04 November 2021

दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त समय 2021 Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat Time

दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त समय 2021 Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat Time 

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ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे
विष्णु पत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् ॥
 
शुभम करोति कल्याणम
अरोग्यम धन संपदा
शत्रु-बुद्धि विनाशायः
दीपःज्योति नमोस्तुते ॥
 
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अनुवाद:- असत्य से सत्य की ओर
अंधकार से प्रकाश की ओर
मृत्यु से अमरता की ओर हमें ले जाओ।
ॐ शांति शांति शांति।।
 
आप सभी को सपरिवार दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपके जीवन को दीपावली का दीपोत्सव सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति तथा अपार खुशियों की रोशनी से जग-मग करें।
लक्ष्मी बीज मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥
Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah
 
ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।।
Om Shreeng Mahalaxmaye Namah।।
 
दिवाली का पर्व सनातन हिन्दू धर्म का सर्वाधिक पवित्र तथा प्रसिद्ध त्योहार है, तथा इस पर्व को दिपावली, लक्ष्मी पूजा, अमावस्या लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, बंगाल की काली पूजा, दिवाली स्नान, दिवाली देवपूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा तथा दिवाली पूजा के नाम से जाना जाता है। दिवाली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।
        जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर गतिमान बनाने वाला यह त्यौहार सम्पूर्ण भारतवर्ष के साथ-साथ संपूर्ण जगत में अत्यंत उत्साह एवं धूमधाम से मनाया जाता हैं। दीपावली के त्यौहार की तैयारी प्रत्येक व्यक्ति कई दिन पूर्व ही आरंभ कर देते हैं, जिसका प्रारम्भ घर को स्वच्छ तथा पवित्र करने से किया जाता हैं, क्योंकि, दिवाली के दिवस शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की विधि-पूर्वक पूजा की जाती हैं, तथा माँ लक्ष्मीजी वही निवास करती हैं जहाँ स्वच्छता होती हैं।
        दिवाली के दिवस भगवान श्री गणेश जी तथा माता लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए उपयुक्त समय प्रदोष काल का माना जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के पश्चात प्रारम्भ होता है तथा लगभग २ घण्टे २२ मिनट तक व्याप्त रहता है। धर्मसिंधु ग्रंथ के अनुसार श्री महालक्ष्मी पूजन हेतु शुभ समय प्रदोष काल से प्रारम्भ हो कर अर्ध-रात्रि तक व्याप्त रहने वाली अमावस्या तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। अतः प्रदोष काल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अतः प्रदोष के समय व्याप्त पूर्ण अमावस्या तिथि दिवाली की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है।
 

अतः हम आपको बताएंगे दिवाली की पूजा करने के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त-

इस वर्ष, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 04 नवम्बर, गुरुवार की प्रातः 06 बजकर 03 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 05 नवम्बर, शुक्रवार की प्रातः 02 बजकर 44 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
 
अतः इस वर्ष 2021 में, दिवाली पूजा का त्योहार 04 नवम्बर, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा।
 
        इस वर्ष, दिवाली की पूजा का शुभ मुहूर्त, 04 नवम्बर, गुरुवार की साँय 06 बजकर 26 से रात्रि 08 बजकर 21 मिनिट तक का रहेगा।
        इस दिवस दिवाली, नरक चतुर्दशी, तमिल दीपावली, दीवाली स्नान, लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, दीवाली देव पूजा, शारदा पूजा तथा काली पूजा की जाएगी।
 
हमारे द्वारा बताए गए इस प्रदोष काल तथा स्थिर लग्न के सम्मिलित शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन तथा स्वास्थ्य का लाभ होता है तथा व्यक्ति के व्यापार तथा आय में अति वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो माँ लक्ष्मीजी घर में सदा के लिए वास करते है। अतः लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।
 
दीपावली के दिवस अन्य शुभ समय
04 नवम्बर, गुरुवार 2021
प्रदोष काल मुहूर्त - 17:47 से 20:20
वृषभ काल मुहूर्त - 18:24 से 20:22
अभिजित मुहूर्त - 11:48 से 12:33
चौघड़िया मुहूर्त - 16:23 से 17:57 शुभ तथा
17:57 से 19:23 अमृत
सूर्योदय - 06:34   सूर्यास्त - 17:47
चन्द्रोदय - 05:42  चन्द्रास्त - 17:32
राहुकाल - 13:24 से 14:59
 

भारत के अन्य प्रमुख शहरों में दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त

06:39 से 08:32 - पुणे                   06:09 से 08:04 - नई दिल्ली
06:21 से 08:10 - चेन्नई                 06:17 से 08:14 - जयपुर
06:22 से 08:14 - हैदराबाद             06:37 से 08:33 - नडियाद
05:43 से 07:38 - वाराणसी             06:10 से 08:05 - गुरुग्राम
06:07 से 08:01 - चण्डीगढ़            05:34 से 07:31 - कोलकाता
06:42 से 08:35 - मुम्बई                 06:32 से 08:21 - बेंगलुरु
06:37 से 08:33 - अहमदाबाद         06:08 से 08:04 - नोएडा
 

Auspicious time for Lakshmi Pujan on Deepawali in other major cities of India

06:39 to 08:32 - Pune               06:09 to 08:04 - New Delhi
06:21 to 08:10 - Chennai          06:17 to 08:14 - Jaipur
06:22 to 08:14 - Hyderabad      06:37 to 08:33 - Nadiad
05:43 to 07:38 - Varanasi         06:10 to 08:05 - Gurugram
06:07 to 08:01 - Chandigarh     05:34 to 07:31 - Kolkata
06:42 to 08:35 - Mumbai          06:32 to 08:21 - Bangalore
06:37 to 08:33 - Ahmedabad     06:08 to 08:04 - Noida
 

Other auspicious Times on the Day of Diwali 2021

04 November, Thursday 2021
Pradosh Kaal Muhurta - 17:47 to 20:20
Vrishabha Kaal Muhurta - 18:24 to 20:22
Abhijit Muhurta - 11:48 to 12:33
Choghadiya Muhurta - 16:23 to 17:57 auspicious and
17:57 to 19:23 Amrit
Sunrise - 06:34 Sunset - 17:47
Moonrise - 05:42 Moonset - 17:32
Rahu Kaal - 13:24 to 14:59

23 October 2021

करवा चौथ व्रत का शुभ मुहूर्त | Karwa Chauth ka Shubh Muhurat 2021 | Aaj Chand kitne baje niklega | Karva Chauth Vrat 2021

करवा चौथ व्रत का शुभ मुहूर्त | Karwa Chauth ka Shubh Muhurat 2021 | Aaj Chand kitne baje niklega | Karva Chauth Vrat 2021 

karwa chauth ka chand kitne baje niklega 2021
Karwa Chauth Shubh Muhurat

हे श्री गणेश भगवान्, हे माँ गौरी,

जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान प्राप्त हुआ,

वैसा ही वरदान संसार की प्रत्येक सुहागिनों को प्राप्त हो।

 

करवा चौथ सनातन हिन्दु धर्म का एक प्रमुख पर्व हैं। यह त्यौहार पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत-वर्ष में भिन्न-भिन्न विधि-विधान तथा भिन्न-भिन्न परंपराओं के साथ धूमधाम से मनाया जाता हैं। करवा चौथ को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ शरद पूर्णिमा से चौथे दिवस अर्थात कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के शुभ दिवस मनाया जाता हैं। वहीं गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में करवा चौथ आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता हैं। तथा अङ्ग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व अक्तूबर या नवंबर के महीने में आता है। करवा चौथ के व्रत में सम्पूर्ण शिव-परिवार अर्थात शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी तथा कार्तिकेय जी की विधिपूर्वक पूजा करने का विधान हैं। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहा जाता हैं, जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण किया जाता है, जल अर्पण करने को ही अर्घ्य देना कहते हैं।

करवा चौथ का पावन व्रत सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति की दिर्ध आयु तथा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं तथा अविवाहित कन्याएँ भी उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु करवा चौथ के दिवस निर्जला उपवास रखती हैं तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही अपने व्रत का पारण करती हैं। यह व्रत प्रातः सूर्योदय से पूर्व ४ बजे से प्रारम्भ होकर रात्रि में चंद्र-दर्शन के पश्चात ही संपूर्ण होता हैं। पंजाब तथा हरियाणा में सूर्योदय से पूर्व सरगी के साथ इस व्रत का शुभारम्भ होता हैं। सरगी करवा चौथ के दिवस सूर्योदय से पूर्व किया जाने वाला भोजन होता हैं। जो महिलाएँ इस दिवस व्रत रखती हैं उनकी सासुमाँ उनके लिए सरगी बनाती हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में इस पर्व पर गौर माता की पूजा की जाती हैं। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गौ - माता के गोबर से बनाई जाती हैं।

 

आज हम आपको इस विडियो के माध्यम से बताते हैं, कारवाँ चौथ व्रत की पूजा का अत्यंत शुभ मुहूर्त तथा भारत के प्रत्येक प्रमुख नगरों में करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय-

 

करवा चौथ के दिवस चंद्रमा उदय होने का समय प्रत्येक महिलाओं के लिए अत्यंत विशेष महत्वपूर्ण होता हैं, क्योंकि वे अपने पति की दिर्ध आयु के लिये सम्पूर्ण दिवस निर्जल व्रत रहती हैं तथा केवल उदित सम्पूर्ण चन्द्रमाँ के दर्शन करने के पश्चात ही जल ग्रहण कर सकती हैं। यह मान्यता हैं कि, चन्द्रमाँ को देखे बिना यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता हैं तथा कोई भी महिला कुछ भी खा नहीं सकती हैं ना ही जल ग्रहण सकती कर हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूर्ण माना जाता हैं जब महिला उदित सम्पूर्ण चन्द्रमाँ को एक छलनी में घी का दीपक रखकर देखती हैं तथा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं।

 

इस वर्ष, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 24 अक्तूबर, रविवार की प्रातः 03 बजकर 01 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 25 अक्तूबर, सोमवार की प्रातः 05 बजकर 43 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2021 में करवा चौथ का व्रत 24 अक्तूबर, रविवार के दिन किया जाएगा।

तथा यह व्रत प्रातः 06:28 से साँय 20:27 तक रखना चाहिए।

 

करवा चौथ के व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त 24 अक्तूबर, रविवार की साँय 05 बजकर 56 मिनट से 07 बजकर 08 मिनट तक का रहेगा।

करवा चौथ पर चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र तथा वृषभ राशि में रहेंगे। जिसका कारक शुक्र ग्रह होता है, जो की पति-पत्नी के मध्य अटूट प्रेम का कारक है।

 

करवाचौथ के दिवस चन्द्रमाँ का उदय भारतवर्ष में 08 बजकर 27 मिनट पर होने का अनुमान हैं। तथा आपके नगर में करवा चौथ पर चन्द्रोदय का अनुमानित समय कुछ इस प्रकार से हैं -

 

भारत के प्रमुख नगरों में करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय इस प्रकार रहेगा।

अहमदाबाद - 08:46 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

दिल्ली - 08:21 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

लखनऊ - 08:09 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

कोलकाता - 07:45 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

मुंबई - 08:53 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

जयपुर - 08:30 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

बैंगलोर - 08.42 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

चेन्नई - 08:33 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

वाराणसी - 08:05 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

नडियाद - 9:14 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

गाज़ियाबाद - 08:20 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

गुरुग्राम - 08:22 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

फरीदाबाद - 08:21 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

मेरठ - 08:19 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

रोहतक - 08:20 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

करनाल - 08:20 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

हिसार - 08:26 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

सोनीपत - 08:21 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

कुरुक्षेत्र - 08:20 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

पानीपत - 08:22 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

चंडीगढ़ - 08:18 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

अमृतसर - 08:23 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

अंबाला - 08:21 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

जालंधर - 08:24 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

पटियाला - 08:22 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

लुधियाना - 08:22 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

जम्मू - 08:25 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

पंचकूला - 08:18 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

देहरादून - 08:16 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

शिमला - 08:17 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

इंदौर - 08:35 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

ग्वालियर - 08:21 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

कानपुर - 08:13 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

प्रयागराज - 08:08 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

उदयपुर - 08:40 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

अजमेर - 08:35 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

जोधपुर - 08:42 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

पटना - 07:55 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

 

In the major cities of India, the time of moonrise on Karva Chauth Vrat 2021 will be like this:-

Ahmedabad - Moonrise at 08:46 mins.

Delhi - 08:21 mins.

Lucknow - 08:09 mins.

Kolkata - 07:45 mins.

Mumbai - 08:53 mins.

Jaipur - 08:30 mins.

Bangalore - 08.42 mins.

Chennai - 08:33 mins.

Varanasi - 08:05 mins.

Nadiad - 9:14 am.

Ghaziabad - 08:20 mins.

Gurugram - 08:22 mins.

Faridabad - 08:21 mins.

Meerut - 08:19 mins.

Rohtak - 08:20 mins.

Karnal - 08:20 mins.

Hisar - 08:26 mins.

Sonipat - 08:21 mins.

Kurukshetra - 08:20 mins.

Panipat - 08:22 minutes.

Chandigarh - 08:18 mins.

Amritsar - 08:23 mins.

Ambala - 08:21 mins.

Jalandhar - 08:24 mins.

Patiala - 08:22 mins.

Ludhiana - 08:22 mins.

Jammu - 08:25 mins.

Panchkula - 08:18 mins.

Dehradun - 08:16 mins.

Shimla - 08:17 minutes.

Indore - 08:35 mins.

Gwalior - 08:21 mins.

Kanpur - 08:13 mins.

Prayagraj - 08:08 mins.

Udaipur - 08:40 mins.

Ajmer - 08:35 mins.

Jodhpur - 08:42 mins.

Patna - 07:55 mins.

 

यदि करवा चौथ के संदर्भ में आपका कोई प्रश्न हैं या आप इस व्रत की अन्य जानकारी चाहते हैं, तो कृपया नीचे टिप्पणी कीजिए।

 

13 October 2021

शारदीय नवरात्रि उपवास कब खोले | नवरात्रि हवन मुहूर्त | कन्या पूजन कब करें | Navratri ka Paran kab hai | Shardiya Navratri Kanya Pujan 2021 नवरात्रि पारण का समय

शारदीय नवरात्रि उपवास कब खोले | नवरात्रि हवन मुहूर्त | कन्या पूजन कब करें | Navratri ka Paran kab hai | Shardiya Navratri Kanya Pujan 2021 नवरात्रि पारण का समय 

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Navratri ka Paran
नवरात्र सनातनी हिन्दुओं का सर्वाधिक पवित्र तथा प्रमुख त्यौहार हैं। नवरात्र की पूजा नौ दिनों तक होती हैं तथा इन नौ दिनों में माताजी के नौ भिन्न-भिन्न स्वरूपों की पूजा तथा आराधना पूर्ण भक्तिभाव से की जाती हैं। माताजी के नौ रूप इस प्रकार हैं- माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा माँ, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, माँ महागौरी तथा सिद्धिदात्रि माँ। प्रत्येक वर्ष में मुख्य दो बार नवरात्र आते हैं, तथा गुप्त नवरात्र भी आते हैं।
सम्पूर्ण उत्तरी भारत-वर्ष में शारदीय नवरात्र को अत्यंत श्रद्धा तथा विश्वास के साथ नौ दिनों तक व्रत कर के मनाया जाता हैं। शारदीय नवरात्र को प्रत्येक नवरात्रों में सर्वाधिक प्रमुख तथा महत्वपूर्ण माना जाता हैं। शारदीय नवरात्र से की वर्षा ऋतु समाप्त होती हैं तथा ठंडी के मौसम का प्रारम्भ होता हैं। अतः यह नवरात्र वह समय हैं, जब दो ऋतुओं का मिलन होता हैं। इस संधि काल में ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के स्वरूप में हम तक भूलोक पर पहुँचती हैं। अतः इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के स्वरूपों की साधना पूर्ण श्रद्धा से की जाती हैं। अतः नवरात्रों में माताजी का पूजन विधिवत् किया जाता हैं। देवी के पूजन करने की विधि दोनों ही नवरात्रों में लगभग एक समान ही रहती हैं। इस त्यौहार पर सुहागन या कन्या, सभी महिलाएं अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या सम्पूर्ण नौ दिनों तक का व्रत रखते हैं तथा दसवें दिन कन्या पूजन तथा हवन के पश्चात व्रत खोला जाता हैं अर्थात व्रत का पारण किया जाता हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्र का पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता हैं, किन्तु कभी-कभी तिथियों में बदलाव के कारण नवरात्र का पर्व कभी आठ दिनों तक, तो कभी-कभार दस दिनों तक भी मनाया जाता हैं। अपने संकल्प के अनुसार नौ दिन व्रत रहने वाली महिलाएं नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन तथा हवन करते हैं। नवमी के दिन सिद्धिदात्रि देवी की पूजा की जाती हैं तथा नवमी के दिन ही दुर्गा महा-पूजा भी की जाती हैं। नवमी के दिन पंडालों में विशेष पूजा आरती का आयोजन किया जाता हैं तथा भक्तजन अपने परिवार या समूह में विविध प्रकार के आयोजनों से भजन कीर्तन करते हैं। किन्तु, यह भी देखा गया हैं की, कुछ महिलाएं नवमी के दिन नवरात्रि के व्रत का पारण करती हैं तो कुछ नौ दिन तक व्रत रखने के पश्चात दशमी तिथि के दिवस शुभ मुहूर्त में पारण करती हैं।
इस वर्ष अष्टमी तथा नवमी तिथि 2 दोनों दिन व्याप्त हैं, जिस कारण आप प्रत्येक भक्तजनों के पास केवल सामान्य जानकारी तो हैं किन्तु पर्याप्त जानकारी का अभाव हैं की,
अष्टमी या नवमी का व्रत कब किया जाएगा?
कन्या पूजन कब किया जाएगा?
नवरात्रि का हवन कब करना चाहिए?
तथा
नवरात्रि व्रत का पारण कब करें?
अतः इस शंका का हम निवारण करते हैं।
 

नवरात्रि व्रत का पारण

अथ नवरात्रपारणानिर्णयः। सा च दशम्यां कार्या॥
                                -निर्णयसिन्धु
निर्णयसिन्धु, पौराणिक ग्रंथ के अनुसार, शारदीय नवरात्रि पारण तब किया जाना चाहिए जब नवमी तिथि समाप्त हो रही हो तथा दशमी तिथि प्रारम्भ हो रही हो। जैसा कि शास्त्रो में भी उल्लेख प्राप्त होता हैं की, शारदीय नवरात्रि उपवास प्रतिपदा से प्रारम्भ कर के नवमी तिथि तक रखना चाहिए तथा इस दिशा निर्देश का पालन करने हेतु शारदीय नवरात्रि का व्रत समूर्ण नवमी तिथि के दिन तक करना चाहिए।
 

नवरात्रि का पारण

इस वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 12 अक्तूबर, मंगलवार की प्रातः 09 बजकर 47 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 13 अक्तूबर, बुधवार की प्रातः 08 बजकर 07 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
 
इस वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 13 अक्तूबर, बुधवार की प्रातः 08 बजकर 07 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 14 अक्तूबर, गुरुवार की प्रातः 06 बजकर 52 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
 
शास्त्रोक्त नियम हैं की, जब नवमी दो तिथियों में हो तथा प्रथम तिथि के मध्याह्न में नवमी हो, तो व्रत या त्योहार उसी दिवस किया जाना चाहिए। किन्तु यदि नवमी दोनों दिनों के मध्याह्न में पड़ रही हो, या जब किसी भी दिन मध्याह्न को नवमी न हो, तो दशमी से युक्त नवमी में व्रत करना चाहिए।
अतः इस वर्ष, 14 अक्तूबर, गुरुवार के दिन मध्याह्न के समय नवमी तिथि रहेगी, किन्तु 15 अक्तूबर, शुक्रवार के दिन नवमी तिथि का क्षय प्रातः ही हो जाएगा। अतः इस वर्ष 2021 में नवरात्रि के दुर्गा अष्टमी, महागौरी पूजा एवं सन्धि पूजा 13 अक्तूबर, बुधवार दिन हैं। साथ ही, इस नवरात्रि के नवमी का व्रत 14 अक्तूबर, गुरुवार के दिन ही किया जाएगा तथा महा नवमी, आयुध पूजा तथा नवमी हवन भी 14 अक्तूबर, गुरुवार के दिन ही हैं। जो श्रद्धालु अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं, वे 13 अक्तूबर, बुधवार के दिन ही कर सकते हैं। नवरात्रि का व्रत सायाह्न हवन 14 अक्तूबर, गुरुवार की प्रातः 06 बजकर 24 से सायं 06 बजकर 01 मिनिट तक कर सकते है।
 

शारदीय नवरात्रि के दिव्य व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त  

इस वर्ष, 2021 में, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 14 अक्तूबर, गुरुवार की प्रातः 06 बजकर 52 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 15 अक्तूबर, शुक्रवार की प्रातः 06 बजकर 02 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
अतः शारदीय नवरात्रि के व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 15 अक्तूबर, शुक्रवार की प्रातः 06 बजकर 27 मिनिट के पश्चात का रहेगा।
 
विजयादशमी का पर्व भी 15 अक्तूबर, शुक्रवार के दिवस मनाया जाएगा।
विजयादशमी का विजय मुहूर्त, दोपहर 02 बजकर 09 मिनिट से 02 बजकर 52 मिनिट तक का रहेगा।
 
देवी दुर्गा माँ का विसर्जन भी 15 अक्तूबर 2021, शुक्रवार के शुभ दिवस ही किया जाएगा, जिसका दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त प्रातः 06:24 से 08:43 तक का रहेगा।
 

शारदीय नवरात्रि पारण के दिवस अन्य महत्वपूर्ण समय इस प्रकार हैं- 

21 August 2021

रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2021 Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai

 रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2021 Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai

raksha bandhan ka shubh muhurat kab hai 2021
Raksha Bandhan


प्रदोष काल का मुहूर्त

भद्रा पूँछ

भद्रा मुख

भद्रा अन्त समय

 

रक्षाबन्धन मन्त्रः (Raksha Bandhan Mantra)

येन बद्धो वली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।

तेन त्वा रक्षबध्नामी रक्षे माचल माचल ॥

Yen Baddho bali raja danvendro mahabal,

ten twam RakshBadhnami rakshe machalmachal.

The meaning of Raksha Mantra - "I tie you with the same Raksha thread which tied the most powerful, the king of courage, the king of demons, Bali. O Raksha (Raksha Sutra), please don't move and keep fixed throughout the year."

 

🌷 रक्षाबंधन 🌷

सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् ।

सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत्।।

 

🙏🏻 इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है ।इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्षभर मनुष्य रक्षित हो जाता हैं। (भविष्य पुराण)

 

रक्षाबंधन का पर्व सनातन भारतवर्ष में मनाये जाने वाले पवित्र तथा प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अतुल्य स्नेह के प्रतीक के स्वरूप में भक्ति एवं उत्साह के साथ मनाया जाता हैं, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं साथ ही अपने भाई की दिर्ध आयु के लिए प्रार्थना करती हैं तथा भाई अपनी बहनकी रक्षा करने का वचन देता हैं। हिंदुओ में रक्षाबंधन का पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ, धूमधाम से मनाया जाता हैं। साथ ही सिख, जैन, तथा लगभग सभी भारतीय समुदायों में यह पर्व बिना किसी रुकावट के तथा प्रेम-भाव के साथ मनाया जाता हैं। रक्षाबंधन के पर्व में रक्षा सूत्र अर्थात राखीका सबसे अधिक विशेष महत्व होता हैं। माना जाता हैं की राखीबहन का अपने भाई के प्रति स्नेह व आदर का प्रतीक होती हैं। रक्षाबंधन का त्योहार सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं जो की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर के महीने में आता हैं। रक्षा बंधन के ठीक आठ दिन के पश्चात भगवान् श्री कृष्ण का जन्मदिन अर्थात श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं।

रक्षाबंधन के शुभ दिवस पर प्रत्येक जातक को चाहिए की वह रक्षा सूत्र को भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष अर्पित कर 108 या उस से भी अधिक बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें या शिव के पंचाक्षरी तथा अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करें तथा उसके पश्चात ही रक्षा सूत्र को अपने भाईयों की कलाई पर बांधे। ऐसा करने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती हैं। क्योंकि श्रावण का पवित्र मास सम्पूर्ण प्रकार से भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता हैं।

 

रक्षाबन्धन का शुभ मुहूर्त 2021

इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 21 अगस्त, शनिवार की साँय 07 बजकर 01 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 22 अगस्त, रविवार की साँय 05 बजकर 31 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2021 में रक्षा-बंधन का पर्व 22 अगस्त, रविवार के शुभ दिवस मनाया जाएगा। 

 

इस वर्ष, रक्षाबंधन के त्योहार पर राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त 22 अगस्त, रविवार की दोपहर 01 बजकर 47 से साँय 04 बजकर 18 मिनिट तक का रहेगा।

 

यह भी ध्यान रहे की,

१.  रक्षा बन्धन के दिन भद्रा प्रातः 06 बजकर 16 मिनिट पर समाप्त हो जाने के कारण राखी बांधने का शुभ मुहूर्त प्रातः 06 बजकर 16 मिनिट से साँय 05 बजकर 31 मिनिट तक, अर्थात पूर्णिमा तिथि के समाप्ति तक का रहेगा।

२.  वैदिक मतानुसार अपराह्न का समय राखी बांधने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त माना गया हैं, जो कि हिन्दु समय गणना के अनुसार दोपहर के पश्चात का समय होता हैं।

३.  यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि के कारण उपयुक्त नहीं हैं तो, प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना गया हैं।

४.  हिन्दु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्यों हेतु भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये। अतः भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना गया हैं।

11 August 2021

नाग पंचमी कब है 2021 | NagPanchami 2021 | पूजन का शुभ मुहूर्त | Nag Panchami kab hai | नागपंचमी किस दिन है

नाग पंचमी कब है 2021 | NagPanchami 2021 | पूजन का शुभ मुहूर्त | Nag Panchami kab hai | नागपंचमी किस दिन है

nag panchami kab hai 2021
Nag Panchami


श्रीगणेशाय नमः ।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।

शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥ १॥

एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम् ।

सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः ॥ २॥

तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ३॥

॥ इति श्रीनवनागनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

 

मंत्र अनुवाद - नौ नाग देवता के नाम अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबाला, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक तथा कालिया हैं। यदि प्रतिदिन सुबह नियमित रूप से जप किया जाता हैं, तो आप सभी बुराइयों से सुरक्षित रहेंगे तथा आपको जीवन में विजयी बनाएंगे।

 

ॐ भुजंगेशाय विद्महे,

सर्पराजाय धीमहि,

तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।

 

हिन्दू धर्म में नागों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। त्रिदेवों में से एक भगवान भोलेनाथ के गले में स्थान पाने वाले नागों की विधिवत पूजा की जाती हैं। पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता हैं। नाग पंचमी का पर्व हरियाली तीज के दो दिन के पश्चात आता हैं तथा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नाग पंचमी जुलाई या अगस्त के महीने में आती हैं। गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में अमान्त पंचांग के अनुसार नाग पंचमी 15 दिनों के पश्चात अर्थात श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती हैं। नाग पंचमी को गुजरात में नाग पाचम के रूप में अधिक जाना जाता हैं तथा यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव से तीन दिन पूर्व मनाया जाता हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार इस दिन नागों की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएँ शीघ्र ही पूर्ण हो जाती हैं। शास्त्रीय विधान हैं कि जो भी व्यक्ति नाग पंचमी के दिन श्रद्धाभाव से नाग देवता की पुजा करता हैं, उस व्यक्ति तथा उसके परिवार को कभी भी सर्प का भय नहीं सताता। श्रावण मास के दौरान नाग देवता की पूजा करने के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता हैं। अतः नाग पंचमी पूजा के शुभ दिवस बारह नागों की पूजा की जाती हैं। नाग पंचमी के दिन नागों को कच्चा दूध अर्पित किया जाता हैं तथा परिवार के रक्षण की प्रार्थना भी की जाती हैं। कुछ जातक नाग पंचमी से एक दिन पूर्व व्रत रखते हैं जिसे नाग चतुर्थी या नागुल चविथी के रूप में जाना जाता हैं। मान्यता यह भी हैं कि नाग पंचमी के दिन नागदेव का दर्शन करना अत्यंत शुभ रहता हैं। भगवान शिव को नागो का देवता माना जाता हैं। कहा जाता हैं की भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप नाग देवता पृथ्वी को संतुलित करते हुए मानव जीवन की रक्षा करते हैं। अतः नाग पंचमी के दिन, नाग पूजन करने से भगवान शिवजी भी अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

 

नाग पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, 12 अगस्त, गुरुवार की दोपहर 03 बजकर 24 मिनिट से प्रारम्भ होकर, 13 अगस्त, शुक्रवार की दोपहर 01 बजकर 42 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2021 में नाग पंचमी का त्योहार 13 अगस्त, शुक्रवार के शुभ दिवस किया जाएगा।

 

नाग पंचमी पूजा के दिवस नाग पूजन करने का शुभ मुहूर्त, 13 अगस्त, शुक्रवार की प्रातः 05 बजकर 34 मिनिट से 08 बजकर 06 तक का रहेगा।

 

2021 नाग पंचमी

सावन माह के दौरान शुक्ल पक्ष पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता हैं। आमतौर पर नाग पंचमी का दिन हरियाली तीज के दो दिन बाद पड़ता हैं। वर्तमान में नाग पंचमी अंग्रेजी कैलेंडर में जुलाई तथा अगस्त के महीने में आती हैं। महिलाएं नाग देवता की पूजा करती हैं तथा इस दिन सांपों को दूध चढ़ाती हैं। महिलाएं अपने भाइयों तथा परिवार की सलामती की प्रार्थना भी करती हैं।

25 July 2021

सावन का महीना कब से शुरू हैं | श्रावण मास सोमवार व्रत कब से हैं 2021 | Sawan Kab se Start hai

सावन का महीना कब से शुरू हैं | श्रावण मास सोमवार व्रत कब से हैं 2021 | Sawan Kab se Start hai 

mahina somvar kab se start hai 2021
Sawan Kab se Start hai

करपूर गौरम करूणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम ।
सदा वसंतम हृदयारविंदे, भवम भवानी सहितं नमामि ॥

जिनका शरीर कपूर के समान गोरा हैं, जो करुणा के अवतार हैं, जो शिव संसार के सार अर्थात मूल हैं। तथा जो महादेव सर्पराज को गले के हार के रूप में धारण करते हैं, ऐसे सदैव प्रसन्न रहने वाले भगवान शिव को मैं अपने हृदय कमल में शिव तथा पार्वती के साथ नमस्कार करता हूँ।
 
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी-प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा आदि जैसे अनेक व्रत तथा उपवास किए जाते हैं। किन्तु चातुर्मास को व्रतों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। चातुर्मास का समय 4 मास की अवधि में होता हैं, जो की आषाढ़ शुक्ल एकादशी अर्थात देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी तक चलता हैं। चातुर्मास के चार मास इस प्रकार हैं:- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन तथा कार्तिक।
चातुर्मास के प्रथम मास को ही श्रावण मास कहा जाता हैं। श्रावण शब्द, श्रवण से बना हैं जिसका अर्थ होता हैं सुनना, अर्थात सुनकर धर्म को समझना। वेदों के ज्ञान को ईश्वर से सुनकर ही ऋषियों ने समस्त प्राणियों को सुनाया था। सावन का महीना भक्तिभाव तथा सत्संग के लिए विशेष होता हैं। सावन के मास में विशेष रूप से भगवान शिव, माता पार्वती तथा श्री कृष्णजी की पूजा-अर्चना की जाती हैं। भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण सावन के मास को अत्यंत शुभ व फलदायक माना जाता हैं। अतः भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु समस्त भक्तगण श्रावण मास के दौरान विभिन्न प्रकार से व्रत तथा उपवास रखते हैं।
श्रावण मास के दौरान समस्त उत्तरी भारत के राज्यों में सोमवार का व्रत अत्यंत शुभ माना जाता हैं। कई भक्त सावन मास के प्रथम सोमवार के दिन से ही सोलह सोमवार उपवास का प्रारम्भ करते हैं। श्रावण मास में प्रत्येक मंगलवार भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती माँ को समर्पित होते हैं। श्रावण मास के दौरान मंगलवार का उपवास मंगल-गौरी व्रत के रूप में जाना जाता हैं।
वैसे तो प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की उपासना के लिये उपयुक्त माना जाता हैं किन्तु सावन के सोमवार का महत्व अधिक माना गया हैं। श्रावण के सोमवार व्रत की पूजा भी अन्य सोमवार व्रत के अनुसार की जाती हैं। इस व्रत में केवल एकाहार अर्थात एक समय भोजन ग्रहण करने का संकल्प लिया जाता हैं। भगवान भोलेनाथ तथा माता पार्वती जी की धूप, दीप, जल, पुष्प आदि से पूजा करने का विधान हैं। शिव पूजा के लिये सामग्री में उनकी प्रिय वस्तुएं भांग, धतूरा आदि भी रख सकते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार भगवान शिव को जल अवश्य अर्पित करना चाहिये। रात्रि में भूमि पर आसन बिछा कर शयन करना चाहिये। सावन के पहले सोमवार से आरंभ कर 9 या 16 सोमवार तक लगातार उपवास करना चाहिये तथा उसके पश्चात 9वें या 16वें सोमवार पर व्रत का उद्यापन अर्थात पारण किया जाता हैं। यदि लगातार 9 या 16 सोमवार तक उपवास करना संभव न हो तो आप केवल सावन के चार सोमवार इस व्रत को कर सकते हैं।
 
सावन के सोमवार का व्रत 2021
इस वर्ष, श्रावण सोमवार का व्रत कब से प्रारम्भ हैं तथा कब तक किया जाएगा?
भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में चंद्र पंचांग के आधार पर श्रावण मास के प्रारम्भ के समय में पंद्रह दिनों का अंतर आ जाता हैं। पूर्णिमांत पंचांग में श्रावण मास अमांत पंचांग से पंद्रह दिन पहले प्रारम्भ हो जाता हैं। अमांत चंद्र पंचांग का प्रयोग गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, कर्नाटक तथा तमिलनाडु में किया जाता हैं, वहीं पूर्णिमांत चंद्र पंचांग का उपयोग उत्तरी भारत के राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, बिहार तथा झारखंड में किया जाता हैं। साथ ही, नेपाल तथा उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में तो सावन के सोमवार को सौर पंचांग के अनुसार मनाया जाता हैं। अतः सावन सोमवार की आधी तारीखें दोनों पंचांग में भिन्न-भिन्न होती हैं।
 

सावन सोमवार व्रत 2021

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, बिहार तथा झारखण्ड के लिए सावन के सोमवार का व्रत
 

श्रावण सोमवार व्रत 2021

 
श्रावण प्रारम्भ
25 जुलाई 2021
रविवार
 
प्रथम श्रावण सोमवार व्रत
26 जुलाई 2021
सोमवार
 
द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत
02 अगस्त 2021
सोमवार
 
तृतीय श्रावण सोमवार व्रत
09 अगस्त 2021
सोमवार
 
चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत
16 अगस्त 2021
सोमवार
 
श्रावण समाप्त
22 अगस्त 2021
रविवार
 
सावन सोमवार व्रत 2021
गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के लिए सावन के सोमवार का व्रत
 
श्रावण प्रारम्भ
09 अगस्त 2021
सोमवार
 
प्रथम श्रावण सोमवार व्रत
09 अगस्त 2021
सोमवार
 
द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत
16 अगस्त 2021
सोमवार
 
तृतीय श्रावण सोमवार व्रत
23 अगस्त 2021
सोमवार
 
चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत
30 अगस्त 2021
सोमवार
 
पंचम श्रावण सोमवार व्रत
06 सितम्बर 2021
सोमवार
 
श्रावण समाप्त
07 सितम्बर 2021
मंगलवार

04 July 2021

योगिनी एकादशी कब है 2021 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Yogini Ekadashi 2021

 योगिनी एकादशी कब है 2021 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Yogini Ekadashi 2021

yogini ekadashi kab hai 2021
 Yogini Ekadashi 


वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जिसका व्रत रखने से समस्त पाप-कर्मो का नाश हो जाता हैं तथा भूलोक पर परम-सुख तथा परलोक सिधारने पर मोक्ष प्रदान करता हैं। अतः असाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। योगिनी एकादशी व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समकक्ष फल प्रदान करता हैं। किसी भी श्राप से मुक्ति प्राप्त करने हेतु, यह व्रत कल्प-वृक्ष के समान हैं। योगिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से प्रत्येक प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति प्राप्त होती हैं। व्रती के जीवन में समृद्धि तथा आनन्द की प्राप्ति होती हैं।
भगवान श्री हरी विष्णुजी की कृपादृष्टि प्राप्त करने हेतु उनके प्रत्येक परम भक्तों को एकादशी व्रत करने का उपाय बताया जाता हैं। योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से, इस दिवस पूजा तथा दान आदि करने से जातक जीवन में प्रत्येक प्रकार के सुख का भोग करते हुए, अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता हैं तथा व्रती के प्रत्येक प्रकार के पाप-कर्मो का भी नाश हो जाता हैं। योगिनी एकादशी के शुभ दिवस भगवान विष्णु जी के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती हैं तथा मिश्री का सागार लिया जाता हैं, साथ ही, एकादशी व्रत के सम्पूर्ण समय ॐ नमो भगवते वासुदेवायमंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिये।
 

योगिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।
 
ध्यान रहे,
१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।
 
इस वर्ष, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 04 जुलाई, रविवार की रात्रि 07 बजकर 55 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 05 जुलाई, सोमवार की रात्रि 10 बजकर 31 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
 
अतः इस वर्ष 2021 में योगिनी एकादशी का व्रत 05 जुलाई, सोमवार के दिन किया जाएगा।
 
इस वर्ष, योगिनी एकादशी पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 06 जुलाई, मंगलवार की प्रातः 06 बजकर 02 से 08 बजकर 38 मिनिट तक रहेगा।
द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय - मध्यरात्रि 01:02 बजे