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29 March 2020

सनातन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गर्भदान संस्कार विवरण | details about Garbhadhan Sanskar as per Hindu astrology

सनातन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गर्भदान संस्कार विवरण

details about Garbhadhan Sanskar as per Hindu astrology


हिन्दू संस्कृति में संस्कारों को बहुत महत्व दिया गया है। गर्भदान या गर्भाधान सोलह में से पहला संस्कार है।

गर्भाधान के लिए शुभ मुहूर्त;

  • लड़कियों को केवल पीरियड्स के बाद 16 रात तक गर्भधारण करने में सक्षम है इसलिए, पीरियड्स / मासिक धर्म के दिन से 4 से पहले और 16 रातों से पहले गर्भाधान किया जाना चाहिए।
  • संध्या के दिन (६-14-१०-१२-१४-१६) को गर्भाधान पुरुष बच्चे के प्रदाता के रूप में कहा जाता है, और विषम दिनों में (१-३-५-–-९ -११-१३-१५) में कहा जाता है महिला बच्चे की प्रदाता हो। (दिनों को अवधि से गिना जाना चाहिए)
  • यदि लग्नेश बृहस्पति, मंगल, सूर्य जैसे पुरुष ग्रहों द्वारा पहलू है। फिर, पुरुष बच्चे की संभावनाएं हैं। इसके अलावा, Odd lagna, Odd Navmasha (1-3–7–9–911) को पुरुष और यहां तक ​​कि लग्न का भी प्रदाता माना जाता है, यहाँ तक कि नवमांश (2-4-16-10–12) प्रदाता बच्चे का बच्चा।
  • पीरियड्स के बाद पहली चार रातों से बचना चाहिए।
  • रिक्ता तीथ से बचना चाहिए। (4-9-14 tithis
  • जन्म नक्षत्र, मघा, अश्लेषा, भरणी, अश्वनी, रेवती नक्षत्र से बचना चाहिए।
  • सूर्य या चंद्र ग्रहण के दिनों से बचना चाहिए।
  • पारिजात और वैदृति योग से भी बचना चाहिए।
  • शरद, संध्या समय, दिवाली, दशहरा, नवरात्र आदि शुभ त्योहारों से बचना चाहिए।



तिथि - 1-2-3-5-7-10-11-12-13 सर्वश्रेष्ठ टिथिस हैं, रिक्ता तिथि (4-9-14) से बचना चाहिए। अमावस्या और पूर्णिमा को भी बचना चाहिए।


दिन - सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार।
नक्षत्र - रोहिणी, मृगशिरा, उत्र- फाल्गुनी, उतरा- शाद, उतराभद्र पद, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, पुष्य, स्वाति, अनुराधा, धनिष्ठा और शतभिषा।
लगन - गर्भाधान के दौरान, लाभ ग्रह लगन, केंद्र और त्रिकोना में होना चाहिए।
चंद्र बाला को दोनों मूल निवासी के लिए देखा जाना चाहिए।

गर्भाधान के बाद के दिनों और समय से बचा जाना चाहिए।


गर्भाधान के उपाय-


गर्भाधान से लेकर नौ या दस महीने तक, बार-बार सभी ग्रह हर महीने के लिए स्वामी कहे जाते हैं। यदि किसी और चीज के गर्भपात का संकेत है, तो महीने के अनुसार इन विशिष्ट ग्रह की पूजा की जानी चाहिए।
उदाहरण के लिए, यदि गर्भाधान से 5 महीने के बाद कोई समस्या है, तो, चंद्रमा की पूजा की जानी चाहिए। ऊपर की छवि देखें, चंद्रमा 5 वें महीने का स्वामी है।

आशा है कि यह मददगार होगा।

"माया" और "शाक्ति" एक हैं? Maya and Shakti is same ?

"माया" और "शाक्ति" एक हैं? "Maya" and "Shakti" is same ?


यह माया और शक्ति के बारे में मेरा जवाब है, इसे अंत तक पढ़ें और आपके सबसे महत्वपूर्ण संदेह में से एक मैं इस उत्तर में यहां स्पष्ट कर दूंगा। इसे बीच में मत छोड़ो अन्यथा तुम मुझे बुरा भला कहोगे: -
नहीं !!! माया और शक्ति एक समान नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे से संबंधित हैं और एक-दूसरे की पूजा करते हैं।
सबसे पहले

कौन है शक्ति: -

जय माँ पार्वती !!!!!
शक्ति माँ आदि शक्ति माँ पार्वती हैं, जो भगवान शिव की पत्नी हैं। देवी आदि शक्ति ब्रह्मांड की आत्मा और ऊर्जा है। क्योंकि वह ऊर्जा है, वह कई बार जन्म लेती है क्योंकि ऊर्जा उसे कई बार बदल देती है जैसे सती, पार्वती, महालसा, कन्याकुमारी, मीनाक्षी आदि। और प्रत्येक जन्म में वह भगवान शिव से विवाह करती है और फिर से पार्वती के रूप में कैलाश आती है।

कौन है माया: -

जय माँ लक्ष्मी !!!!!
माया माँ लक्ष्मी हैं, जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं। मैया ब्रह्मांड की इच्छा है जैसा कि हर बार जब आपने सुना है कि प्रकृति खुद को गुणा और विस्तार करना चाहती है। इसका कारण है मैया। मैया एक इच्छाशक्ति का निर्माण करती है और एक व्यक्ति को अपने काम करने का कारण देती है। माया भी जन्म लेती है और प्रत्येक जन्म में, वह भगवान विष्णु के अवतारों से विवाह करती है और फिर दोनों नारायण और लक्ष्मी के रूप में वैकुंठ लौटती हैं।

दोनों कैसे संबंधित हैं?
मां पार्वती और मां लक्ष्मी, दोनों एक-दूसरे से अत्यधिक संबंधित हैं। जैसे कि माया न होने पर शक्ति शिव से विवाह नहीं कर सकती। तब कोई भी रचना और कुछ भी नहीं होगा और अगर ऐसा करने के लिए शक्ति नहीं है तो लक्ष्मी नारायण से शादी नहीं कर सकती। फिर भी आपके पास एक मजबूत इच्छाशक्ति और ऐसा करने की इच्छा होने पर भी आप कुछ नहीं कर सकते। शक्ति पृथ्वी पर बुरी शक्तियों को खत्म करने के लिए कई जन्म लेती है और लक्ष्मी ऐसा करने के लिए माया को पैदा करती है। लक्ष्मी लोगों में धर्म की प्रबलता के लिए कई जन्म लेती हैं और पार्वती उन्हें ऐसा करने के लिए शक्ति प्रदान करती हैं।
इसलिए वे एक-दूसरे की पूजा करते हैं और एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त हैं। अगर वह पार्वती को रोते हुए देखती है और इसके विपरीत रोती है तो लक्ष्मी रोती है। हाँ !!! वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास भी भावनाएं हैं और उनकी वजह से हमारे पास भावनाएं हैं अन्यथा दुनिया नरक से भी बदतर होगी।

माया के बारे में क्या गलत सिद्धांत फैले हुए हैं जो मुझे बहुत परेशान करते हैं?

कुछ लोगों ने फैलाया कि "मैया सिर्फ भ्रम छोड़ती हैं और प्रभु भक्ति करती हैं" (भक्तों ने पहले भगवान की पत्नी का अनादर किया और फिर उसकी प्रशंसा की)।
मैया बुरी क्यों है, हमें इसे क्यों छोड़ना चाहिए? जो व्यक्ति इस बात को अपने आप को एक अपराधी बता रहा है, उसके लिए माया नहीं है। ठीक है, हम कल्पना करते हैं कि ब्रह्मांड अपने विस्तार को रोक देता है, लोग शादी करना बंद कर देते हैं, पशु और पौधे भी प्रजनन को रोक देते हैं। यह दुनिया के अंत के अलावा और कुछ नहीं है और फिर शक्ति यह काम करेगी और प्रत्येक और सब कुछ को नष्ट कर देगी। अगर मैया नहीं होतीं, तो कोई भी कुछ नहीं कर रहा होता और इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं होता। व्यक्ति से दूसरे तक ज्ञान का प्रवाह रुक जाएगा, नदियों का प्रवाह, बढ़ते पहाड़, विस्तृत ब्रह्मांड सब कुछ बंद हो जाएगा और विनाश शुरू हो जाएगा। इसलिए शक्ति (पार्वती) और मैया (लक्ष्मी) दोनों ही सबसे महत्वपूर्ण हैं।

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कृपया अपने विचार कमेंट सेक्शन में लिखें !!!!!

जय माँ मेरी अम्बा, जय महादेव !!!!!

05 January 2019

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कहाँ लगाएं केलेण्डर 2019 | Best Direction to Hang Calendar 2019 | Auspicious Placement New Calendar

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कहाँ लगाएं केलेण्डर 2019 | Best Direction to Hang Calendar 2019 | Auspicious Placement New Calendar

Auspicious Placement New Calendar
Best Direction for new Calendar
 भारतीय वास्तु शास्त्र में नए केलेण्डर लगाने की सही विधि का वर्णन प्राप्त होता हैं। सही दिशा में सही केलेण्डर लगाने से परिवार में प्रगति निरंतर होती रहती हैं। वास्तु के अनुसार पुराने केलेण्डर को वर्ष परिवर्तित होते ही तुरंत हटा देना चाहिए। नए वर्ष में शीघ्र ही नया केलेण्डर लगाना चाहिए। जिस से आपको नए वर्ष में पुराने वर्ष से भी अधिक शुभ अवसरों की प्राप्ति सदेव होती रहे।

समय के सूचक केलेण्डर नए वर्ष के साथ ही परिवर्तनशील होते हैं। तारीख, वर्ष, समय यह सब आगे बढ़ते रहते हैं तथा आपको भी निरंतर आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करते हैं। नया वर्ष लगते ही प्रत्येक घर में केलेण्डर बदल जाता हैं। केलेण्डर हमारे जीवन को परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। क्यो की, घर में लगे केलेण्डर के साथ साथ सम्पूर्ण प्रकृति भी सकारात्मक तथा नकारात्मक रूप से हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। यदि सपूर्ण वर्ष अच्छे योग, जीवन में शुभता तथा लाभ चाहते हैं, तो घर में केलेण्डर को वास्तु के अनुसार ही लगाना चाहिए। जो की इस प्रकार हैं-




📅 वास्तु के अनुसार नया केलेण्डर उत्तर, पश्चिम, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा की दीवार पर लगाना शुभ फल प्रदान करता हैं। आर्थिक सुधार के लिए केलेण्डर को उत्तर दिशा में, पारिवारिक कलह की समाप्ति के लिए पश्चिम दिशा, भाग्य वृद्धि के लिए उत्तर-पूर्व तथा स्वास्थ्य सुधार के लिए पूर्व दिशा में केलेण्डर को लगाना चाहिए।


📅 पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य हैं, जो स्वयं प्रतिनिधित्व, संचालन तथा नेतृत्व के देवता हैं। अतः पूर्व दिशा में लगा हुआ केलेण्डर, आपके जीवन में प्रगति लाता हैं। लाल अथवा गुलाबी रंग के कागज पर उगते हुए  सूर्य या अन्य भगवान की तस्वीरों वाला केलेण्डर पूर्व दिशा में लगाने से आपके जीवन में प्रगति तथा तरक्की के अवसरो को बढ़ावा प्राप्त होता हैं। सूर्यदेव कुशल संचालन के गुणों को विकसित करने वाले देवता हैं। साथ ही सूर्योदय की दिशा भी पूर्व ही होती हैं। अतः पूर्व दिशा में केलेण्डर रखना अत्यंत शुभ माना गया हैं। आप अपने आराध्य देव या कुलदेव, बच्चों की तस्वीर या कोई अन्य प्रेरणादायी तस्वीरों वाला केलेण्डर पूर्व दिशा में लगा सकते हैं। केलेण्डर पर गुलाबी तथा लाल रंगो का अधिक प्रयोग उत्तम माना गया हैं।

📅 उत्तर दिशा धन के देवता कुबेर की दिशा होती हैं। उत्तर दिशा का केलेण्डर सुख-समृद्धि तथा धन को बढ़ाने वाला माना गया हैं। इस दिशा में खेत, हरियाली, समुद्र, नदी, झरने आदि की तस्वीरों वाला केलेण्डर लगाना चाहिए। केलेण्डर पर सफ़ेद तथा हरे रंगो का अधिक प्रयोग उत्तम माना गया हैं। साथ ही विवाह की तस्वीरें तथा नव-युवको की तस्वीरों वाला केलेण्डर भी इस दिशा में लगाना ठीक रहेगा।

📅 पश्चिम दिशा बहाव की दिशा होती हैं। इस दिशा में केलेण्डर लगाने से समस्त कार्यों में शीघ्रता आती हैं। प्रत्येक प्रकार की कार्यक्षमता भी बढ़ती हैं। पश्चिम दिशा का जो कोना उत्तर की ओर हो अर्थात उत्तर-पश्चिम के कोने पर केलेण्डर लगाना अच्छा माना गया हैं। साथ ही ध्यान रहे, दक्षिण दिशा से जुडे़ हुए कोने में केलेण्डर नहीं लगाना चाहिए। पश्चिम दिशा में केलेण्डर लगाने से आपके रुके हुए कई कार्य शीघ्र ही पूर्ण हो जाते हैं। यदि आपके जीवन में कुछ नए, अच्छे या मनचाहे परिवर्तन नहीं हो रहे, तो आपको पश्चिम दिशा में केलेण्डर लगाना चाहिए। केलेण्डर पर पीले तथा लाल रंगो का अधिक प्रयोग उत्तम माना गया हैं। इस दिशा में माता लक्ष्मी, देवी गायत्री तथा गणेश जी की तसवीरों वाला केलेण्डर लगाना उचित रहता हैं।

📅 दक्षिण की दिशा ठहराव तथा नकारात्मक ऊर्जा की दिशा मानी गई हैं। इस दिशा में समय सूचक वस्तुओं, जैसे की धड़ी या केलेण्डर को रखना अत्यंत अशुभ माना जाता हैं। ऐसा करने से घर के प्रत्येक सदस्यों की तरक्की के अवसर थम से जाते हैं। इसका दुष्ट-प्रभाव घर के मुखिया के स्वास्थ्य पर भी दिखाई हैं। साथ ही ऐसा करना आपकी तथा आपके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा को भी हानी पहुँच सकता हैं।

📅 घर में केवल सफ़ेद, लाल, गुलाबी, हरे या पीले रंगो वाले पृष्ठों से बने हुये केलेण्डर का उपयोग करना चाहिए। ऐसे केलेण्डर सदेव शुभ माने जाते हैं। इनके अलावा अन्य रंगो के केलेण्डर वर्जित माने गए हैं। ऐसे वर्जित केलेण्डर को बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।

📅 कई बार ऐसा देखा गया हैं की पुराने केलेण्डर से या उसमे छपी किसी तस्वीर से लगाव हो जाने के कारण उसे दीवार से हटाया नहीं जाता हैं या उसे किसी अन्य कमरे में भी लगा दीया जाता हैं। अध्यात्म में समय पानी के प्रकार सदेव गतिमान रहता हैं। यह आगे बढ़ते हुए उस परिवर्तन का प्रतीक हैं जहाँ पीछे रह गई बातों का वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं रहता हैं। सामान्य भाषा-प्रयोग में इसे नवीनीकरण कहते हैं। जिस प्रकार शरीर की मृत त्वचा आपकी कांति को छीपा कर रखती हैं, उसी प्रकार यह पुरानी यादें हमारे विकास को सदेव बाधित करती रहती हैं। अतः वास्तु में पुराने केलेण्डर लगाए रखना अच्छा नहीं माना गया हैं। यह प्रगति के अवसरों को कम करता हैं। बीते वर्ष के साथ बीती बातों में ही आपको अटका सकता हैं, चाहे वे यादें सुखद हो या दुखद। अतः पुराने केलेण्डर को घर से हटा देना चाहिए तथा नए वर्ष में नया केलेण्डर लगाना चाहिए। जिससे नए वर्ष में पुराने वर्ष से भी अधिक शुभ अवसरों की प्राप्ति निरंतर होती रहे तथा बीते वर्ष से भी अधिक स्वर्णिम यादों की तस्वीरें नए वर्ष में हम बना पाएँ।

📅 वास्तुशास्त्र के अनुसार केलेण्डर को घर के मुख्य द्वार के सामने या प्रवेश द्वार पर नहीं लगाना चाहिए। इसका कारण हैं की, द्वार से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा आपके केलेण्डर को प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही तेज हवा चलने से केलेण्डर तेजी से हिलने के कारण अपने स्थान से नीचे गिर सकता हैं तथा उसके पृष्ठ स्वतः उलट-पलट हो सकते हैं। जो कि अशुभ माना जाता हैं। यदि आपके घर का मुख दक्षिण में है, तब तो इस बात का आपको विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा मुख्य द्वार पर केलेण्डर भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए।

📅 ऐसा देखा गया हैं की, आप लोग कई बार केलेण्डर पर छपी तस्वीरों पर ध्यान नहीं दिया करते हैं। यदि केलेण्डर में संतों, महापुरुषों तथा भगवान के श्रीचित्र अंकित हों, तो यह अधिक से अधिक पुण्यदायी तथा आनंददायी माना जाता हैं। कई बार केलेण्डर के पृष्ठों में जंगली या हिंसक जानवरों तथा दुःखी चेहरों की तस्वीरें दी गई होती हैं। इस प्रकार की तस्वीरें घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। ऐसे किसी केलेण्डर को भी घर में नहीं लगाना चाहिए।
        अंत में एक और बात, आज के आधुनिक युग में अपनी मन-पसंद से केलेण्डर बनवाने का भी प्रचलन प्रारम्भ हो गया हैं। ऐसी स्थिति में आपके घर के बच्चों की तस्वीर या विवाह की सुंदर तस्वीर तथा सुखमय बिताए हुए अन्य अच्छे पलो की तस्वीर का प्रयोग करना अच्छा सिद्ध होगा।
 

06 October 2018

बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाय?

बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाय?

बच्चों को आज्ञापालक और अनुशासित बनाने का काम महत्वपूर्ण होते हुए बड़ा पेचीदा भी है। हमारे देश में बहुत कम ही माँ -बाप, अभिभावक - गण इस सम्बन्ध में अपना कर्तव्य निभा पाते हैं। अधिकाँश तो जीवन भर बच्चों की अनुशासनहीनता, उच्छृंखलता के प्रति शिकायत ही करते रहते हैं। आधुनिक बाल - मनोविज्ञान और बाल शिक्षण पद्धति भी केवल पढ़ने - लिखने की बात रह गई है। पारिवारिक जीवन में इसका उपयोग नहीं के बराबर ही होता है।

बच्चों को अनुशासन सिखाने, अपनी आज्ञा मनवाने का प्रायः सभी लोग एक ही रास्ता अपनाते हैं, वह है, मार -पीट या डाँटना - डपटना। सजा देकर बच्चों में अच्छी आदतें पैदा करने की एक परिपाटी - सी पड़ गई है। लेकिन बच्चों को सुधारने के लिए सजा देना बहुत पुराना नियम पड़ गया है। आज के विकसित युग में तत्सम्बन्धी खोज अनुभवों ने इसे व्यर्थ और अव्यावहारिक सिद्ध कर दिया है। बाल-मनोविज्ञान के ज्ञाता जानते हैं कि सजा के द्वारा बच्चों को सुधारने से समस्या जटिल बनती है। बच्चों का व्यक्तित्व संकुचित, अविकसित बनता है।
मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि बच्चा किसी भी बात को स्थायी रूप से तभी सीख पाता है, जब वह उसके बारे में सोचता है और यह निर्णय करता है कि ऐसा करना अच्छा है। कोई बालक घर से बाहर आवारा घूमता है, माँ बार-बार चिल्लाती है, लेकिन वह नहीं मानता, न घर का काम करता, न पढ़ने में मन लगाता है। इस बात पर उसे पीटा जाय या अनुनय विनय की जाय तो वह नहीं मानेगा। भय के मारे कुछ समय वैसा न भी करेगा, लेकिन भय का कारण दूर हुआ कि वह फिर वैसा ही करने लगता है। लेकिन जब वह समझ लेता है कि आवारा घूमना, माँ का कहना न मानना बुरा है तो फिर ऐसा वह नहीं करेगा। घर के सामान को खराब करने से बालक भय के आधार पर सदा सर्वदा नहीं रोका जा सकता, लेकिन जब वह जान लेता है कि सामान खराब करने से अपना ही नुकसान होता है तो वह ऐसा नहीं करेगा।
बाल-मनोविज्ञान इसी बात पर बल देता है कि बालक को कोई काम सिखाने के लिए उसके साथ जोर-जबर्दस्ती से काम लेने की आवश्यकता नहीं है, अपितु उसकी उपयोगिता, महत्ता को समझने-बूझने की स्थिति पैदा की जाय, जब बालक किसी बात के बारे में सही-सही सोच समझ लेता है तो फिर उसे सीख भी जल्दी ही लेता है। जो बुरा होता है, उसे जल्दी ही छोड़ देता है। बच्चे को अनुशासित बनाने के लिए हमें इसी आधार को लेकर चलना होगा। यद्यपि यह मार्ग अधिक कठिन है, इसके लिए अभिभावकों में अधिक बुद्धि, विवेक, चातुर्य, सूक्ष्म-दृष्टि होने की आवश्यकता है, तभी वे ऐसा करने में सफल हो सकते हैं। इसमें समय भी लगता है, प्रयत्न भी कई ढंग से करने होते हैं तथापि स्थायी समाधान के लिए यह सर्वोपरि मार्ग है।
बहुत से माँ-बाप इसके लिए प्रतीक्षा न कर अधिक पचड़े में न पड़कर सीधे-सरल मार्ग से सजा देकर बच्चों को सुधारने का प्रयत्न करते हैं, लेकिन इससे बच्चे बहुत बार सुधरने के बजाय बिगड़ते ही अधिक हैं या उनका वह सुधार बहुत ही कम स्थायी होता है। दण्ड के भय का कारण दूर होते ही बालक फिर वैसा ही करने लगता हैं, अथवा वह विद्रोही बन जाता है। उसमें कई मानसिक विकृतियाँ पैदा हो जाती है और ये सभी उसके व्यक्तित्व को दूषित कर देते हैं।
अक्सर बच्चों की तरफ से शिकायत होती है कि वे समय पर नहीं उठते, न समय पर पढ़ते हैं। वे अस्त - व्यस्त जीवन बिताते हैं। उनके खेलने, खाने- पीने, पढ़ने आदि का कोई क्रम नहीं है, तो भी बार-बार बच्चों को डाँटना-डपटना ठीक नहीं। बच्चों के लिए दिन भर का एक कार्य-क्रम निश्चित कर देना आवश्यक है। बच्चा जब थोड़ा-बहुत समझने लगे तो उनकी एक मोटी-सी दिनचर्या बना दे और उसके अनुसार बालक को चलने का अभ्यास डालें। स्मरण रहे दिनचर्या के नियम बनाते समय उसका श्रेय-महत्व बालक को देते हुए उसकी राय माँगें। अपने लिए बनाये जाने वाले कार्यक्रम में बच्चा जब स्वयं रुचि लेता है, तो उसे भली प्रकार निभाता भी है। कदाचित बालक निश्चित कार्यक्रम में भूल करे तो उसे संकेत कर देना चाहिए, जिससे बालक अपनी भूल को ठीक कर सके। किसी विशेष अवसर पर या परिस्थितिवश आवश्यकता पड़ने पर नियमित कार्यक्रम में हेर फेर भी किया जा सकता है। लेकिन बच्चे को नियमित क्रम-बद्ध जीवन-यापन का अभ्यास शुरू से ही कराना चाहिए।
बालक कोई भी गलत काम करे, उसे देखकर टालना नहीं चाहिए। तुरन्त बालक की भूल सुधार कर देना आवश्यक है, अन्यथा बार बार एक तरह की गल्ती दुहराते रहने पर उसका अभ्यास पड़ जाता है और उसे ठीक करना कठिन हो जाता है। जैसे बालक पहली बार माचिस से खेलता हुआ पाया जाय तो उसे तुरन्त प्यार से यह समझा दिया जाय --”इससे आग लग जाती है और जल जाते हैं, इससे नहीं खेला करो, खिलौनों से खेलो।” और फिर बालक को खिलौने देकर उस ओर लगा देना चाहिए। जो माँ-बाप पहले तो प्यार-वश या लापरवाही वश एक लम्बे समय तक बालक की भूलों को टालते रहते हैं, उस पर ध्यान नहीं देते और आगे चलकर जब बच्चे बड़े -बड़े नुकसान करने लगते हैं तो उन्हें मना करते हैं, रोकते हैं, लेकिन उनका अभ्यास ऐसा पड़ जाता है कि अब वे कहना नहीं मानते । अतः अनुशासन की सीख प्रारम्भ से ही बालक को छोटी -छोटी भूल सुधार के माध्यम से देना आवश्यक है।
जिन वस्तुओं से बच्चों को खतरा हो अथवा कीमती वस्तुएँ जिन्हें बालक तोड़ता - फोड़ता हो, ऐसी हालत में अच्छा यह है कि बच्चे की निगाह चुका कर अथवा उसका ध्यान खिलौने आदि में अन्यत्र लगाकर उन वस्तुओं को एक तरफ रख दिया जाय, जहाँ बालक की निगाह उन पर न पड़े। सीधे रूप में मना कर करने पर बालक नहीं मानेगा।
बात - बात पर बच्चों को नकारात्मक आदेश भी नहीं देने चाहिएं। बालक कुछ करें और बाद में उससे ‘ना’ कहना पड़े, उसके पूर्व ही उसे रोक लेना चाहिए। क्योंकि किसी भी काम में जब बालक मनोयोगपूर्वक लग जाता है, तब उसे मना करने पर वह कई बार नहीं मानता। अतः अच्छा यही है कि उसे काम में लगने से पूर्व ही रोक लेना चाहिए। बार-बार मना करने पर बालक की एकाग्रता, मनोयोग नष्ट होता है। उसका जीवन निराशाजनक विचारों से भर जाता है। अतः आवश्यकता पड़ने पर ही बालक पर ‘ना’ का प्रयोग करना चाहिए। वह भी बड़े स्नेह के साथ।
बच्चों से झूठे वायदे कभी न करें। इससे वह अपने माँ -बाप की हर बात पर अविश्वास करने लगते हैं फिर उपयुक्त बात भी वह नहीं मानता। बच्चे के स8 जो वायदा किया जाय, उसे पूरा अवश्य करें। जिन्हें आप पूरे न कर सकें ऐसे वायदे कभी भी न करें।
क्रोध, झुँझलाहट, चिड़चिड़ाहट के द्वारा बच्चों को अनुशासन सिखाने का प्रयत्न न करें। इनसे बच्चों का सहज उत्साह नष्ट हो जाता है। वह मूक पशु की तरह बिना कोई ‘न चय’ किए के आदेश पालन करने लगता है। उसकी वैयक्तिक स्वतन्त्र प्रतिभा कुन्द हो जाती है। वह असमय में ही कृत्रिम अनुशासन पालन करने के प्रयत्न में अधिक धीर-गम्भीर सोच-विचार करने वाला बन जाता है, जो स्वस्थ दशा नहीं कही जा सकती।
बच्चों को अनुशासित रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता इस बात की है कि स्वयं माता-पिता भी अपने जीवन में अनुशासित रहें। नियमित व्यवस्थित जीवन बितायें। जो माँ -बाप स्वयं देर से उठें और बच्चों से कहें जल्दी उठो, स्वयं खेलने, घूमने-फिरने में समय बर्बाद करें और बच्चों से कहें- ‘पढ़ों समय खराब न करो’ उनकी आज्ञा बालक नहीं मानेंगे। अभिभावकों को चाहिए कि अपने स्वयं के आचरण, व्यवहार, जीवन पद्धति से बच्चों को अनुशासन की सीख दें।

21 May 2018

पुरुषोत्तम मास में क्या करें - क्या ना करें | अधिक मास में क्या करें

पुरुषोत्तम मास में क्या करें - क्या ना करें | अधिक मास में क्या करें

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जिस मास में सूर्यदेव की संक्रांति नहीं होती है, वह मास पुरुषोत्तम मास कहलाता है। पुरुषोत्तम मास को मलमास या अधिक मास के नाम से भी जाना जाता है। यह मास प्रत्येक 3 वर्ष में एक बार आता है। इन दिनों में कोई भी नया कार्य अथवा मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया है। किन्तु, सनातन धर्म में अधिकमास में धर्म-कर्म से जुड़े सभी कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होता हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में इस माह को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। मान्यता है कि इन दिनों में भागवत कथा करने से अक्षय पुण्य प्राप्त है। पुरुषोत्तम मास में केवल भगवान के लिए व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है तथा अक्षय पुण्य भी प्राप्त होता है। मलमास में दीपदान, वस्त्र दान एवं ग्रंथ दान तथा श्रीमद् भागवत कथा का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव के साथ ही आपको पुण्य-लाभ भी प्राप्त होता है।

   आज हम आपको बताएँगे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुरुषोत्तम मास में क्या करे तथा क्या ना करे? जिससे श्रीहरी विष्णु भगवान की विशेष कृपा आपको प्राप्त हो तथा आपकी सभी परेशानियां एवं संकट नष्ट हो जाए

पुरुषोत्तम मास में क्या करें

1 प्रथम कार्य- मंत्र जाप करे

   पुरुषोत्तम मास में ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्र या आपके गुरु द्वारा प्रदान किया गया गुरु-मंत्र का नियमित जाप करने का विधान है। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण तथा एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से भी आपकी सभी मनोकामनाए शीघ्र पूर्ण होती हैं। मलमास के समय, श्रीकृष्ण, श्रीमद् भागवत गीता, श्रीराम कथा का वाचन तथा विष्णु भगवान की भक्ति करने का अलग ही महत्व है

2 दूसरा कार्य- कथा का पाठ करे या सुने

   अधिक मास में कथा पढ़ना या सुनना दोनों का ही अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस मास में भूमि पर शयन करना श्रेष्ठ माना गया हैमल-मास के दिनो में एक ही समय भोजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ध्यान दे की जब आप कथा पढे तब अधिक से अधिक लोग आपकी कथा को सुनें।

3 तृतीय कार्य- आचरण पर ध्यान दे
   पुरुषोत्तम मास में भगवान विष्णु के पूजन के साथ कथा श्रवण का विशेष महत्व है। मल-मास में शुभ फल प्राप्त करने के लिए साधक को पुरषोत्तम मास में अपना आचरण पवित्र तथा सौम्य रखना आवश्यक है। इस मास में साधक को अपने व्यवहार में भी नरमी रखने का विशेष ध्यान देना चाहिए

4 चतुर्थ कार्य- दीप-दान करे

   पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र तथा श्रीमद् भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व बताया है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव के साथ ही आपको पुण्य-लाभ भी प्राप्त होता है।

5 पंचम कार्य- दान-पुण्य करें

   प्राचीन पुराणों अनुसार अधिक मास के दिनो में व्रत-उपवास, दान-पूण्य, यज्ञ-हवन तथा ध्यान करने से मनुष्य के कई जन्मो के पाप कर्मों का नाश हो जाता है साथ ही उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह में आपके द्वारा गरीब को दिया एक रुपया भी सौ गुना फल देता है।
    
१.            प्रतिपदा को चांदी के पात्र में घी रखकर किसी मंदिर के पुजारी को दान कर दें। इससे परिवार में शांति बनी रहती है।
२.            द्वितीया को कांसे के बर्तन में सोना दान करने से खुशहाली आती है।
३.            तृतीया को चना या चने की दाल का दान करने से व्यापार में मदद मिलती है।
४.            चतुर्थी को खारक का दान लाभदायी होता है
५.            पंचमी को गुण तथा तुवर की दाल का दान करने से रिश्तों में मिठास बनी रहती है।

पुरुषोत्तम मास में क्या ना करें

1  पुरुषोत्तम मास की अवधि में सभी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित रहते जिन दैविक कार्यो को सांसारिक फल की प्राप्ति के लिए प्रारंभ किया जाए, वे सभी कार्य मल-मास में वर्जित होते हैं।
2  मल-मास में तिलक, विवाह, मुंडन, गृह आरंभ, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत उपनयन उपनयन संस्कार, निजी उपयोग के लिए भूमि, वाहन, आभूषण आदि खरीदना, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा ग्रहण करना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ, वृहद अनुष्ठान का शुभारंभ, अष्टाकादि श्राद्ध, कुआं, बोरिंग, तालाब का खनन करना आदि का त्याग करना चाहिए।

ध्यान दे-
1  अधिक मास में विशेष कर रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज-जलवा आदि, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं।

2  मल-मास में यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना, मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का दोष नहीं है।





अधिक मास में करे यह चमत्कारी उपाय जिससे परिवार में बनी रहेगी खुशहाली