25 August 2019

अजा एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Aja Ekadashi 2019 #EkadashiVrat

अजा एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Aja Ekadashi 2019 #EkadashiVrat

aja ekadashi kab ki hain
aja ekadashi kab hai 
वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। भगवान जी को एकादशी तिथि अति प्रिय हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसका व्रत करने मन निर्मल बनता हैं, ह्रदय शुद्ध होता हैं तथा आप सदमार्ग की ओर प्रेरित होते हैं। भाद्रपद की कृष्ण एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस व्रत को अजा एकादशी के व्रत के नाम से जाना जाता हैं। गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में यह व्रत श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन आता हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार अजा एकादशी का व्रत अगस्त या सितम्बर के महीने में आता हैं। अजा एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के पापों का नाश करने वाला माना गया हैं। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश जी की पूजा विधि-विधान तथा सच्चे मन से एवं पवित्र भावना के साथ करते हैं तथा रात्रि जागरण करते हैं उन्हे इस जन्म एवं पूर्व-जन्म के समस्त पाप-कर्मो से मुक्ति प्राप्त होती हैं तथा मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

अजा एकादशी व्रत का पारण

        एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

इस वर्ष, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 26 अगस्त, सोमवार की प्रातः 07 बजकर 02 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 27 अगस्त, मंगलवार की प्रातः 05 बजकर 09 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में अजा एकादशी का व्रत 26 अगस्त, सोमवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, अजा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 27 अगस्त, मंगलवार की दोपहर 01 बजकर 44 से 04 बजकर 15 मिनिट तक का रहेगा।
        (हरि वासर समाप्त होने का समय :- 10:31 AM)

अजा एकादशी व्रत का महत्व

समस्त उपवासों में अजा एकादशी के व्रत श्रेष्ठतम कहे गए हैं। एकादशी व्रत को रखने वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता हैं। अजा एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता हैं। यह व्रत प्राचीन समय से यथावत चला आ रहा हैं। इस व्रत का आधार पौराणिक, वैज्ञानिक और संतुलित जीवन हैं। इस उपवास के विषय में यह मान्यता हैं कि इस उपवास के फलस्वरुप मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते हैं। यह उपवास, मन निर्मल करता हैं, ह्रदय शुद्ध करता हैं तथा सदमार्ग की ओर प्रेरित करता हैं।

14 August 2019

रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त 2019 । राखी बांधने का शुभ मुहूर्त । Raksha Bandhan 2019 Shubh Muhurat | रक्षा बंधन 2019

रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त 2019 । राखी बांधने का शुभ मुहूर्त । Raksha Bandhan 2019 Shubh Muhurat | रक्षा बंधन 2019

raksha bandhan shubh muhurat 2019
raksha bandhan muhurat in 2019

रक्षाबन्धन मन्त्रः (Raksha Bandhan Mantra)

येन बद्धो वली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वा रक्षबध्नामी रक्षे माचल माचल ॥
Yen Baddho bali raja danvendro mahabal,
ten twam RakshBadhnami rakshe machalmachal.
The meaning of Raksha Mantra - "I tie you with the same Raksha thread which tied the most powerful, the king of courage, the king of demons, Bali. O Raksha (Raksha Sutra), please don't move and keep fixed throughout the year."


रक्षाबंधन का पर्व सनातन भारतवर्ष में मनाये जाने वाले पवित्र तथा प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अतुल्य स्नेह के प्रतीक के स्वरूप में भक्ति एवं उत्साह के साथ मनाया जाता हैं, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं साथ ही अपने भाई की दिर्ध आयु के लिए प्रार्थना करती हैं तथा भाई अपनी बहनकी रक्षा करने का वचन देता हैं। हिंदुओ में रक्षाबंधन का पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ, धूमधाम से मनाया जाता हैं। साथ ही सिख, जैन, तथा लगभग सभी भारतीय समुदायों में यह पर्व बिना किसी रुकावट के तथा प्रेम-भाव के साथ मनाया जाता हैं। रक्षाबंधन के पर्व में रक्षा सूत्र अर्थात राखीका सबसे अधिक विशेष महत्व होता हैं। माना जाता हैं की राखीबहन का अपने भाई के प्रति स्नेह व आदर का प्रतीक होती हैं। रक्षाबंधन का त्योहार सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं जो की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर के महीने में आता हैं। रक्षा बंधन के ठीक आठ दिन के पश्चात भगवान् श्री कृष्ण का जन्मदिन अर्थात श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं।
rakshabandhan
raksha-bandhan
रक्षाबंधन के शुभ दिवस पर प्रत्येक जातक को चाहिए की वह रक्षा सूत्र को भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष अर्पित कर 108 या उस से भी अधिक बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें या शिव के पंचाक्षरी तथा अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करें तथा उसके पश्चात ही रक्षा सूत्र को अपने भाईयों की कलाई पर बांधे। ऐसा करने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती हैं। क्योंकि श्रावण का पवित्र मास सम्पूर्ण प्रकार से भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता हैं।

इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 14 अगस्त, बुधवार की दोपहर 03 बजकर 45 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 15 अगस्त, गुरुवार की साँय 05 बजकर 58 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में रक्षा-बंधन का पर्व 15 अगस्त, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। 

अतः इस वर्ष, रक्षाबंधन के त्योहार पर राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त 15 अगस्त, गुरुवार की दोपहर 01 बजकर 46 से साँय 04 बजकर 21 मिनिट तक का रहेगा।

यह भी ध्यान रहे की,
१.     रक्षा बन्धन के दिन भद्रा सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाने के कारण राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 06 बजकर 09 से साँय 05 बजकर 58 मिनिट तक, अर्थात पूर्णिमा तिथि के समाप्ति तक का रहेगा।
२.     वैदिक मतानुसार अपराह्न का समय राखी बांधने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त माना गया हैं, जो कि हिन्दु समय गणना के अनुसार दोपहर के पश्चात का समय होता हैं।
३.     यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि के कारण उपयुक्त नहीं हैं तो, प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना गया हैं।
४.     हिन्दु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्यों हेतु भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये। अतः भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना गया हैं।

04 August 2019

कैसे करें नाग पंचमी की पूजा विधि 2019 | नाग देवता विशेष पूजन मंत्र | Nag Panchami Puja Vidhi in Hindi

कैसे करें नाग पंचमी की पूजा विधि 2019 | नाग देवता विशेष पूजन मंत्र | Nag Panchami Puja Vidhi in Hindi

nag panchami pujan vidhi
nag panchami puja vidhi in hindi
ॐ भुजंगेशाय विद्महे,

सर्पराजाय धीमहि,
तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।

हिन्दू धर्म में नागों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। त्रिदेवों में से एक भगवान भोलेनाथ के गले में स्थान पाने वाले नागों की विधिवत पूजा की जाती है। पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार इस दिन नागों की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएँ शीघ्र ही पूर्ण हो जाती हैं। शास्त्रीय विधान है कि जो भी व्यक्ति नाग पंचमी के दिन श्रद्धाभाव से नाग देवता की पुजा करता है, उस व्यक्ति तथा उसके परिवार को कभी भी सर्प का भय नहीं सताता। नाग पंचमी के दिन नागों को कच्चा दूध अर्पित किया जाता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन नागदेव का दर्शन करना अत्यंत शुभ रहता है। भगवान शिव को नागो का देवता माना जाता है। कहा जाता है की भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप नाग देवता पृथ्वी को संतुलित करते हुए मानव जीवन की रक्षा करते है। अतः नाग पंचमी के दिन, नाग पूजन करने से भगवान शिवजी भी अत्यंत प्रसन्न होते है।
आज हम आपको बताएंगे, भविष्य पुराण के अनुसार नाग पूजन विधि, नाग पंचमी के दिन इस विधि से पूजन करने से प्रत्येक प्रकार का लाभ प्राप्त होता है तथा भगवान शिव की कृपा-दृष्टि आप पर बनी रहती है। 

        नाग देवता की पूजा विधि बताने से पहले आपको आवश्यक जानकारी देते है की इस दिन नागों को दूध पिलाने का कार्य भूल कर भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि दूध पिलाने से नागों की मृ्त्यु हो जाती है। अतः नागो को दूध पिलाकर स्वयं ही अपने देवता की अकाल-मृत्यु का कारण ना बने। श्रद्वा व विश्वास के शुभ पर्व पर जीव हत्या करने से बचा जा सकता है। अतः भूलकर भी इस प्रकार का कार्य ना करे। नागो को दूध पिलाने की जगह भक्त को चाहिए की वह शिवलिंग को दूध से स्नान कराये तथा पुण्य-फल अर्जित करे।

नाग पंचमी पूजन विधि

        नागपंचमी के शुभ-दिन पर प्रातः स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त हो कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। महिलाएं घर की दीवारों पर या दरवाजे के दोनों ओर गोबर से सर्पों की आकृति या नाग का चित्र बनाए। सर्व-प्रथम भगवान श्री गणेश जी की पुजा उनके किसी भी मंत्रोच्चारण से करें। उसके पश्चात भगवान भोलेनाथ का ध्यान करें। अब पूजा का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की सोने, चांदी या तांबे से निर्मित प्रतिमा है तो उसका दूध से स्नान करवाएं। यदि प्रतिमा नहीं है तो केवल तस्वीर के सामने एक कटोरे में इस भाव से दूध रखें कि, आप नाग-नागिन का स्नान करा रहे हैं। तस्वीर या घर में बनाई गई आकृति को दूध स्पर्श करा दें। इसके पश्चात नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा या घर पर बनाई गई आकृति या तस्वीर के सामने बैठकर इस पौराणिक मंत्र का उच्चारण करे-

 नाग पंचमी पर नाग पूजन का विशेष मंत्र :-

सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले,
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:,
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन प्रदान करे। उन सभी नागो को हमारी ओर से बारम्बार प्रणाम हो।
इसके पश्चात नागो को शुद्ध जल से स्नान कराकर, उनकी गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि से पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात इन्द्राणी देवी की पूजा करनी चाहिए। दही, दूध, अक्षत, जलम पुष्प, नेवैद्य आदि से उनकी आराधना करे। नेवैध्य के रूप में नागो को सफेद मिठाई का भोग लगाएं।
नाग पंचमी के दिन पौराणिक कथाओं में वर्णित सर्पों के 12 स्वरूपों की पूजा की जाती है तथा नागपूजन करते समय इन 12 प्रसिद्ध नागों के नाम का जप भी किया जाता है। जो की इस प्रकार है-
अनंता, वासुकी, शेष, कालिया, तक्षक, पिंगल, धृतराष्ट्र, कार्कोटक, पद्मनाभा, कंबाल, अश्वतारा तथा शंखपाल।
अतः यथासंभव नाग गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए-

नाग गायत्री मंत्र

ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।

        इसके पश्चात नागदेवता की आरती करें तथा प्रसाद वितरित कर दें। यह नागदेवता की विधिवत पूजा का विधान है। इससे नागदेवता प्रसन्न होते हैं तथा आपके समस्त कष्टो का समाधान करते हैं। नागों की विशेष पूजा करके उनसे परिवार की रक्षा का आशीर्वाद मांगा जाता है।
        तत्पश्चात भक्तिभाव से यथा-शक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात स्वयं भी भोजन ग्रहण करे। इस दिन पहले मीठा भोजन करे उसके पश्चात स्व-रुचि भोजन करना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणो को द्रव्य दान करने वाले व्यक्ति पर कुबेरदेव की दयादृष्टि बनी रहती है।
        मान्यता है कि यदि किसी जातक के घर में किसी सदस्य की मृत्यु सांप के काटने से हुई हो तो उसे बारह महीने तक पंचमी का व्रत करना चाहिए। जिसके फल से जातक के कुल में कभी भी सांप का भय नहीं होगा।
        यद्यपि इतनी पूजा पर्याप्त है किंतु जिन व्यक्ति के कुलदेवता स्वयं नागदेव होते हैं। उन्हे विधिवत पूजा के लिए किसी नागमंदिर में या शिव मंदिर में सर्पसूक्त का पाठ भी करना चाहिए।
जो की इस प्रकार है-
       

।। सर्पसूक्त ।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।

नाग पंचमी कब है 2019 | NagPanchami 2019 | पूजन का शुभ मुहूर्त | Nag Panchami kab hai | नागपंचमी किस दिन है

नाग पंचमी कब है 2019 | NagPanchami 2019 | पूजन का शुभ मुहूर्त | Nag Panchami kab hai | नागपंचमी किस दिन है

nag panchami 2019
nag panchami kab hai 2019
ॐ भुजंगेशाय विद्महे,
सर्पराजाय धीमहि,
तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।

        हिन्दू धर्म में नागों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। त्रिदेवों में से एक भगवान भोलेनाथ के गले में स्थान पाने वाले नागों की विधिवत पूजा की जाती हैं। पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता हैं। नाग पंचमी का पर्व हरियाली तीज के दो दिन के पश्चात आता हैं तथा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नाग पंचमी जुलाई या अगस्त के महीने में आती हैं। गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में अमान्त पंचांग के अनुसार नाग पंचमी 15 दिनों के पश्चात अर्थात श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती हैं। नाग पंचमी को गुजरात में नाग पाचम के रूप में अधिक जाना जाता हैं तथा यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव से तीन दिन पूर्व मनाया जाता हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार इस दिन नागों की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएँ शीघ्र ही पूर्ण हो जाती हैं। शास्त्रीय विधान हैं कि जो भी व्यक्ति नाग पंचमी के दिन श्रद्धाभाव से नाग देवता की पुजा करता हैं, उस व्यक्ति तथा उसके परिवार को कभी भी सर्प का भय नहीं सताता। श्रावण मास के दौरान नाग देवता की पूजा करने के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता हैं। अतः नाग पंचमी पूजा के शुभ दिवस बारह नागों की पूजा की जाती हैं। नाग पंचमी के दिन नागों को कच्चा दूध अर्पित किया जाता हैं तथा परिवार के रक्षण की प्रार्थना भी की जाती हैं। कुछ जातक नाग पंचमी से एक दिन पूर्व व्रत रखते हैं जिसे नाग चतुर्थी या नागुल चविथी के रूप में जाना जाता हैं। मान्यता यह भी हैं कि नाग पंचमी के दिन नागदेव का दर्शन करना अत्यंत शुभ रहता हैं। भगवान शिव को नागो का देवता माना जाता हैं। कहा जाता हैं की भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप नाग देवता पृथ्वी को संतुलित करते हुए मानव जीवन की रक्षा करते हैं। अतः नाग पंचमी के दिन, नाग पूजन करने से भगवान शिवजी भी अत्यंत प्रसन्न होते हैं।


नाग पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष 2019 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, 04 अगस्त , रविवार की साँय 06 बजकर 49 मिनिट से प्रारम्भ होकर, 05 अगस्त, सोमवार की दोपहर 03 बजकर 55 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में नाग पंचमी का त्योहार 05 अगस्त, सोमवार के शुभ दिवस किया जाएगा।

नाग पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 05 अगस्त, सोमवार की प्रातः 06 बजकर 05 मिनिट से 08 बजकर 38 तक का रहेगा।