पंडित जी पढते हैं।
2. पूजा थाली:- पूजा
की थाली में रोली, चावल, पानी से भरा करवा लोटा, मिठाई, दिया
तथा सिंदूर रखें। राजस्थान में व्रत रखने वाली महिलाएं गेहूं, मिट्टी आदि रखती हैं तथा पंजाब में महिलाएं थाली में धातु
की छलनी,
पानी से भरा गिलास तथा लाल रंग का धागा रखती हैं।
3. करवा :- काली
मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा
तांबे के बने हुए करवे।
(संख्या-10
अथवा 11 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें)
4. श्रृंगार सामग्री:- अपने पति को लुभाने के लिये महिलाएं इस दिन दुल्हन की तरह
श्रृंगार करती हैं। हाथों में महंदी तथा चूडियां पहनती हैं।
5. पूजा सामग्री:-
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी, शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की मूर्ति, लाल रंग की चुनरी, अन्य सुहाग, श्रींगार सामग्री, जल से भरा कलश
(मूर्ति के अभाव में सुपारी पर धागा बाँधकर देवता की
प्रार्थना करके स्थापित करें)
6. प्रसाद:- शुद्ध
घी में आटे को सेंक कर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर बनाये गए मोदक (लड्डू) तथा
भिन्न-भिन्न प्रकार की मिठाइयां।
(कई लोग कचौड़ी, सब्जी तथा अन्य व्यंजन बनाते हैं)
करवा
चौथ के व्रत की सही विधि
कार्तिक
कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें
चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस
दिन प्रातः सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें तथा अपने सुहाग
की आयु,
आरोग्य, सौभाग्य
का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें।
पूजन विधि
करवा
चौथ के दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी
कार्तिकेय, श्रीगणेश एवं चंद्रमा
का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर (उपरोक्त
वर्णित) सभी देवों को स्थापित करें।
बालू
अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में
सुपारी पर धागा बाँधकर देवता की प्रार्थना करके स्थापित करें। स्थापना पश्चात
यथाशक्ति देवों का पूजन करें तथा माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजें तथा
उन्हें लाल रंग की चुनरी पहना कर अन्य सुहाग, श्रींगार सामग्री अर्पित करें तथा माता जी के सामने जल से
भरा कलश रखें। रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं।
पूजन हेतु निम्न मंत्र का उच्चारण करे-
'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती
का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी
कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का
तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।
गौरी गणेश के स्वरूपों की पूजा के लिए इस मंत्र का जाप
करें –
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
करवों में लड्डू का भोग रखकर भोग अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर
पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें। कथा सुनने के पश्यात
आपको अपने घर के सभी वरिष्ठ परजनो का चरण स्पर्श कर लेना चाहिये।
|
Karwa Chauth Vidhi |
सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन करे
तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखे। पति के हाथों से ही पानी
पीकर व्रत खोले तथा पति के चरण-स्पर्श करते हुए उनका आर्शिवाद प्राप्त करे। पति
देव को प्रसाद दे कर भोजन करवाएं इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएँ। भोजन
के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा तथा पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी)
को एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा
भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करे। यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री
को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।
कृपया ध्यान दे:-
देखा
गया है अधिकांश महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही पूजा करती
हैं।
प्रत्येक
क्षेत्र के अनुसार पूजा करने का विधान तथा कथा अलग-अलग हो सकती है।
यदि
आप करवा चौथ के संदर्भ आपका कोई प्रश्न हैं या आप इस व्रत की अन्य जानकारी चाहते
हैं, तो कृपया नीचे टिप्पणी कीजिए।
आपको यह पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में अवश्य लिखे तथा सभी को शेयर करें, धन्यवाद।