20 November 2019

उत्पन्ना एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Utpanna Ekadashi Vrat 2019

उत्पन्ना एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Utpanna Ekadashi Vrat 2019 #EkadashiVrat

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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना जाता हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस दिन स्वयं एकादशी माता जी का जन्म हुआ था। जिन्होंने मुरासूर नामक दैत्य का वध कर भगवान विष्णु जी की रक्षा की थी। अतः इसी एकादशी के दिन ही स्वयं भगवान विष्णु जी ने माता एकादशी को आशीर्वाद के रूप में एकादशी तिथि के दिन को पूजा का एक महान व्रत बताया था। अतः मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि “उत्पन्ना एकादशी” कहलाती है। प्रत्येक एकादशी का महत्व पुराणों में प्राप्त होता हैं तथा उनका फल एक समान एवम अति उत्तम होता हैं। इस एकादशी के दिन व्रत करने से जातक के अतीत तथा वर्तमान के समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस व्रत का प्रभाव जातक को प्रत्येक तीर्थों के समान प्राप्त होता है। जो जातक एकादशी के व्रत को नहीं रखते हैं तथा इस व्रत को लगातार रखने के बारें में सोच रहे हैं अर्थात जो हरी-भक्तजन प्रत्येक महीने आने वाले एकादशी के व्रत को प्रारम्भ करना चाहते है, वे मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से ही अपने एकादशी के व्रत का शुभ-आरंभ कर सकते है। क्योंकि सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में इसी एकादशी से एकादशी के दिव्य व्रत का प्रारंभ हुआ है। व्यतीपात योग, संक्रान्ति तथा चन्द्र-सूर्य ग्रहण में दान देने एवं कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसी के समान पुण्य इस एकादशी का व्रत करने से जातक को प्राप्त हो जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी में मुख्य रूप से भगवान् श्रीविष्णु तथा माता एकादशी की पूजा-अर्चना की जाती है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१.   एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२.   यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३.   द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४.   एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५.   व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६.   व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७.   जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८.   यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

इस वर्ष, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवम्बर, शुक्रवार के दिन 09 बजकर 01 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 23 नवम्बर, शनिवार की प्रातः 06 बजकर 23 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में, उत्पन्ना एकादशी का व्रत 22 नवम्बर, शुक्रवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 23 नवम्बर, शनिवार की दोपहर 01 बजकर 11 मिनिट से 03 बजकर 25 मिनिट तक का रहेगा।
हरि वासर समाप्त होने का समय - 11:44 AM

साथ ही, गौण उत्पन्ना एकादशी अर्थात वैष्णव उत्पन्ना एकादशी का व्रत 23 नवम्बर, शनिवार के दिन रखा जाएगा।
जिसका पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय 24 नवम्बर, रविवार की प्रातः 06:51 से 08:48
द्वादशी सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाएगी।

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