होलिका दहन कब है | शुभ मुहूर्त | होली 2020 | Holika Dahan 2020 शास्त्रोक्त पौराणिक नियम #Holi #Holika #Holi2020
holika dahan shubh muhurat |
होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से
एक हैं, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता
हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं। होलिका दहन का दिवस अर्थात फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन
पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक हैं। इस दिवस सूर्योदय से प्रारम्भ
कर चंद्रोदय तक व्रत-उपवास भी किया जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा
का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश होता हैं तथा उस भक्त को भगवान
श्री हरी विष्णुजी की विशेष कृपादृष्टि प्राप्त होती हैं।
सनातन हिन्दू धर्म
के अनुसार होलिका दहन का मुहूर्त किसी अन्य त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण
तथा अति आवश्यक हैं। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर ना की जाये तो
मात्र पूजा के लाभ से वर्जित होना पड़ता हैं किन्तु होलिका दहन की पूजा यदि अनुपयुक्त
समय पर हो जाये तो यह एक दुर्भाग्य तथा भारी पीड़ा का कारण बनाता हैं।
हमारे द्वारा बताया
गया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया हुआ श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। यह
मुहूर्त सदैव भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता हैं।
होली
के पर्व को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त
हो, तभी मनाना
चाहिये। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त होती
हैं, प्रत्येक शुभ कार्य भद्रा में वर्जित होते हैं। अतः इस समय होलिका पूजा तथा
होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले तथा मध्य रात्रि के
पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका
दहन का मुहूर्त सूर्यास्त तथा मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता हैं।
होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम
फाल्गुन शुक्ल
अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता हैं, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन
किया जाता हैं। जिसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
1. प्रथम, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी हैं, जो कि 11 करणो में से एक हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता हैं।
2. द्वितीय, पूर्णिमा
प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्चात
के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी आवश्यक हैं।
होलिका दहन के मुहूर्त के लिए यह बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये -
भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम
मानी जाती हैं। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु
भद्रा मध्य रात्रि से पूर्व समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो, तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता हैं। किन्तु
भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता
का समर्थन किया गया हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन
अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा हैं, जिसका परिणाम न केवल दहन
करने वाले को किन्तु नगर तथा देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता हैं। किसी-किसी वर्ष
भद्रा पूँछ प्रदोष के पश्चात तथा मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती हैं, तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता हैं। कभी
दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष तथा भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो
तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
होलिका दहन मुहूर्त
इस
वर्ष, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 09 मार्च, सोमवार की
प्रातः 03 बजकर 03 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 09
मार्च, सोमवार की ही रात्रि 11 बजकर 17 मिनिट तक व्याप्त
रहेगी।
अतः
इस वर्ष 2020 में होलिका दहन 09 मार्च, सोमवार के
दिन किया जाएगा।
इस
वर्ष, होलिका दहन का शुभ समय, 09 मार्च, सोमवार की साँय
06 बजकर 33 मिनिट से रात्रि 08 बजकर 58 मिनिट तक का रहेगा।
भद्रा पूँछ - प्रातः 09:37 से 10:38
भद्रा मुख - 10:38 से 12:19
रंगवाली होली
रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता हैं, वह होलिका दहन के पश्चात
ही मनायी जाती हैं, जो की 10 मार्च
के दिन आयेगी तथा इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता हैं।
No comments:
Post a Comment