आज हैं शनिश्चरी अमावस्या | Shaneshwari Amavasya | भाग्य विधाता शनिदेव
Shaneshwari Amavasya |
सनातन हिन्दु पंचांग में नये चन्द्रमा
के दिवस को अमावस्या कहते हैं। यह एक महत्वपूर्ण दिवस होता हैं क्योंकि कई धार्मिक
कृत्य केवल अमावस्या तिथि के दिवस ही किये जाते हैं।
अमावस्या जब सोमवार के दिवस आती हैं तो
उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं तथा अमावस्या जब शनिवार के दिवस आती हैं तो उसे शनि
अमावस्या कहते हैं।
पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए
अमावस्या के समस्त दिवस श्राद्ध की रस्मों को करने के लिए उपयुक्त हैं। कालसर्प
दोष निवारण की पूजा करने के लिए भी अमावस्या का दिवस उपयुक्त होता हैं।
आज हैं शनिश्चरी अमावस्या
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शनि अमावस्या के दिवस भगवान सूर्यदेव के
पुत्र शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। किसी माह के जिस
शनिवार को अमावस्या पड़ती हैं, उसी दिवस 'शनि अमावस्या' मनाई जानी हैं। यह 'पितृकार्येषु अमावस्या' तथा 'शनिश्चरी
अमावस्या' के रूप में भी जानी जाती हैं। 'कालसर्प योग', 'ढैय्या' तथा 'साढ़ेसाती' सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति प्राप्त
करने हेतु 'शनि अमावस्या' एक दुर्लभ दिवस
व महत्त्वपूर्ण समय होता हैं। पौराणिक धर्म ग्रंथों तथा हिन्दू मान्यताओं में 'शनि अमावस्या' की अत्यंत महत्ता बतलाई गई हैं। इस दिवस
व्रत, उपवास, तथा दान आदि करने का बड़ा
पुण्य प्राप्त होता हैं।
भाग्य विधाता शनिदेव
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भगवान सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव का नाम
सुनकर लोग सहम से जाते हैं, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हैं। यह
सही हैं कि शनिदेव की गिनती अशुभ ग्रहों में होती हैं, किन्तु
शनिदेव मनुष्यों के कर्मों के अनुसार ही फल प्रदान करते हैं। भगवान शनिदेव भाग्य
विधाता हैं। यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो जातक के समस्त कष्ट तथा
दु:ख दूर हो जाते हैं। श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं, जो जातक के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का निर्णय करते हैं। इस दिवस शनिदेव
का पूजा सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु अत्यंत उत्तम
होता हैं। इस दिवस शनिदेव का पूजा समस्त मनोकामनाएँ पूरी करता हैं। 'शनिश्चरी अमावस्या' पर शनिदेव का विधिवत पूजा कर
समस्त लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं। शनिदेव क्रूर नहीं, अपितु
कल्याणकारी हैं। इस दिवस विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष तथा कालसर्प दोषों से
मुक्ति प्राप्त की जा सकतीहैं। इसके अतिरिक्त शनि का पूजा तथा तैलाभिषेक कर शनि की
'साढ़ेसाती', 'ढैय्या' तथा 'महादशा' जनित संकट तथा
आपदाओं से भी मुक्ति प्राप्त की जा सकतीहैं।
शनिदेव को परमपिता परमात्मा के जगदाधार
स्वरूप 'कच्छप' का ग्रहावतार तथा 'कूर्मावतार' भी कहा गया हैं। वह महर्षि कश्यप के
पुत्र सूर्यदेव की संतान हैं। उनकी माता का नाम 'छाया'
हैं। इनके भाई 'मनु सावर्णि', 'यमराज', 'अश्विनीकुमार' तथा
बहन का नाम 'यमुना' तथा 'भद्रा' हैं। उनके गुरु स्वयं भगवान 'शिव' हैं तथा उनके मित्र हैं- 'काल भैरव', 'हनुमान', 'बुध'
तथा 'राहु'। समस्त
ग्रहों के मुख्य नियंत्रक हैं शनिदेव। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान
न्यायाधीश कहा जाता हैं। शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही समस्त ग्रह मनुष्य को शुभ तथा
अशुभ फल प्रदान करते हैं। न्यायाधीश होने के नाते शनिदेव किसी को भी अपनी झोली से
कुछ नहीं देते। वह तो केवल शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर ही मनुष्य को समय-समय पर
वैसा ही फल प्रदान करते हैं, जैसे उन्होंने कर्म किया होता हैं।
धन-वैभव, मान-समान तथा ज्ञान आदि की प्राप्ति देवों तथा
ऋषियों की अनुकंपा से होती हैं, जबकि आरोग्य लाभ, पुष्टि तथा वंश वृद्धि के लिए पितरों का अनुग्रह जरूरी हैं। शनि एक
न्यायप्रिय ग्रह हैं। शनिदेव अपने भक्तों को भय से मुक्ति दिलाते हैं।
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