google.com, pub-6194888011535366, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Pt Vinod Pandey: जया एकादशी व्रत विधि | पौराणिक व्रत कथा | Jaya Ekadashi 2019 | Jayaa Ekadashi Vrat Katha in Hindi #EkadashiVrat

16 February 2019

जया एकादशी व्रत विधि | पौराणिक व्रत कथा | Jaya Ekadashi 2019 | Jayaa Ekadashi Vrat Katha in Hindi #EkadashiVrat

जया एकादशी व्रत विधि | पौराणिक व्रत कथा | Jaya Ekadashi 2019 | Jayaa Ekadashi Vrat Katha in Hindi #EkadashiVrat

वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसका पुण्यकारी व्रत करने से जातक को भूत-प्रेत या पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं सताता हैं। इस परम पुण्यकारी एकादशी का नाम जया एकादशी हैं। यह व्रत माघ मास से शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन किया जाता हैं। मान्यता हैं कि जया एकादशी के व्रत से जातक भूत, प्रेत, पिशाच तथा नकारात्मक ऊर्जा आदि से आजीवन मुक्त हो सकता हैं। अतः इस एकादशी के उपवास को पूर्ण विधि-विधान के अनुसार करना चाहिए। साथ ही, जया एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धापूर्वक रखने से जातक की माता का स्वास्थ्य अच्छा रहता हैं।
जया एकादशी व्रत के दिन भगवान श्री हरीविष्णु के अवतार श्रीकृष्ण जीकी विधिपूर्वक पूजा करने का विधान हैं। हिन्दू धर्मग्रंथो के अनुसार जया एकादशी के दिन व्रत करने से समस्त वेदों का ज्ञान, यज्ञों तथा विशेष अनुष्ठानों का पुण्य प्राप्त होता हैं। जया एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक के समस्त पापों का नाश होता हैं तथा इस व्रत का पुण्य जातक को मरणोपरांत मोक्ष प्रदान करता हैं।

जया एकादशी का व्रत कब किया जाता हैं?

सनातन हिन्दू पंचाङ्ग के अनुसार जया एकादशी का व्रत सम्पूर्ण भारत-वर्ष में माघ मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन किया जाता हैं। वहीं, अङ्ग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह व्रत जनवरी या फरवरी के महीने में आता हैं।

जया एकादशी व्रत का महत्व

हिन्दू धर्मग्रंथो के अनुसार जया एकादशी के व्रत से जातक भूत, प्रेत, पिशाच तथा नकारात्मक ऊर्जा आदि से आजीवन मुक्त हो सकता हैं। यह व्रत पूर्ण श्रद्धापूर्वक रखने से जातक की माता का स्वास्थ्य अच्छा रहता हैं। जया एकादशी के दिन व्रत करने से समस्त वेदों का ज्ञान, यज्ञों तथा विशेष अनुष्ठानों का पुण्य प्राप्त होता हैं।
पद्मपुराणके उत्तरखण्ड में एकादशी के व्रत के महत्व को पूर्ण रुप से बताया गया हैं। जया एकदशी का व्रत रखने से जातक को अपनी समस्त इच्छाओं तथा स्वप्नों को पूर्ण करने में सहायता प्राप्त होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो जातक एकादशी का व्रत नियमित रखते हैं उन्हे भगवान् श्री नारायण की विशेष कृपा निरंतर प्राप्त होती रहती हैं। जया एकदशी का महत्व ब्रह्मांड पुराणमें धर्मराज युधिष्ठिर तथा भगवान कृष्ण के बीच बातचीत के रूप में वर्णित हैं। जया एकदशी का दिन एक ऐसे व्रत के रूप में वर्णित हैं की, जिस दिन व्रत रखने से समस्त दुःखों की समाप्ति होती हैं तथा भाग्य शीघ्र उदित हो जाता हैं।  हिन्दू धर्मानुसार इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के प्रत्येक कार्य सफल होते हैं तथा उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। पद्मपुराण में कहा गया हैं कि विष्णु भगवान को जया एकादशी के अनुष्ठान से अत्यंत शीघ्र प्रसन्न किया जा सकता हैं। युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण जी ने स्वयं बताया हैं की, “बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता हैं।” अतः एकादशी का व्रत समस्त प्राणियों के लिए अनिवार्य बताया गया हैं। एकादशी के दिन सूर्य तथा अन्य ग्रह अपनी स्थिती में परिवर्तित होते हैं, जिसका प्रत्येक मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता हैं। इन विपरीत प्रभाव में संतुलन बनाने हेतु व्रत किया जाता हैं। व्रत तथा ध्यान ही मनुष्यो में संतुलित रहने का गुण विकसित करते हैं। जया एकादशी के महत्व का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी प्राप्त होता हैं, तथा इस एकादशी को मेरूपर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं उनसे मुक्ति प्राप्त करने हेतु सर्वाधिक आवश्यक माना गया हैं। उन समस्त पाप-कर्मो को यह पापनाशिनी जया एकादशी एक ही उपवास में भस्म कर देती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण बताते हैं कि हजारों वर्षो की तपस्या से जो फल नहीं प्राप्त होता, वह फल इस व्रत से प्राप्त हो जाता हैं। जो व्यक्ति निर्जल संकल्प लेकर जया एकादशी व्रत रखता हैं, उसे मोक्ष के साथ भगवान विष्णु की प्राप्ति होती हैं। पूर्ण श्रद्धा-भाव से यह व्रत करने से जाने-अनजाने में किये जातक के समस्त पाप क्षमा होते हैं, तथा उसे मुक्ति प्राप्त होती हैं। श्रीकृष्ण जी आगे बताते हैं कि इस दिवस दान का विशेष महत्व होता हैं। जातक यदि अपनी इच्छा से अनाज, जूते-चप्पल, छाता, कपड़े, पशु या सोना का दान करता हैं, तो इस व्रत का फल उसे पूर्णतः प्राप्त होता हैं। अतः जया एकादशी व्रत के दिवस यथासंभव दान व दक्षिणा देनी चाहिए। जो जातक जया एकादशी का सच्ची श्रद्धा-भाव से व्रत करते हैं, उनके पितर नरक के दु:खों से मुक्त हो कर भगवान विष्णु के परम धाम अर्थात विष्णुलोक को चले जाते हैं। साथ ही जातक को सांसारिक जीवन में सुख शांति, ऐश्वर्य, धन-सम्पदा तथा अच्छा परिवार प्राप्त होता हैं। जो मनुष्य जीवन-पर्यन्त एकादशी को उपवास करता हैं, वह मरणोपरांत वैकुण्ठ जाता हैं। श्रीकृष्ण जी यह भी बताते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से जातक को मृत्यु के पश्चात नरक में जाकर यमराज के दर्शन कदापि नहीं होते हैं, किन्तु सीधे स्वर्ग का मार्ग खुलता हैं। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत रखता हैं, उसे अच्छा स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, सम्पति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा ऐश्वर्य प्राप्त होता हैं। विष्णु जी के भक्तो के लिए, इस एकादशी का विशेष महत्व हैं। जो जातक जया एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु की कथा का श्रवण करता हैं, उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता हैं। इस दिवस उपवास रखने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती हैं, साथ ही व्रत के प्रभाव से जातक का शरीर भी स्वस्थ रहता हैं। जो व्यक्ति पूर्ण रूप से उपवास नहीं कर सकते उनके लिए मध्याह्न या संध्या-काल में एकाहार अर्थात एक समय भोजन करके एकादशी व्रत करने का विधान हैं। एकादशी में अन्न का सेवन करने से पुण्य का नाश होता हैं तथा भारी दोष लगता हैं। एकादशी-माहात्म्य को सुनने मात्र से सहस्र गोदानोंका पुण्यफल प्राप्त होता हैं। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार एकादशी का व्रत जीवों के परम लक्ष्य, भगवद-भक्ति को प्राप्त करने में सहायक माना गया हैं। अतः एकादशी का दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से भक्ति करने के लिए अति शुभकारी तथा फलदायक हैं। इस दिवस जातक अपनी इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध चित्त से प्रभु की पूर्ण-भक्ति से सेवा करता हैं तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपा के पात्र बनता हैं। जया एकादशी व्रत की कथा सुनने, सुनाने तथा पढने मात्र से 100 गायो के दान के तुल्य पुण्य-फलो की प्राप्ति होती हैं। अतः जया एकादशी मुक्तिदायिनी होने के साथ ही समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी जाती हैं।

जया एकादशी व्रत पूजन सामग्री

भगवान के लिए पीला वस्त्र
श्री विष्णु जी की मूर्ति
शालिग्राम भगवान की मूर्ति
पुष्प तथा पुष्पमाला
नारियल तथा सुपारी
धूप, दीप तथा घी
पंचामृत (दूध (कच्चा दूध), दही, घी, शहद तथा शक्कर का मिश्रण)
अक्षत
तुलसी पत्र
चंदन
कलश
प्रसाद के लिए मिष्ठान तथा ऋतुफल

जया एकादशी व्रत की पूजा विधि

जया एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण जीकी पूजा का विधान हैं। अतः इस दिन श्रीकृष्ण जी की पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करनी चाहिए।
        एकादशी का व्रत रखने वाले भक्तो को अपना मन शांत एवं स्थिर रखना चाहिए। किसी भी प्रकार की द्वेष-भावना या क्रोध को मन में नहीं लाना चाहिए। इस दिन विशेष रूप से व्रती को बुरे कर्म करने वाले, पापी तथा दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। परनिंदा से बचना चाहिए तथा इस दिन कम से कम बोलना चाहिए, जिस से मुख से कोई गलत बात ना निकल पाये। तथापि यदि जाने-अंजाने कोई भूल हो जाए, तो उसके लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगते रहना चाहिए।
प्रत्येक एकादशी व्रत का विधान स्वयं श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा हैं। व्रत की विधि बताते हुए श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि एकादशी व्रतों के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ किया जाता हैं, अतः दशमी तिथि के दिन में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए तथा साँयकाल में सूर्यास्त के पश्चात भोजन नहीं करना चाहिए एवं रात्रि में भोग विलास को त्याग कर एवं पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन तथा नारायण की छवि मन में बसाए हुए, भगवान का ध्यान करते हुए शयन करना चाहिए। दशमी के दिन से ही, चावल, उरद, चना, मूंग, जौ, मसूर, लहसुन, शराब तथा अन्य नशीली चीजो का सेवन नहीं करना चाहिए।
अगले दिन अर्थात एकादशी व्रत के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से पवित्र होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, पूजा-घर को शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात आसन पर बैठकर व्रत संकल्प लेना चाहिए कि मैं आज समस्त भोगों को त्याग कर, निराहार एकादशी का व्रत करुंगा, हे प्रभु मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा करें। तथा मेरे समस्त पाप क्षमाँ करे।संकल्प लेने के पश्चात कलश स्थापना की जाती हैं तथा उसके ऊपर भगवान श्रीविष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा रखी जाती हैं। उसके पश्चात शालिग्राम भगवान को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाए एवं पुष्प तथा ऋतु फल का भोग लगायें तथा शालिग्राम पर तुलसी-पत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए। उसके पश्चात धूप, दीप, गंध, कमल अथवा वैजयन्ती पुष्प, गंगा जल, पंचामृत, नैवेद्य, मिठाई, नारियल, सुपारी, सुंदर आंवला, बेर, अनार, आम आदि जैसे ऋतु-फल से भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान हैं। अतः भगवान लक्ष्मी नारायण जी की विधिवत पूजन-आरती करनी चाहिए। साथ ही, धन प्राप्ति तथा आर्थिक समृद्धि के लिए जया एकादशी के दिन माँ लक्ष्मीजी की भी पूजा करनी चाहिए। प्रसाद के रूप में पंचामृत का समस्त श्रद्धालुओ में वितरण करना चाहिए। इस दिन श्रीखंड चंदन अथवा सफ़ेद चन्दन या गोपी चन्दन मस्तक पर लगाकर पूजन करना चाहिए।
व्रत के दिन अन्न वर्जित हैं। अतः निराहार रहें तथा सध्याकाल में पूजा के पश्चात चाहें तो फलाहार कर सकते हैं। फल तथा दूध खा कर एवं सम्पूर्ण दिवस चावल तथा अन्य अनाज ना खा कर आंशिक व्रत रखा जा सकता हैं। यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए तथा इस दिन आप दान करके पुन्य प्राप्त कर सकते हैं।
एकादशी के व्रत में रात्रि जागरण का अधिक महत्व हैं। कहा गया हैं की, जो भक्तजन एकादशी की रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य प्राप्त होता उससे कई गुना अधिक पुण्य फलो की प्राप्ति होती हैं। अतः संभव हो तो रात्रि में जगकर भगवान का भजन कीर्तन अवश्य करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान विष्णु का स्मरण कर विष्णु-सहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा-दृष्टि प्राप्त होती हैं। इस दिन जया एकादशी व्रत की कथा अवश्य पढनी, सुननी तथा सुनानी चाहिए।
व्रत के अगले दिन अर्थात द्वादशी तिथि पर सवेरा होने पर पुन: स्नान करने के पश्चात श्रीविष्णु भगवान की पूजा तथा आरती करनी चाहिए। उसके पश्चात सही मुहूर्त में व्रत का पारण करना चाहिए, साथ ही ब्राह्मण-भोज करवाने के पश्चात योग्य कर्मकाण्डी ब्राह्मण को अन्न का दान तथा यथा-संभव सोना, तिल, भूमि, गौ, फल, छाता, जनेऊ या धोती दक्षिणा के रूप में देकर, उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए तथा उपस्थित श्रद्धालुओ में प्रसाद वितरित करने के पश्चात स्वयं मौन रह कर, भोजन ग्रहण करना चाहिए।

जया एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

पद्मपुराण के उत्तरखण्ड के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से परम पुण्यकारी जया एकादशी के विषय पर पूछे जाने पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी की कथा सुनाई थी। उन्होंने बताया कि,हे कुंती पुत्र! में तुम्हें जया एकादशी की कथा सुनता हूँ। जया एकादशी की कथा को पढ़ने, सुनने अथवा सुनाने मात्र से ही समस्त प्राणी को राजसूय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं। अतः तुम यह कथा ध्यानपूर्वक सुनो-”
एक बार देवताओं के राजा इंद्र नंदन वन में भ्रमण कर रहे थे। चारों ओर किसी उत्सव सा माहौल था। इस उत्सव में समस्त देवता, सिद्ध संत तथा दिव्य पुरूष वर्तमान थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे तथा गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व तथा पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। पुष्पवती माल्यवान पर आसक्त होकर अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। माल्यवान भी उस गंधर्व कन्या पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गया। जीससे संगीत की लय टूट गई तथा संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया। सभा में उपस्थित देवगणों को यह अत्यंत बुरा लगा। यह देखकर देवेंद्र भी रूष्ट हो गए।
संगीत एक पवित्र साधना हैं। इस साधना को भ्रष्ट करना पाप हैं, अतः इन्द्र को पुष्पवती तथा माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध आया तथा इंद्रने दोनों को श्राप दे दिया कि, संगीत की साधना को अपवित्र करने वाले माल्यवान तथा पुष्पवती! तुमने देवी सरस्वती का घोर अपमान किया हैं, अतः तुम्हें मृत्युलोक में जाना होगा। मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि तुम दोनों को प्राप्त हों। अतः इंद्रलोक में तुम्हारा रहना अब वर्जित हैं, अब तुम अधम पिशाच असंयमी सा जीवन बिताओगे।” इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये तथा हिमालय पर्वत पर पिशाच योनि में दुःखपूर्वक जीवनयापन करने लगे। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था। उन्हें गंध, रस, स्पर्श आदि का तनिक भी बोध नहीं था। वहीं उन्हें असहनीय दुःख सहने पड़ रहे थे। रात-दिन में उन्हें एक क्षण के लिए भी नींद नहीं आती थी। उस स्थान का वातावरण अत्यंत शीतल था, जिसके कारण उनके रोएं खड़े हो जाते थे, हाथ-पैर सुन्न पड़ जाते थे, दांत बजने लगते थे।
भगवान की कृपा से एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन इन दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया तथा न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया तथा महान दुःख के साथ रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंढ़ लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे।
दूसरे दिन प्रातः काल होते ही प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गई तथा पुनः अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा तथा गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए। इंद्रलोक में जाकर इन दोनों ने देवेंद्र को दण्डवत् किया।
देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये तथा पिशाच योनि से मुक्ति कैसी प्राप्त हुई यह पूछा। माल्यवान के कहा भगवान श्रीहरि की कृपा तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमें पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हुई हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए तथा कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं अतः आप अब से मेरे लिए आदरणीय हैं। शिव तथा विष्णु भक्त हम देवताओं के वंदना करने योग्य हैं, अतः आप दोनों धन्य हैं। अब आप प्रसन्नतापूर्वक देवलोक में निवास करें।

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