परिवर्तिनी एकादशी कब है 2018 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Parivartini Ekadashi 2018 #EkadashiVrat
परिवर्तिनी एकादशी 2018 Parivartini Ekadashi 2018 | Parivartini
Ekadashi Vrat Katha परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा Parivartini
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Ekadashi Katha परिवर्तिनी एकादशी व्रत पूजा Parivartini
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Ekadashi Vrat Vidhi | Parivartini Ekadashi
Shlok Vinod Pandey
वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। भगवानजी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती है, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, एवं रात्री जागरण करते है। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसमे भगवान विष्णु जी चातुर्मास की निद्रा में सोते हुए अपनी करवट बदलते हैं। अतः इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन आती है तथा यह एकादशी, पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जयझूलनी, डोल ग्यारस, पद्मा एकादशी तथा जयंती एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। पापियों के पाप का नाश करने के लिए परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से बड़ा कोई उपाय नहीं है। संसार से मोक्ष प्रदान करने वाली यह एक सर्वोत्तम एकादशी मानी गई है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान के वामन स्वरूप की पूजा करता है, उस मनुष्य को वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जैसे की आपको ज्ञात होगा की देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिये योगनिद्रा में शयन करते हैं। अतः इन चार महीनों को चतुर्मास कहा जाता है तथा धार्मिक कार्यों, ध्यान, भक्ति आदि के लिये यह समय अति उत्तम माना जाता है। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद तथा आश्विन यह चार मास धार्मिक रूप से चतुर्मास या चौमासा के नाम से जाने जाते हैं तथा ऋतुओं में यह काल वर्षा ऋतु का होता है। भगवान विष्णु चार मास की अवधि में देवशयनी एकादशी से शयन करते रहते हैं तथा परिवर्तिनी एकादशी पर अपनी करवट बदलते हैं तथा देव उठनी एकादशी के दिन ही जागृत होते हैं ।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण
एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को
पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत
पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के
पश्चात पारण किया जाता है।
ध्यान
रहे,
१.
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना
अति आवश्यक है।
२.
यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो
एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही होता है।
३.
द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता
है।
४.
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५.
व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।
६.
व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने
से बचना चाहिए।
७.
जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पहले
हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की
पहली एक चौथाई अवधि होती है।
८.
यदि,
कुछ कारणों की वजह से जातक प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।
इस
वर्ष 2018 में, भाद्रपद
मास की शुक्ल एकादशी तिथि 19 सितम्बर, रात्री 10 बजकर 38 मिनिट से
प्रारम्भ हो कर, 21 सितम्बर मध्य-रात्री 01 बजकर 17 मिनिट तक
व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2018
में परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 20 सितम्बर, गुरुवार के दिन किया जाएगा।
इस
वर्ष 2018 में, परिवर्तिनी एकादशी
व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 21 सितम्बर, शुक्रवार के दिन, प्रातः 7 बजकर 54 से 8 बजकर 36
मिनिट तक का रहेगा।
Shlok Vinod Pandey
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