स्कंद षष्ठी व्रत | कन्द षष्ठी व्रतम | स्कन्द षष्ठी 2019
skanda shashti vrat |
भगवान कार्तिकेय को स्कन्द देव के नाम से
भी जाना जाता हैं जिनको हिन्दू देवताओं में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं। स्कन्द
देव भगवान शिव तथा माँ पार्वती के पुत्र तथा भगवान श्री गणेश के बड़े भाई हैं।
भगवान स्कन्द को मुरुगन, कार्तिकेय तथा सुब्रहमन्य के नाम से जाना जाता हैं।
प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी
तिथि को भगवान स्कन्द के लिए उपवास रखा जाता हैं तथा पूजा अर्चना की जाती हैं। स्कन्द
षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन उपवास रखना अत्यंत महत्वपूर्ण
माना जाता हैं। स्कन्द षष्ठी का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को
विशेष रूप से किया जाता हैं। 'तिथितत्त्व' ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को 'स्कन्द षष्ठी'
के लिए विशेष कहा हैं। साथ मे कुछ लोग आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की
षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी श्रद्धा-पूर्वक मानते हैं। स्कंदपुराण के नारद-नारायण
संवाद में संतान प्राप्ति तथा संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाले इस व्रत का विधान
बताया गया हैं। अतः यह व्रत 'संतान षष्ठी' नाम से भी जाना जाता हैं। एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को 'कुमार' अर्थात् “कार्तिकेय” भगवान की पूजा करनी
चाहिए। तमिल एवम तेलुगु हिन्दुओं मे स्कन्द एक प्रसिद्ध देवता हैं। अतः बहरत के दक्षिणी
राज्यो में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण हैं।
षष्ठी तिथि जिस दिन पंचमी तिथि के साथ
मिल जाती हैं उस दिन स्कन्द षष्ठी का व्रत करना शुभ होता हैं। इसलिए स्कन्द षष्ठी
का व्रत पंचमी तिथि के दिन भी रखा जाता हैं। अन्य क्षेत्रों की तुलना में दक्षिण
भारत में स्कन्द षष्ठी को बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता हैं। इस दिन लोग भगवान्
कार्तिकेय के लिए उपवास रखते हैं, उनकी पूजा करते हैं तथा
आशीर्वाद मांगते हैं। स्कन्द षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता हैं।
यहाँ हम स्कन्द षष्ठी 2019 की तिथियां दे रहे हैं। जिनकी मदद से आप जान पाएंगे की
किस महीने की स्कन्द षष्ठी कौन से दिन पड़ रही हैं।
स्कन्द देव भगवान शिव तथा देवी पार्वती
के पुत्र तथा भगवान गणेश के छोटे भाई हैं। भगवान स्कन्द को मुरुगन, कार्तिकेय तथा सुब्रहमन्य के नाम से भी जाना जाता हैं।
षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द को समर्पित हैं।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन श्रद्धालु लोग उपवास करते हैं। षष्ठी तिथि जिस दिन
पञ्चमी तिथि के साथ मिल जाती हैं उस दिन स्कन्द षष्ठी के व्रत को करने के लिए
प्राथमिकता दी गयी हैं। इसीलिए स्कन्द षष्ठी का व्रत पञ्चमी तिथि के दिन भी हो
सकता हैं।
स्कन्द षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से
भी जाना जाता हैं।
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के मध्य में जब
पञ्चमी तिथि समाप्त होती हैं या षष्ठी तिथि प्रारम्भ होती हैं तब यह दोनों तिथि
आपस में संयुक्त हो जाती हैं तथा इस दिन को स्कन्द षष्ठी व्रत के लिए चुना जाता हैं।
इस नियम का धरमसिन्धु तथा निर्णयसिन्धु में उल्लेख किया गया हैं। तिरुचेन्दुर में
प्रसिद्ध श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम सहित तमिल नाडु में कई मुरुगन मन्दिर
इसी नियम का अनुसरण करते हैं। अगर एक दिन पूर्व षष्ठी तिथि पञ्चमी तिथि के साथ
संयुक्त हो जाती हैं तो सूरसम्हाराम का दिन षष्ठी तिथि से एक दिन पहले देखा जाता हैं।
हालाँकि सभी षष्ठी तिथि भगवान मुरुगन को
समर्पित हैं किन्तु कार्तिक चन्द्र मास (ऐप्पासी या कार्तिकाई सौर माह) के दौरान
शुक्ल पक्ष की षष्ठी सबसे मुख्य होती हैं। श्रद्धालु इस दौरान छः दिन का उपवास
करते हैं जो सूरसम्हाराम तक चलता हैं। सूरसम्हाराम के बाद अगला दिन तिरु कल्याणम
के नाम से जाना जाता हैं।
सूरसम्हाराम के बाद आने वाली अगली स्कन्द
षष्ठी को सुब्रहमन्य षष्ठी के नाम से जाना जाता हैं जिसे कुक्के सुब्रहमन्य षष्ठी
भी कहते हैं तथा यह मार्गशीर्ष चन्द्र मास के दौरान पड़ती हैं।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष तथा कार्तिक मास
कृष्णपक्ष की षष्ठी का उल्लेख स्कन्द-षष्ठी के नाम से किया जाता हैं। पुराणों के
अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान
की पूजा का विशेष महत्व हैं, पंचमी से युक्त षष्ठी तिथि को
व्रत के श्रेष्ठ माना गया हैं व्रती को पंचमी से ही उपवास करना आरंभ करना चाहिए तथा
षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा का विधान हैं।
इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता
स्वयं परिलक्षित होती हैं। इस कारण यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का
रूप धारण करता हैं। स्कंद षष्ठी के संबंध में मान्यता हैं कि राजा शर्याति तथा
भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक जुड़ा हैं कहते हैं कि स्कंद षष्ठी की
उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताया गया हैं कि
स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता हैं। स्कन्द षष्ठी
पूजा की पौरांणिक परम्परा जुड़ी हैं, भगवान शिव के तेज से
उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा रक्षा की थी इनके छह मुख हैं तथा
उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा। पुराण व उपनिषद में इनकी महिमा का
उल्लेख मिलता हैं।
स्कन्दा षष्ठी तथा कंद षष्टी 2019 त्यौहार का इतिहास
स्कन्दा षष्ठी यह त्यौहार दक्षिण भारत में महत्वपूर्णतौर पर तमिल में
मनाया जाता हैं। अधिकांश अन्य हिंदू त्योहारों की तरह स्कंद षष्ठी भी बुराई पर
अच्छाई की जीत का प्रतिक हैं। स्कंद जिन्हें हम
भगवान मुरूगन, सुब्रमण्य तथा कार्तिकेय के रूप में
जानते हैं। स्कन्द पुराण में स्कन्द षष्टि का उपवास का महत्व मिलता हैं।
स्कन्दा षष्ठी त्यौहार इतिहास
स्कन्द पुराण सभी अठारह पुराणों की भांति
ही विशाल हैं जिसमे तारकासुर, सुरपद्मा, सिम्हामुखा ने देवताओं को हराया तथा उन्हें पृथ्वी पर लाकर खड़ा कर दिया।
उन राक्षसों ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था। उन्हें देवताओं तथा मनुष्यों को
प्रताड़ित करने उत्साह मिलता था, उन्होंने सब कुछ नष्ट कर
दिया, जो भी देवताओं का था, जो भी
उन्हें पूजता था, उन्होंने उन्हें भी नष्ट कर दिया। उन्ही
राक्षसों में से एक सुरपद्मा को वरदान प्राप्त था, कि उसे
भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता हैं। तथा उस समय देवी सती के अग्नि को प्राप्त हो
जाने के कारण भगवान शिव नाराज थे तथा घोर तप में लीन थे, यही
कारण था कि वे सभी राक्षसों को किसी का भय नहीं था।
राक्षसों के आतंक से परेशान होकर देवता
ब्रह्मा जी के पास गए तथा इस विपदा के लिये सहायता की मांग की। तब ब्रह्मा जी ने
काम देव से कहा, कि तुम्हे भगवान शिव को योग निंद्रा से जगाना
होगा। इस कार्य में अत्यंत संकट था, क्यूंकि भगवान शिव के
क्रोध से बच पाना मुश्किल था। किन्तु संकट अत्यंत बड़ा था, इसलिए
काम देव ने इस कार्य को किया। जिसमे वे सफल हुये, किन्तु
भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल जाने के कारण, उनकी क्रोधाग्नि
से काम देव को भस्म कर दिया।
उस समय भगवान शिव का अंश छह भागों में
बंट गया, जो कि गंगा नदी में गिरा। देवी गंगा ने उन छह अंशों
को जंगल में रखा तथा उनसे छह पुत्रों का जन्म हुआ, जिन्हें
कई वर्षों बाद देवी पार्वती ने एक कर भगवान मुरुगन को बनाया। पुराण के अनुसार
भगवान मुरुगन स्वामी के कई रूप हैं, जिनमे एक चेहरा दो हाथ,
एक चेहरा चार हाथ,छह चेहरे तथा बारह हाथ हैं।
दूसरी तरह राक्षसों का आतंक बढ़ता जा रहा
था। उन्होंने कई देवताओं को बंदी बना लिया था। उनके इसी आतंक के कारण भगवान ने
इनके संहार का निर्णय लिया। कई दिनों तक यह युद्ध चलता रहा। तथा अंतिम दिन भगवान
मुरुगन ने सुरपद्मा राक्षस का वध कर दिया, साथ ही संसार का तथा
देवताओं का उद्धार किया। तथा राक्षसों के आतंक से सभी को मुक्त कराया।
यह दिन था स्कंदा षष्टि जिसे बुराई पर
अच्छाई की जीत का प्रतिक माना जाता हैं तथा उत्साह से मनाया जाता हैं आज भी इसे
बड़ी श्रद्धा से दक्षिण भारत में मनाया जाता हैं।
भगवान मुरुगन को कई नामों से जाना जाता
हैं जैसे कार्तिकेय, मुरुगन स्वामी उन्ही में से एक हैं
स्कन्द। इसलिए इस दिवस को सक्न्दा षष्ठी के नाम से जाना जाता हैं।
स्कंदा षष्टि 2019 में कब मनाया जाता हैं?
यह त्यौहार तमिल एवम
तेलुगु लोगो द्वारा मनाया जाता हैं। यह प्रति मास मनाया जाता हैं जब शुक्ल
पक्ष की पंचमी तथा षष्ठी एक साथ आती हैं तब स्कन्दा षष्ठी या कंद षष्टी मनाई जाती
हैं।
जब पंचमी तिथी खत्म होकर षष्ठी तिथी शुरू
होती हैं, तब सूर्योदय तथा सूर्यास्त के मध्य यह स्कन्दा
तिथी की शुरुवात होती हैं। यह नियम धर्मसिंधु तथा निर्णयसिंधु से लिया गया हैं।
इसे तमिल एवम तेलुगु प्रान्त में भगवान मुरुगन के मंदिर में मनाया जाता हैं। इसमें
श्रद्धालु उपवास रखते हैं।
यह त्यौहार तमिल कैलेंडर के अनुसार
ऐप्पसी मास में मनाया जाता हैं, यह त्यौहार छः दिनों तक
मनाया जाता हैं इनमे कई नियमों का पालन किया जाता हैं।
स्कंद षष्ठी महत्व
स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान किया मयूरा पर आसीन देवसेनापति
कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत मे सबसे ज्यादा होती हैं, यहां पर यह मुरुगन नाम से विख्यात हैं। प्रतिष्ठा, विजय,
व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से
सम्पन्न होते हैं। स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय
ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशाल हैं।
स्कंद भगवान हिंदु धर्म के प्रमुख देवों
मे से एक हैं, स्कंद को कार्तिकेय तथा मुरुगन नामों से भी
पुकारा जाता हैं। दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान
कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं, कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा
मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों तथा विशेषकर तमिलनाडु में होती हैं। भगवान स्कंद
के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में ही स्थित हैं।
कैसे मनाते हैं स्कन्दा षष्ठी? स्कंद षष्ठी पूजन
स्कंद षष्ठी इस अवसर पर शंकर-पार्वती को
पूजा जाता हैं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती हैं।इसमें स्कंद देव
स्थापना करके पूजा की जाती हैं तथा अखंड दीपक जलाए जाते हैं। भक्तों द्वारा स्कंद
षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ किया करते हैं। भगवान को स्नान, पूजा, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। इस दिन भगवान को भोग लगाते हैं, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती
हैं। इस में साधक तंत्र साधना भी करते हैं, इस में मांस,
शराब, प्याज, लहसुन का
त्याग करना चाहिए तथा ब्रह्मचार्य का संयम रखना आवश्यक होता हैं।
1
इन दिनों मांसाहार का सेवन नही किया जाता
2
कई लोग प्याज, लहसन का प्रयोग नहीं करते
3
जो भी श्रद्धालु यह उपवास करते हैं वो मुरुगन का पाठ, कांता
षष्ठी कवसम एवम सुब्रमणियम भुजंगम का पाठ करते हैं
4
कई लोग सुबह से स्कन्दा मंदिर जाते हैं
5
कई लोग स्कन्दा उपवास के दिनों में एक वक्त का उपवास भी करते हैं जिनमे कई दोपहर
में भोजन करते हैं एवम कई रात्रि में
6
कई श्रद्धालु पुरे छः दिनों में फलाहार करते हैं
यह उपवास कई तरह से किया जाता हैं कई लोग
इसे शरीर के शुद्धिकरण के रूप में भी करते हैं जिससे शरीर के सभी टोक्सिन शरीर से
बाहर निकल जाते हैं। कई लोग नारियल पानी पीकर भी छः दिनों तक रहते हैं।
व्रत एक नियंत्रण के रूप में भी किया
जाता हैं जिसमे मनुष्य स्वयं को कई व्यसनों से दूर रखता हैं। झूठ बोलने, लड़ने- झगड़ने का परहेज रखता हैं तथा ध्यान करके अपने आपको मजबूत बनाते हैं।
अगर श्रद्दालु को किसी भी तरह की बीमारी
हैं तो उसे कभी उपवास नहीं करना चाहिए क्यूंकि ईश्वर कभी अपने बच्चो को कष्ट में
नहीं देखना चाहता।
स्कंद कथा
कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में
पुराणों में ज्ञात होता हैं कि जब दैत्यों का अत्याचार तथा आतंक फैल जाता हैं तथा
देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता हैं जिस कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा जी के
पास पहुंचते हैं तथा अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं ब्रह्मा उनके दुख का
जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव हैं परंतु
सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं।
इंद्र तथा अन्य देव भगवान शिव के पास
जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह
करते हैं। शुभ घड़ी तथा शुभ मुहूर्त में शिव जी तथा पार्वती का विवाह हो जाता हैं।
इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता हैं तथा कार्तिकेय तारकासुर का वध करके
देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं।
भगवान मुरुगन के प्रसिद्ध मन्दिर
निम्नलिखित छः आवास जिसे आरुपदै विदु के
नाम से जाना जाता हैं, इण्डिया के तमिल नाडु प्रदेश में
भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए अत्यंत ही मुख्य तीर्थस्थानों में से हैं।
पलनी मुरुगन मन्दिर (कोयंबटूर से १००
किमी पूर्वी-दक्षिण में स्थित)
स्वामीमलई मुरुगन मन्दिर (कुंभकोणम के
पास)
तिरुत्तनी मुरुगन मन्दिर (चेन्नई से ८४
किमी)
पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मन्दिर (मदुरई से
१० किमी उत्तर में स्थित)
श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम,
तिरुचेन्दुर (तूतुकुडी से ४० किमी दक्षिण में स्थित)
तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मन्दिर (मदुरई
से १० किमी दक्षिण में स्थित)
मरुदमलै मुरुगन मन्दिर (कोयंबतूर का
उपनगर) एक तथा प्रमुख तीर्थस्थान हैं।
इण्डिया के कर्णाटक
प्रदेश में मंगलौर शहर के पास कुक्के सुब्रमण्या मन्दिर भी अत्यंत प्रसिद्ध
तीर्थस्थान हैं जो भगवान मुरुगन को समर्पित हैं किन्तु यह भगवान मुरुगन के उन छः
निवास स्थान का हिस्सा नहीं हैं जो तमिल नाडु में स्थित हैं।
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