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विध्यार्थी श्लोक मन्त्र - काक चेष्टा भावार्थः सहित
विध्यार्थी श्लोक मन्त्र
काक चेष्टा , बको ध्यानं,
स्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पहारी, गृहत्यागी,
विद्यार्थी पंच लक्षणं ।।
भावार्थः :-
१. एकविध्यार्थी की कामयाब होने की कोशिशें उस कौवे की तरह होनी चाहिए, जिसने तिनका तिनका जोड़ के जलपात्र की सतह से पानी ऊपर लाया था।
२. विध्यार्थी का ध्यान बगुले की तरह होना चाहिए, जो अपनी एक टांग पर कई देर तक खड़े हुए अपने आहार उस मछली की प्रतीक्षा करता है और अंत में सफल होने तक अपना सारा ध्यान अपने लक्ष्य पर ही केंद्रित रखता है।
३. विध्यार्थी की निंद्रा उस स्वान (कुत्ते) की तरह होनी चाहिए की जो हल्की सी भी हलचल से तुरंत जाग जाता है, और सदैव पूरी तरह से चौकन्ना रहता है।
४. विध्यार्थी सदैव अपनी आवश्यकता के अनुसार ही कहना चाहिए, कदापि आवश्यकता से अधिक नहीं कहना चाहिए। अधिक आहार ग्रहण करने से मोटापा, बीमारी, आलास तथा बुद्धिहीनता अति है।
५. विध्यार्थी अपनी पढाई अपने घर के सुखद एवं आरामदायक जगह से दूर जा के करे, तो उसके सफल होने की संभावनाएं अधिक बढ़ जाती है। परंतु, अगर वह अपने घर पर ही रह के अभ्यास करना चाहे तो माता, पिता एवं परिजनों को उसे पूर्ण सहयोग देना चाहिए तथा विध्यार्थी की आसपास का माहोल पढ़ने के योग्य बनाने में अपना पूर्णरूप से योगदान प्रदान करे।
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