Maa Katyayni |
षष्ठी दुर्गा । माँ कात्यायनी । Maa Katyayni । माँ भगवती का छटा स्वरुप
माँ दुर्गा के षष्ठी रूप को माँ
कात्यायनी के नाम से पूजन जाता हैं। नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा के
छठे रूप कात्यायनी की पूजन-अर्चना का विधान हैं। माँ कात्यायनी, माँ दुर्गा का ही
संघारक स्वरुप हैं। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहाँ
पुत्री के रूप में जन्म लिया था। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन पोषण कर दिया, अतः वे कात्यायनी कहलाती हैं।
प्रत्येक भक्त के लिए प्रार्थना योग्य
यह श्लोक सरल तथा स्पष्ट हैं। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर
नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ
कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान तथा कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध
अम्बे, आपको मेरा बार-बार
प्रणाम हैं। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे
सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
माँ के नौ रुप
शैलपुत्री – इसका
अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता हैं।
ब्रह्मचारिणी – इसका
अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा – इसका
अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा – इसका
अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में हैं।
स्कंदमाँ – इसका
अर्थ- कार्तिक स्वामी की माँ।
कात्यायनी – इसका
अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि – इसका
अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी – इसका
अर्थ- सफेद रंग वाली माँ।
सिद्धिदात्री – इसका
अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
माँ कात्यायनी का स्वरूप
माँ कात्यायनी, माँ दुर्गा का ही
संघारक स्वरुप हैं। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य ओर स्वर्ण के समान
चमकीला हैं। इनकी चार भुजाए भक्तो को वरदान देती हैं, इनका
एक हस्त अभय मुद्रा मे हैं तो दूसरा हस्त वर मुद्रा मे हैं अन्य हाथो मे तलवार तथा
कमल का फूल हैं। माँ कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां उपासक
को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं। माँ कात्यायनी के रूप में ही महिषासुर का संहार कर
दिया था। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज तथा प्रभाव से युक्त हो जाता हैं
तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। ये अपनी प्रिय सवारी सिंह पर
विराजमान रहती हैं। माँ कात्यायनी की आराधना करने वाले भक्तो के काम सरलता एवं
सुगमता से होते हैं।
माँ कात्यायनी की आराधना महत्व
माँ कात्यायनी की भक्ति उपासक को बड़ी
सरलता से अर्थ , धर्म, काम, मोक्ष चारो फल
प्रदान करती हैं। व्यक्ति इस लोक मे रहकर भी आलोकिक तेज ओर प्रभाव से युक्त हो
जाता हैं। ऐसे उपासक शोक, संताप, डर से
मुक्त होता हैं तथा सर्वथा के लिए उसके दुखो का अंत होता हैं ? । कार्यो मे आ रही समस्याए दूर होती हैं। आय के साधानो मे वृद्धि होती हैं
ओर बेरोज़गारो को रोज़गार मिलता हैं।
माँ कात्यायनी की कथा
Maa Katyayni |
माँ कात्यायनी के पूजन मे उपयोगी सामाग्री
षष्ठी तिथि के दिन प्रसाद में मधु यानि
शहद का प्रयोग करना चाहिए। इस दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया हैं। इसके
प्रभाव से उपासक सुंदर रूप प्राप्त करता हैं।
माँ कात्यायनी की पूजन विधि
सर्वप्रथम कलश तथा उसमें उपस्थित देवी
देवता की पूजन करें उसके पश्चात माँ के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजन
करें। इनकी पूजन के बाद देवी कात्यायनी जी की पूजन कि जाती हैं। पूजन की विधि प्रारम्भ
करने पर हाथों में फूल धरण कर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का उच्चारण किया जाता
हैं।
देवी की पूजन के पश्चात भोलेनाथ तथा परमेश्वर
की पूजन करनी चाहिए। श्रीहरि की पूजन देवी लक्ष्मीमाँ के साथ ही करनी चाहिए।
छठे नवरात्र के माँ कात्यायनी के वस्त्रों का रंग एवं प्रसाद
नवरात्र में आप माँ कात्यायनी की पूजन
में लाल रंग के वस्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं। यह दिन केतु ग्रह से सम्बंधित शांति पूजन के लिए सर्वोत्तम हैं। छठवीं नवरात्रि के दिन माँ को शहद का भोग लगाने
से आपकी आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती हैं।
माँ कात्यायनी का ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत
शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी
यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम
दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां
भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार
भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर,
किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग
कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न
नाभिम॥
माँ कात्यायनी का स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते
नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते
नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
माँ कात्यायनी का कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां
स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य
सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
माँ कात्यायनी का उपासना मंत्र
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि।।
कात्यायनी माँ की आरती
जय जय अंबे जय कात्यायनी।
जय जगमाता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारी।
वहां वरदानी नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते॥
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुड़ानेवाली।
अपना नाम जपनेवाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो॥
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
॥ माँ दुर्गा जी की आरती ।।
जय अम्बे गौरी।।।
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
माँग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
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