।।गोपाष्टमी कथा एवं पूजन विधि।।
gopashtami in Hindi |
हर साल कार्तिक
शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा
की जाती हैं। साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा भी की जाती हैं। इसी दिन से श्री
कृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी इसलिए ही यह पर्व मनाया जाता हैं।
गोपाष्टमी पूजन विधि
इस दिन बछड़े सहित
गाय का पूजन करने का विधान हैं। इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो
कर स्नान करते हैं, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ो को भी
स्नान कराया जाता हैं। गौ माता के अंगो में मेहँदी, रोली
हल्दी आदि के थापे लगाये जाते हैं, गायों को सजाया जाता हैं,
प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से
गौ माता की पूजा की जाती हैं और आरती उतरी जाती हैं।पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला
जाता हैं, गौ माता की परिक्रमा की जाती हैं, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता हैं। कहते हैं ऎसा करने
से प्रगत्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस दिन ग्वालों को उपहार देने की भी रस्म हैं।
अपने सामर्थ्य अनुसार ग्वालों को उपहार दें।
गोपाष्टमी के शुभ
अवसर पर गौशालाओं में भी गौ पूजन का आयोजन किया जाता हैं। गौमाता पूजन कार्यक्रम
में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा
विधि पूर्वक विध्दान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती हैं। बाद में सभी प्रसाद वितरण
किया जाता हैं। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व
को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं।
गोपाष्टमी कथा
गोपाष्टमी से जुडी
दो कथाएं प्रचलित हैं। प्रथम कथा के अनुसार इसी दिन से कन्हैया ने गौ चारण लीला
शुरू की थी इसलिए यह पर्व मनाया जाता हैं जबकि एक अन्य कथा भगवान श्री कृष्ण और
गोवर्धन पर्वत से जुडी हैं।
श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला
भगवान् ने जब छठे
वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले – “मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं”
मैय्या यशोदा बोली –
“अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें”
भगवान् ने कहा –
“अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय
चराएंगे”
मैय्या ने कहा –
“ठीक हैं बाबा से पूँछ लेना” मैय्या के इतना
कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूंछने पहुँच गए
बाबा ने कहा –
“लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चाराओं”
भगवान् ने कहा –
“बाबा अब में बछड़े नहीं जाएंगे, गाय ही
चराऊँगा ”
जब भगवान नहीं मने
तब बाबा बोले- “ठीक हैं लाल तुम पंडत जी को बुला लाओ- वह गौ
चारण का महुर्त देख कर बता देंगे”
बाबा की बात सुनकर
भगवान् झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले – “पंडित जी !
आपको बाबा ने बुलाया हैं, गौ चारण का महुर्त देखना हैं,
आप आज ही का महुर्त बता देना में आपको बहुत सारा माखन दुंगा”
पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गड़ना
करने लगे तब नन्द बाबा ने पूंछा “पंडित जी के बात हैं ?
आप बार-बार के गिन रहे हैं ? पंडित जी बोले “क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहुर्त निकल रहा हैं, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहुर्त नहीं हैं” पंडित
जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् को गौ चारण की स्वीकृति दे दी। भगवान जी समय
कोई कार्य करें वही शुभ-मुहुर्त बन जाता हैं। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया
और वह शुभ तिथि थी “कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी”
भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।
गोपाष्टमी से जुडी अन्य कथा
एक अन्य कथा के
अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन
पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अहंकार रहित श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा
क्षमायाचना की। सके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया। इसी दिन से भगवान
कृष्ण गायों की रक्षा करने के कारण गोविन्द नाम से पुकारे जाने लगे। और इसी दिन से
यह पर्व गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।
गाय से जुडी धार्मिक मान्यताएं
गौ या गाय हमारी
संस्कृति की प्राण हैं। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य हैं।
शास्त्रों में कहा
गया हैं- ‘मातर: सर्वभूतानां गाव:’ यानी
गाय समस्त प्राणियों की माता हैं। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य,
जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी
धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे
सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं।
हम गाय को ‘गोमाता’ कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता हैं कि
दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं।
सनातन धर्म के
ग्रंथों में कहा गया हैं- ‘सर्वे देवा: स्थिता देहे
सर्वदेवमयी हि गौ:।’ गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का
वास होने से यह सर्वदेवमयी हैं।
मान्यता हैं कि जो
मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता हैं, वह पापों से
मुक्त हो जाता हैं।
संसार के सबसे
प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में
दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता हैं।
गाय के गोबर में
लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के
अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज़ में प्रजापति
और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं।
मान्यता हैं कि गौ
के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता हैं।
यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे
देवताओं की प्रतिनिधि माना गया हैं।
गाय के अंगों में देवी-देवताओं का निवास
पद्म
पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान
शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में
अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में गंगा
जी, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में
यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व,
नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले
भाग में अप्सराएं स्थित हैं। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण,
ब्रह्माण्ड पुराण, महाभारत में भी गौ के
अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता हैं।
‼जय सियाराम‼
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