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रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2024Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai ?
Raksha Bandhan 2024 Muhurat
रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय - दोपहर 01 बजकर 31 मिनिट
रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ - 09:51 से 10:53
रक्षा बन्धन भद्रा मुख - 10:53 से 12:37
रक्षाबन्धन मन्त्रः (Raksha Bandhan Mantra)
येन बद्धो वली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वा रक्षबध्नामी रक्षे माचल माचल ॥ Yen Baddho
bali raja danvendro mahabal, ten twam
RakshBadhnami rakshe machalmachal. The meaning
of Raksha Mantra - "I tie you with the same
Raksha thread which tied the most powerful, the king of courage, the king of
demons, Bali. O Raksha (Raksha Sutra), please don't move and keep fixed
throughout the year." येन=जिसके द्वारा बद्धो= प्रतिबद्ध
हुए, बली राजा= राजा बलि, दानवेन्द्रो=दानवों के राजा, महाबल: = महाबलशाली, तेन= उसी प्रतिबद्धता के सूत्र द्वारा
त्वाम=तुम्हे अनुबध्नामि= मैं भी
उसी रक्षा सूत्र मे बनाता हूँ, रक्षे=हे रक्षा सूत्र, मा चल=स्थिर रहो मा चल=स्थिर रहो, चलायमान मत रहो। 🌷 रक्षाबंधन 🌷 ➡सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता
भवेत्।। 🙏🏻
इस पर्व पर धारण किया हुआ
रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है ।इसे वर्ष में एक बार
धारण करने से वर्षभर मनुष्य रक्षित हो जाता हैं। (भविष्य पुराण) 🌷 Shubh Muhurat for Raksha Bandhan 2024: In this video, we present the specific shubh
muhurat for Raksha Bandhan 2024. This muhurat is considered auspicious for
performing the rituals, tying the sacred thread, and exchanging gifts.
Following this muhurat can add an extra layer of positivity to this already
special occasion. 🌷 Importance of Muhurat: Choosing the right muhurat is an age-old tradition
in Hindu culture. It is believed that certain timings hold specific energies,
and by aligning our actions with these timings, we can enhance the positive
outcomes of our endeavors.
🌷रक्षाबंधन की संस्कृत में शुभकामनाएं
मम भ्राता! प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु। पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।। अर्थ मेरे भैया! प्रार्थना है की आप सौ साल जीयें, ईश्वर सदा आपकी रक्षा करें, पुण्य कर्मों से कीर्ति अर्जित करें और इस तरह आपका जीवन सार्थक हो। रक्षाबन्धनस्य हार्दिक्य: शुभकामना:। अर्थ रक्षाबंधन की हार्दिक
शुभकामनाएँ। रक्षाबन्धनस्य कोटिश: शुभकामना:। अर्थ रक्षाबंधन की कोटि कोटि
शुभकामनाएँ। रक्षाबन्धनस्य अनेकश: शुभकामना:। अर्थ रक्षाबंधन की अनेक शुभकामनाएँ। भ्राता! त्वं जीव शतं वर्धमान:। अर्थ भाई! तुम सौ साल जिओ। भगिनी! त्वं शतं जीव शरदः वर्धमाना। अर्थ बहन! तुम सौ साल जिओ। प्रिय भ्राता; पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं श्रुणुयाम शरद: शतं प्रब्रवाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद:
शतात् । रक्षाबन्धनस्य हार्दिक्य: शुभकामना:। अर्थ मेरे भैया, सौ वर्षों तक आँखों का प्रकाश स्पष्ट बना रहे। आप सौ साल तक जीते रहें; सौ साल तक आपकी बुद्धि समर्थ रहे, आप ज्ञानी बने रहे; आप सौ साल तक बढ़ते रहें, और बढ़ते रहें; आपको पोषण मिलता रहे; आप सौ साल तक जीते रहें रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
रक्षाबंधन का पर्व सनातन भारतवर्ष में मनाये जाने वाले पवित्र तथा प्रमुख
त्योहारों में से एक हैं। रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अतुल्य स्नेह के प्रतीक
के स्वरूप में भक्ति एवं उत्साह के साथ मनाया जाता हैं, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती
हैं साथ ही अपने भाई की दिर्ध आयु के लिए प्रार्थना करती हैं तथा भाई अपनी बहनकी
रक्षा करने का वचन देता हैं। हिंदुओ में रक्षाबंधन का पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के
साथ, धूमधाम से मनाया जाता हैं। साथ ही सिख, जैन, तथा लगभग सभी भारतीय समुदायों में यह पर्व
बिना किसी रुकावट के तथा प्रेम-भाव के साथ मनाया जाता हैं। रक्षाबंधन के पर्व में
रक्षा सूत्र अर्थात “राखी” का सबसे अधिक विशेष महत्व होता हैं। माना
जाता हैं की “राखी” बहन का अपने भाई के प्रति स्नेह व आदर का प्रतीक होती हैं। रक्षाबंधन का
त्योहार सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता
हैं जो की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर के महीने में आता हैं।
रक्षा बंधन के ठीक आठ दिन के पश्चात भगवान् श्री कृष्ण का जन्मदिन अर्थात श्री
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं।
रक्षाबंधन के शुभ दिवस पर प्रत्येक जातक को चाहिए की वह रक्षा सूत्र को भगवान
शिव की प्रतिमा के समक्ष अर्पित कर 108या उस से भी अधिक बार “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप करें या शिव के पंचाक्षरी तथा अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र “ॐ नमः शिवाय”
का जप करें तथा उसके पश्चात ही रक्षा सूत्र को अपने भाईयों की कलाई पर बांधे। ऐसा
करने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती हैं। क्योंकि श्रावण का
पवित्र मास सम्पूर्ण प्रकार से भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता हैं।
रक्षाबन्धन का शुभ मुहूर्त 2024
इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त, सोमवार प्रातः 03 बजकर 04 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 19 अगस्त, सोमवार की ही मध्य-रात्रि 11 बजकर 55 मिनिट तक व्याप्त रहेगी। अतः इस वर्ष 2024 में रक्षा-बंधन का पर्व19 अगस्त, सोमवार के शुभ दिवस मनाया जाएगा। इस वर्ष, रक्षाबंधन के त्योहार पर राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त19 अगस्त, सोमवार की दोपहर
01 बजकर 32 मिनिट से रात्रि 09 बजकर 11 मिनट तक का रहेगा। यह भी ध्यान रहे की, १. हिन्दु धार्मिक
मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्यों हेतु भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये।
अतः भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना गया हैं। २. रक्षा
बन्धन के दिन अर्थात 19 अगस्त, सोमवार के दिन भद्रा, दोपहर 01 बजकर 31 मिनिट पर तक व्याप्त रहेगी, यह समय राखी बांधने के लिए उपयुक्त नहीं है। ३. वैदिक
मतानुसार अपराह्न का समय राखी बांधने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त माना गया हैं, जो कि हिन्दु समय
गणना के अनुसार दोपहर के पश्चात का समय होता हैं, अपराह्न का शुभ मुहूर्त 13:47 से 16:22 तक रहेगा। ४. यदि
अपराह्न का समय भद्रा आदि के कारण उपयुक्त नहीं हैं तो, प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना गया हैं, प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त 18:56 से 21:10। रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय - दोपहर 01 बजकर
31 मिनिट रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ - 09:51 से 10:53 रक्षा बन्धन भद्रा मुख - 10:53 से 12:37
🕉🌷निर्जला एकादशी कब है 2024 | एकादशी तिथि व्रत पारण का
समय |
तिथि
व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2024🔱
Nirjala Ekadashi Vrat
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।
वैदिक विधान कहता
है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निर्जल एवं निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना
चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा
शुकल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी
रहती है अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु
की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी
एकादशी भी है जिसमें व्रत रखकर संपूर्ण वर्ष की सभी एकादशियों जितना पुण्य कमाया
जा सकता है। यह है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। जिसे निर्जला एकादशी कहा
जाता है। निर्जला एकादशी
से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी तथा भीमसेनी या
भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी
व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं अनेक रोगों की
निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में वृद्घि होती है। जो श्रद्धालु वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों
का उपवास करने में सक्षम नहीं है, उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला
एकादशी उपवास करने से अन्य सभी एकादशियों का लाभ प्राप्त हो जाता हैं। मान्यता है कि
इस दिन व्रत रखने, पूजा तथा दान करने से जातक, जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता है। निर्जला
एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है। अंग्रेजी
कैलेण्डर के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत मई अथवा जून के महीने में होता है। यह व्रत
सभी पापों का नाश करने वाला तथा मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है।
एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते
हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत
पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के
अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।
ध्यान रहे,
१.एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त
होने से पहले करना अति आवश्यक है।
२.यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले
समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही होता है।
३.द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने
के समान होता है।
४.एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान
भी नहीं करना चाहिए।
५.व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय
प्रातःकाल होता है।
६.व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के
दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७.जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त
करने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर
द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है।
८.यदि, कुछ कारणों की वजह से जातक प्रातःकाल
पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत 2024
इस वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की
एकादशी तिथि 17 जून, सोमवार की प्रातः 04 बजकर 43 मिनिट से
प्रारम्भ हो कर, 18 जून, मंगलवार की प्रातः 06 बजकर 24 मिनिट तक
व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2024 में निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून, मंगलवार के दिवस किया जाएगा।
इस वर्ष, निर्जला एकादशी
व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 19 जून, बुधवार की प्रातः 05 बजकर 44 मिनिट से 07
बजकर 27 मिनिट तक का रहेगा।
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - प्रातः
07:27
होलिका दहन पूजा का कब शुभ मुहूर्त है 2024 | Holika Dahan ka Shubh Muhurat
Samay Time 2024
holika dahan ka shubh muhurat
होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष
में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के
अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक
तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं।होलिका
दहन का दिवस अर्थात फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा
कहते हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक हैं। इस दिवस सूर्योदय
से प्रारम्भ कर चंद्रोदय तक व्रत-उपवास भी किया जाता हैं। धार्मिक मान्यता के
अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश
होता हैं तथा उस भक्त को भगवान श्री हरी विष्णुजी की विशेष कृपादृष्टि प्राप्त होती
हैं।
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका
दहन का मुहूर्त किसी अन्य त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण तथा अति आवश्यक
हैं। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर ना की जाये तो मात्र पूजा के
लाभ से वर्जित होना पड़ता हैं किन्तु होलिका दहन की पूजा यदि अनुपयुक्त समय पर हो
जाये तो यह एक दुर्भाग्य तथा भारी पीड़ा का कारण बनाता हैं।
हमारे द्वारा बताया गया मुहूर्त
धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया हुआ श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। यह मुहूर्त सदैव
भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता हैं।
होली के पर्व को
सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त
हो, तभी मनानाचाहिये। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त होती
हैं, प्रत्येक शुभ कार्य भद्रा में वर्जित होते हैं। अतः इस समय होलिका पूजा तथा
होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले तथा मध्य रात्रि के
पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका
दहन का मुहूर्त सूर्यास्त तथा मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता हैं।
होलिका दहन का शास्त्रोक्त
नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन
पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता हैं, जिसमें
शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता
हैं। जिसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
1.
प्रथम,
उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी हैं, जो कि 11 करणो में से एक हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता हैं।
2.
द्वितीय,
पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में
कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्चात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी
आवश्यक हैं।
होलिका दहन के मुहूर्त के
लिए यह बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये -
भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम
मानी जाती हैं। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा
का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पूर्व समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात
जब भद्रा समाप्त हो,
तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया
जा सकता हैं। किन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये।
धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार
भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा हैं, जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को किन्तु नगर तथा
देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता हैं। किसी-किसी वर्ष भद्रा पूँछ प्रदोष के पश्चात
तथा मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती हैं, तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता हैं। कभी दुर्लभ
स्थिति में यदि प्रदोष तथा भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो
प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
होलिका दहन मुहूर्त 2024
इस वर्ष, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च, रविवार के दिन 09 बजकर 54 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 25 मार्च, सोमवार की दोपहर 12 बजकर 29
मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2024
में होलिका दहन 24 मार्च, रविवारके दिन किया जाएगा।
इस वर्ष, होलिका दहन का शुभ समय, 24 मार्च, रविवार
कीरात्रि 11 बजकर 12 मिनिट से मध्य-रात्रि 12 बजकर 32 मिनिट
तक का रहेगा।
भद्रा पूँछ - 18:33 से 19:53
भद्रा
मुख - 19:53 से 22:06
इस
वर्ष प्रदोषकाल के दौरान होलिका दहन भद्रा के साथ होगा।
रंगवाली होली
रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता हैं, वह होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती हैं, जो की 25 मार्च, सोमवारके दिन आयेगी तथा
इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता हैं।
🎨आप सभी
दर्शक-मित्र को हमारी ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ। 🌷
होलिका दहन का इतिहास
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता हैं। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य
की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला हैं जिसमें होली के पर्व को
उकेरा गया हैं। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता
हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध
किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद
सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा तथा अंततः उसने
अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि
उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर
भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका
दहन करने का विधान हैं। होली का पर्व संदेश देता हैं कि इसी प्रकार ईश्वर अपने
अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
** महाशिवरात्रि पर शुभ मुहूर्त: दिव्यता के अद्वितीय रात्रि **
mahashivratri 2024 shubh muhurat
महाशिवरात्रि, हिंदुओं के विशेष पर्वों में से एक है, जिसे भगवान शिव की अनुग्रह और उनकी पूजा के लिए मनाया जाता है। इस पवित्र रात्रि को और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बनाते हैं शुभ मुहूर्त, जिनके दौरान पूजा करने से अनुमानित लाभ होता है। इस ब्लॉग में, हम महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त के बारे में चर्चा करेंगे, ताकि आप इस अद्वितीय रात्रि को सबसे अच्छे तरीके से मना सकें।
** महाशिवरात्रि के महत्व **
महाशिवरात्रि को मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा और ध्यान का विशेष महत्त्व है। यह दिन भगवान शिव की अराधना, भक्ति और ध्यान में लगाने का सर्वोत्तम समय माना जाता है। इसके साथ ही, इस रात्रि को मनाने से व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।
** महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त **
महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त का महत्व अत्यंत उच्च होता है। इसके दौरान शिव पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ हम आपको 2024 में महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त की जानकारी दे रहे हैं: महाशिवरात्रि का त्योहार इस साल 8 मार्च को मनाया जाएगा। पंचांग अनुसार महाशिवरात्रि पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त 9 मार्च को 12:07 AM से 12:56 AM तक रहेगा। अमृत चौघड़िया मुहूर्त : मध्य रात्रि 2 बजकर 1 मिनट से 3 बजकर 33 मिनट तक। शुभ चौघड़िया मुहूर्त : मध्यरात्रि 12 बजकर 29 मिनट से 2 बजकर 1 मिनट तक। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते हैं।
** महत्त्वपूर्ण सूचना: **
- इन मुहूर्तों के दौरान भगवान शिव की पूजा, ध्यान, मंत्र जप और अर्चना की जा सकती है। - पूजा के लिए शिवलिंग की स्थापना करें और उसे दूध, बेलपत्र, धातूरा, बिल्व पत्र आदि से समर्पित करें। - योग्य मंत्रों का जाप करें और भगवान शिव की आराधना में लगे रहें। महाशिवरात्रि के इस पवित्र पर्व पर, इन शुभ मुहूर्तों का उपयोग करके आप अपने जीवन को धार्मिक और मानवीय गुणों से संगठित कर सकते हैं। इस दिन भगवान शिव की कृपा आपके साथ रहे और आपको
करवा चौथ व्रत का चांद कितने बजे निकलेगा | शुभ मुहूर्त | Karwa Chauth Vrat ka Shubh Muhurat 2023 | Aaj
Chand kitne baje niklega
Karwa Chauth Vrat ka Shubh Muhurat 2023
हे श्री गणेश भगवान्, हे माँ गौरी,
जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान प्राप्त हुआ,
वैसा ही वरदान संसार की प्रत्येक सुहागिनों को प्राप्त
हो।
करवा चौथ सनातन हिन्दु
धर्म का एक प्रमुख पर्व हैं। यह त्यौहार पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के साथ-साथ सम्पूर्ण
भारत-वर्ष में भिन्न-भिन्न विधि-विधान तथा भिन्न-भिन्न परंपराओं के साथ धूमधाम से मनाया
जाता हैं। करवा चौथ को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के
अनुसार करवा चौथ शरद पूर्णिमा से चौथे दिवस अर्थात कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की
चतुर्थी के शुभ दिवस मनाया जाता हैं। वहीं गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में करवा चौथ आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की
चतुर्थी को मनाया जाता हैं। तथा अङ्ग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व अक्तूबर या
नवंबर के महीने में आता है। करवा चौथ के व्रत में सम्पूर्ण शिव-परिवार अर्थात शिव
जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी तथा कार्तिकेय जी की विधिपूर्वक पूजा करने का विधान हैं। करवा या
करक मिट्टी के पात्र को कहा जाता हैं, जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण किया जाता है, जल अर्पण करने को ही अर्घ्य देना कहते हैं।
करवा चौथ का पावन व्रत
सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति की दिर्ध आयु तथा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए
रखती हैं तथा अविवाहित कन्याएँ भी उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु करवा चौथ के दिवस
निर्जला उपवास रखती हैं तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही अपने व्रत का पारण करती हैं।
यह व्रत प्रातः सूर्योदय से पूर्व ४ बजे से प्रारम्भ होकर रात्रि में चंद्र-दर्शन के
पश्चात ही संपूर्ण होता हैं। पंजाब तथा हरियाणा
में सूर्योदय से पूर्व सरगी के साथ इस व्रत का शुभारम्भ होता हैं। सरगी करवा चौथ
के दिवस सूर्योदय से पूर्व किया जाने वाला भोजन होता हैं। जो महिलाएँ इस दिवस व्रत
रखती हैं उनकी सासुमाँ उनके लिए सरगी बनाती हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में इस पर्व पर गौर माता की पूजा की जाती हैं।
गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गौ - माता के गोबर से बनाई जाती हैं।
आज हम आपको इस
विडियो के माध्यम से बताते हैं, कारवाँ
चौथ व्रत की पूजा का अत्यंत शुभ मुहूर्त तथा भारत के प्रत्येक प्रमुख नगरों में
करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय-
करवा चौथ के दिवस चंद्रमा उदय होने का समय प्रत्येक
महिलाओं के लिए अत्यंत विशेष महत्वपूर्ण होता हैं, क्योंकि वे अपने पति
की दिर्ध आयु के लिये सम्पूर्ण दिवस निर्जल व्रत रहती हैं तथा केवल उदित सम्पूर्ण चन्द्रमाँ
के दर्शन करने के पश्चात ही जल ग्रहण कर सकती हैं। यह मान्यता हैं कि, चन्द्रमाँ को देखे
बिना यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता हैं तथा कोई भी महिला कुछ भी खा नहीं सकती हैं ना
ही जल ग्रहण सकती कर हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूर्ण माना जाता हैं जब महिला उदित सम्पूर्ण
चन्द्रमाँ को एक छलनी में घी का दीपक रखकर देखती हैं तथा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर
अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं।
करवा चौथ व्रत
इस वर्ष, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्तूबर, मंगलवार की रात्रि 09 बजकर 30 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 01 नवंबर, बुधवार की रात्रि 09 बजकर 19 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2023
में करवा
चौथ का व्रत01 नवंबर, बुधवार के दिन किया जाएगा।
तथा यह व्रत प्रातः
06:33 से साँय 20:16 तक रखना चाहिए।
करवा चौथ के व्रत की पूजा का
शुभ मुहूर्त 01 नवंबर, बुधवार की साँय 05 बजकर 38 मिनट से 06 बजकर 54 मिनट तक का रहेगा।
करवा चौथ पर चन्द्रमा मॄगशिरा नक्षत्र
तथा मिथुन राशि में रहेंगे।जिसका कारक बुध ग्रह होता है, जो की पति-पत्नी के
मध्य अटूट प्रेम का कारक है।
करवाचौथ के दिवस चन्द्रमाँ का
उदय भारतवर्ष में 08 बजकर 16 मिनट पर होने का अनुमान हैं। तथा आपके
नगर में करवा चौथ पर चन्द्रोदय का अनुमानित समय कुछ इस प्रकार से हैं -
भारत के प्रमुख
नगरों में करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय इस प्रकार रहेगा।
अहमदाबाद
- 08:35 पर चंद्रोदय होगा।
दिल्ली
- 08:10 पर चंद्रोदय होगा।
लखनऊ
- 07:58 पर चंद्रोदय होगा।
कोलकाता
- 07:34 पर चंद्रोदय होगा।
मुंबई
- 08:42 पर चंद्रोदय होगा।
जयपुर
- 08:19 पर चंद्रोदय होगा।
बैंगलोर
- 08.31 पर चंद्रोदय होगा।
चेन्नई
- 08:22 पर चंद्रोदय होगा।
वाराणसी
– 07:54 पर चंद्रोदय होगा।
नडियाद - 9:03 पर चंद्रोदय होगा।
गाज़ियाबाद
- 08:09 पर चंद्रोदय होगा।
गुरुग्राम
- 08:11 पर चंद्रोदय होगा।
फरीदाबाद
- 08:10 पर चंद्रोदय होगा।
मेरठ
- 08:08 पर चंद्रोदय होगा।
रोहतक
- 08:09 पर चंद्रोदय होगा।
करनाल
- 08:09 पर चंद्रोदय होगा।
हिसार
- 08:15 पर चंद्रोदय होगा।
सोनीपत
- 08:10 पर चंद्रोदय होगा।
कुरुक्षेत्र
- 08:10 पर चंद्रोदय होगा।
पानीपत
- 08:11 पर चंद्रोदय होगा।
चंडीगढ़
- 08:07 पर चंद्रोदय होगा।
अमृतसर
- 08:12 पर चंद्रोदय होगा।
अंबाला
- 08:10 पर चंद्रोदय होगा।
जालंधर
- 08:13 पर चंद्रोदय होगा।
पटियाला
- 08:11 पर चंद्रोदय होगा।
लुधियाना
- 08:11 पर चंद्रोदय होगा।
जम्मू
- 08:14 पर चंद्रोदय होगा।
पंचकूला
- 08:07 पर चंद्रोदय होगा।
देहरादून
- 08:04 पर चंद्रोदय होगा।
शिमला
- 08:06 पर चंद्रोदय होगा।
इंदौर
- 08:24 पर चंद्रोदय होगा।
ग्वालियर
- 08:10 पर चंद्रोदय होगा।
कानपुर
- 08:02 पर चंद्रोदय होगा।
प्रयागराज
– 07:57 पर चंद्रोदय होगा।
उदयपुर
- 08:29 पर चंद्रोदय होगा।
अजमेर
- 08:24 पर चंद्रोदय होगा।
जोधपुर
- 08:31 पर चंद्रोदय होगा।
पटना
- 07:44 पर चंद्रोदय होगा।
In the major cities of India, the time of moonrise on Karva Chauth Vrat
2023 will be like this: -
Ahmedabad - Moonrise will be at 08:35 hrs.
Delhi - Moonrise will be at 08:10 hrs.
Lucknow - Moonrise will be at 07:58 hrs.
Kolkata - Moonrise will be at 07:34 hrs.
Mumbai - Moonrise will be at 08:42 hrs.
Jaipur - Moonrise will be at 08:19 hrs.
Bangalore - Moonrise will be at 08.31 hrs.
Chennai - Moonrise will be at 08:22 hrs.
Varanasi – Moonrise will be at 07:54 hrs.
Nadiad - Moonrise will be at 9:03 hrs.
Ghaziabad - Moonrise will be at 08:09 hrs.
Gurugram - Moonrise will be at 08:11 hrs.
Faridabad - Moonrise will be at 08:10 hrs.
Meerut - Moonrise will be at 08:08 hrs.
Rohtak - Moonrise will be at 08:09 hrs.
Karnal - Moonrise will be at 08:09 hrs.
Hisar - Moonrise will be at 08:15 hrs.
Sonipat - Moonrise will be at 08:10 hrs.
Kurukshetra – Moonrise will be at 08:10 hrs.
Panipat - Moonrise will be at 08:11 hrs.
Chandigarh - Moonrise will be at 08:07 hrs.
Amritsar - Moonrise will be at 08:12 hrs.
Ambala - Moonrise will be at 08:10 hrs.
Jalandhar - Moonrise will be at 08:13 hrs.
Patiala - Moonrise will be at 08:11 hrs.
Ludhiana - Moonrise will be at 08:11 hrs.
Jammu - Moonrise will be at 08:14 hrs.
Panchkula - Moonrise will be at 08:07 hrs.
Dehradun - Moonrise will be at 08:04 hrs.
Shimla - Moonrise will be at 08:06 hrs.
Indore - Moonrise will be at 08:24 hrs.
Gwalior - Moonrise will be at 08:10 hrs.
Kanpur - Moonrise will be at 08:02 hrs.
Prayagraj – Moonrise will be at 07:57 hrs.
Udaipur - Moonrise will be at 08:29 hrs.
Ajmer - Moonrise will be at 08:24 hrs.
Jodhpur - Moonrise will be at 08:31 hrs.
Patna - Moonrise will be at 07:44 hrs.
यदि
करवा चौथ के संदर्भ में आपका कोई प्रश्न हैं या आप इस व्रत की अन्य जानकारी चाहते
हैं, तो कृपया नीचे टिप्पणी कीजिए।
जिनका शरीर कपूर के समान गोरा हैं, जो करुणा के
अवतार हैं, जो शिव संसार के सार अर्थात मूल हैं। तथा जो महादेव सर्पराज को गले के हार के
रूप में धारण करते हैं, ऐसे सदैव प्रसन्न रहने वाले भगवान शिव को मैं अपने
हृदय कमल में शिव तथा पार्वती के साथ नमस्कार करता हूँ।
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी-प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा आदि
जैसे अनेक व्रत तथा उपवास किए जाते हैं। किन्तु चातुर्मास को व्रतों के लिए अत्यंत
महत्वपूर्ण माना गया हैं। चातुर्मास का समय 4 मास की अवधि में होता हैं, जो की आषाढ़
शुक्ल एकादशी अर्थात ‘देवशयनी एकादशी’ से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी अर्थात ‘प्रबोधिनी एकादशी’ तक चलता हैं। चातुर्मास के चार मास इस
प्रकार हैं:- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन तथा कार्तिक।
चातुर्मास के प्रथम मास को ही श्रावण मास कहा जाता हैं।
श्रावण शब्द, श्रवण से बना हैं जिसका अर्थ होता हैं
सुनना, अर्थात सुनकर धर्म को समझना। वेदों के ज्ञान
को ईश्वर से सुनकर ही ऋषियों ने समस्त प्राणियों को सुनाया था। सावन का महीना
भक्तिभाव तथा सत्संग के लिए विशेष होता हैं। सावन के मास में विशेष रूप से भगवान
शिव, माता पार्वती तथा श्री कृष्णजी की पूजा-अर्चना की जाती हैं। भगवान शिव का
आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण सावन के मास को अत्यंत शुभ व फलदायक माना
जाता हैं। अतः भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु समस्त भक्तगण श्रावण मास के दौरान
विभिन्न प्रकार से व्रत तथा उपवास रखते हैं।
श्रावण मास के दौरान समस्त उत्तरी भारत के राज्यों
में सोमवार का व्रत अत्यंत शुभ माना जाता हैं। कई भक्त सावन मास के प्रथम सोमवार के
दिन से ही सोलह सोमवार उपवास का प्रारम्भ करते हैं। श्रावण मास में प्रत्येक मंगलवार
भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती माँ को समर्पित होते हैं। श्रावण मास के दौरान
मंगलवार का उपवास मंगल-गौरी व्रत के रूप में जाना जाता हैं।
वैसे तो प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की उपासना के
लिये उपयुक्त माना जाता हैं किन्तु सावन के सोमवार का महत्व अधिक माना गया हैं। श्रावण
के सोमवार व्रत की पूजा भी अन्य सोमवार व्रत के अनुसार की जाती हैं। इस व्रत में
केवल एकाहार अर्थात एक समय भोजन ग्रहण करने का संकल्प लिया जाता हैं। भगवान
भोलेनाथ तथा माता पार्वती जी की धूप, दीप, जल, पुष्प आदि से पूजा करने का विधान हैं। शिव
पूजा के लिये सामग्री में उनकी प्रिय वस्तुएं भांग, धतूरा आदि भी रख सकते हैं। सावन के प्रत्येक
सोमवार भगवान शिव को जल अवश्य अर्पित करना चाहिये। रात्रि में भूमि पर आसन बिछा कर
शयन करना चाहिये। सावन के पहले सोमवार से आरंभ कर 9 या 16 सोमवार तक लगातार उपवास करना चाहिये तथा
उसके पश्चात 9वें या 16वें सोमवार पर व्रत का उद्यापन अर्थात पारण किया जाता हैं। यदि लगातार 9 या 16 सोमवार तक उपवास
करना संभव न हो तो आप केवल सावन के चार सोमवार इस व्रत को कर सकते हैं।
सावन के सोमवार का व्रत 2023
इस वर्ष, श्रावण सोमवार का व्रत कब से प्रारम्भ हैं तथा कब तक किया जाएगा?
भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में चंद्र पंचांग के
आधार पर श्रावण मास के प्रारम्भ के समय में पंद्रह दिनों का अंतर आ जाता हैं।
पूर्णिमांत पंचांग मेंश्रावण मास अमांत पंचांग से पंद्रह दिन पहले
प्रारम्भ हो जाता हैं। अमांत चंद्र पंचांग का प्रयोग गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, कर्नाटक तथा
तमिलनाडु मेंकिया जाता हैं, वहीं पूर्णिमांत चंद्र पंचांग का उपयोग उत्तरी भारत
के राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, बिहार तथा झारखंड में किया जाता हैं। साथ ही, नेपाल तथा उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों मेंतो सावन के सोमवार को
सौर पंचांग के अनुसार मनाया जाता हैं। अतः सावन सोमवार की आधी तारीखें दोनों पंचांग
में भिन्न-भिन्न होती हैं।
सावन (श्रावण) सोमवार
व्रत कब से कब तक 2023
उत्तर भारत- उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, बिहार तथा झारखण्ड के लिए सावन के सोमवार का
व्रत
श्रावण प्रारम्भ (उत्तर भारत) 04 जुलाई, मंगलवार प्रथम श्रावण सोमवार व्रत 10 जुलाई, सोमवार द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत 17 जुलाई, सोमवार श्रावण अधिक मास प्रारम्भ 18 जुलाई, मंगलवार श्रावण अधिक प्रथम सोमवार व्रत 24 जुलाई, सोमवार श्रावण अधिक द्वितीय सोमवार व्रत 31 जुलाई, सोमवार श्रावण अधिक तृतीय सोमवार व्रत 07 अगस्त, सोमवार श्रावण अधिक चतुर्थ सोमवार व्रत 14 अगस्त, सोमवार श्रावण अधिक मास समाप्त 16 अगस्त, बुधवार तृतीय श्रावण सोमवार व्रत 21 अगस्त, सोमवार चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत 28 अगस्त, सोमवार श्रावण समाप्त (उत्तर भारत) 31 अगस्त, बृहस्पतिवार श्रावण समाप्त
सावन सोमवार व्रत 2023
गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के लिए सावन के सोमवार
का व्रत
श्रावण प्रारम्भ (दक्षिण भारत) 18 जुलाई, मंगलवार श्रावण अधिक प्रथम सोमवार व्रत 24 जुलाई, सोमवार श्रावण अधिक द्वितीय सोमवार व्रत 31 जुलाई, सोमवार श्रावण अधिक तृतीय सोमवार व्रत 07 अगस्त, सोमवार श्रावण अधिक चतुर्थ सोमवार व्रत 17 अगस्त, सोमवार श्रावण अधिक मास समाप्त 16 अगस्त, बुधवार प्रथम श्रावण सोमवार व्रत 21 अगस्त, सोमवार द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत 28 अगस्त, सोमवार तृतीय श्रावण सोमवार व्रत 04 सितम्बर, सोमवार चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत 11 सितम्बर, सोमवार श्रावण समाप्त (दक्षिण भारत) 15 सितम्बर, शुक्रवार