2020 में
होलिका दहन कब है | शास्त्रोक्त नियम | होली 2020 | होली कब है 2020 | When Is Holi in 2020
holi kab ki hai ? |
हिन्दू पंचांग के
अनुसार होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता
है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी तथा धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व के
पश्यात, इस त्योहार को बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाते हैं। होलिका
दहन जिसे छोटी होली भी कहते हैं इस पर्व के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग
खेलने का विधान है तथा अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को
मनाया जाता है। बसंत ऋतु में प्रकृति में फैली रंगों की छटा को ही रंगों से खेलकर
वसंत उत्सव होली के रूप में दर्शाया जाता है। विशेषतः हरियाणा में इस पर्व को
धुलंडी भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में भी इस पर्व का बहुत अधिक महत्व होता है।
होलिका दहन का इतिहास
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है।
प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली
के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक
ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है।
कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया
था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
होली का इतिहास
होली का वर्णन बहुत
पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में
१६वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही
विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से ३०० वर्ष पुराने अभिलेख
में भी इसका उल्लेख मिलता है।
होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम
फाल्गुन शुक्ल
अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है।
इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
1.
पहला,
उस दिन “भद्रा” न
हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो
कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
2.
दूसरा,
पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में
कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्यात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी
चाहिए।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका
पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा
तथा अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर
अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि
उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर
भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका
दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने
अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ
होली से जुड़ी अनेक
कथाएँ इतिहास-पुराण में पायी जाती हैं; जैसे हिरण्यकश्यप-प्रह्लाद
की जनश्रुति,
राधा-कृष्ण की लीलाएँ तथा राक्षसी धुण्डी की कथा आदि।
रंगवाली होली से एक
दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर
अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है। कथा के अनुसार असुर
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, किन्तु यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को
भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को
मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, किन्तु प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप तथा भगवान की कृपा के फलस्वरूप ख़ुद होलिका
ही आग में जल गयी। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुक़सान नहीं हुआ।
रंगवाली होली को
राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार
बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं।
यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी
कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके पश्यात कान्हा ने राधा तथा गोपियों के साथ रंगों
से होली खेली तथा तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
यह भी कहा जाता है
कि भगवान शिव के शाप के कारण धुण्डी नामक राक्षसी को पृथु के लोगों इस दिन भगा
दिया था, जिसकी याद में होली मनाते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में होली का पर्व
यह पर्व सबसे
ज़्यादा धूम-धाम से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। ख़ास तौर पर बरसाना की लट्ठमार
होली बहुत मशहूर है। मथुरा तथा वृन्दावन में भी १५ दिनों तक होली की धूम रहती है।
हरयाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा है। कुछ स्थानों जैसे की
मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक ज़ोर-शोर से खेली जाती है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी
के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है। दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए
होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है तथा मालवांचल
में भगोरिया मनाया जाता है।
होलिका दहन का महत्व
शास्त्रों के
अनुसार, होली को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में जाना जाता है। जहाँ एक ओर होली वाले
दिन सभी तरह-तरह के रंगों में मलीन दिखाई पड़ते है वहीं दूसरी तरफ इससे एक दिन पहले
होलिका दहन मनाई जाती है। जिसे नारायण के भक्त प्रहलाद के विश्वास तथा उसकी भक्ति
के रूप में मनाया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के
अनुसार, होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है जिसे फाल्गुन माह की
पूर्णिमा को किया जाता है। होलिका दहन सूर्यास्त के पश्चात् प्रदोष के समय
पूर्णिमा तिथि रहते हुए किये जाते है। पूर्णिमा तिथि के दौरान भद्रा लगने पर
होलिका पूजन निषेध माना जाता है। क्योंकि भद्रा में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना
चाहिए।
रंगवाली होली का महत्व :
होलिका दहन के
दुसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती है जिसे रंगवाली होली भी कहते है। इस दिन सभी लोग आपस
में एक दुसरे को गुलाल लगाते है, ढोल आदि बजाकर होली के गीत गाते है।
किन्तु आजकल जमाना काफी मॉडर्न हो गया है तो लोग ढोल की जगह स्पीकर लगाकर होली के
गानों पर नाचते गाते जश्न मनाते है।
रंग-पर्व होली हमें
जाति, वर्ग तथा लिंग आदि विभेदों से ऊपर उठकर प्रेम व शान्ति के रंगों को फैलाने का
संदेश देता है। आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
2020 में होलिका दहन कब है | शास्त्रोक्त नियम होली कब है?
होलिका दहन 2020
09
मार्च 2020, सोमवार
रंगवाली होली (धुलण्डी)
10 मार्च 2020, मंगलवार
होलिका दहन मुहूर्त
09
मार्च 2020, सोमवार
साँय
18:33 से 20:58
भद्रा
पूँछ - प्रातः 09:37 से 10:38
भद्रा
मुख - 10:38 से 12:19
पूर्णिमा
तिथि प्रारम्भ- 09 मार्च 2020 समय- 03:03 बजे
पूर्णिमा
तिथि समाप्त- 09 मार्च 2020 समय 23:17 बजे
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाए।
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