एकादशी व्रत उद्यापन की विधि | Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi in Hindi | Gyaras ka Udyapan kaise karte hain #EkadashiVrat
ekadashi vrat udyapan
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एकादशी व्रत का उद्यापन करने की विधि
एकादशी के व्रत का
उद्यापन ग्रहण-रहित कृष्ण पक्ष की एकादशी या मार्गशीर्ष महीने की एकादशी के दिन करना
शुभ माना जाता हैं। किन्तु व्रत के उद्यापन के लिए यह भी आवश्यक हैं कि, इस एकादशी के दिन तक आपकी 24 एकादशियां पूर्ण हो गई हों। अर्थात आपको
ध्यान रखना चाहिए की,
एकादशी व्रत के उद्यापन के लिए कम से कम आपको 24 एकादशी का व्रत करना अति आवश्यक
है। एकादशी व्रत का उद्यापन करना तो आवश्यक हैं किन्तु यह पूर्णरूप से व्रती की
श्रद्धा पर निर्भर करता हैं की, उद्यापन में पूजन कितना बड़ा या छोटा करना हैं या कितने ब्राह्मणों को भोजन
करवाना हैं, यह सब व्रती की
श्रद्धा तथा आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता हैं।
एकादशी व्रतों का
उद्यापन करते समय भगवान श्री विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती हैं,
साथ ही, हवन भी अनिवार्य रूप से किया जाता हैं। उद्यापन करने वाले व्रती
को दशमी के दिन एक समय भोजन करना चाहिए, तथा उद्यापन वाले शुभ
दिवस अपने जीवन-साथी सहित स्नानादि करके स्वच्छ सफेद या पीले वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूजा-स्थल को सुंदर रूप से सजाकर तथा प्रत्येक पूजन सामग्री अपने निकट रखकर भगवान विष्णु
तथा लक्ष्मीजी की षोडशोपचार से आराधना की जाती हैं। पवित्रीकरण, भूत-शुद्धि तथा शांति-पाठ के पश्चात गणेश-पूजन
आदि की प्रत्येक क्रियाएं की जाती हैं।
ekadashi udyapan |
पूजन के पश्चात
हवन होता हैं तथा आचार्य सहित ब्राह्मणों को फलाहारी भोजन करवाकर पूजा में
प्रयुक्त प्रत्येक वस्तुएं, पाँच
प्रकार के वस्त्र, जूते,
छाता, पांच बर्तन तथा पलंग एवं घरेलू उपयोग की अनेक सामग्री
दक्षिणा के रूप में देने का विधान हैं। कितने ब्राह्मणों को भोजन कराया जाए तथा
आचार्य एवं अन्य ब्राह्मणों को कौन-कौन सी वस्तुएं दान दी जाएं, यह आपकी भावना तथा श्रद्धा का विषय हैं।
एकादशी व्रत का उद्यापन में ध्यान देने योग्य नियम
१) 24
एकादशियां अर्थात सम्पूर्ण 1 वर्ष का व्रत पूर्ण होने पर एकादशी व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
२) मार्गशीर्ष
महीने में व्रत का उद्यापन करना शुभ माना जाता हैं।
३) जिस
महीने में सूर्य या चन्द्र ग्रहण ना हो, ऐसी एकादशी के व्रत के पश्चात ही व्रत का समापन करना चाहिए।
४) व्रत उद्यापन
में आदर सहित पूजा कराने वाले एक आचार्य तथा कम से कम 12 (बारह) विद्वान
ब्राह्मणों को पत्नी-सहित अपने घर पर आने के लिए आमंत्रित करना चाहिये।
५) ब्राह्मणों
तथा आचार्य को वैदिक विष्णु भगवान के मंत्र का जप करना चाहिये तथा विधिपूर्वक पूजा
तथा स्तुति करनी चाहिए।
६) हवन
के लिये वेदी बनाये तथा संकल्पपूर्वक वेदोक्त मन्त्रों से हवन करना चाहिए।
७) उद्यापन
की पूजा विधि आचार्य के द्वारा संपन्न कराई जाने के पश्चात प्रत्येक ब्राह्मण,
आचार्य तथा उनकी पत्नियों को भोजन अवश्य
कराना चाहिए।
८) भोजन
कराने के पश्चात प्रत्येक अतिथि को यथायोग्य कपड़े तथा उचित दक्षिणा देकर उनका
आर्शीवाद ग्रहण करना चाहिए।
९) उद्यापन
विधि निर्विघ्न रूप से संपन्न होने के पश्चात किसी उचित सज्जन निर्धन व्यक्ति को धन
या वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए।
१०) उद्यापन
करने के पश्चात भी आप निरंतर एकादशी का व्रत कर सकते है।