शरद पूर्णिमा व्रत विधि | शरद पूर्णिमा व्रत महत्व | शरद पूर्णिमा व्रत मुहूर्त | Sharad Purnima 2018 | Sharad Purnima Kheer
![]() |
sharad-purnima-puja |
शरद पूर्णिमा का स्थान हिन्दू धर्म में अत्यंत
महत्वपूर्ण हैं। यह पूर्णिमा अन्य पूर्णिमा की तुलना में अति लोकप्रिय हैं। जिस रात्री
आकाश से चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत बरसाता हैं, उसी आश्विन
माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता हैं। शरद पूर्णिमा को रास
पूर्णिमा भी कहा जाता हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी तथा विष्णु जी की पूजा का विधान हैं। कहा जाता हैं कि शरद
पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनाकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा संतानों को लंबी आयु
का वरदान प्राप्त होता हैं। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। मान्यता हैं कि
शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की बरसात करता हैं। माना जाता हैं कि 16 कलाओं वाला पुरुष ही सर्वोत्तम पुरुष हैं। कहा जाता हैं
कि भगवान श्री विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ अवतरित हुये थे,
एवं भगवान श्रीराम के पास
12 कलाएं थीं। साथ ही इस सीन खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखने की भी परंपरा हैं,
अतः इस रात में
खीर को खुले आकाश में रखा जाता हैं तथा 12 बजे के पश्चात उसका
प्रसाद गहण किया जाता हैं। ऐसी मान्यता हैं कि इस खीर में आकाश से गिरने वाला
अमृत आ जाता हैं तथा यह कई रोगों को दूर करने की शक्ति रखती हैं। मुख्य बात हैं कि शरद
पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सर्वप्रथम निकट होता हैं। इस बार पूर्णिमा तिथि
का प्रारम्भ 23 अक्टूबर रात को हो रही हैं तथा इसका समापन 24 अक्टूबर रात को होगा।
शरद पूर्णिमा व्रत की पूजा-विधि
शरद
पूर्णिमा पर ऐसा माना जाता हैं कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता हैं। शरद
पूर्णिमा पर व्रत भी रखा जाता हैं। विशेष रूप से इस व्रत को लक्ष्मी प्राप्ति के
लिए रखा जाता हैं। शरद पूर्णिमा पर ब्राह्माणों को खीर का भोजन करवाना अत्यंत शुभ
माना जाता हैं। साथ ही उन्हें दान दक्षिणा भी देनी चाहिए। शरद पूर्णिमा के दिन प्रातः
इष्ट देव का पूजन किया जाता हैं। साथ ही इन्द्र भगवान तथा महालक्ष्मी जी का पूजन
करके घी के दीपक जलाकर पूजा-अर्चना की जाती हैं। वहीं शरद पूर्णिमा पर जागरण भी
किया जाता हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन प्रातः उठकर स्नान करने के पश्चात व्रत का संकल्प
लें तथा पवित्र नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें। अगर आसपास जलाशय, कुंड
या नदी नहीं हैं तो घर में ही थोड़ा सा गंगाजल पानी में डालकर स्नान कर सकते हैं। घर
के मंदिर में घी का दीपक जलाएं भगवान विष्णु या अपने ईष्ट देव को सुंदर वस्त्र,
आभूषण पहनाएं। घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं तथा आवाहन, आचमन, आसन, वस्त्र, गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, तांबूल, सुपारी नैवेद्य तथा दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजा करें। इसके पश्चात भगवान
इंद्र तथा मां लक्ष्मी की भी पूजा करें। इसके पश्चात ईष्ट देवता की पूजा करें। संध्या में भी मां लक्ष्मी की पूजा तथा अब
धूप-बत्ती से आरती उतारें। इसके पश्चात भगवान इंद्र तथा माता लक्ष्मी की पूजा की
जाती हैं। इसके पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य
दें। चंद्रमा की पूजा तथा प्रसाद चढ़ाएं तथा आरती करें। गाय के दूध से बनी खीर में
घी तथा चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान भोग लगाएं। जब चंद्रमा आकाश के मध्य में
स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें तथा खीर का प्रसाद चढ़ाएं। रात को खीर से
भरा बर्तन चांद के प्रकाश में ही रखें तथा प्रातः उसका प्रसाद ग्रहण करें। पूर्णिमा
का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा से पूर्व एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं,
पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें तथा दक्षिणा
चढ़ाएं। इस दिन भगवान शिव-पार्वती तथा भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती हैं। रात
12 बजे के पश्चात अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें। अब उपवास खोल लें।
शरद पूर्णिमा व्रत का महत्व
शरद पूर्णिमा को 'कोजागर पूर्णिमा' तथा 'रास पूर्णिमा' के नाम से
भी जाना जाता हैं। शास्त्रों
के अनुसार इस दिन अगर अनुष्ठान किया जाए तो वे सफलता प्राप्त करते हैं। शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व हैं। मान्यता हैं कि शरद
पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अतः इस दिन विवाहित
महिलाएं तथा अविवाहित कन्याएं भी व्रत रखती हैं। शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी
मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विवाहित महिलाएं संतान प्राप्ति तथा संतान की लंबी आयु
के लिए यह व्रत रखती हैं, वहीं यह व्रत करने वाली अविवाहित
कन्याओं को अच्छा वर प्राप्त होता हैं। इस व्रत को 'कौमुदी
व्रत' भी कहा जाता हैं। जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके
बच्चे दीर्घायु होते हैं। यदि अविवाहिता कन्याएं यह व्रत रखें तो उन्हें मानोवांछित
वर प्राप्त होता हैं। मान्यता
हैं कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। वहीं शास्त्रों
के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। माना जाता हैं कि इस
दिन देवी लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी का भ्रमण
करने आती हैं। मान्यता हैं कि इस दिन आकाश से अमृत बरसता हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी किरणों के जरिये अमृत की वर्षा करता हैं।
अतः इस दिन आकाश बिल्कुल साफ तथा स्वच्छ नजर आता हैं। अतः आकाश पर चंद्रमा भी सोलह
कलाओं से चमकता हैं। शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी रात में जो भक्त भगवान विष्णु
सहित देवी लक्ष्मी तथा उनके वाहन की पूजा करते हैं। ऐसा विश्वास हैं कि इस दिन
चंद्रमा की किरणों में अमृत भर जाता हैं तथा ये किरणें हमारे लिए बहुत लाभदायक
होती हैं। इन दिन प्रातः के समय घर में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। शरद पूर्णिमा के साथ ही वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती हैं तथा शरद ऋतु का
शुभारंभ हो जाता हैं। माना जाता हैं कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण होते
हैं जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती हैं।
Read more at:
शरद पूर्णिमा व्रत का शुभ
मुहूर्त
इस
वर्ष 2018 में शरद पूर्णिमा के लिए पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 23 अक्टूबर को रात
10:36 पर होगा। तथा पूर्णिमा तिथि का समापन 24 अक्टूबर रात 10:14 पर होगा।
चंद्रोदय का समय: 23 अक्टूबर 2018 की संध्या 05 बजकर 20 मिनट
पूर्णिमा तिथि 23 अक्टूबर 2018 को
रात्रि 22:39 से पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर, 24 अक्टूबर 2018
को रात्रि 22:17 तक व्याप्त रहेगी।
आपको यह पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में अवश्य लिखे तथा सभी को शेयर करें, धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment