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17 June 2024

निर्जला एकादशी कब है 2024 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2024

🕉🌷 निर्जला एकादशी कब है 2024 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2024🔱

nirjala ekadashi vrat kab hai 2024
Nirjala Ekadashi Vrat 

 ।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।

        वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निर्जल एवं निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसमें व्रत रखकर संपूर्ण वर्ष की सभी एकादशियों जितना पुण्य कमाया जा सकता है। यह है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी तथा भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं अनेक रोगों की निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में वृद्घि होती है। जो श्रद्धालु वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है, उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से अन्य सभी एकादशियों का लाभ प्राप्त हो जाता हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पूजा तथा दान करने से जातक, जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत मई अथवा जून के महीने में होता है। यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला तथा मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है।

             एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।

 


ध्यान रहे,

१.            एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।      

२.            यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही होता है।

३.            द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

४.            एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५.            व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।

६.            व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७.            जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है।

८.            यदि, कुछ कारणों की वजह से जातक प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 


निर्जला एकादशी व्रत 2024

इस वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून, सोमवार की प्रातः 04 बजकर 43 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 18 जून, मंगलवार की प्रातः 06 बजकर 24 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2024 में निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून, मंगलवार के दिवस किया जाएगा।

 

इस वर्ष, निर्जला एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 19 जून, बुधवार की प्रातः 05 बजकर 44 मिनिट से 07 बजकर 27 मिनिट तक का रहेगा।

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - प्रातः 07:27

19 June 2021

निर्जला एकादशी कब है 2021 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2021

निर्जला एकादशी कब है 2021 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2021

 

nirjala ekadashi kab hai
Nirjala Ekadashi 

वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं, चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसका व्रत रखकर संपूर्ण वर्ष की प्रत्येक एकादशियों जितना पुण्य कमाया जा सकता हैं। अतः ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के शुभ दिवस निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता हैं। बिना जल ग्रहण किए करें गए व्रत को “निर्जला व्रत” कहते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत किस भी प्रकार के आहार या जल के बिना ही किया जाता हैं। अतः उपवास के कठोर नियमों के कारण प्रत्येक एकादशी के व्रतों में निर्जला एकादशी का व्रत करना अति कठिन माना गया हैं। निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इस व्रत को पाण्डव एकादशी तथा भीम एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं।

पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां व्रती की प्रत्येक मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं वहीं अनेकानेक रोगों से भी निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में अति वृद्धि होती हैं। जो श्रद्धालु वर्ष की प्रत्येक चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं हैं, तो उन्हें केवल एक निर्जला एकादशी उपवास अवश्य करना चाहिए, क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से अन्य प्रत्येक एकादशियों का लाभ स्वतः ही व्रती को प्राप्त हो जाता हैं, साथ ही, व्रत के प्रभाव से व्रती की कीर्ति, पुण्य तथा धन में अभिवृद्धि होती हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को सम्पूर्ण यत्न तथा पूर्ण श्रद्धा के साथ इस व्रत को अवश्य करना चाहिये।

निर्जला एकादशी व्रत को करते समय व्रती भोजन ही नहीं किन्तु जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। इस प्रकार यह व्रत हमारे अन्तर्मन में जल संरक्षण की भावना को भी उजागर करता हैं। मान्यता यह भी हैं कि, इस दिवस व्रत रखने, पूजा तथा दान आदि करने से जातक जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता हैं तथा व्रती के प्रत्येक प्रकार के पाप-कर्मो का नाश हो जाता हैं। निर्जला एकादशी के शुभ दिवस भगवान विष्णु जी के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती हैं तथा कैरी का सागार लिया जाता हैं, साथ ही, एकादशी व्रत के सम्पूर्ण समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिये।

 

निर्जला एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 जून, रविवार की साँय 04 बजकर 21 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 21 जून, सोमवार की दोपहर 01 बजकर 31 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2021 में निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून, सोमवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, निर्जला एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 22 जून, मंगलवार की प्रातः 05 बजकर 58 मिनिट से 08 बजकर 36 मिनिट तक का रहेगा।

द्वादशी समाप्त होने का समय - 10:22


06 February 2021

षटतिला एकादशी कब है 2021 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Shattila Ekadashi 2021

षटतिला एकादशी कब है 2021 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Shattila Ekadashi 2021 

shattila ekadashi vrat
shattila ekadashi vrat 

वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसके व्रत के दिन “तिल” का विशेष रूप से छ: प्रकार से उपयोग किया जाता हैं। जो की इस प्रकार हैं-

1- तिल से स्नान करना

2- तिल का उबटन लगाना

3- तिल से हवन करना

4- तिल से तर्पण करना

5- तिल का भोजन करना तथा

6- तिलों का दान करना

इस प्रकार, तिलों का छह प्रकार से उपयोग करने के कारण माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता हैं। अपने नाम के अनुसार यह व्रत तिलों से जुडा हुआ हैं, तिल का महत्व सर्वव्यापक हैं तथा हिन्दु धर्म में तिल अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। पूजा में भी तिल का विशेष महत्व होता हैं। माघ मास में शरद ऋतु अपने चरम पर होती हैं तथा यह मास के अंत के साथ ही सर्दियाँ जाने लगती हैं। इस मौसम में तिलों का व्यवहार अत्यंत बढ़ जाता हैं क्योंकि तिल का सेवन सर्दियों में अत्यंत लाभदायक रहता हैं। अतः स्नान, दान, तर्पण, आहार आदि में तिलों का विशेष महत्व होता हैं। जो जातक इस एकादशी का व्रत करता हैं, उसे यथासंभव तिलों से भरा घडा़, लोटा, या गिलास उचित ब्राह्मण को दान करना चाहिए। ऐसी मान्यता हैं की, इस एकदशी के दिन जातक जितने तिलों का दान करेगा उतने ही हज़ार वर्ष तक वह स्वर्गलोक का अधिकारी रहेगा।

 

षटतिला एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 07 फरवरी, रविवार की प्रातः 06 बजकर 26 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 08 फरवरी, सोमवार की प्रातः 04 बजकर 47 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2021 में षटतिला एकादशी का व्रत 07 फरवरी, रविवार के दिन किया जाएगा।

साथ ही, वैष्णव एकादशी का व्रत 08 फरवरी, सोमवार के दिवस किया जाएगा।

 

इस वर्ष, षटतिला एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 08 फरवरी, सोमवार की दोपहर 01 बजकर 51 मिनिट से 04 बजकर 02 मिनिट तक का रहेगा।

हरि वासर समाप्त होने का समय - प्रातः 10 बजकर 25 मिनिट का रहेगा।

 साथ ही, वैष्णव एकादशी का व्रत का पारण 9 फरवरी, मंगलवार की प्रातः 07 बजकर 04 मिनिट से 09 बजकर 18 मिनिट तक का रहेगा।

26 September 2020

पद्मिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Padmini Kamla Ekadashi 2020

पद्मिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Padmini Kamla Ekadashi 2020

padmini ekadashi kab hai 2020
padmini ekadashi kab hai

वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जो की, अधिक मास के शुक्ल पक्ष में आती है, अतः मलमास में मनाई जाने वाली इस एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहा जाता हैं, इस परम पुण्यदायिनी एकादशी को कमला या पुरुषोत्तमी एकादशी के नाम से भी कहा जाता हैं। सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है, उस पर निर्भर करता है। अतः पद्मिनी एकादशी का उपवास करने हेतु, कोई चन्द्र मास निर्धारित नहीं है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास या लीप का महीना भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत भगवान श्री हरी विष्णु जी को अति प्रिय है, अतः इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला व्रती जीवनपर्यंत सुख का भोग कर के मरणोपरांत विष्णु लोक को जाता है तथा प्रत्येक प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्या का फल प्राप्त करता है। पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम स्वरूप की पूजा की जाती हैं। इस दिन तिल तथा गुड़ का सागार लेना चाहिए।

 

पद्मिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 26 सितम्बर, शनिवार की साँय 06 बजकर 59 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 27 सितम्बर, रविवार की साँय 07 बजकर 46 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में पद्मिनी अर्थात कमला एकादशी का व्रत 27 सितम्बर, रविवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, पद्मिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 28 सितम्बर, सोमवार की प्रातः 06 बजकर 16 मिनिट से 08 बजकर 40 मिनिट तक का रहेगा।

द्वादशी समाप्त होने का समय - 08:58


12 September 2020

इन्दिरा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Indira Ekadashi 2020

इन्दिरा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Indira Ekadashi 2020

indira ekadashi date
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वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता है तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती है। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना जाता है। भगवानजी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती है, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, एवं रात्री जागरण करते है। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जो की श्राद्ध पक्ष की एकादशी दिन आती है, तथा इस एकादशी के व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती हैं। यह पितरों को सद्गति देनेवाली एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। जो की, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है। इस एकादशी की महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिस कारण इसका महत्व अत्यंत अधिक हो जाता है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज़ जाने-अंजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमदेव के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं, तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है तथा मृत्यु के उपरांत व्रती भी बैकुण्ठ में निवास करता है।

 

इन्दिरा एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 13 सितम्बर, रविवार की प्रातः 04 बजकर 13 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 14 सितम्बर, सोमवार की प्रातः 03 बजकर 16 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में इन्दिरा एकादशी का व्रत 13 सितम्बर, रविवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, इन्दिरा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 14 सितम्बर, सोमवार की दोपहर  01 बजकर 36 से सायं 04 बजकर 04 मिनिट तक का रहेगा।

हरि वासर समाप्त होने का समय - प्रातः 08:49 

01 May 2020

मोहिनी एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Mohini Ekadashi 2020

मोहिनी एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Mohini Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

mohini ekadashi 2020
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वैदिक विधान कहता हैं कि, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस के पावन व्रत को माता सीता की खोज के विकट समय पर भगवान श्रीराम जी ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने श्रद्धापूर्वक कर के अपने प्रत्येक दुखों से मुक्ति प्राप्त की थी। अतः वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक प्रत्येक प्रकार के मोह-माया से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता हैं। मान्यताओं के अनुसार हमारे द्वारा किये गये पाप कर्म के कारण ही हम अपने जीवन में मोह बंधन में बंध जाते हैं। अतः यह व्रत भूलोक के प्रत्येक व्यक्ति को मोह के बंधन तथा पापों से मुक्ति प्रदान करता हैं। जिसके कारण वह मृत्यु के पश्चात नरक की यातनाओं से छुटकारा पाकर प्रभु की शरण में चला जाता हैं। मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता यह भी हैं कि समुद्र मंथन के पश्चात अमृत पाने हेतु दानवों एवं देवताओं में विवाद कि स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। दानवों को देवताओं पर हाबी जानकार भगवान् श्रीविष्णु जी ने अत्यंत सुन्दर स्त्री का स्वरूप धारण कर दानवों को मोहित किया तथा उनसे कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पीला दिया था। अमृत पीकर देवता अमर हो गये। अतः यह एकादशी वह दिन हैं, जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में प्रकट हुए थे, इस प्रकार भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा भी मोहिनी एकादशी के दिन की जाती हैं। मोहिनी एकादशी प्रत्येक पापों को हरनेवाली तथा उत्तम मानी गई हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोह-माया के जाल तथा पातक समूह से छुटकारा पाते हैं, तथा अंत में विष्णु-लोक को जाते हैं।

मोहिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ति करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की प्रथम एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।


इस वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 03 मई, रविवार के दिन 09 बजकर 08 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 04 मई, सोमवार की प्रातः 06 बजकर 12 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2020 में मोहिनी एकादशी का व्रत 03 मई, रविवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, मोहिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 04 मई, सोमवार की दोपहर 01 बजकर 48 मिनिट से साँय 04 बजकर 16 मिनिट तक का रहेगा।
हरि वासर समाप्त होने का समय – 11:22

वैष्णव (गौण) मोहिनी एकादशी - 04 मई 2020, सोमवार

दूजी (वैष्णव) एकादशी के लिए पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय 05 मई 2020, मंगलवार की प्रातः 05:56 से 08:32
द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त


वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी?

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पौराणिक मान्यता के अनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान श्रीविष्णु जी ने सुमुद्र मंथन के समय प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के पश्चात देवताओं तथा दानवो में विवाद उत्पन्न हो गया था। बल से देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे अतः चतुर छल से भगवान विष्णु जी ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया तथा सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही यह समस्त घटनाक्रम हुआ अतः इस एकादशी को मोहिनी एकादशी का नाम प्रदान हुआ।

मोहिनी एकादशी का व्रत कब किया जाता हैं?

सनातन हिन्दू पंचाङ्ग के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत सम्पूर्ण भारत-वर्ष में अक्षय तृतीया के पर्व के पश्चात वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन किया जाता हैं। साथ ही, अङ्ग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह व्रत अप्रैल या मई के महीने में आता हैं।

17 March 2020

पापमोचनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Papmochani Ekadashi 2020


पापमोचनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Papmochani Ekadashi 2020 #EkadashiVrat


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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस एकादशी का व्रत साधक को उसके प्रत्येक पापों से मुक्त कर, उसके लिये मोक्ष के मार्ग खोल देती हैं। अतः चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर किया जाने वाला व्रत पाप मोचनी एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णुजी के चतुर्भुज रूप का पूजन सम्पूर्ण विधि-विधान के अनुसार करने पर व्रत के शुभ फलों में अति वृद्धि होती हैं। पापमोचनी एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन करने मात्र से समस्त पाप एवं संकट नष्ट हो जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तिथि मानी गई हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्णजी ने इसके फल एवं महत्व को कुंतीपुत्र के समक्ष प्रस्तुत किया था। पापमोचनी एकादशी का अर्थ पाप को नष्ट करने वाली एकादशी होता हैं। अतः पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से मनुष्य के प्रत्येक पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण तथा पठन मात्र से एक हजार गौदान करने का फल प्राप्त होता हैं। इस पावन व्रत को निष्ठापूर्वक  करने से ब्रह्महत्या करने वाले, अगम्या गमन करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले, मद्यपान करने वाले जैसे अनेक भयंकर पाप भी नष्ट किए जा सकते हैं तथा अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती हैं।

पापमोचनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।


इस वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 19 मार्च, गुरुवार की प्रातः 04 बजकर 25 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 20 मार्च, शुक्रवार की प्रातः 05 बजकर 58 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2020 में पापमोचनी एकादशी का व्रत 19 मार्च, गुरुवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, पापमोचनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 20 मार्च, शुक्रवार की दोपहर 01 बजकर 47 मिनिट से साँय 04 बजकर 09 मिनिट तक का रहेगा।
हरि वासर समाप्त होने का समय – 12:28

वैष्णव पापमोचिनी एकादशी - 20 मार्च 2020, शुक्रवार

वैष्णव एकादशी के लिए पारण - 06:33 से 07:55
वैष्णव हरि वासर समाप्त होने का समय – 07:55