Showing posts with label holi. Show all posts
Showing posts with label holi. Show all posts

24 March 2024

होलिका दहन पूजा का कब शुभ मुहूर्त है 2024 | Holika Dahan ka Shubh Muhurat Samay Time 2024

होलिका दहन पूजा का कब शुभ मुहूर्त है 2024 | Holika Dahan ka Shubh Muhurat Samay Time 2024

holika dahan ka samay time 2024
holika dahan ka shubh muhurat 

होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं। होलिका दहन का दिवस अर्थात फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक हैं। इस दिवस सूर्योदय से प्रारम्भ कर चंद्रोदय तक व्रत-उपवास भी किया जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश होता हैं तथा उस भक्त को भगवान श्री हरी विष्णुजी की विशेष कृपादृष्टि प्राप्त होती हैं।

सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका दहन का मुहूर्त किसी अन्य त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण तथा अति आवश्यक हैं। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर ना की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वर्जित होना पड़ता हैं किन्तु होलिका दहन की पूजा यदि अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह एक दुर्भाग्य तथा भारी पीड़ा का कारण बनाता हैं।

हमारे द्वारा बताया गया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया हुआ श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। यह मुहूर्त सदैव भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता हैं।

होली के पर्व को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, तभी मनाना चाहिये। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त होती हैं, प्रत्येक शुभ कार्य भद्रा में वर्जित होते हैं। अतः इस समय होलिका पूजा तथा होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले तथा मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त तथा मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता हैं।

 


होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता हैं, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता हैं। जिसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -

1.   प्रथम, उस दिन भद्रान हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी हैं, जो कि 11 करणो में से एक हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता हैं।

2.   द्वितीय, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्चात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी आवश्यक हैं।

 

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए यह बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये -

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती हैं। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पूर्व समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो, तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता हैं। किन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा हैं, जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को किन्तु नगर तथा देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता हैं। किसी-किसी वर्ष भद्रा पूँछ प्रदोष के पश्चात तथा मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती हैं, तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता हैं। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष तथा भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

 

होलिका दहन मुहूर्त 2024

इस वर्ष, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च, रविवार के दिन 09 बजकर 54 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 25 मार्च, सोमवार की दोपहर 12 बजकर 29 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2024 में होलिका दहन 24 मार्च, रविवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, होलिका दहन का शुभ समय, 24 मार्च, रविवार की रात्रि 11 बजकर 12 मिनिट से मध्य-रात्रि 12 बजकर 32 मिनिट तक का रहेगा।

भद्रा पूँछ - 18:33 से 19:53

भद्रा मुख - 19:53 से 22:06

इस वर्ष प्रदोषकाल के दौरान होलिका दहन भद्रा के साथ होगा।

 

रंगवाली होली

रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता हैं, वह होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती हैं, जो की 25 मार्च, सोमवार के दिन आयेगी तथा इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता हैं।


🎨आप सभी दर्शक-मित्र को हमारी ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ। 🌷

 


होलिका दहन का इतिहास

होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता हैं। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला हैं जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया हैं। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।

 

होलिका दहन की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा तथा अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान हैं। होली का पर्व संदेश देता हैं कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।

09 March 2020

होली 2020 | ज्योतिष शास्त्र | Holi Ke Upay In Hindi | धन प्राप्ति के उपाय | Holi 2020 by Vinod Pandey

 होली 2020 | ज्योतिष शास्त्र | Holi Ke Upay In Hindi | धन प्राप्ति के उपाय | Holi 2020 by Vinod Pandey

holi upay hindi
holi upay hindi
फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहते हैं। इस शुभ दिवस होलिका दहन किया जाता हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं। होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिवस किए गए उपाय अत्यंत ही शीघ्र शुभ फल प्रदान करते हैं। इस दिवस सूर्योदय से प्रारम्भ कर चंद्रोदय तक व्रत-उपवास भी किया जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश होता हैं तथा उस भक्त को भगवान श्री हरी विष्णुजी की विशेष कृपादृष्टि प्राप्त होती हैं।

आज हम आपको होली पर किए जाने वाले ऐसे ही सरल किन्तु अचूक उपायों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें होली के पर्व पर कर के आप सभी परेशानियों से मुक्त हो जायेंगे।


उपाय इस प्रकार हैं-
                               १:-   यदि आपके जीवन में राहु के कारण कोई परेशानी हैं, तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें। उसी में थोड़ा सा गुड़ डालें तथा इस गोले को जलती हुई होलिका में अर्पित कर दें। इस प्रयोग से राहु का बुरा प्रभाव स्वयं ही समाप्त हो जाएगा।
                               २:-   यदि आपको कोई अज्ञात भय रहता हैं, तो होली पर एक सूखा जटा वाला नारियल, काले तिल तथा पीली सरसों एक साथ लेकर उसे सात बार अपने सिर के ऊपर उतार कर जलती होलिका में अर्पित कर देने से अज्ञात भय समाप्त हो जाएगा।
                               ३:-   यदि व्यापार या नौकरी में उन्नति न हो रही हो, तो 21 गोमती चक्र लेकर होलिका दहन की रात्रि में शिवलिंग पर चढ़ा दें। इससे व्यापार तथा नौकरी में लाभ तथा प्रगति प्राप्त होगी।
                               ४:-   होलिका दहन के दूसरे दिवस होलिका की राख को घर लाकर उसमें थोड़ी सी राई तथा नमक मिलाकर रख लें। इस प्रयोग से भूत-प्रेत या नजर दोष से मुक्ति मिलती हैं।
                               ५:-   घर की सुख-समृद्धि हेतु परिवार के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा तथा एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। साथ ही होली की 11 परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए।
                               ६:-   होली की रात्रि सरसों के तेल का चौमुखी दीपक घर के मुख्य द्वार पर लगाएं तथा उसकी पूजा करें। इसके पश्चात भगवान से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से प्रत्येक प्रकार की बाधा का निवारण होता हैं।
                               ७:-   धन हानि से बचने हेतु होली के दिवस घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़कें तथा उस पर दोमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धन हानि से बचाव की प्रार्थना करें। जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में अर्पित कर दें। यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, आपको कभी भी धन की हानि नहीं होगी।
                               ८:-   जिसके पास कोई नौकरी या व्यापार नहीं हैं, तो ऐसे जातकों को होली की रात्रि 12 बजे से पूर्व एक नींबू लेकर किसी चौराहे पर जाना चाहिए तथा उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक देना चाहिए एवं तुरंत वापस घर आ जाना चाहिए, किन्तु ध्यान रहे की, वापसी के समय पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए।
                               ९:-   होली पर किसी योग्य निर्धन को यथासंभव भोजन अवश्य कराएं। इससे आपकी समस्त मनोकामना अत्यंत शीघ्र पूर्ण होगी।
                         १०:-   शीघ्र विवाह हेतु होली के दिवस किसी शिव मंदिर जाएं तथा अपने साथ 1 साबुत  पान, 1 साबुत  सुपारी एवं हल्दी की गांठ रख लें। पान के पत्ते पर सुपारी तथा हल्दी की गांठ रखकर शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके पश्चात पीछे देखे बिना अपने घर लौट आएं। यही प्रयोग अगले दिवस भी करें। इसके साथ ही समय-समय पर शुभ मुहूर्त में यह उपाय करते रहें । जल्दी ही विवाह के योग बन जाएंगे।
                         ११:-   यदि किसी ने आप पर कोई टोटका या काला जादू किया हैं तो होली की रात्रि जहां होलिका दहन हो, उस जगह एक गड्ढा खोदकर उसमें 11 अभिमंत्रित कौड़ियों को दबा दें। अगले दिवस कौड़ियों को निकालकर अपने घर की मिट्टी के साथ नीले कपड़े में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। जो भी तंत्र क्रिया आप पर किसी ने की होगी वह नष्ट हो जाएगी।
                         १२:-   यदि आपके घर में किसी भूत-प्रेत का साया हैं तो जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी सी अग्नि अपने घर ले आएं तथा अपने घर के आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व के मध्य के कोण में उस अग्नि को तांबे या मिट्टी के पात्र में रखें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इस उपाय से आपकी समस्त परेशानियाँ नष्ट हो जाएगी।
                         १३:-   यदि आपका पैसा कहीं फंसा हैं तो, होली के दिवस 11 गोमती चक्र हाथ में लेकर जलती हुई होलिका की 11 बार परिक्रमा करते हुए धन प्राप्ति की प्रार्थना करें। उसके पश्चात एक सफेद कागज पर उस व्यक्ति का नाम लाल चन्दन से लिखें जिससे पैसा लेना हैं तथा उस सफेद कागज को 11 गोमती चक्र के साथ में कहीं गड्ढा खोदकर दबा दें। इस प्रयोग से धन प्राप्ति की संभावना अत्यंत बढ़ जाएगी।
                         १४:-   शत्रुओं से छुटकारा पाने हेतु होलिका दहन के समय 7 गोमती चक्र लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि, आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा न डालें। प्रार्थना के पश्चात पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास के साथ गोमती चक्र जलती हुई होलिका में अर्पित कर दें।
                         १५:-   होली से प्रारम्भ कर के बजरंग बाण का 40 दिवस तक नियमित पाठ करने से प्रत्येक प्रकार की मनोकामना पूर्ण हो सकती हैं।

आप सभी दर्शक-मित्र को हमारी ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

08 March 2020

होलिका दहन कब है | शुभ मुहूर्त | होली 2020 | Holika Dahan 2020 शास्त्रोक्त पौराणिक नियम

होलिका दहन कब है शुभ मुहूर्त | होली 2020 | Holika Dahan 2020 शास्त्रोक्त पौराणिक नियम #Holi #Holika #Holi2020

holika dahan samay time
holika dahan shubh muhurat 
होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं। होलिका दहन का दिवस अर्थात फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक हैं। इस दिवस सूर्योदय से प्रारम्भ कर चंद्रोदय तक व्रत-उपवास भी किया जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश होता हैं तथा उस भक्त को भगवान श्री हरी विष्णुजी की विशेष कृपादृष्टि प्राप्त होती हैं।

सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका दहन का मुहूर्त किसी अन्य त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण तथा अति आवश्यक हैं। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर ना की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वर्जित होना पड़ता हैं किन्तु होलिका दहन की पूजा यदि अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह एक दुर्भाग्य तथा भारी पीड़ा का कारण बनाता हैं।
हमारे द्वारा बताया गया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया हुआ श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। यह मुहूर्त सदैव भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता हैं।
होली के पर्व को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, तभी मनाना चाहिये। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त होती हैं, प्रत्येक शुभ कार्य भद्रा में वर्जित होते हैं। अतः इस समय होलिका पूजा तथा होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले तथा मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त तथा मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता हैं।

होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता हैं, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता हैं। जिसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
1.   प्रथम, उस दिन भद्रान हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी हैं, जो कि 11 करणो में से एक हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता हैं।
2.   द्वितीय, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्चात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी आवश्यक हैं।

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए यह बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये -

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती हैं। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पूर्व समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो, तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता हैं। किन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा हैं, जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को किन्तु नगर तथा देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता हैं। किसी-किसी वर्ष भद्रा पूँछ प्रदोष के पश्चात तथा मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती हैं, तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता हैं। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष तथा भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

होलिका दहन मुहूर्त

इस वर्ष, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 09 मार्च, सोमवार की प्रातः 03 बजकर 03 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 09 मार्च, सोमवार की ही रात्रि 11 बजकर 17 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2020 में होलिका दहन 09 मार्च, सोमवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, होलिका दहन का शुभ समय, 09 मार्च, सोमवार की साँय 06 बजकर 33 मिनिट से रात्रि 08 बजकर 58 मिनिट तक का रहेगा।
भद्रा पूँछ - प्रातः 09:37 से 10:38
भद्रा मुख - 10:38 से 12:19

रंगवाली होली

रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता हैं, वह होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती हैं, जो की 10 मार्च के दिन आयेगी तथा इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता हैं।

13 February 2020

2020 में होलिका दहन कब है | शास्त्रोक्त नियम | होली 2020 | होली कब है 2020 | When Is Holi in 2020

2020 में होलिका दहन कब है | शास्त्रोक्त नियम | होली 2020 | होली कब है 2020 | When Is Holi in 2020

holi kitni tarikh ko hai
holi kab ki hai ?

हिन्दू पंचांग के अनुसार होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी तथा धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व के पश्यात, इस त्योहार को बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाते हैं। होलिका दहन जिसे छोटी होली भी कहते हैं इस पर्व के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है तथा अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है। बसंत ऋतु में प्रकृति में फैली रंगों की छटा को ही रंगों से खेलकर वसंत उत्सव होली के रूप में दर्शाया जाता है। विशेषतः हरियाणा में इस पर्व को धुलंडी भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में भी इस पर्व का बहुत अधिक महत्व होता है।

होलिका दहन का इतिहास

होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
होली का इतिहास
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में १६वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से ३०० वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है।

होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
    1.   पहला, उस दिन भद्रान हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
    2.   दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्यात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

होलिका दहन की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा तथा अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।

होली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

होली से जुड़ी अनेक कथाएँ इतिहास-पुराण में पायी जाती हैं; जैसे हिरण्यकश्यप-प्रह्लाद की जनश्रुति, राधा-कृष्ण की लीलाएँ तथा राक्षसी धुण्डी की कथा आदि।

रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है। कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, किन्तु यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, किन्तु प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप तथा भगवान की कृपा के फलस्वरूप ख़ुद होलिका ही आग में जल गयी। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुक़सान नहीं हुआ।

रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके पश्यात कान्हा ने राधा तथा गोपियों के साथ रंगों से होली खेली तथा तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।

यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव के शाप के कारण धुण्डी नामक राक्षसी को पृथु के लोगों इस दिन भगा दिया था, जिसकी याद में होली मनाते हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में होली का पर्व

यह पर्व सबसे ज़्यादा धूम-धाम से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। ख़ास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली बहुत मशहूर है। मथुरा तथा वृन्दावन में भी १५ दिनों तक होली की धूम रहती है। हरयाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा है। कुछ स्थानों जैसे की मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक ज़ोर-शोर से खेली जाती है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है। दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है तथा मालवांचल में भगोरिया मनाया जाता है।

होलिका दहन का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, होली को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में जाना जाता है। जहाँ एक ओर होली वाले दिन सभी तरह-तरह के रंगों में मलीन दिखाई पड़ते है वहीं दूसरी तरफ इससे एक दिन पहले होलिका दहन मनाई जाती है। जिसे नारायण के भक्त प्रहलाद के विश्वास तथा उसकी भक्ति के रूप में मनाया जाता है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है जिसे फाल्गुन माह की पूर्णिमा को किया जाता है। होलिका दहन सूर्यास्त के पश्चात् प्रदोष के समय पूर्णिमा तिथि रहते हुए किये जाते है। पूर्णिमा तिथि के दौरान भद्रा लगने पर होलिका पूजन निषेध माना जाता है। क्योंकि भद्रा में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

रंगवाली होली का महत्व :

होलिका दहन के दुसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती है जिसे रंगवाली होली भी कहते है। इस दिन सभी लोग आपस में एक दुसरे को गुलाल लगाते है, ढोल आदि बजाकर होली के गीत गाते है। किन्तु आजकल जमाना काफी मॉडर्न हो गया है तो लोग ढोल की जगह स्पीकर लगाकर होली के गानों पर नाचते गाते जश्न मनाते है।
रंग-पर्व होली हमें जाति, वर्ग तथा लिंग आदि विभेदों से ऊपर उठकर प्रेम व शान्ति के रंगों को फैलाने का संदेश देता है। आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

2020 में होलिका दहन कब है | शास्त्रोक्त नियम होली कब है?

होलिका दहन 2020
09 मार्च 2020, सोमवार

रंगवाली होली (धुलण्डी)
10 मार्च 2020, मंगलवार

होलिका दहन मुहूर्त

09 मार्च 2020, सोमवार
साँय 18:33 से 20:58
भद्रा पूँछ - प्रातः 09:37 से 10:38
भद्रा मुख - 10:38 से 12:19
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 09 मार्च 2020 समय- 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 09 मार्च 2020 समय 23:17 बजे

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाए।

20 March 2019

होलिका दहन कब हैं | होलिका दहन शुभ मुहूर्त | होली 2019 | Holika Dahan 2019 शास्त्रोक्त पौरा‍णिक नियम

होलिका दहन कब हैं | होलिका दहन शुभ मुहूर्त | होली 2019 | Holika Dahan 2019 शास्त्रोक्त पौरा‍णिक नियम

holi ka muhurat kab hai
holika dahan kab hai
होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं। होलिका दहन का दिवस अर्थात फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अधिक हैं। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास भी रखा जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश होता हैं तथा उस पर भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा होती हैं।
सनातन धर्मानुसार होलिका दहन का मुहूर्त किसी अन्य त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण तथा अति आवश्यक हैं। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर ना की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वर्जित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा यदि अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य तथा पीड़ा देती हैं।
हमारे द्वारा बताया गया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया हुआ श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। यह मुहूर्त सदेव भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता हैं।
होली के पर्व को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, तभी मनाना चाहिये। पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में भद्रा व्याप्त होती हैं, प्रत्येक शुभ कार्य भद्रा में वर्जित होते हैं। अतः इस समय होलिका पूजा तथा होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले तथा मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त तथा मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता हैं।


होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता हैं, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता हैं। जिसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
1.   प्रथम, उस दिन भद्रान हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी हैं, जो कि 11 करणों में से एक हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता हैं।
2.   द्वितीय, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्यात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी आवश्यक हैं।

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए यह बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये -

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती हैं। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता हैं। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा हैं जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को किन्तु नगर तथा देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता हैं। किसी-किसी वर्ष भद्रा पूँछ प्रदोष के पश्यात तथा मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती हैं तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता हैं। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष तथा भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
इस वर्ष 2019 में, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 20 मार्च, बुधवार के दिन 10 बजकर 44 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 21 मार्च, गुरुवार की प्रातः 07 बजकर 22 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2019 में होलिका दहन 20 मार्च, बुधवार के दिन किया जाएगा।
इस वर्ष, होलिका दहन का शुभ समय, 20 मार्च, बुधवार के दिन, साँय 08 बजकर 28 मिनिट से मध्यरात्रि 12 बजकर 22 मिनिट तक का रहेगा।
भद्रा पूँछ - 15:23 से 18:24
भद्रा मुख - 18:24 से 20:07

रंगवाली होली

रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता हैं, वह होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती हैं जो की 21 मार्च के दिन आयेगी तथा इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता हैं।
आप सभी दर्शक-मित्रोको हमारी ओर से होली की हार्दिक शुभकामनायें।