करवा चौथ व्रत की कहानी
Karwa Chauth Katha |
करवा
चौथ के व्रत का संपूर्ण विवरण “वामन पुराण” में किया गया है। करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। शास्त्रों के अनुसार
करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित
महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
दोस्तों यह व्रत सही विधि से न करने के कारण, इसका सही फल प्राप्त नहीं हो पाता। सुहागिन महिलाओं के लिये यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण
होता है क्योंकि यह व्रत पति की लंबी आयु तथा घर के कल्याण के लिये रखा जाता हैं।
ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत श्रद्धाभाव
एवं हर्ष-उत्साह के साथ रखती हैं। स्त्री किसी भी आयु, जाति,
वर्ण, संप्रदाय की हो, सभीको यह व्रत करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व प्रगति की कामना करती हैं, वे यह व्रत अवश्य रखती हैं।
देखा गया है की, अक्सर महिलाएं अपनी मां तथा अपनी सास से करवा चौथ व्रत करने की विधि सीखती हैं, किन्तु यदि आप अपने घर से दूर रहते हैं तथा यह व्रत करना चाहते हैं तो इसकी विधि
जाननी अत्यंत आवश्यक है।
आइये आज हम आपको बताएँगे करवा चौथ के व्रत
की व्रत कथा।
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे तथा उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत
प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते तथा बाद में स्वयं खाते थे। एक
बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार बंद कर के
अपने घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे तथा अपनी बहन
से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ
का निर्जल व्रत है तथा वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती
है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल
हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की
हालत देखी नहीं जाती तथा वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता
है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो चूका
है।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता
है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के पश्यात भोजन ग्रहण
कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती
है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है तथा जैसे
ही तीसरा टुकड़ा मुँह में रखने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे
मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत
कराती “उसके भाइयो ने उसके साथ ऐसा किया है” तथा उसे बताती कि ऐसा क्यों हो रहा
है? करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं तथा उन्होंने
ऐसा किया है।
Karwa Chauth Katha |
एक साल पश्यात फिर करवा चौथ
का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद
लेने आती हैं तो वह भाभी से कहती है 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो,
मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है,
लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह कर
वहाँ से चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी
आती है तो करवा उससे भी यह बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे
भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति
को दोबारा जीवित कर सकती है, इसी वजह से जब वह आए तो तुम
उसे पकड़ लेना तथा जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, तब तक उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती
है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख कर करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है तथा
अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए आग्रह करती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है,
लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख
भाभी पसीज जाती है तथा अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में
डाल देती है। करवा का पति तुरंत ही श्रीगणेश-श्रीगणेश मंत्र का जाप करता हुआ उठ कर
बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग
वापस मिल जाता है।
हे
श्री गणेश भगवान्, हे माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान मिला,
वैसा ही वरदान संसार की
प्रत्येक सुहागिनों को मिले।
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