वैशाख अमावस्या व्रत तथा धार्मिक कर्म 4 May 2019 | पौराणिक कथा | वैशाख अमावस्या मुहूर्त
वैशाख अमावस्या व्रत |
⧴ पंचांग में अमावस्या
की तिथि का विशेष महत्व हैं। चंद्रमा की 16वीं कला को अमावस्या कहा जाता हैं। इस
तिथि पर चंद्रमा की यह कला जल में प्रविष्ट हो जाती हैं। इस तिथि पर चंद्रमा का
औषधियों में वास रहता हैं। अमावस्या को माह की तीसवीं तिथि हैं, जिसे कृष्णपक्ष के समाप्ति के लिए जाना जाता हैं। इस तिथि पर चंद्रमा तथा
सूर्य का अंतर शून्य होता हैं।
⧴ वैशाख का महीना
हिन्दू वर्ष का दूसरा माह होता हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से
त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस वजह से वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व तथा भी बढ़
जाता हैं। दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती हैं। धर्म-कर्म,
स्नान-दान तथा पितरों के तर्पण के लिये अमावस्या का दिवस अत्यंत ही
शुभ माना जाता हैं। काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर
ज्योतिषीय उपाय किये जाते हैं।
🚩वैशाख अमावस्या व्रत तथा धार्मिक कर्म🚩
🙏 प्रत्येक अमावस्या पर पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए व्रत अवश्य रखना
चाहिए। वैशाख अमावस्या पर किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
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इस दिवस नदी, जलाशय या कुंड आदि में
स्नान करें तथा सूर्यदेव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें।
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पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं उपवास करें तथा
किसी गरीब जातक को दान-दक्षिणा दें।
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वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती हैं, इसलिए शनिदेव तिल, तेल तथा पुष्प आदि चढ़ाकर पूजा
करनी चाहिए।
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अमावस्या के दिवस पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए तथा
संध्या के समय दीपक जलाना चाहिए।
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निर्धन जातक या ब्राह्मण को भोजन तथा यथाशक्ति वस्त्र तथा
अन्न का दान करना चाहिए।
🌿🌿 पौराणिक कथा 🌿🌿
👍वैशाख अमावस्या
के महत्व से जुड़ी एक कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती हैं। प्राचीन काल में
धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वे अत्यंत ही धार्मिक तथा ऋषि-मुनियों
का आदर करने वाले जातक थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग
में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं हैं।
धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया तथा सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर
भ्रमण करने लगा। एक दिवस घूमते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण के पितर अत्यंत
कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई हैं।
क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं हैं। यदि तुम वापस जाकर
गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत
प्राप्त हो सकती हैं। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिवस विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण
ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण
ने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः सांसारिक जीवन को अपनाया तथा वैशाख अमावस्या पर विधि
विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।
🔔 वैशाख अमावस्या मुहूर्त 🔔
मई 4, 2019 को
04:05:31 से अमावस्या आरम्भ
मई 5, 2019 को
04:16:58 पर अमावस्या समाप्त
🎡धार्मिक
एवं ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या तिथि
अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। ऐसा माना जाता हैं कि अमावस्या के दिवस प्रेतात्माएं ज्यादा
सक्रिय रहती हैं इसीलिए चौदस तथा अमावस्या के दिवस बुरे कार्यों तथा नकारात्मक
विचारों से दूरी बनाए रखने में हमारी भलाई हैं तथा इन दिनों विशेषकर धार्मिक
कार्यों तथा मंत्र जाप, पूजा-पाठ आदि पर विशेष ध्यान देने की
आवश्यकता होती हैं।
🍒सनातन परंपरा
में अमावस्या तिथि पर साधना-आराधनाा बड़ा महत्व बताया गया हैं। इस तिथि पर कोई न
कोई पर्व विशेष रूप से मनाया जाता हैं। इसके स्वामी पितर हैं। मान्यता हैं कि
अमावस्या तिथि पर पितृगण सूर्यास्त तक घर के द्वार पर वायु के रूप में रहते हैं।
किसी भी जातक के लिए पितरों का आशीर्वाद अत्यंत जरूरी होता हैं। पितृदोष से मुक्ति
प्राप्त करने हेतु इस दिवस पितृ तर्पण, स्नान-दान आदि करना अत्यंत
ही पुण्य फलदायी माना जाता हैं।
🌷 धन-धान्य व सुख-संम्पदा के लिए 🌷
🔥 हर
अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग करें।
🍛 सामग्री :
१। काले तिल, २। जौं, ३। चावल, ४। गाय का घी, ५। चंदन पाउडर, ६।
गुगल, ७। गुड़, ८। देशी कपूर, गौ चंदन या कण्डा।
🔥 विधि: गौ
चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें, फिर
उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के
समस्त सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की १-१ आहुति दें।
🔥 आहुति मंत्र 🔥
🌷 १। ॐ कुल
देवताभ्यो नमः
🌷 २। ॐ
ग्राम देवताभ्यो नमः
🌷 ३। ॐ
ग्रह देवताभ्यो नमः
🌷 ४। ॐ
लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः
🌷 ५। ॐ
विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः
🚩🙏पितृगायत्री मन्त्र-🙏🚩🌷
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च
महायोगिभ्यः एव च।
नमः
स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
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