हम दीप प्रज्वलन क्यों करते हैं? दीपक जलाते समय मंत्र | Sandhya Deep Prajwalan Mantra | Diya Kaise Jalaye
deep prajwalan mantra |
सनातन धर्म में
दीप उस निराकार, अनादि,
निर्गुण, निर्विशेष तथा अनन्त परब्रह्म परमेश्वर का प्रतीक
हैं, जो की समस्त सृष्टि
के आधार हैं। ब्रह्मपुराण में कहाँ गया हैं की, पूर्ववर्ती
प्रलयकाल में केवल ज्योति-पूँजय अर्थात केवल दीपक ही प्रकाशित होते थे। जिसकी
प्रभा करोड़ों सूर्य के समान ही थी। वह ज्योतिर्यमंडल नित्य हैं तथा वही असंख्य
विश्व का कारण हैं। वह स्वेछामय, सर्वव्यापी परमात्मा का परम उज्ज्वल तेज़ हैं। उसी तेज़ के भीतर मनोहर रूप में
तीनों ही लोक विद्यमान रहते हैं।
यह भी ध्यान देने बात
है की, दिये का मुख पूर्व
या उत्तर पूर्व की दिशा में रहे, दक्षिण की दिशा में केवल यम
का दीपक रखा जाता हैं। साथ में दीपक की बाती 1, 3 या 5 जैसी विषम
संख्या में होनी चाहिए। संध्या-दीपक वंदना के लिए मिट्टी का दिया उपर्युक्त हैं तथा
आप घी, सरसों का तेल या तिल के तेल का प्रयोग कर सकते है।
दीप प्रज्वलन क्यों किया जाता हैं?
सामान्यतः प्रत्येक
भारतीयों के घरों में प्रत्येक संध्याकाल दीप का प्रज्वलन ईश्वर की पूजा से पहले
किया जाता हैं। कुछ घरों में केवल संध्याकाल को तथा कुछ में दिन में प्रातःकाल तथा
संध्याकाल दो बार दीपक प्रज्वलित किया जाता हैं। कई स्थानों पर निरंतर दीपक जलता
रहता हैं, जिसे अखंड दीप
नाम से जाना जाता हैं।
दीपक शिक्षा को
प्रदर्शित करता हैं, घोर अंधकार
में प्रकाश को प्रदर्शित करता हैं। ईश्वर चैतन्य हैं, जो कि प्रत्येक चेतना के गुरु हैं,
अतः दीप की पूजा ईश्वर के समान ही की
जाती हैं।
जिस प्रकार से
शिक्षा जड़ता को नष्ट करती हैं, वैसे ही, दीपक अँधेरे को नष्ट करता हैं। शिक्षा आंतरिक
शक्ति हैं जिससे बाहरी विश्व की प्रत्येक उपलब्धियों को पाया जा सकता हैं। यही
कारण हैं कि हम दीपक का प्रज्वलन करते हैं तथा नमन करते हैं जो कि शिक्षा का सर्वोत्तम
स्तर हैं।
बल्ब तथा ट्यूब
लाइट भी प्रकाश के स्रोत हैं, किन्तु सांस्कृतिक घी या तेल का दीपक धार्मिक मान्यताएं भी अपने में
समाहित किये रहता हैं। तेल या घी का दीपक नकारात्मक सोच, वासना
तथा घमंड को प्रदर्शित करता हैं जैसे-जैसे ये जलता हैं वैसे-वैसे हमारी वासना,
घमंड आदि धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं।
दीपक की लौ सदैव ऊपर की ओर जलती हैं, जैसे हमारी शिक्षा हमको ऊपर की ओर ले जाती हैं।
संध्या दीप दर्शन श्लोक
शुभम करोति
कल्याणम अरोग्यम धनसंपदा।
शत्रुबुद्धि
विनाशायः दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
दीपज्योतिः
परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो
हरहु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
भावार्थ- मैं उस
दिव्य दीपज्योति की उपासना करता हूँ जो शुभ, कल्याण की प्रदायक हैं, जो आरोग्यता, धन सम्पदा प्रदान करने वाली हैं तथा मेरे शत्रुओं का
विनाश करती हैं। दीप ज्योति साक्षात् परब्रह्म हैं तथा दीप ज्योति ही साक्षात्
जनादर्न हैं, मैं उस दीपज्योति
की उपासना करता हूँ तथा दीपज्योति से प्रार्थना करता हूँ की वह मेरे समस्त पाप हर
ले।
“शत्रुबुद्धिविनाशाय” यह पंक्ति दो प्रकार से व्याख्यायित होती
हैं -
1- इस दीपक से प्रकाश अज्ञानता के अंधेरे को नष्ट करता
हैं जो ज्ञान का शत्रु हैं।
2- यह प्रकाश शत्रुओं की अल्पबुद्धि (बुद्धि) को नष्ट
कर सकता हैं।
इसी प्रकार मनुष्य
के मन को विकारों से दूर ले जाने हेतु दीप प्रज्वलित किया जाता हैं। प्रत्येक सनातन
धर्मी प्रभु से यही कामना करता हैं की, जिस प्रकार दीप की ज्योति हमेशा ऊपर की ओर उठी रहती हैं, उसी प्रकार मानव की वृत्ति भी सदा ऊपर ही
उठे, यही दीप प्रज्वलन का अर्थ
हैं। दीपक जलाना शुभ हैं, तथा
हमें अच्छे स्वास्थ्य तथा समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करता हैं। जो शुभ करता हैं,
कल्याण करता हैं, आरोग्य रखता हैं, धन संपदा करता हैं तथा शत्रु बुद्धि का विनाश करता
हैं, ऐसे दीप यानी दीपक के प्रकाश
को मैं नमन करता हूं। समस्त कल्याण की कमाना रखने वाले प्रत्येक मनुष्य को दीप
जलाते समय यह मंत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। निश्चित ही आपका कल्याण होगा।
ॐ
असतो मा सद्गमय,
ॐ
तमसो मा ज्योतिर्गमय,
ॐ
मृत्योर्मा अमृतं गमय॥
भावार्थ- हे ओमकार
रुपी भगवान! हमें असत्य से बचा कर सत्य का मार्ग दिखाओ। हमारे मन के भीतर के
अन्धकार तथा अज्ञानता को नष्ट कर ज्योति तथा सत्यता की ओर अग्रसर करो। हमें मृत्यु
से अमरता की ओर अग्रसर करो।
दीप प्रज्वलन के दौरान यह मंत्र भी पढे जाते हैं:-
वक्रतुंड महाकाय
सूर्य कोटि
समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु
मे देव
सर्व कार्येषु
सर्वदा।।
दीपज्योतिः परब्रह्म
दीपः सर्वतमोऽपहः
दीपेन साध्यते
सर्वं संध्यादीपो नमोस्तु ते।।
।।ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय:।।
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