30 May 2018

मृत्यु के पश्च्यात पुण्य प्राप्त करने के यह सात उपाय | Seven Ways of Achieving Virtue After Death | How to Achieve Virtue

मृत्यु के पश्च्यात पुण्य प्राप्त करने के यह सात उपाय

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       अधिकतर यह देख गया है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले अधिक से अधिक पुण्य प्राप्त करनेके लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं। तीर्थ-यात्रा दर्शन, गरीबो की सहायता, धार्मिक कार्य आदि करने से उन्हें पुण्य प्राप्त होता रहता है। इतना कुछ करने के पश्च्यात भी अनुष्यो को परम संतुष्टि की प्राप्ति नही हो पाती।
इसी कारण से आज हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे है, यह सात सरल किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण उपाय।

जिन्हें करने से मृत्यु के पश्च्यात भी पुण्य प्राप्त किया जा सकता हैं।

मृत्यु के पश्च्यात पुण्य प्राप्त करने के यह सात उपाय

(1) किसी भी व्यक्तिको उपहार के स्वरूप में धार्मिक ग्रन्थ जैसे कि रामायण, गीता, आरती संग्रह तथा पूजा एवं शांतिपाठ आदि भेंट करें। जब कभी भी वह व्यकि भेंट की गयी उस पुस्तक का पाठ करेगा,  उस समय आप को भी उसका पुण्य फल प्राप्त होता रहेगा।

(2) किसी अभावग्रस्त अस्पताल में पहियेदार कुर्सी अर्थात व्हीलचेयर का दान करें। जब भी कोई अस्वस्थ  व्यक्ति उसका उपयोग करेगा तब आपको पुण्य प्राप्त होता रहेगा।

(3) जहा सभी को निशुल्क आहार दिया जाता हो, ऐसे किसी अन्नक्षेत्र के लिये, सावधि जमा राशि अर्थात मासिक सूद वाली एफ. डी बनवा दें। जब भी कोई आपके द्वारा जमा की गई राशि के सूद से भोजन ग्रहण करेगा, तब आपको पुण्य प्राप्त होता रहेगा।

(4) किसी सार्वजनिक स्थान पर जनकल्याण हेतु ठंडे एवं शुद्ध पेयजल का प्रबंध करवाये। जब कोई वहां अपनी वहां अपनी तृष्णा का अंत करेगा, तब आपको पुण्य प्राप्त होता रहेगा।

(5) किसी दिन-अनाथ बालक की शिक्षा का उत्तरदायित्व स्वीकार करे। उसे शिक्षित करे, जिस से वह तथा उसकी आने वाली पीढ़ियाँ भी आपके लिए नित्य प्रार्थना करेंगी तथा आपको पुण्य प्राप्त होता रहेगा।

(6) अपनी संतान को सदैव परोपकारी तथा दयावान बनाए। यदि आप ऐसा कर पाए तो आपको सदैव संतानो द्वारा किये गए परोपकार से पुण्य प्राप्त होता रहेगा।

(7) अंत में सब से आसान उपाय।
हमारे द्वारा दी गयी इस अद्भुत जानकारी को आप अपने परिजनों , मित्रो तथा सहकर्मियों को भी बताये, यदि किसी एक ने भी इनका पालन किया तो आपको पुण्य पुण्य प्राप्त होता रहेगा।


पुण्यं प्रज्ञा वर्धयति क्रियमाणं पुन:पुन: ।
वृद्ध प्रज्ञ: पुण्यमेव नित्यम् आरभते नर: ॥
इस श्लोक का अर्थ है: बार-बार पुण्य करने से मनुष्य की विवेक-बुद्धि बढती है और जिसकी विवेक-बुद्धि बढ़ती रहती हो , ऐसा व्यक्ति हमेशा पुण्य ही करती है ।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।