क्या वेदों में कहीं भी कृष्ण का उल्लेख है?
Krishna mentioned anywhere in the Vedas
कृष्ण, जैसा कि हम उन्हें जानते हैं, किसी भी वेद में इसका उल्लेख नहीं है। देवकी का एक कृष्ण पुत्र प्रदीप गंगोपाध्याय के उल्लेख के अनुसार एक बार चंडोग्य उपनिषद में दिखाई देता है।
विष्णु स्वयं ऋग्वेद में एक छोटे देवता हैं और वे इंद्र (इन्द्रस्य युज्य-शाख) के सबसे अच्छे दोस्त होने के लिए प्रसिद्ध हैं।
विष्णु के एक अवतार का एकमात्र उल्लेख त्रिविक्रम है। त्रिविक्रम से संबंधित श्लोक को हर यज्ञ में सुनाया जाना चाहिए क्योंकि वामन अवतरण को सभी अवतारों में सबसे महान कहा जाता है क्योंकि कोई भी मारा नहीं गया था और सभी को लाभ हुआ और धन्य थे।
अब यहाँ पौराणिक कथाएँ कैसे काम करती हैं
वेदों में हमने इंद्र और विष्णु के सबसे अच्छे दोस्त होने का उल्लेख किया है - लेकिन हमारे पास उनकी दोस्ती का कोई विवरण नहीं है। पुराणों में कथाएँ बहुतायत में हैं। विष्णु कृष्ण बन जाते हैं और इंद्र अर्जुन बन जाते हैं - और सैकड़ों कहानियाँ उनके बारे में बताई जाती हैं जो गीता उपदेश में उनकी दृढ़ मित्रता को दर्शाती हैं।
वेद में बस इतना ही कहा गया है: - इदं विओर विक्रमे त्रेदा निदाधे पदम् - "इस विष्णु ने तीन कदम उठाते हुए आगे बढ़ाया है!" - अधिक जानकारी नहीं दी गई है या यहां तक कि संकेत भी नहीं दिया गया है। इस कर्नेल से पुराणिक लेखकों ने वामन अवतरण की कहानी को ब्राह्मणों और अरण्यकों में पाए गए विस्तार के आधार पर विकसित किया है।
इसका एक उदाहरण मैं हाल ही में 1897 में सारागढ़ी की लड़ाई के बारे में देखी गई एक फिल्म है जिसमें 21 सिखों ने 10,000 अफगान आदिवासियों से लड़ाई लड़ी। सारागढ़ी की लड़ाई - विकिपीडिया
लड़ाई के मूल तथ्यों को जाना जाता है - सिपाहियों के नाम, उनके रैंक, उनके कमांडिंग अधिकारियों और उन पर कुछ पृष्ठभूमि की जानकारी। इन नंगे हड्डियों से बॉलीवुड 65 एपिसोड के साथ एक महाकाव्य धारावाहिक का निर्माण करने में कामयाब रहा !! उनकी बातचीत, उनके प्यार, उनकी साज़िश आदि को नाटकीय और विस्तृत करना।
क्या यह सब "वास्तविक" है? बिल्कुल नहीं! यह एक पुनर्निर्मित नाटक है। ठीक ऐसा ही महाभारत के साथ हुआ। सत्य की कुछ गुठली हैं जो तब विभिन्न लेखकों और कथाकारों द्वारा निकाल दी गई हैं - पूरे महाकाव्य को पेशेवर भटकाने वाले कहानीकारों (कथकारों) द्वारा प्रत्येक को यहां और वहां जोड़ दिया गया था और एक विशेष दर्शकों के अनुरूप चीजों को संशोधित करने के लिए। यही कारण है कि सभी कहानियों के कई अलग-अलग संस्करण हैं।
पहले मै स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि वेद मे इतिहास नही है।
क्योंकि "इतिहास" शब्द का शाब्दिक अर्थ है "इति+ह्रास" इति अर्थात् ऐसा ह्रास अर्थात् घटित हुआ या घटा। इससे इतिहास का अर्थ है कि ऐसा अथवा अमुक घटित हुआ। अत: जो कुछ वेदो े बाद घटित हुआ वो वेदो के समय इतिहास नही था, बल्कि भविष्य की बाते थे।
दूसरे अब मै आपके ईश्वर के कुछ गुण बता देना चाहता हूँ-
ईश्वर को विभिन्न नामो से जाना जाते है ये नाम उसके स्वरूप के बजाय गुणो के आधार पर माने गये है। जैसे-
ओमित्येतदक्षरमिदं- सब वेदादि शास्त्रो मे ईश्वर का निजनाम ओ३म है।
एतमग्निं वदन्त्येके (मनुस्मृति) अर्थात् सस्वप्रकाश होने से ईश्वर को अग्नि कहा जाता है।
विज्ञान स्वरूप होने से मनु, सब का पालन करने से प्रजापति,परमैशवर्यवान होने से इन्द्र, सव्यापक होने से ब्रह्मा है, वह चराचर जगत का धर्ता होने से वायु, अचररूप जगत मे व्यापक होने से विष्णु है।
अत: स्पष्ट होता है कि ये नाम किसी एतिहासिक पुरूष के भी हो सकते है। अत: हम ये नही कह सकते कि फलां (अमुक) व्यक्ति का नाम वेदो मे है। वेदो मे ईश्वर को "विनीत" भी कहा गया है, अत: मै ये नही कह सकता कि वेदो मे मेरा नाम है। क्योंकि वहाँ सब ईश्वर के गुणवाचक नाम वर्णित है। हो सकता है ईश्वर को कहीं कृष्ण कहा गया हो।
पुन: आपकी जानकारी के लिये बताना चाहूँगा कि श्रीकृष्ण आज से लगभग 5200 वर्ष पूर्व द्वापरयुग मे पैदा हुए। जबकि वेद सृष्टि के पूर्व अर्थात् आज से लगभग 1,96,08,53,120 वर्ष पूर्व से उपस्थित है, तथा इन्हे लगभग 454 चतुर्युगी बीत चुकी है। एक चतुर्युगी मे 4320000 वर्ष होते है। अत: श्रीकृष्ण वेदो के कई अरब वर्ष पश्चात् पैदा हुए थे इससे उनका नाम(इन्ही के लिये) प्रयुक्त नही हुआ है।
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