03 September 2017

भांग और धतुरा भगवान शिव-शंकर को क्यों हैं प्रिय ?

भांग और धतुरा भगवान शिव-शंकर को क्यों हैं प्रिय ?

नमस्कार! आपका हार्दिक स्वागत हैं!
भगवान भोलेनाथ के बारे में कहा जाता हैं कि वे भांग और धतूरे जैसी नशीली चीजों का सेवन करते हैं। भगवान् शंकर की तरह ही उन्हें मानने वाले उनके भक्त लोग भी अपने महादेव की तरह आज भी भांग और धतूरे का सेवन करते हैं.
·            क्या भगवान शिव हमेशा भांग के नशे में रहते हैं?
·            भांग और धतूरे का सेवन शिवरात्रि और होली मैं क्यों किया जाता हैं?
·            क्यों सन्यासियों में भी भांग, गांजा-चिलम आदि का इतना प्रचलन है?
·            भोलेबाबा का धतूरा और भांग जैसे नशे करने के पीछे की क्या वजह हैं?
·            भगवान शिव भांग का सेवन क्यों करते हैं?
भांग और धतुरा भगवान शिव-शंकर को क्यों हैं प्रिय ?





चलिए जानते है सारे सवालो के पीछे के तीन वैदिक तर्क दिए गए हैं
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. पहला भांग-धतूरे और गांजा जैसी चीजों को शिव से जोडऩे का एक दार्शनिक कारण है। यह चीजें समाज द्वारा त्यागी गयी श्रेणी में आती हैं, शिवजी का यह संदेश है कि वे उनके साथ भी हैं जो सभ्य समाजों द्वारा त्याग दिए जाते हैं। जो शिव समर्पित हो जाता है, शिव जी उसके हो जाते हैं। और उसका उद्धार करते हैं!
.    दूसरा  दरअसल भोलेबाबा स्वयं सन्यासी हैं और उनकी जीवन शैली बहुत अलग है। वे ऊँचे पहाड़ों पर निवास करते हैं तथा वही लम्बे समय के लिए समाधि लगाते हैं। आज के युग में भी कई सन्यासी पहाड़ों पर ही रहते हैं। पहाड़ों में होने वाली बर्फबारी की वजह से वहां का वातावरण अधिकांश समय बहुत ही ठंडा होता है। गांजा, धतूरा, भांग जैसी चीजें नशे के साथ ही शरीर को गरमी प्रदान करती हैं। इसकी गर्म तासीर और औषधिय गुणों के कारण ही इसे शिव से जोड़ा गया है। जो वहां सन्यासियों को जीवन गुजारने में सहायक होती है। थोड़ी मात्रा में ली जाए तो यह औषधि का काम करती है लेकिन दोस्तों ध्यान दे की यदि अधिक मात्रा में लेने या नियमित सेवन करने पर यह शरीर को, खासतौर पर आंतों को काफी प्रभावित करती हैं। 

.    भगवान् शिव को उनके भक्त हमेशा एक पथ प्रदर्शक के रूप में देखते आये हैं, जब समुद्रमंथन के बाद निकले अमृत और विष में से बचे हुए विष को संसार की सुरक्षा के लिए महादेव ने अपने गले में उतार लिया था. मंथन के बाद निकले विष में सबसे अधिक में मात्रा में धतूरे और भांग होने की वजह से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया था और तभी से भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा. भगवान शिव की तरह ही उन्हें मानने वाले उनके भक्तगण भी इस नशे को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
दोस्तों भावार्थ यह निकलता हैं की भगवान् शिव इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तो की विष से रक्षा करते हैं.
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