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04 November 2021

दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त समय 2021 Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat Time

दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त समय 2021 Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat Time 

lakshmi pujan shubh muhurat time
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ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे
विष्णु पत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् ॥
 
शुभम करोति कल्याणम
अरोग्यम धन संपदा
शत्रु-बुद्धि विनाशायः
दीपःज्योति नमोस्तुते ॥
 
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अनुवाद:- असत्य से सत्य की ओर
अंधकार से प्रकाश की ओर
मृत्यु से अमरता की ओर हमें ले जाओ।
ॐ शांति शांति शांति।।
 
आप सभी को सपरिवार दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपके जीवन को दीपावली का दीपोत्सव सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति तथा अपार खुशियों की रोशनी से जग-मग करें।
लक्ष्मी बीज मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥
Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah
 
ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।।
Om Shreeng Mahalaxmaye Namah।।
 
दिवाली का पर्व सनातन हिन्दू धर्म का सर्वाधिक पवित्र तथा प्रसिद्ध त्योहार है, तथा इस पर्व को दिपावली, लक्ष्मी पूजा, अमावस्या लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, बंगाल की काली पूजा, दिवाली स्नान, दिवाली देवपूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा तथा दिवाली पूजा के नाम से जाना जाता है। दिवाली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।
        जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर गतिमान बनाने वाला यह त्यौहार सम्पूर्ण भारतवर्ष के साथ-साथ संपूर्ण जगत में अत्यंत उत्साह एवं धूमधाम से मनाया जाता हैं। दीपावली के त्यौहार की तैयारी प्रत्येक व्यक्ति कई दिन पूर्व ही आरंभ कर देते हैं, जिसका प्रारम्भ घर को स्वच्छ तथा पवित्र करने से किया जाता हैं, क्योंकि, दिवाली के दिवस शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की विधि-पूर्वक पूजा की जाती हैं, तथा माँ लक्ष्मीजी वही निवास करती हैं जहाँ स्वच्छता होती हैं।
        दिवाली के दिवस भगवान श्री गणेश जी तथा माता लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए उपयुक्त समय प्रदोष काल का माना जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के पश्चात प्रारम्भ होता है तथा लगभग २ घण्टे २२ मिनट तक व्याप्त रहता है। धर्मसिंधु ग्रंथ के अनुसार श्री महालक्ष्मी पूजन हेतु शुभ समय प्रदोष काल से प्रारम्भ हो कर अर्ध-रात्रि तक व्याप्त रहने वाली अमावस्या तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। अतः प्रदोष काल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अतः प्रदोष के समय व्याप्त पूर्ण अमावस्या तिथि दिवाली की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है।
 

अतः हम आपको बताएंगे दिवाली की पूजा करने के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त-

इस वर्ष, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 04 नवम्बर, गुरुवार की प्रातः 06 बजकर 03 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 05 नवम्बर, शुक्रवार की प्रातः 02 बजकर 44 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
 
अतः इस वर्ष 2021 में, दिवाली पूजा का त्योहार 04 नवम्बर, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा।
 
        इस वर्ष, दिवाली की पूजा का शुभ मुहूर्त, 04 नवम्बर, गुरुवार की साँय 06 बजकर 26 से रात्रि 08 बजकर 21 मिनिट तक का रहेगा।
        इस दिवस दिवाली, नरक चतुर्दशी, तमिल दीपावली, दीवाली स्नान, लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, दीवाली देव पूजा, शारदा पूजा तथा काली पूजा की जाएगी।
 
हमारे द्वारा बताए गए इस प्रदोष काल तथा स्थिर लग्न के सम्मिलित शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन तथा स्वास्थ्य का लाभ होता है तथा व्यक्ति के व्यापार तथा आय में अति वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो माँ लक्ष्मीजी घर में सदा के लिए वास करते है। अतः लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।
 
दीपावली के दिवस अन्य शुभ समय
04 नवम्बर, गुरुवार 2021
प्रदोष काल मुहूर्त - 17:47 से 20:20
वृषभ काल मुहूर्त - 18:24 से 20:22
अभिजित मुहूर्त - 11:48 से 12:33
चौघड़िया मुहूर्त - 16:23 से 17:57 शुभ तथा
17:57 से 19:23 अमृत
सूर्योदय - 06:34   सूर्यास्त - 17:47
चन्द्रोदय - 05:42  चन्द्रास्त - 17:32
राहुकाल - 13:24 से 14:59
 

भारत के अन्य प्रमुख शहरों में दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त

06:39 से 08:32 - पुणे                   06:09 से 08:04 - नई दिल्ली
06:21 से 08:10 - चेन्नई                 06:17 से 08:14 - जयपुर
06:22 से 08:14 - हैदराबाद             06:37 से 08:33 - नडियाद
05:43 से 07:38 - वाराणसी             06:10 से 08:05 - गुरुग्राम
06:07 से 08:01 - चण्डीगढ़            05:34 से 07:31 - कोलकाता
06:42 से 08:35 - मुम्बई                 06:32 से 08:21 - बेंगलुरु
06:37 से 08:33 - अहमदाबाद         06:08 से 08:04 - नोएडा
 

Auspicious time for Lakshmi Pujan on Deepawali in other major cities of India

06:39 to 08:32 - Pune               06:09 to 08:04 - New Delhi
06:21 to 08:10 - Chennai          06:17 to 08:14 - Jaipur
06:22 to 08:14 - Hyderabad      06:37 to 08:33 - Nadiad
05:43 to 07:38 - Varanasi         06:10 to 08:05 - Gurugram
06:07 to 08:01 - Chandigarh     05:34 to 07:31 - Kolkata
06:42 to 08:35 - Mumbai          06:32 to 08:21 - Bangalore
06:37 to 08:33 - Ahmedabad     06:08 to 08:04 - Noida
 

Other auspicious Times on the Day of Diwali 2021

04 November, Thursday 2021
Pradosh Kaal Muhurta - 17:47 to 20:20
Vrishabha Kaal Muhurta - 18:24 to 20:22
Abhijit Muhurta - 11:48 to 12:33
Choghadiya Muhurta - 16:23 to 17:57 auspicious and
17:57 to 19:23 Amrit
Sunrise - 06:34 Sunset - 17:47
Moonrise - 05:42 Moonset - 17:32
Rahu Kaal - 13:24 to 14:59

24 October 2019

धनतेरस 2019 | धनतेरस पूजा शुभ मुहूर्त | Dhanteras Pujan Muhurat 2019 | Auspicious Time of Dhanteras

धनतेरस 2019 | धनतेरस पूजा शुभ मुहूर्त | Dhanteras Pujan Muhurat 2019 | Auspicious Time of Dhanteras #DhanTeras

dhanteras shubh muhurat 2019
dhanteras puja shubh muhurat 2019

शुभम करोति कल्याणम,
अरोग्यम धन संपदा,
शत्रु-बुद्धि विनाशायः,
दीपःज्योति नमोस्तुते ॥

आप सभी को सपरिवार दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपके जीवन को दीपावली का दीपोत्सव सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति तथा अपार खुशियों की रोशनी से जग-मग करें।
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।

सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के शुभ दिवस भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। अतः इस दिन को धनतेरस के नाम से जाना जाता हैं। धनतेरस की पूजा को धनत्रयोदशी, धन्वन्तरि त्रयोदशी तथा यम दीपम के नाम से भी जाना जाता है। धन तेरस की पूजा शुभ मुहूर्त में करना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो माता लक्ष्मीजी आपके घर में ठहर जाती है। पांच दिनों तक चलने वाले महापर्व इस दीपावली का प्रारंभ धनतेरस के त्यौहार से होता हैं। धनतेरस सुख, सौभाग्य, धन-सम्पदा तथा समृद्धि का त्योहार माना जाता हैं। इस दिन चिकित्सा तथा आयुर्वेद के देवता 'धन्वंतरि' की पूजा की जाती हैं। साथ ही, अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना की जाती हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार देवताओं तथा राक्षसों के मध्य समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु जी ही देवताओं को अमर करने हेतु समुद्र से हाथों में कलश के भीतर अमृत लेकर 'भगवान धन्वंतरि' के रूप में प्रकट निकले थे। अतः 'भगवान धन्वंतरि' की पूजा करने से माता लक्ष्मी जी भी अति प्रसन्न होती हैं। भगवान धन्वंतरि की चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख तथा चक्र धारण किए हुए हैं तथा दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ अमृत का कलश धारण किए हुए हैं। समुद्र मंथन के समय अत्यंत दुर्लभ तथा कीमती वस्तुओं के साथ-साथ शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी के दिन धन्वंतरि तथा कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के पावन दिन भगवती माँ लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था। धनतेरस के दिन लक्ष्मी माँ की पूजा प्रदोष काल के समय करनी श्रेष्ठ मानी गई हैं, प्रदोष काल का समय सूर्यास्त के पश्चात प्रारम्भ होता हैं तथा 2 घण्टे 22 मिनट तक व्याप्त रहता हैं। धनतेरस के दिन चांदी खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता हैं क्योंकि चांदी, चंद्रमा का प्रतीक माना जाता हैं तथा चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक हैं, अतः चांदी खरीदने से मन में संतोष रूपी धन का वास होता हैं अतः जिसके पास संतोष हैं वह व्यक्ति स्वस्थ, सुखी तथा धनवान हैं। ऐसा माना जाता हैं कि पीतल भगवान धन्वंतरि की प्रिय धातु हैं क्योंकि अमृत का कलश पीतल का बना हुआ था। अतः धनतेरस के दिन पीतल खरीदना भी शुभ माना गया हैं। मान्यता हैं कि इस दिन खरीदी गई कोई भी सामग्री सदैव धन्वंतरि फल प्रदान करती हैं तथा लंबे समय तक कार्यरत रहती हैं। मान्यता यह भी हैं की, इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता हैं। धनतेरस के पर्व पर देवी लक्ष्मी जी तथा धन के देवता कुबेर के पूजन की परम्परा के साथ-साथ यमदेव को दीपदान करके पूजा करने का भी विधान हैं। माना जाता हैं की धनतेरस के त्यौहार पर मृत्यु के देवता यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृत्यु का भय नष्ट हो जाता हैं। अतः यमदेव की पूजा करने के पश्चात परिवार के किसी भी सदस्य के असामयिक मृत्यु-घात से बचने के लिए यमराज के लिए घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला एक दीपक सम्पूर्ण रात्रि जलाना चाहिए।

इस वर्ष, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 अक्तूबर, शुक्रवार की साँय 07 बजकर 08 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 26 अक्तूबर, शनिवार की दोपहर 03 बजकर 46 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में, धनतेरस पूजा का त्योहार 25 अक्तूबर, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिवस महालक्ष्मी कुबेर पूजन तथा धनतेरस पर महालक्ष्मी कुबेर पूजा की जाएगी।

इस वर्ष, धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त, 25 अक्तूबर, शुक्रवार की साँय 07 बजकर 11 से रात्रि 08 बजकर 21 मिनिट तक का रहेगा।
हमारे द्वारा बताए गए इस त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल तथा स्थिर लग्न के सम्मिलित शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन तथा स्वास्थ्य का लाभ होता हैं तथा जातक की आयु में वृद्धि होती हैं।

धनतेरस के दिवस अन्य शुभ समय

25 अक्तूबर, शुक्रवार
वृषभ काल मुहूर्त - 19:06 से 21:02
शुभ चोघड़िया - 21:01 से 22:27 लाभ
सूर्योदय - 06:32   सूर्यास्त - 17:51
चन्द्रोदय - 06:12  चन्द्रास्त - 16:10
राहुकाल : 10:46 से 12:10
अभिजित मुहूर्त - 11:48 से 12:34

12 October 2019

शरद पूर्णिमा व्रत 2019 | शरद पूर्णिमा पूजा शुभ मुहूर्त | शरद पूर्णिमा कब है | चंद्रोदय का समय कब है | Sharad Purnima Vrat

शरद पूर्णिमा व्रत 2019 | शरद पूर्णिमा पूजा शुभ मुहूर्त | शरद पूर्णिमा कब है | चंद्रोदय का समय कब है | Sharad Purnima Vrat

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शरद पूर्णिमा की रात्रि माता लक्ष्मी जी को मनाने का मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये।
        प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः॥


शरद पूर्णिमा का स्‍थान हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह पूर्णिमा अन्‍य पूर्णिमा की तुलना में अति लोकप्रिय हैं। जिस रात्री आकाश से चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत बरसाता हैं, उसी आश्विन मा के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता हैं। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता हैं।
शरद पूर्णिमा के दिवस चंद्रमा, माता लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु जी के पूजन करने का विधान हैं। कहा जाता हैं कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से व्रती की प्रत्येक मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण हो जाती हैं तथा संतानों को लंबी आयु का वरदान भी प्राप्त होता हैं। मान्यता हैं कि शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर, आसमान से अमृत की बरसात करता हैं। माना जाता हैं कि 16 कलाओं वाला पुरुष ही सर्वोत्तम पुरुष हैं। कहा जाता हैं कि भगवान श्री विष्‍णु जी के अवतार श्रीकृष्‍ण 16 कलाओं के साथ अवतरित हुये थे, एवं भगवान श्रीराम के पास 12 कलाएं थीं। साथ ही शरद पूर्णिमा के पर्व पर खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखने की भी परंपरा हैं, अतः इस रात्रि में खीर को खुले आकाश में रखा जाता हैं तथा 12 बजे के पश्चात उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता हैं। ऐसी मान्‍यता हैं कि इस खीर में आकाश से गिरने वाला अमृत आ जाता हैं तथा यह खीर कई प्रकार के रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखती हैं। एक प्रमुख बात यह भी हैं कि शरद पूर्णिमा की रात्रि, चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट आ जाता हैं।
  

शरद पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष, शरद पूर्णिमा के लिए पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 13 अक्तूबर, रविवार की दोपहर 12 बजकर 36 मिनिट पर होगा। तथा पूर्णिमा तिथि का समापन 14 अक्तूबर, सोमवार की दोपहर 02 बजकर 38 मिनिट पर होगा।
अतः इस वर्ष, 2019 में, शरद पूर्णिमा का व्रत 13 अक्तूबर, रविवार के दिन किया जाएगा।

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय 13 अक्तूबर, रविवार की संध्या 06 बजकर 03 मिनिट पर होगा।
भगवान जी को भोग लगाने का शुभ समय मध्यरात्रि 12 बजे का रहेगा।