31 May 2020

निर्जला एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2020

निर्जला एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं, चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसका व्रत रखकर संपूर्ण वर्ष की प्रत्येक एकादशियों जितना पुण्य कमाया जा सकता हैं। अतः ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के शुभ दिवस निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता हैं। बिना जल ग्रहण किए करें गए व्रत को “निर्जला व्रत” कहते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत किस भी प्रकार के आहार या जल के बिना ही किया जाता हैं। अतः उपवास के कठोर नियमों के कारण प्रत्येक एकादशी के व्रतों में निर्जला एकादशी का व्रत करना अति कठिन माना गया हैं। निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इस व्रत को पाण्डव एकादशी तथा भीम एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं।

पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां व्रती की प्रत्येक मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं वहीं अनेकानेक रोगों से भी निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में अति वृद्धि होती हैं। जो श्रद्धालु वर्ष की प्रत्येक चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं हैं, तो उन्हें केवल एक निर्जला एकादशी उपवास अवश्य करना चाहिए, क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से अन्य प्रत्येक एकादशियों का लाभ स्वतः ही व्रती को प्राप्त हो जाता हैं, साथ ही, व्रत के प्रभाव से व्रती की कीर्ति, पुण्य तथा धन में अभिवृद्धि होती हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को सम्पूर्ण यत्न तथा पूर्ण श्रद्धा के साथ इस व्रत को अवश्य करना चाहिये।

निर्जला एकादशी व्रत को करते समय व्रती भोजन ही नहीं किन्तु जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। इस प्रकार यह व्रत हमारे अन्तर्मन में जल संरक्षण की भावना को भी उजागर करता हैं। मान्यता यह भी हैं कि, इस दिवस व्रत रखने, पूजा तथा दान आदि करने से जातक जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता हैं तथा व्रती के प्रत्येक प्रकार के पाप-कर्मो का नाश हो जाता हैं। निर्जला एकादशी के शुभ दिवस भगवान विष्णु जी के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती हैं तथा कैरी का सागार लिया जाता हैं, साथ ही, एकादशी व्रत के सम्पूर्ण समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिये।

 

निर्जला एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 01 जून, सोमवार की दोपहर 02 बजकर 56 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 02 जून, मंगलवार की दोपहर 12 बजकर 04 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में निर्जला एकादशी का व्रत 02 जून, मंगलवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, निर्जला एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 03 जून, बुधवार की प्रातः 05 बजकर 47 मिनिट से 08 बजकर 21 मिनिट तक का रहेगा।

द्वादशी समाप्त होने का समय - 09:05


22 May 2020

वट सावित्री व्रत अमावस्या पूजन शुभ मुहूर्त | अखंड सौभाग्य के लिए वटवृक्ष की पूजा | Amavasya Vat Savitri Vrat Puja kab hai 2020

वट सावित्री व्रत अमावस्या पूजन शुभ मुहूर्त | अखंड सौभाग्य के लिए वटवृक्ष की पूजा | Amavasya Vat Savitri Vrat Puja kab hai 2020

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जय माता दी।

सर्वप्रथम आपको वट सावित्री व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपको माताजी सुख-सौभाग्य के साथ-साथ संस्कारी संतान प्रदान करें।

 

सनातन हिन्दू धर्म में प्रत्येक मास की अमावस्या को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। किन्तु, ज्येष्ठ मास की अमावस्या अन्य अमावस्याओ में अति पावन मानी जाती हैं। अतः सम्पूर्ण भारत वर्ष में सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री का दिव्य व्रत किया जाता हैं। यह व्रत, वट पूर्णिमा व्रत के समान ही रखा जाता हैं। वट सावित्री व्रत उत्तर भारत में विशेष रूप से ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता हैं। वहीं, गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत रखती हैं। स्कंद पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण के अनुसार तो वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को रखाना चाहिए। पौराणिक मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का स्नान-दान आदि के लिये अत्यंत विशेष महत्व हैं। मान्यता हैं कि इस दिन गंगा स्नान के पश्चात पूजा-अर्चना कर, दान दक्षिणा देने से समस्त मनोकामनाएं शीघ्र पूरी हो जाती हैं।


वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विधान हैं। मान्यता के अनुसार वटवृक्ष के नीचे सती सावित्री ने अपने पातिव्रत के बल से यमराज से अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था। उस समय से ही वट-सावित्री नामक यह व्रत मनाया जाने लगा था। इस दिवस महिलाएँ अपने अखण्ड सौभाग्य तथा जीवन के कल्याण हेतु यह व्रत करती हैं। ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाता हैं अतः वट पूर्णिमा व्रत पूजा विधि के अनुसार ही वट सावित्री का व्रत किया जाता हैं।


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु तथा डालियों एवं पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता हैं। वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से व्रती के प्रत्येक  पाप नष्ट होते हैं, दुःख, समस्याएँ तथा रोग दूर हो जाते हैं। अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य का संचय होता हैं। वैशाख आदि जैसे पुण्य मासों में इस वृक्ष की जड में जल अर्पण करने से प्रत्येक पापों का नाश होता हैं तथा विविध प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती हैं। वट सावित्री व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं तथा वट की पूजा के पश्चात सती सावित्री की कथा अवश्य ही सुनती, सुनाती या पढ़ती हैं। यह कथा सुनने, सुनाने तथा वाचन करने मात्र से ही सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की मनोकामना पूर्ण होती हैं।

 

वट सावित्री व्रत (ज्येष्ठ अमावस्या) शुभ पूजा मुहूर्त 2020

इस वर्ष, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 21 मई, गुरुवार की रात्रि 09 बजकर 35 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 22 मई, शुक्रवार की रात्रि 11 बजकर 08 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः वर्ष, 2020 में, वट सावित्री व्रत तथा ज्येष्ठ अमावस्या का उपवास 22 मई, शुक्रवार के दिन रखा जायेगा।

 

अमावस्या वट सावित्री व्रत पूजन करने का शुभ मुहूर्त 22 मई, शुक्रवार के दिन मध्याह्नपूर्व में प्रातः 09:19 से 10:44 तथा गोधूलि बेला में साँय 17:24 से 18:58 तक का रहेगा।

 

वट सावित्री व्रत के अन्य महत्वपूर्ण समय इस प्रकार हैं-

22 मई 2020, शुक्रवार

अभिजित मुहूर्त:-  11:57 से 12:50

राहुकाल:-  10:44  से 12:24

सूर्योदय:- 05:43    सूर्यास्त:- 19:05

चन्द्रोदय:- 05:33 चन्द्रास्त:- 18:49


17 May 2020

अपरा एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Achala Ekadashi 2020

अपरा एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Achala Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसके व्रत को करने से जातक को अपार धन-संपदा तथा प्रसिद्धि प्राप्त होती हैं। अतः ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा या अचला एकादशी कहा जाता हैं। अपरा एकादशी के प्रभाव से पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता हैं तथा इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य एवं धन में अभिवृद्धि होती हैं। यह व्रत उत्तम पुण्यों को प्रदान करने वाला तथा समस्त प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला माना गया हैं। समस्त एकादशियों में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं, वह सर्वोत्तम मानी जाती हैं, किन्तु ज्येष्ठ मास की ही कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात अपरा एकादशी या अचला एकादशी भी प्रत्येक मनुष्यों को ब्रह्म हत्या, परनिंदा तथा भूत-प्रेत योनि आदि जैसे अनेक पाप-कर्मों से मुक्ति प्रदान करने में सहायक मानी जाती हैं। अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से व्रती को अपार खुशियों की प्राप्ति हैं। अपरा एकादशी का एक अर्थ यह भी हैं की, इस एकादशी के व्रत का पुण्य भी अपार हैं। अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती हैं। इस दिन कच्चे आम अर्थात कैरी का सागार लेना चाहिए।

 

अपरा एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 मई, रविवार की दोपहर 12 बजकर 41 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 18 मई, सोमवार की दोपहर 03 बजकर 07 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में अपरा एकादशी का व्रत 18 मई, सोमवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, अपरा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 19 मई, मंगलवार की प्रातः 05 बजकर 47 मिनिट से 08 बजकर 24 मिनिट तक का रहेगा।

द्वादशी समाप्त होने का समय - 17:31


15 May 2020

सुंदरकांड पाठ करने की विधि | सुन्दरकाण्ड का पाठ | Sunderkand ka Path kaise kare Vidhi in Hindi

सुंदरकांड पाठ करने की विधि | सुन्दरकाण्ड का पाठ | Sunderkand ka Path kaise kare Vidhi in Hindi

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हनुमान स्तुति:-

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

 

यदि आप इस पूर्ण स्तुति पढ़ने में असमर्थ या समय का अभाव हैं तो आप यह हनुमानजी के अत्यंत प्रभावशाली तथा चमत्कारी सरल श्लोक से पूजा प्रारम्भ कर सकते है।

ॐ मनोजवं मारुततुल्य वेगम्, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

वातात्मजं वानर युथमुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

 

दीन दयाल बिरिदु संभारी।

हरहु नाथ मम् संकट भारी॥

भावार्थ - हे मेरे प्रभु श्री राम! दिन-दुखियों पर दया करना आपकी कीर्ति हैं तथा मैं दीन हूँ अतः आपकी उस प्रसिद्धि को याद करके, हे नाथ! मेरे समस्त भारी संकट को दूर कीजिए।

My lord is all sufficient, yet recalling your vow of kindness to the afflicted, relieve, o master, my grievous distress.

 

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरित मानस का एक अध्याय “सुन्दरकाण्ड” हैं। जिसमें हनुमानजी की उपलब्धि, सफलता तथा सिद्धि का वर्णन किया गया हैं। सनातन हिन्दू धर्म में श्री रामभक्त हनुमानजी को प्रसन्न करने के कई उपाय हैं, जिनमें सुंदरकांड का पाठ कर के हनुमानजी का स्मरण करना सर्वाधिक प्रभावी उपाय माना गया हैं। ऐसी मान्यता हैं कि जो जातक लगातार 41 सप्ताह तक प्रत्येक मंगलवार या शनिवार के शुभ दिवस सुंदरकांड का विधिपूर्वक पाठ, पूर्ण श्रद्धा के साथ करते हैं, उनके बड़े से बड़े कार्य सहज ही तथा बिना किसी बाधा के शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं तथा उन्हें हनुमानजी की विशेष कृपादृष्टि भी प्राप्त होती हैं।

सुंदरकांड का पाठ करने से जातक को मानसिक शांति प्राप्त होती हैं। घर से प्रत्येक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती हैं। भक्त का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगता हैं। सुंदरकांड पाठ स्वयं में अद्भुत शक्ति रखने वाला हैं, जो जातक नियमित रूप से यह पाठ करता हैं, वह हनुमानजी के आशीर्वाद से ऊपरी बाधाओं से पीड़ित रोगी को ठीक करने में सक्षम होने लगता हैं। किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व सुंदरकांड पाठ करना अति लाभकारी माना गया हैं।

संकट किसी भी प्रकार का हो चाहे वह जादू-टोना से सम्बंधित हो या कोई असाध्य रोग से सम्बंधित, सुंदरकांड के नियमित पाठ के प्रयोग से प्रत्येक प्रकार के संकट नष्ट होते हैं। पाठ करने वाला जातक प्रत्येक प्रकार के सुख को प्राप्त करता हैं साथ में वह सदैव प्रसन्नचित्त रहने लगता हैं। पारिवारिक कलह, रोग से मुक्ति, नकारात्मक शक्ति से छुटकारा, व्यवसाय में प्रगति आदि विविध प्रकार के संकटों में भी सुंदरकांड का पाठ करने से शीघ्र ही लाभ प्राप्त होता हैं।

 

सुंदरकांड पाठ करने की विधि

सुंदरकांड के पाठ को मंगलवार, शनिवार या श्रावण मास में प्रतिदिन करना अत्यंत शुभ माना गया हैं। सुंदरकांड पाठ पूर्ण करने में लगभग 2 घंटे का समय लगता हैं, अतः शांत हो कर, स्वच्छ आसान पर बैठकर तथा पूर्ण श्रद्धा के साथ सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। पाठ करते समय ध्यान भगवान श्री राम तथा हनुमानजी के चरणों में रखना चाहिए।

 

दो विधि से आप सुंदरकांड पाठ को कर सकते हैं

)  सम्पूर्ण पूजा विधि - इस विधि में सुंदरकांड पाठ करने से पूर्व प्रत्येक सनातन देवी-देवताओं का आह्वान तथा पूजन किया जाता हैं। इस विधि को आप किसी योग्य जानकार पंडित जी के माध्यम से ही पूर्ण करा सकते हैं।

)  सरल पूजा विधि - सुंदरकांड पाठ करने की एक संक्षिप्त तथा अत्यंत ही सरल किन्तु प्रभावशाली विधि हैं जिसके विषय में आपको इस विडियो के माध्यम से आपको विस्तारपूर्वक बताते हैं -

 

सुंदरकांड पाठ की पूजन सामग्री

भगवान के लिए लाल वस्त्र

श्रीराम दरबार की या हनुमानजी की मूर्ति अथवा प्रतिमा

श्री रामचरित मानस

शालिग्राम भगवान की मूर्ति

पुष्प तथा पुष्पमाला

एक पात्र में जल

धूप, दीप तथा घी

अक्षत

चंदन रोली

प्रसाद के लिए मिष्ठान तथा ऋतुफल

 

सुंदरकांड पाठ की सरल विधि

घर के पूर्व दिशा को स्वच्छ कर के, गंगाजल से पवित्र कर लें, इसके पश्चात एक चौकी की स्थापना करें। चौकी पर एक नया लाल वस्त्र बिछाए। इसके पश्चात श्रीराम दरबार की या हनुमानजी की मूर्ति अथवा प्रतिमा चौकी पर स्थापित करें। चौकी ठीक सामने आसन बिछाकर बैठ जाये तथा पूजा सामग्री को अपने पास रख ले। अब पहले घी का दीपक प्रज्वलित करें व धूप आदि लगाये। अब राम दरबार फोटो में प्रत्येक देवों को तिलक करें। रामचरित मानस को तिलक करें। अक्षत अर्पित करें। पुष्प अर्पित करें तथा मीठा अर्पित करें, जल के छीटें लगायें।

 

अब दायें हाथ में थोडा जल, अछत तथा पुष्प लेकर इस प्रकार से संकल्प ले -

ॐ श्री विष्णु -ॐ श्री विष्णु ॐ श्री विष्णु, हे प्रभु, मैं (अपना नाम बोले) गोत्र (अपना गोत्र बोले) अपने (जो कार्य हो या प्रार्थना हो वह बोले) कार्य की सिद्धि हेतु सुंदरकांड के पाठ करने का कार्य कर रहा हूँ, हे परमेश्वर, मेरे कार्य में मुझे पूर्ण सहायता प्रदान करें तथा आपकी कृपा से, मेरा कार्य बिना किसी बाधा के शीघ्र पूर्ण करें। ऐसा कहते हुए जल अछत तथा पुष्प को भूमि पर छोड़ दे तथा पुनः बोले ॐ श्री विष्णु -ॐ श्री विष्णु ॐ श्री विष्णु।

इसके पश्चात सर्वप्रथम देवता श्री गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा उनका स्मरण करें।

स्तुति मंत्र इस प्रकार हैं-

भगवान श्री गणेश स्तुति मंत्र :-

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,

लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,

गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय,

सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय।

विद्याधराय विकटाय च वामनाय,

भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते॥

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:,

नमस्ते रुद्राय्रुपाय करिरुपाय ते नम:॥

विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे,

भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय,

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति,

भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति।

विद्याप्रत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति,

तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव॥

गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम,

तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोड़स्तु सदा मम॥

 

यदि आप इस पूर्ण स्तुति पढ़ने में असमर्थ या समय का अभाव हैं तो आप यह गणेश जी के अत्यंत प्रभावशाली तथा चमत्कारी सरल श्लोक से पूजा प्रारम्भ कर सकते है।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

अर्थात :- हे टेढ़ी सूँड वाले, हे विशाल देह वाले, करोड़ों सूर्यों जैसे दीप्त भगवान, मेरे प्रत्येक कार्य आपकी कृपा से सदा निर्विघ्न रूप से पूर्ण हों।

या तो 3 बार बोलिए- ॐ महागणाधिपतये नमः॥ ॐ महागणाधिपतये नमः॥ ॐ महागणाधिपतये नमः॥

 

इसके पश्चात आप अपने कुल देवता, पित्र देवता तथा ग्राम देवता का स्मरण करें। उसके पश्चात तीन बार भगवान श्री राम का नाम ले। रामजी की जय जय कार लगाए। इसके पश्चात हनुमानजी के स्तुति मंत्र द्वारा हनुमानजी का स्मरण करें।

स्तुति मंत्र इस प्रकार हैं-

हनुमान स्तुति मंत्र:-

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

 

यदि आप इस पूर्ण स्तुति पढ़ने में असमर्थ या समय का अभाव हैं तो आप यह हनुमानजी के अत्यंत प्रभावशाली तथा चमत्कारी सरल श्लोक से पूजा प्रारम्भ कर सकते है।

ॐ मनोजवं मारुततुल्य वेगम्, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

वातात्मजं वानर युथमुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

अर्थात :- हे मनोहर, वायु की गति से भी तेज चलने वाले, प्रत्येक इन्द्रियों को वश में करने वाले, बुद्धिमानों में सर्वश्रेष्ठ, हे वायु पुत्र, हे वानर सेनापति, हे श्री रामदूत, हे श्री राम चन्द्र के परम भक्त, हनुमानजी आपको मेरा प्रणाम। हम सभी आपके शरणागत है।

 

इतना करने के उपरान्त अब आप सुंदरकांड का पाठ प्रारम्भ करें। सुंदरकांड पाठ बिना अशुद्धि के लयबद्धता के साथ मध्यम-मध्यम स्वर में करना उचित माना जाता हैं। बीच-बीच में दोहे पूर्ण होने पर “राम सिया राम सिया राम जय-जय रामया “मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सु दशरथ अजिर बिहारी।।इस प्रकार से बीच-बीच में अधिक से अधिक भगवान श्री राम का स्मरण संपुट चौपाइयों के माध्यम से करना चाहिए। ध्यान दे, जितना अधिक आप सुंदरकांड के समय भगवान श्री रामजी का नाम लेंगे उतना ही आपको अधिक लाभ प्राप्त होगा। सुंदरकांड पाठ पूर्ण होने पर हनुमान चालीसा तथा हनुमानजी तथा श्रीरामजी की आरती करें तथा प्रसाद ग्रहण करें एवं प्रसाद प्रत्येक श्रद्धालुओं में वितरित करें।


01 May 2020

मोहिनी एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Mohini Ekadashi 2020

मोहिनी एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Mohini Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

mohini ekadashi 2020
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वैदिक विधान कहता हैं कि, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस के पावन व्रत को माता सीता की खोज के विकट समय पर भगवान श्रीराम जी ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने श्रद्धापूर्वक कर के अपने प्रत्येक दुखों से मुक्ति प्राप्त की थी। अतः वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक प्रत्येक प्रकार के मोह-माया से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता हैं। मान्यताओं के अनुसार हमारे द्वारा किये गये पाप कर्म के कारण ही हम अपने जीवन में मोह बंधन में बंध जाते हैं। अतः यह व्रत भूलोक के प्रत्येक व्यक्ति को मोह के बंधन तथा पापों से मुक्ति प्रदान करता हैं। जिसके कारण वह मृत्यु के पश्चात नरक की यातनाओं से छुटकारा पाकर प्रभु की शरण में चला जाता हैं। मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता यह भी हैं कि समुद्र मंथन के पश्चात अमृत पाने हेतु दानवों एवं देवताओं में विवाद कि स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। दानवों को देवताओं पर हाबी जानकार भगवान् श्रीविष्णु जी ने अत्यंत सुन्दर स्त्री का स्वरूप धारण कर दानवों को मोहित किया तथा उनसे कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पीला दिया था। अमृत पीकर देवता अमर हो गये। अतः यह एकादशी वह दिन हैं, जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में प्रकट हुए थे, इस प्रकार भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा भी मोहिनी एकादशी के दिन की जाती हैं। मोहिनी एकादशी प्रत्येक पापों को हरनेवाली तथा उत्तम मानी गई हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोह-माया के जाल तथा पातक समूह से छुटकारा पाते हैं, तथा अंत में विष्णु-लोक को जाते हैं।

मोहिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ति करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की प्रथम एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।


इस वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 03 मई, रविवार के दिन 09 बजकर 08 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 04 मई, सोमवार की प्रातः 06 बजकर 12 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2020 में मोहिनी एकादशी का व्रत 03 मई, रविवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, मोहिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 04 मई, सोमवार की दोपहर 01 बजकर 48 मिनिट से साँय 04 बजकर 16 मिनिट तक का रहेगा।
हरि वासर समाप्त होने का समय – 11:22

वैष्णव (गौण) मोहिनी एकादशी - 04 मई 2020, सोमवार

दूजी (वैष्णव) एकादशी के लिए पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय 05 मई 2020, मंगलवार की प्रातः 05:56 से 08:32
द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त


वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी?

mohini ekadashi kab hai
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पौराणिक मान्यता के अनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान श्रीविष्णु जी ने सुमुद्र मंथन के समय प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के पश्चात देवताओं तथा दानवो में विवाद उत्पन्न हो गया था। बल से देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे अतः चतुर छल से भगवान विष्णु जी ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया तथा सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही यह समस्त घटनाक्रम हुआ अतः इस एकादशी को मोहिनी एकादशी का नाम प्रदान हुआ।

मोहिनी एकादशी का व्रत कब किया जाता हैं?

सनातन हिन्दू पंचाङ्ग के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत सम्पूर्ण भारत-वर्ष में अक्षय तृतीया के पर्व के पश्चात वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन किया जाता हैं। साथ ही, अङ्ग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह व्रत अप्रैल या मई के महीने में आता हैं।