नवरात्र में कैसे करें श्री दुर्गा सप्तशती पाठ | पाठ की सही विधि | Durga Saptashati Path in Hindi
Durga Saptashati path in Hindi |
श्री दुर्गा सप्तशती
श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ करने का
अलग विधान हैं। कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद तथा
कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया हैं। जैसे कीलक मंत्र को
शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ हैं। देवी कवच उच्च स्वर में तथा
श्रीअर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर तथा समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए।
देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र तथा तंत्र क्रिया के हैं।
संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा हैं।
वाकार विधि:
प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय,
दूसरे
दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय,
चौथे
दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम,
दशम
अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश
अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती हैं।
संपुट पाठ विधि:
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र
से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट
मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता हैं।
लेकिन यह अतिफलदायी हैं। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का
कोई मंत्र ले लीजिए। या कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले
लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं।
नवरात्रि में माता का हर भक्त श्री
दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करने की लालसा रखता हैं। बहुत से लोग करते भी हैं। कई
लोग अज्ञानता में विधियों का ध्यान नहीं रख पाते तथा पूर्ण फल से वंचित रह जाते
हैं। श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की कई
विधियां कही गई हैं। श्री दुर्गा सप्तशती के अलावा इसके कुछ विकल्प भी हैं जिनका
पाठ भी पूरे दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर फलदायी होता हैं। कई लोगों के साथ समय
का अभाव रहता हैं या कोई अन्य कारण जिससे वे लंबी पूजा नहीं कर पाते। शास्त्रों
में उनके लिए भी कई उपाय बताए गए हैं। बस आवश्यकता हैं आपको जानने की।
नवरात्र पूजा विधि
सर्वप्रथम- देवी भगवती को प्रतिष्ठापित
करें। कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें। ( अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते
हों या जलाना चाहते हों)
ध्यान- सर्वप्रथम अपने गुरू का ध्यान
करिए। उसके बाद गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी तथा नवग्रह का।
पाठ विधि
संकल्प- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ
करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ
में जौ, चावल तथा दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए तथा संकल्प लीजिए।।।हे
भगवती मैं।।।।।( अमुक नाम)।।।।सपरिवार।।।( अपने परिवार के नाम ले लीजिए।।।)।।।गोत्र।(
अमुक गोत्र)।।।।स्थान ( जहां रह रहे हैं)।।। पूरी निष्ठा, समर्पण तथा
भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं। हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए तथा
हमारी इस मनोकामना।।। ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए। श्रीदुर्गा
सप्तशती के पाठ, जप ( माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) तथा यज्ञादि
को मेरे स्वीकार करिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ
भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।
Durga Saptashati path |
सप्तशती पाठ⧴ https://goo.gl/ZDUW5M
दुर्गा सप्तशती
मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्त, परम उपयोगी तथा मनुष्य का कल्याणकारी देवी कवच एवं व देवी सुक्त बताया हैं तथा कहा हैं कि जो मनुष्य इन उपायों को करेगा, वह इस संसार में सुख भोग कर अन्त समय में बैकुण्ठ को जाएगा।
ब्रहदेव ने कहा कि जो मनुष्य दुर्गा
सप्तशती का पाठ करेगा उसे सुख मिलेगा। भगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्बा का अवतरण
श्रेष्ठ पुरूषो की रक्षा के लिए हुआ हैं। जबकि श्रीं मद देवीभागवत के अनुसार
वेदों तथा पुराणों कि रक्षा के तथा दुष्टों के दलन के लिए माँ जगदंबा का अवतरण
हुआ हैं। इसी तरह से ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आद्ध शक्ति हैं, उन्ही
से सारे विश्व का संचालन होता हैं तथा उनके अलावा तथा कोई अविनाशी नही हैं।
इसीलिए नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के
नौ रूपों का ध्यान, उपासना व आराधना की जाती हैं तथा नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां
दुर्गा के एक-एक शक्ति रूप का पूजा किया जाता हैं।
नवरात्रि के दौरान श्री दुर्गा सप्तशती
के पाठ को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया हैं। इस दुर्गा सप्तशती को ही शतचण्डि,
नवचण्डि
अथवा चण्डि पाठ भी कहते हैं तथा रामायण के दौरान लंका पर चढाई करने से पहले भगवान
राम ने इसी चण्डी पाठ का आयोजन किया था, जो कि शारदीय नवरात्रि के रूप में
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथी तक रहती हैं।
हालांकि पूरे साल में कुल 4 बार आती हैं,
जिनमें
से दो नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता हैं, जिनका
अधिक महत्व नहीं होता, जबकि अन्य दो नवरात्रियों में भी एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार
शारदीय नवरात्रि का ज्यादा महत्व अतः हैं क्योंकि देवताओं ने इस मास में देवी
की अराधना की थी, जिसके परिणामस्वरूप मां जगदम्बा ने दैत्यों का वध कर देवताओं को
फिर से स्वर्ग पर अधिकार दिलवाया था।
मार्कडेय पुराण के अनुसार नवरात्रि के
दौरान मां दुर्गा के जिन नौ शक्तियों की पूजा-आराधना की जाती हैं, उनके
नाम व संक्षिप्त महत्व इस प्रकार से हैं-
1 मां
दुर्गा का शैल पुत्री रूप, जिनकी उपासना से मनुष्य को अन्नत
शक्तियां प्राप्त होती हैं तथा उनके अाध्यात्मिक मूलाधार च्रक का शोधन होकर उसे
जाग्रत कर सकता हैं, जिसे कुण्डलिनी-जागरण भी कहते हैं।
2 मां
दुर्गा का ब्रहमचारणी रूप, तपस्या का प्रतीक हैं। अतः जो साधक तप
करता हैं, उसे ब्रहमचारणी की पूजा करनी चाहिए।
3 च्रदघण्टा,
मां
दुर्गा का तीसरा रूप हैं तथा मां दुर्गा के इस रूप का ध्यान करने से मनुष्य को
लौकिक शक्तिया प्राप्त होती हैं, जिससे मनुष्य को सांसारिक कष्टों से
छुटकारा मिलता हैं।
4 मां
दुर्गा की चौथी शक्ति का नाम कूष्माण्डा हैं तथा मां के इस रूप का ध्यान,
पूजा
व उपासना करने से साधक को रोगों यानी आधि-व्याधि से छुटकारा मिलता हैं।
5 माँ
जगदम्बा के स्कन्दमाता रूप को भगवान कार्तिकेय की माता माना जाता हैं, जो
सूर्य मण्डल की देवी हैं। अतः इनके पुजन से साधक तेजस्वी तथा दीर्घायु बनता हैं।
6 कात्यानी,
माँ
दुर्गा की छठी शक्ति का नाम हैं, जिसकी उपासना से मनुष्य को धर्म,
अर्थ,
काम
तथा अन्त में मोक्ष, चारों की प्राप्ति होती हैं। यानी मां के इस रूप की उपासना करने से
साधक की सभी मनोकामनाऐं पूरी होती हैं।
7 मां
जगदीश्वरी की सातवीं शक्ति का नाम कालरात्रि हैं, जिसका अर्थ काल
यानी मुत्यृ हैं तथा मां के इस रूप की उपासना मनुष्य को मुत्यृ के भय से मुक्ति
प्रदान करती हैं तथा मनुष्य के ग्रह दोषों का नाश होता हैं।
8 आठवी
शक्ति के रूप में मां दुर्गा के महागौरी रूप की उपासना की जाती हैं, जिससे
मनुष्य में देवी सम्पदा तथा सद्गुणों का विकास होता हैं तथा उसे कभी आर्थिक संकट
का सामना नहीं करना पडता।
9 सिद्धीदात्री,
मां
दुर्गा की अन्तिम शक्ति का नाम हैं जो कि नवरात्रि के अन्तिम दिन पूजी जाती हैं तथा
नाम के अनुरूप ही माँ सिद्धीदात्री, मनुष्य को समस्त प्रकार की सिद्धि
प्रदान करती हैं जिसके बाद मनुष्य को किसी तथा प्रकार की आवश्यकता नही रह जाती।
हिन्दु धर्म की मान्यतानुसार दुर्गा
सप्तशती में कुल 700 श्लोक हैं जिनकी रचना स्वयं ब्रह्मा, विश्वामित्र तथा
वशिष्ठ द्वारा की गई हैं तथा मां दुर्गा के संदर्भ में रचे गए इन 700 श्लोकों की
वजह से ही इस ग्रंथ का नाम दुर्गा सप्तशती हैं।
दुर्गा सप्तशती मूलत: एक जाग्रत तंत्र
विज्ञान हैं। यानी दुर्गा सप्तशती के श्लोकों का अच्छा या बुरा असर निश्चित रूप
से होता हैं तथा बहुत ही तीव्र गति से होता हैं।
दुर्गा सप्तशती में अलग-अलग जरूरतों
के अनुसार अलग-अलग श्लोकों को रचा गया हैं, जिसके अन्तर्गत
मारण-क्रिया के लिए 90, मोहन
यानी सम्मोहन-क्रिया के लिए 90, उच्चाटन-क्रिया के लिए 200, स्तंभन-क्रिया
के लिए 200 व विद्वेषण-क्रिया के लिए 60-60 मंत्र हैं।
चूंकि दुर्गा सप्तशती के सभी मंत्र
बहुत ही प्रभावशाली हैं, अतः इस ग्रंथ के मंत्रों का दुरूपयोग न
हो, इस हेतु भगवान शंकर ने इस ग्रंथ को शापित कर रखा हैं, तथा
जब तक इस ग्रंथ को शापोद्धार विधि का प्रयोग करते हुए शाप मुक्त नहीं किया जाता,
तब
तक इस ग्रंथ में लिखे किसी भी मंत्र तो सिद्ध यानी जाग्रत नहीं किया जा सकता अौर
जब तक मंत्र जाग्रत न हो, तब तक उसे मारण, सम्मोहन,
उच्चाटन
आदि क्रिया के लिए उपयोग में नहीं लिया जा सकता।
हालांकि इस ग्रंथ का नवरात्रि के दौरान
सामान्य तरीके से पाठ करने पर पाठ का जो भी फल होता हैं, वो जरूर प्राप्त
होता हैं, लेकिन तांत्रिक क्रियाओं के लिए यदि इस ग्रंथ का उपयोग किया जा रहा
हो, तो उस स्थिति में पूरी विधि का पालन करते हुए ग्रंथ को शापमुक्त
करना जरूरी हैं।
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ विधि:
श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ करने से
पूर्व श्री गणेशजी, शिवजी, माता जगदंबा, श्रीविष्णु आदि देवताओं का स्मरण एवं
पूजा कर लेनी चाहिए। गणेशजी का आह्वान तो हर पूजा से पूर्व किया ही जाता हैं। यदि
आप गणेशजी का आह्वान विधिवत करना चाहते हैं जो कि कर ही लेना चाहिए तो इसके लिए
प्रभु शरणम् ऐप्प के दैनिक पूजा मंत्र सेक्शन में देखें। वहां सरलतम विधि मिल
जाएगी। नवरात्रि में यदि आप व्रत रखते हैं तो पूजा विधिवत क्यों न हो।
गणेशजी का आह्वान पूजा कर लें। यदि आप
विधिवत नहीं कर पा रहे किसी कारण तो आप कम से कम एक माला ऊँ गं गणपत्यै नमः मंत्र
की जप लें। फिर हाथ जोड़कर गणेशजी का ध्यान करें तथा उनसे प्रार्थना करें-
हे मंगलमूर्ति बिना आपके आशीर्वाद के
कोई भी पूजा या मंगलकार्य संभव ही नहीं। मैं अज्ञान अबोध हूं। मुझसे कई अपराध हुए
हैं। मैं ज्ञात-अज्ञात विधियों से विमुख हूं। इसके लिए क्षमा करेंगे। मैं आपका
शरणागत हूं। आपका शरणागत होकर आपकी मैं मां जगदंबा की प्रसन्नता के लिए यह पूजा कर
रहा हूं। हे विघ्नहर्ता आप सदैव मेरे साथ उपस्थित रहें। इस पूजा में आने वाले
विघ्नों का नाश करें। मां जगदंबा का पूजा निर्विघ्न कर सकूं इसके लिए मुझे
आशीर्वाद दें।
फिर भी मैं कहूंगा कि गणेशजी का आह्वान
कर ही लेना चाहिए। यदि घर में पूजा कर रहे हैं तो जरूर। विधि बहुत छोटी सी हैं।
यदि नौ दिन तक उसे करते रहे तो सदा-सर्वदा के लिए याद हो जाएगी तथा हमेशा काम आएगी।
विधि ऐप्प में देखें।
इसके बाद श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के
लिए लिए पुस्तक का पूजा भी कर लेना चाहिए। श्री दुर्गा सप्तशती पाठ जिस पुस्तक से
करते हैं सर्वप्रथम उस ग्रंथ को पूजा कर उन्हें संतुष्ट कर लेना चाहिए। इसके बिना
किया श्री दुर्गा सप्तशती पाठ अपूर्ण हैं।
पुस्तक के पूजा के लिए उन पर जल छिड़कर
स्नान भाव से स्नान कराएं। फिर धूप-दीप पुष्प आदि समर्पित करें। इससे जुड़ी छोटी-छोटी बहुत सी काम की बातें जो
बहुत सरल हैं नवरात्र में आपको नियम से प्रभु शरणम् ऐप्प में भी बताई जाएंगी।
जुड़े रहिएगा तथा पढ़ते रहिएगा।
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करते समय
पुस्तक को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप मानना चाहिए। इस पुस्तक का पाठ करने से पूर्व
निम्न मंत्र द्वारा पंचोपचारपूजा करें। पंचोपचार पूजा क्या होता हैं यह आपको बहुत
बार बता चुका हूं। आप ऐप्प के दैनिक पूजा सेक्शन में जरूर देखिए। पंचोपचार पूजा
में मुश्किल से एक से डेढ़ मिनट लगते हैं तो फिर क्यों न किया जाए।
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ से पूर्व पुस्तक
के पूजा का मंत्रः
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै
भद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए ग्रंथ पूजा
के बाद श्री देवी कवच, श्री अर्गला स्तोत्रम्, श्री कीलक स्तोत्र का पाठ जरूर कर लेना
चाहिए। उसके बाद माता का सिद्ध मंत्र नवार्ण
मंत्र “ऊं ऐं ह्री
क्लीं चामुण्डायै विच्चै” की
एक माला जप लेनी चाहिए।
नवार्ण मंत्रः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं
चामुण्डायै विच्चै।
नवार्ण मंत्र माता का बड़ा चमत्कारी
मंत्र हैं। इसके नवार्ण होने के कारण तथा महत्व के विषय पर जल्द ही पोस्ट प्रभु
शरणम् ऐप्प में प्रकाशित की जाएगी। आपको जानकर बहुत सुखद आश्चर्य होगा।
इसके बाद रात्रिसूक्त का पाठ करने का
भी विधान हैं।
रात्रिसूक्त के पाठ के बाद तेरह
अध्यायों का पाठ एवं पाठ के उपरांत देवी सूक्त का पाठ किया जाता हैं किंतु यह सारी
प्रक्रिया साधकों के लिए हैं।
आम माताभक्त गणेशजी, शिव-पार्वती,
श्रीहरि
का अपनी विधि से स्मरण कर फिर नवार्ण मंत्र का 11 या 21 बार जप करके कवच, अर्गला
तथा कीलक का पाठ करें। फिर वे सप्तशती पाठ आरंभ कर सकते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती पाठ भी एक ही दिन में करना
कोई जरूरी नहीं हैं। सप्तशती में सात सौ श्लोक हैं जो तेरह अध्यायों में हैं। आठ
दिन में भी इसका पाठ किया जा सकता हैं। इसका एक क्रम बताया गया। किस दिन किस-किस
अध्याय का पाठ करना हैं इसकी भी एक विधि हैं।
इससे उनके लिए बहुत सुविधा हो जाती हैं
जिन्होंने व्रत तो किया हैं पर जीवन के अन्य कार्य भी करने हैं तथा समय नहीं निकाल
पाते। प्रभु शरणम् ऐप्प में इस विषय पर विस्तृत जानकारी नवरात्रि आरंभ होने की
पूर्वसंध्या पर दी जाएगी। यानी नवरात्रि के एक दिन पहले। आपको इससे बहुत सुविधा हो
जाएगी।
नवरात्र में पूजा के अवसर पर
दुर्गासप्तशती का पाठ श्रवण करने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। सप्तशती का
पाठ करने पर उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता हैं।
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ से जुड़े कुछ उपयोगी तथ्यः
प्रसंग भेद के आधार पर
श्रीदुर्गासप्तशती के तेरह अध्यायों को तीन चरित में बांटा जाता हैं।
प्रथम चरित, द्वितीय चरित तथा
तृतीय चरित। प्रथम चरित्र के अंतर्गत केवल प्रथम अध्याय को माना जाता हैं।
द्वितीय चरित में दूसरा तीसरा एवं चौथा
अध्याय एवं तृतीय चरित में पांचवें से तेरहवें अध्याय माने जाते हैं।
नियम के अनुसार तीनों चरितों के पाठ का
महात्म्य हैं परंतु समय के अभाव में द्वितीय चरित का पाठ भी किया जा सकता हैं। इसे
लघु पाठ कहते हैं। लघु पाठ के बाद भी 11, 21 या 108 बार नर्वाण मंत्र का जप कर
लेना चाहिए।
बहुत विवशता हैं तो सप्तश्लोकी दुर्गा
अथवा सिद्धकुंजिका स्तोत्रम का पाठ करें। श्रीदुर्गासप्तशती को नवरात्र के नौ
दिनों में तीन बार करके, जैसे एक दिन प्रथम चरित, दूसरे
दिन द्वितीय चरित तथा तीसरे दिन तृतीय चरित ऐसे करके भी पूरी दुर्गासप्तशती का एक
पाठ तो कर ही लेना चाहिए।
सप्तशती पाठ या माता के किसी भी साधना
की निश्चित संख्या पूरी हो जाने के बाद हवन, कन्या पूजा एवं
ब्राह्मण भोजन अवश्य करा देना चाहिए।
श्री दुर्गासप्तशती के पाठ की एक तथा विधि हैं वाकार विधि
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की वाकार
विधि:
सात दिनों में तेरह अध्यायों के पाठ की
एक तथा सरल विधि हैं। जो लोग नवरात्रि में नियम से सप्तशती पाठ करते हैं वे समय के
अभाव में इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं।
प्रथम दिन प्रथम अध्याय, दूसरे
दिन दो पाठ- द्वितीय व तृतीय अध्याय का करें। तीसरे दिन एक पाठ यानी चतुर्थ अध्याय
का करें।
चौथे दिन चार पाठ करने होते हैं। पंचम,
षष्ठ,
सप्तम
व अष्टम अध्याय का पाठ चौथे दिन करें। पांचवें दिन दो अध्यायों नवम एवं दशम अध्याय
का करना चाहिए।
छठे दिन एक पाठ ग्यारहवें अध्याय का
करना चाहिए। सातवें दिन दो पाठ यानी द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय का करें। इस तरह एक
पाठ सप्तशती का पूरा किया जा सकता हैं।
नवरात्रि पूजा क्यों सबको करना चाहिए।
नवरात्रि पूजा के पीछे का विज्ञान जानना चाहते हैं तो बहुत धैर्य के साथ पढ़ें
पोस्ट तथा गर्व करें। हमें सनातन धर्म पर गर्व होना चाहिए।
आपको यह पोस्ट कैसी लगी, अपने
विचार लिखिएगा। प्रभु शरणम् ऐप्प में ऐसे उपयोगी पोस्ट बहुत मिल जाएंगे। छोटा सा
ऐप्प हैं। करीब पांच लाख लोग उसका प्रयोग करके प्रसन्न हैं। आप भी ट्राई करके
देखिए। अच्छा न लगे तो डिलिट कर दीजिएगा।
क्यों तथा कैसे शापित हैं दुर्गा सप्तशती के तांत्रिक मंत्र
इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा हैं कि
एक बार भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती को किसी कानणवश बहुत क्रोध आ गया,
जिसके
कारण माँ पार्वती ने राैद्र रूप धारण कर लिया तथा मां पार्वती का इसी क्रोधित रूप
को हम मां काली के नाम से जानते हैं।
कथा के अनुसार मां काली के रूप में
क्रोधातुर मां पार्वती पृथ्वी पर विचरन करने लगी तथा सामने आने वाले हर प्राणी को
मारने लगी। इससे सुर-असुर, देवी-देवता सभी भयभीत हो गए तथा मां
काली के भय से मुक्त होने के लिए ब्रम्हाजी के नेतृत्व में सभी भगवान शिव के
पास गए औन उनसे कहा कि- हे भगवन भाेले नाथ… आप ही देवी काली
को शांत कर सकते हैं तथा यदि आपने ऐसा नहीं किया, तो सम्पूर्ण
पृथ्वी का नाश हो जाएगा, जिससे इस भूलोक में न कोई मानव होगा न
ही जीव जन्तु।
भगवान शिव ने ब्रम्हाजी को जवाब दिया
कि- अगर मैंने एेसा किया तो बहुत ही भयानक असर होगा। सारी पृथ्वी पर दुर्गा के
रूप मंत्रो से भयानक शक्ति का उदय होगा तथा दावन इसका दुरूपयोग करना शुरू कर देंगे,
जिससे
सम्पूर्ण संसार में आसुरी शक्तियो का वास हो जाएगा।
ब्रम्हाजी ने फिर भगवान शिव से
प्रार्थना की कि- हे भगवान भूतेश्वर… आप रौद्र रूप में देवी को शांत कीजिए तथा
इस दौरान उदय होने वाले मां दुर्गा के रूप मंत्रों को शापित कर दीजिए, ताकि
भविष्य में कोई भी इसका दुरूपयोग न कर सके।
वहीं भगवान नारद भी थे जिन्होने ब्रम्हाजी
से पूछा कि- हे पितामह… अगर भगवान शिव ने उदय होने वाले मां दुर्गा के रूप मंत्रों को शापित
कर दिया, तो संसार में जिसको सचमुच में देवी रूपों की आवश्यकता होगी, वे
लोग भी मां दुर्गा के तत्काल जाग्रत मंत्र रूपों से वंचित रह जाऐंगे। उनके लिए क्या
उपाय हैं, ताकि वे इन जाग्रत मंत्रों का फायदा ले सकें?
भगवान नारद के इस सवाल के जवाब में
भगवान शिव ने दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने की पूरी विधि बताई, जो
कि अग्रानुसार हैं तथा इस विधि का अनुसरण किए बिना दुर्गा सप्तशती के मारण,
वशीकरण,
उच्चाटन
जैसे मंत्रों को सिद्ध नहीं किया जा सकता न ही दुर्गा सप्तशती के पाठ का ही पूरा
फल मिलता हैं।
दुर्गा सप्तशती – शाप मुक्ति विधि
भगवान शिव के अनुसार जो व्यक्ति मां
दुर्गा के रूप मंत्रों को किसी अच्छे कार्य के लिए जाग्रत करना चाहता हैं,
उसे
पहले दुर्गा सप्तशती को शाप मुक्त करना होता हैं तथा दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त
करने के लिए सबसे पहले निम्न मंत्र का सात बार जप करना होता हैं-
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं
चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरू कुरू स्वाहा
फिर इसके पश्चात निम्न मंत्र का 21
बार जप करना हाेता हैं-
ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति
चण्डिके उत्कीलनं कुरू कुरू स्वाहा
तथा अंत में निम्न मंत्र का 21 बार जप
करना हाेता हैं-
ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि
विधे मृतमूत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा
इसके बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप
करना होता हैं-
ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं
क्षाेंभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं
इतनी विधि करने के बाद मां दुर्गा का
दुर्गा-सप्तशती ग्रंथ भगवान शंकर के शाप से मुक्त हो जाता हैं। इस प्रक्रिया को
हम दुर्गा पाठ की कुंजी भी कह सकते हैं तथा जब तक इस कुंजी का उपयोग नहीं किया
जाता, तब तक दुर्गा-सप्तशती के पाठ का उतना फल प्राप्त नहीं होता,
जितना
होना चाहिए क्योंकि दुर्गा सप्तशती ग्रंथ को शापमुक्त करने के बाद ही उसका पाठ
पूर्ण फल प्रदान करता हैं।
कैसे करें दुर्गा-सप्तशती का पाठ
देवी स्थापना – कलश स्थापना
दुर्गा सप्तशती एक महान तंत्र ग्रंथ
के रूप में उपल्बध जाग्रत शास्त्र हैं। अतः दुर्गा सप्तशती के पाठ को बहुत ही
सावधानीपूर्वक सभी जरूरी नियमों व विधि का पालन करते हुए ही करना चाहिए क्योंकि
यदि इस पाठ को सही विधि से व बिल्कुल सही तरीके से किया जाए, तो
मनचाही इच्छा भी नवरात्रि के नौ दिनों में ही जरूर पूरी हो जाती हैं, लेकिन
यदि नियमों व विधि का उल्लंघन किया जाए, तो दुर्घटनाओं के रूप में भयंकर परिणाम
भी भोगने पडते हैं तथा ये दुर्घटनाऐं भी नवरात्रि के नौ दिनों में ही घटित होती
हैं।
अतः किसी अन्य देवी-देवता की
पूजा-आराधना में भले ही आप विधि व नियमों पर अधिक ध्यान न देते हों, लेकिन
यदि आप नवरात्रि में दुर्गा पाठ कर रहे हैं, तो पूर्ण
सावधानी बरतना व विधि का पूर्णरूपेण पालन करना जरूरी हैं।
1 दुर्गा-सप्तशती
पाठ शुरू करते समय सर्व प्रथम पवित्र स्थान (नदी किनारे की मिट्टी) की मिट्टी से
वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। हमारे द्वारा किया गया दुर्गा पाठ किस मात्रा में तथा
कैसे स्वीकार हुआ, इस बात का पता इन जौ या गेंहू के अंकुरित होकर बडे होने के अनुसार
लगाया जाता हैं। यानी यदि जौ/गेहूं बहुत ही तेजी से अंकुरित होकर बडे हों, तो
ये इसी बात का संकेत हैं कि हमारा दुर्गा पाठ स्वीकार्य हैं जबकि यदि ये जौ/गेहूं
अंकुरित न हों, अथवा बहुत धीमी गति से बढें, तो तो ये इसी बात की तथा इशारा होता हैं
कि हमसे दुर्गा पाठ में कहीं कोई गलती हो रही हैं।
2 फिर
उसके ऊपर कलश को पंचोपचार विधि से स्थापित करें।
3 कलश
के ऊपर मूर्ति की भी पंचोपचार विधि से प्रतिष्ठा करें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे
स्वास्तिक तथा उसके दोनों ओर त्रिशूल बनाकर दुर्गाजी का चित्र, पुस्तक
तथा शालीग्राम को विराजित कर विष्णु का पूजा करें।
4 पूजा
सात्विक होना चाहिए क्योंकि सात्विक पूजा का अधिक महत्व हैं। जबकि कुछ स्थानों
पर असात्विक पूजा भी किया जाता हैं जिसके अन्तर्गत शराब, मांस-मदिरा आदि
का प्रयोग किया जाता हैं।
5 फिर
नवरात्र-व्रत के आरंभ में स्वस्ति वाचक शांति पाठ कर हाथ की अंजुली में जल लेकर
दुर्गा पाठ प्रारम्भ करने का संकल्प करें।
6 फिर
सर्वप्रथम भगवान गणपति की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण
का विधि से पूजा करें।
7 फिर
प्रधानदेवी दुर्गा माँ का षोड़शोपचार पूजा करें।
8 फिर
अपने ईष्टदेव का पूजा करें। पूजा वेद विधि या संप्रदाय निर्दिष्ट विधि से होना
चाहिए।
दुर्गा-सप्तशती पाठ विधि
विभन्न भारतीय धर्म-शास्त्रों के
अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की कई विधियां बताई गर्इ हैं, जिनमें
से दो सर्वाधिक प्रचलित विधियाें का वर्णन निम्नानुसार हैं:
इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि
द्वारा पाठ करते हैं। यानी इस विधि में केवल पाठ किया जाता हैं, पाठ
करने के बाद उसकी समाप्ति पर हवन आदि नहीं किया जाता।
इस विधि में एक ब्राह्मण सप्तशती का
आधा पाठ करता हैं। (जिसका अर्थ हैं- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे
अध्याय में ‘देवा उचुः- नमो दैव्ये महादेव्यै’ से आरंभ कर
ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा
तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण पाठ की पूर्णता मानी
जाती हैं। जबकि एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता हैं।
पाठ करने की दूसरी विधि अत्यंत सरल
मानी गई हैं। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ (प्रथम अध्याय), दूसरे दिन दो
पाठ (द्वितीय व तृतीय अध्याय), तीसरे दिन एक पाठ (चतुर्थ अध्याय),
चौथे
दिन चार पाठ (पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय), पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ (नवम व
दशम अध्याय), छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ (द्वादश एवं त्रयोदश
अध्याय) करने पर सप्तशती की एक आवृति होती हैं। इस विधि में आंठवे दिन हवन तथा
नवें दिन पूर्णाहुति किया जाता हैं।
अगर आप एक ही बार में पूरा पाठ नही कर
सकते हैं, तो आप त्रिकाल संध्या के रूप में भी पाठ को तीन हिस्सों में विभाजित
करके कर सकते हैं।
चूंकि ये विधियां अपने स्तर पर पूर्ण
सावधानी के साथ करने पर भी गलतियां हो जाने की सम्भावना रहती हैं, अतः
बेहतर यही हैं कि ये काम आप किसी कुशल ब्राम्हण से करवाऐं।
सप्तशती पाठ⧴ https://goo.gl/ZDUW5M
No comments:
Post a Comment