10 February 2019

बसंत पंचमी की तिथि पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व महत्व | बसन्त पंचमी 10 फरवरी विशेष |


बसंत पंचमी की तिथि पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व महत्व | बसन्त पंचमी 10 फरवरी विशेष | Basant Panchami
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी पूजा
बसंत पंचमी की तिथि पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व महत्व
बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति में एक बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्योहार हैं जिसमे हमारी परम्परा, भौगौलिक परिवर्तन , सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष प्रत्येक का सम्मिश्रण हैं, हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता हैं वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात प्रत्येक ऋतुओं का राजा माना गया हैं तथा बसंत पंचमी के दिवस को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता हैं अतः बसंत पंचमी ऋतू परिवर्तन का दिवस भी हैं जिस दिवस से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना प्रारम्भ हो जाता हैं पेड़ों पर नवीन पत्तिया कोपले तथा कालिया खिलना प्रारम्भ हो जाती हैं पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती हैं।

बसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता हैं यह माता सरस्वती का प्राकट्योत्सव हैं अतः इस दिवस विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा उपासना कर उनसे विद्या बुद्धि प्राप्ति की कामना की जाती हैं इसी लिए विद्यार्थियों के लिए बसंत पंचमी का त्योहार बहुत विशेष होता हैं।

बसंत पंचमी का त्योहार बहुत ऊर्जामय ढंग से तथा विभिन्न प्रकार से पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता हैं इस दिवस पीले वस्त्र पहनने तथा खिचड़ी बनाने तथा बाटने की प्रथा भी प्रचलित हैं तो इस दिवस बसंत ऋतु के आगमन होने से आकास में रंगीन पतंगे उड़ने की परम्परा भी बहुत दीर्घकाल से प्रचलन में हैं।

बसंत पंचमी के दिवस का एक तथा विशेष महत्व भी हैं बसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयं सिद्ध मुहूर्त तथा अनसूज साया भी माना गया हैं अर्थात इस दिवस कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती इस दिवस नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई तथा विवाह आदि मंगल कार्य किये जा सकते हैं।

माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान तथा शिल्प-कला की देवी माना जाता हैं।

भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति तथा सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिवस देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिवस शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता हैं। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिवस विद्या आरम्भ करने के लिये काफी शुभ माना जाता हैं इसीलिये माता-पिता आज के दिवस शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। प्रत्येक विद्यालयों में आज के दिवस सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती हैं।

वसन्त पञ्चमी का दिवस हिन्दु कैलेण्डर में पञ्चमी तिथि को मनाया जाता हैं। जिस दिवस पञ्चमी तिथि सूर्योदय तथा दोपहर के बीच में व्याप्त रहती हैं उस दिवस को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता हैं। हिन्दु कैलेण्डर में सूर्योदय तथा दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से जाना जाता हैं।

ज्योतिष विद्या में पारन्गत व्यक्तियों के अनुसार वसन्त पञ्चमी का दिवस प्रत्येक शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता हैं। इसी कारण से वसन्त पञ्चमी का दिवस अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता हैं।

वसन्त पञ्चमी के दिवस किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती हैं परन्तु पूर्वाह्न का समय पूजा के लिये श्रेष्ठ माना जाता हैं। प्रत्येक विद्यालयों तथा शिक्षा केन्द्रों में पूर्वाह्न के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता हैं।

नीचे सरस्वती पूजा का जो मुहूर्त दिया गया हैं उस समय पञ्चमी तिथि तथा पूर्वाह्न दोनों ही व्याप्त होते हैं। इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिवस सरस्वती पूजा इसी समय के दौरान करना श्रेष्ठ हैं।

सरस्वती, बसंतपंचमी पूजा
1. प्रात:काल स्नाना करके पीले वस्त्र धारण करें।
2. मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात कलश स्थापित कर प्रथम पूज्य गणेश जी का पंचोपचार विधि पूजन उपरांत सरस्वती का ध्यान करें
ध्यान मंत्र
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

3. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं।
4. माता का श्रंगार कराएं ।
5. माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं अतः उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं।
6. प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
7. श्वेत फूल माता को अर्पण करें।
8. तत्पश्चात नवग्रह की विधिवत पूजा करें।

बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ सरस्वती चालीसा पढ़ना तथा कुछ मंत्रों का जाप आपकी बुद्धि प्रखर करता हैं। अपनी सुविधानुसार आप ये मंत्र 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं।

निम्न मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का यथा सामर्थ्य जाप करें
1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥

2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।
सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।

4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।

6. सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।

7. प्रथम भारती नाम, द्वितीय च सरस्वती
तृतीय शारदा देवी, चतुर्थ हंसवाहिनी
पंचमम् जगतीख्याता, षष्ठम् वागीश्वरी तथा
सप्तमम् कुमुदीप्रोक्ता, अष्ठमम् ब्रह्मचारिणी
नवम् बुद्धिमाता च दशमम् वरदायिनी
एकादशम् चंद्रकांतिदाशां भुवनेशवरी
द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेनर:
जिह्वाग्रे वसते नित्यमं
ब्रह्मरूपा सरस्वती सरस्वती महाभागे
विद्येकमललोचने विद्यारूपा विशालाक्षि
विद्या देहि नमोस्तुते

8. स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए।

जेहि पर कृपा करहिं जन जानि।
कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥
मोरि सुधारहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥

9. गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।
अलप काल विद्या सब पाई॥

माँ सरस्वती चालीसा
दोहा
जनक जननि पदम दुरज, निजब मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।।

चौपाई
जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।।
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी।।
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता।।
जग में पाप बुद्धि जब होती।तबही धर्म की फीकी ज्योति।।
तबहि मातु का निज अवतारा।पाप हीन करती महितारा।।
बाल्मीकि  जी  था  हत्यारा।तव   प्रसाद   जानै   संसारा।।
रामचरित जो रचे बनाई । आदि कवि की पदवी पाई।।
कालीदास जो भये विख्याता । तेरी कृपा दृष्टि से माता।।
तुलसी सूर आदि विद्वाना । भये जो तथा ज्ञानी नाना।।
तिन्ह न तथा रहेउ अवलम्बा । केवल कृपा आपकी अम्बा।।
करहु कृपा सोई मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी।।
पुत्र  करई  अपराध  बहूता । तेहि  न  धरई  चित  माता।।
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करऊ भांति बहुतेरी।।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा । कृपा करउ जय जय जगदंबा।।
मधुकैटभ जो अति बलवाना । बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना।।
समर हजार पांच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला।।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी । पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।।
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता । क्षण महु संहारे उन माता।।
रक्त बीज से समरथ पापी । सुर मुनि हृदय धरा सब कांपी।।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।बार बार बिनवऊं जगदंबा।।
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।क्षण में बांधे ताहि तूं अम्बा।।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई । रामचन्द्र बनवास कराई।।
एहि विधि रावन वध तू कीन्हा।सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।।
को समरथ तव यश गुण गाना।निगम अनादि अनंत बखाना।।
विष्णु रूद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी।।
रक्त दन्तिका तथा शताक्षी।नाम अपार हैं दानव भक्षी।।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।।
दुर्ग आदि हरनी तू माता । कृपा करहु जब जब सुखदाता।।
नृप  कोपित को मारन चाहे । कानन  में घेरे  मृग  नाहैं।।
सागर मध्य पोत के भंजे । अति तूफान नहिं कोऊ संगे।।
भूत प्रेत बाधा या दु:ख में।हो दरिद्र अथवा संकट में।।
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई।।
पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै छांड़ि पूजें एहि भाई।।
करै पाठ नित यह चालीसा । होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा।।
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै।।
भक्ति मातु की करैं हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा।।
बंदी  पाठ  करें  सत  बारा । बंदी  पाश  दूर  हो  सारा।।
रामसागर बांधि हेतु भवानी।कीजे कृपा दास निज जानी।।

दोहा
मातु सूर्य कान्ति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन से रक्षा कार्हु परूं न मैं भव कूप।।
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
रामसागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु।।

माँ सरस्वती वंदना
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।

कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता हैं। विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें। संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें व मां को बांसुरी भेंट करें।

पूजा समय
पंचमी तिथि अारंभ👉  9/फरवरी/2019 को 12.25 बजे से
पंचमी तिथि समाप्त👉 10/फरवरी/2019 को 14.08 बजे तक

सरस्वती पूजा का मुहूर्त सुबह 07:07 बजे से मध्यान 12:35 तक का हैं तथा इस मुहूर्त की अवधि 5 घंटे 27 मिनट तक रहेगी दोपहर तक इस पूजन को क‍िया जा सकता हैं। बसंत पंचमी के पूरे दिवस आप अपने किसी भी नए कार्य का आरम्भ कर सकते हैं ये एक स्वयं सिद्ध तथा श्रेष्ठ मुहूर्त होता हैं।

सरस्वती स्तोत्रम्
श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।
श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥
श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।
वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥ 
स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।
ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥
या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः।
सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥
॥इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥

बसन्त पंचमी कथा 🙏
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई हैं जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता हैं। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी तथा वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता हैं। ये विद्या तथा बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिवस को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया हैं-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार तथा मेधा हैं उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि तथा स्वरूप का वैभव अद्भुत हैं। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिवस तुम्हारी भी आराधना की जाएगी तथा यूं भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिवस विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी हैं।       
🙏🌹 श्रीजी सेवा ग्रुप परिवार🌹🙏

बसंतपंचमी की कथा, ऐतिहासिक, पौराणिक महत्व
 आपको आपके परिवार को इस पावन दिवस की शुभकामनाएं 🙏!

*पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥1॥

भावार्थ:-फिर मैं सरस्वती तथा देवनदी गंगाजी की वंदना करता हूँ। दोनों पवित्र तथा मनोहर चरित्र वाली हैं। एक (गंगाजी) स्नान करने तथा जल पीने से पापों को हरती हैं तथा दूसरी (सरस्वतीजी) गुण तथा यश कहने तथा सुनने से अज्ञान का नाश कर देती हैं॥

वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार हैं। इस दिवस विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती हैं। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल तथा कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती हैं। इस दिवस स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

प्राचीन भारत तथा नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ तथा गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता तथा हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं।

भर भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिवस एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु तथा कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्योहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया हैं, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता हैं।

बसन्त पंचमी कथा 🙏

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई हैं जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता हैं। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा।

इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया।

 पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी तथा वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता हैं। ये विद्या तथा बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिवस को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया हैं-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।

 हममें जो आचार तथा मेधा हैं उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि तथा स्वरूप का वैभव अद्भुत हैं। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिवस तुम्हारी भी आराधना की जाएगी तथा यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिवस विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी हैं। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं हैं। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में प्रारम्भ हुआ तथा फिर कोरिया तथा जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता हैं। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिवस नवीन उमंग से सूर्योदय होता हैं तथा नवीन चेतना प्रदान कर अगले दिवस फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता हैं।

यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला हैं, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता हैं। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान तथा कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता हैं। जो शिक्षाविद भारत तथा भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिवस मां शारदे की पूजा कर उनसे तथा अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या?

 जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों तथा विजयादशमी का हैं, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों तथा व्यास पूर्णिमा का हैं, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों तथा दीपावली का हैं, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का हैं। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिवस का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा तथा मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

पौराणिक महत्व  🙏

इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता हैं। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती हैं। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी तथा चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के प्रत्येक गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।

दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात तथा मध्य प्रदेश में फैला हैं। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान हैं जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिवस ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा हैं कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी हैं।

ऐतिहासिक महत्व  🙏!

वसंत पंचमी का दिवस हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता हैं। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया तथा उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया तथा उनकी आंखें फोड़ दीं।

 इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही हैं। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान हैं, मत चूको चौहान ॥

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट तथा चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई तथा पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिवस ही हुई थी।

वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध हैं। एक दिवस जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी हैं। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।

कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी तथा कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश हैं, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसन्त पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती हैं। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता हैं।

वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती हैं। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवष्त्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।

गुरू रामसिंह, गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अन्तरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक तथा प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा तथा गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युद्ध का पासा पलट गया।

इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए तथा 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिवस फांसी दी गयी। दो दिवस बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं। राजा भोज इस दिवस एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था जो चालीस दिवस तक चलता था।

वसन्त पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस (28.02.1899) भी हैं। निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम तथा पीड़ा थी। वे अपने पैसे तथा वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। इस कारण लोग उन्हें 'महाप्राण' कहते थे। इस दिवस जन्मे लोग कोशिश करे तो बहुत आगे जाते हैं। ये लोग आगे जाते हैं।
 



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