गणेश चतुर्थी 2018 | पूजा विधि | गणेश चतुर्थी व्रत व पूजन
विधि | Ganesh Pujan Samagri In Hindi | गणेश पूजन सामग्री | गणपति | पूजा गणेश पूजन विधि | Ganesh Pujan
Vidhi In Hindi
श्रीगणेश चतुर्थी का पावन पर्व सनातन हिन्दू धर्म का एक
प्रमुख त्योहार है। गणेश चतुर्थी भारत के विभिन्न क्षेत्रो में श्रद्धा एवं पूर्ण
विश्वास के साथ मनाई जाती है किन्तु गुजरात तथा महाराष्ट्र में यह पर्व अत्यंत
धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार यह
मान्यता है कि भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी अर्थात गणेश चतुर्थी के दिन
भगवान् श्रीगणेश जी की उत्पत्ति हुई थी अतः भगवानजी को यह तिथि अधिक प्रिय मानी गई
है। गणेश चतुर्थी का उत्सव १० दिन तक मनाया जाता हैं तथा अनन्त चतुर्दशी के दिन यह
त्योहार गणेश विसर्जन करने से समाप्त किया जाता है। श्रीगणेश चतुर्थी को पत्थर चौथ
तथा कलंक चौथ के नाम भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश का जन्म
मध्याह्न काल के दौरान हुआ था अतः दोपहर का समय गणेश पूजा के लिये अधिक उपयुक्त
माना जाता है। श्रीगणेश पूजा अपने आपमें अत्यंत ही महत्वपूर्ण व कल्याणकारी मानी
गई है। अतः गणेश महोत्सव के दिनो में पूर्ण श्रद्धा से गणपतिजी की पूजा-अर्चना
करने पर भगवानजी की विशेष कृपा-दृष्टि प्राप्त होती हैं। चाहे वह किसी कार्य की
सफलता हो अन्यथा किसी मानोकामनापूर्ति, जैसे की, स्त्री,
पुत्र-पौत्र, धन, समृद्धि
आदि या आकस्मित संकट मे पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु श्रीगणेश पूजा अत्यंत
महत्वपूर्ण मानी गई है। साथ ही यह भी ध्यान देना चाहिए की, शास्त्रों
के अनुसार गणेश उत्सव पर एक ऐसा, निश्चित समय भी आता है की
जब चन्द्र-दर्शन नहीं करना चाहिए, ऐसा करना अशुभ होता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन चन्द्र के दर्शन करने से मिथ्या दोष अथवा मिथ्या कलंक
प्राप्त होता है, जिसके कारण व्यक्ति को चोरी का मिथ्या आरोप
सहना पड़ सकता है।
आज हम आपको बताएँगे गणेश
पूजन में ध्यान देने वाली बातें, पूजा की सामग्री, पूजन विधि तथा गणेश जी की पौराणिक कथा।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य को सुचारू
रूप निर्विघ्न रूप से संपन्न करने हेतु सर्वप्रथम श्रीगणेश पूजन अति आवशयक माना
गया हैं। अतः सनातन धर्म में गणेश पूजन का सर्वाधिक महत्त्व माना गया है। किसी
कार्य का प्रारम्भ सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा से ही होता है। भगवान गणेश पूजा को विधि
पूर्वक तथा पूर्ण पूजन सामग्री के साथ करने से भगवान जी समस्त विध्न नष्ट करके
जीवन में मंगल ही मंगल करते है तथा प्रसन्न होकर समस्त कार्य निर्विध्न रूप से
पूर्ण कर देते हैं साथ ही श्रीगणेश महाराज की अपार कृपा-दृष्टि तथा मनोवांछित फल
की प्राप्ति अवश्य ही होती है।। हमारे द्वारा बताई गई इस आसान विधि से आप गणेश
पूजा स्वयं गृह पर ही कर सके हैं।
श्रीगणेश पूजन में ध्यान देने वाली
बातें-
1। गणेश पूजन में
गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। मतान्तर से गणेश जी की तीन परिक्रमा भी
की जाती है।
2। मान्यता है की इस
दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए अन्यथा कलंक का भागी होना पड़ता है।
3। यह भी ध्यान रहे
कि तुलसी पत्र अर्थात तुलसी के पत्ते का प्रयोग श्रीगणेश पूजा में ना हों। तुलसी
को छोड़कर अन्य सभी पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय माने गए हैं।
4। श्रीगणेश का
ध्यान करते हुए शुद्ध व सात्विक चित्त से प्रसन्न हो कर पूजा करनी चाहिए।
5। शास्त्रानुसार
श्रीगणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राणप्रतिष्ठित कर पूजन-अर्चन के पश्चात
विसर्जित कर देने का विधान है।
6। श्रीगणेश भगवान
को मोदक सर्वाधिक प्रिय होते हैं अतः उन्हें मोदक का भोग अवश्य लगाएं।
7। गणेश जी का पूजन सांयकाल
के समय करना योग्य माना जाता है।
8। गणेश चतुर्थी की
कथा, गणेश चालीसा व आरती पढ़ने के पश्चात अपनी दृष्टि को नीचे रखते हुए चन्द्रमा
को अर्घ्य देना चाहिए।
श्रीगणेश पूजन सामग्री
चौकी
पर बिछाने के लिए लाल कपडा
गणेश
जी को बिठाने के लिए चौकी
रोली
, मोली , लाल चन्दन
लाल
फूल तथा माला
गुड़
तथा खड़ा धना
मोदक
या लडडू
चांदी
का वर्क
धूप
, अगरबत्ती
घी
का दीपक
जल
कलश
दूर्वा
– दूब
पंचामृत
गंगाजल
पंचमेवा
इलायची
नारियल
हरे
मुंग
सुपारी
जनेऊ
कपूर
धानी
लौंग
फल
कपूर
इत्र
यह पूजा सामग्री किसी भी किराने की दुकान या पूजन सामग्री की दुकान पर आसानी से प्राप्त हो जाती हैं
श्रीगणेश
चतुर्थी पूजन विधि
पूजा की तैयारी
पूजन के दिन व्रती को चाहिए कि प्रातः जल्दी उठकर, स्नान आदि
नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर, शुद्ध
आसन पर बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर, पुष्प,
धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली, लाल-चंदन, मोदक आदि को एकत्रित कर ले। इसके पश्चात चौकी पर लाल कपडा बिछाए तथा एक
कोरे कलश में जल भरकर उसके मुंह पर कोरा वस्त्र बांधे तथा कलश का धूप ,दीप, रोली/कुंकु, अक्षत,
पुष्प आदि से पूजन करने के पश्चात कलश के ऊपर गणेश जी की सोने,
तांबे या मिट्टी से बनी की प्रतिमा को विराजमान करें।
गणेश पूजा का सकंल्प
गणपति पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व सकंल्प लें। संकल्प करने के
लिए दोनों हाथों में जल,
फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष,
उस वार, तिथि उस जगह तथा अपने नाम को लेकर
अपनी मनोकामना बोलें। अब हाथों में लिए गए जल को भूमि पर छोड़ दें।
गणेश पूजा
अपने बाएँ हाथ की हथेली में जल लें एवं दाहिने हाथ की
अनामिका उँगली व आसपास की उँगलियों से निम्न मंत्र बोलते हुए स्वयं के ऊपर एवं
पूजन सामग्रियों पर जल छिड़कें-
शुद्धि मंत्र
ॐ अपवित्रः
पवित्रो वा सर्वावस्था गतोऽपि वा ।
या स्मरेत
पुण्डरीकाक्षं स बाह्रामायंतर: शुचि: ॥
(हरिभक्तिविलस
३।३७, गरुड़ पुराण)
अब गणेशजी को जल, कच्चे दूध तथा पंचामृत से स्नान
कराये। यदि, मिटटी की मूर्ति हो तो सुपारी को स्नान करा दे। गणेशजी
को नवीन वस्त्र तथा आभूषण अर्पित करे। अब गणेश जी का ध्यान तथा हाथ मैं अक्षत
पुष्प धारण कर, अक्षत तथा पुष्प गणेश जी को समर्पित कर दे। श्रद्धा
भक्ति के साथ घी का दीपक प्रज्वल्लित करे। दीपक, रोली, कुंकु, अक्षत, इत्र, सिंदूर, पुष्प तथा माला
अर्पित कर गणेश जी का पूजन करें। भगवान को धुप तथा दीप दिखाए। गणेश जी को शुद्ध
स्थान से चुनी हुई दूर्वा अर्पित करे। श्रीगणेश भगवान को मोदक एवं लड्डू अति प्रिय
होते हैं अतः उन्हें 21 मोदक अन्यथा देशी घी से बने लडडुओं का भोग लगाएं। इनमें से
5 लड्डू गणेश जी को अर्पित करके शेष लड्डू ब्राह्मणों को दान कर दें। इसके पश्चात श्रीगणेश
के दिव्य मंत्र ॐ श्री गं गणपतये नम: का
108 बार जप करे, जिससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।
श्रीगणेश सहित प्रभु शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि से करना
चाहिए। गृह पर बनी मिठाइयाँ, गुड़ एवं ऋतुफल जैसे- केला,
सेब, अनार या चीकू का नैवेद्य अर्पित करे। अंत मैं गणेश जी की आरती गाएँ। आरती के पश्चात १ परिक्रमा करे तथा भगवान
को पुष्प अर्पित कर दे।
पूजा के पश्चात यह भी ध्यान दे की अज्ञानतावश पूजा में कुछ
कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान् गणेश के सामने हाथ जोड़कर यह
मंत्र का जप करते हुए अपराध क्षमा प्रार्थना करें-
क्षमा
प्रार्थना मन्त्र
मन्त्रहीनं
क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं।
यत
पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव।
आवाहनं
न जानामि, न जानामि विसर्जनं।
पूजा
चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं।
पूजा सम्पन्न
होने पर सभी देवी-देवताओं का स्मरण करें उन की जय-जयकार करें। सभी अतिथि व भक्तों
का यथा व्यवहार स्वागत व सत्कार करें। इस दिन गृह आए ब्राह्मण को संतुष्ट कर यथा शक्ति
दक्षिणा दें,
उन्हें प्रणाम करे तथा दीर्घायु, आरोग्यता,
सुख, समृद्धि, धन-ऐश्वर्य
आदि को बढ़ाने के योग्य बनाने वाला आशीर्वाद प्राप्त करे।
श्रीगणेश जी की पौराणिक कथा
पौराणिक मतों के अनुसार भगवान श्रीगणेश जी की
प्रचलित कथा इस प्रकार है-
एक दिन पार्वती
माता स्नान करने के लिए गयी किन्तु वहां पर कोई भी रक्षक नहीं था। अतः उन्होंने
चंदन तथा स्वयं के शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण फूंक दिये तथा
उसका नाम गणेश रखा। माता ने गणेश को गृहरक्षा के लिए,
द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया। माता पार्वती नें गणेश से आदेश दिया की उनकी
अनुमति के बिना किसी को भी गृह के अंदर ना आने दिया जाये।
उसी समय गृह
में प्रवेश के लिए आने वाले शिवजी ने देखा की द्वार पर एक बालक खड़ा है। जब वे
अन्दर जाने लगे तो उस बालक नें शिवजी को रोक लिया तथा नहीं जाने दिया। यह देख
शिवजी क्रोधित हुए तथा अपने सवारी बैल नंदी को उस बालक से युद्ध करने को कहाँ। किन्तु
युद्ध में उस छोटे बालक नें नंदी को हरा दिया। यह देख कर भगवान शिव जी नें रुष्ट
होकर युद्ध में उस बाल गणेश के मस्तक को काट दिया।
जब माता पार्वती
जी को इस बातका ज्ञात हुआ तो वह अत्यंत दुःख के कारण विलाप करने लगीं तथा रोने
लगी। शिवजी को जब ज्ञात हुआ की वह उनका स्वयं का पुत्र था तो उन्हें भी अपनी भूल
का आभास हुआ। शिवजी नें पार्वतीजी को बहुत मनाने की कोशिश की किन्तु वे नहीं मानी तथा
गणेश का नाम लेते लेते तथा दुखित होने लगी।
अंत में माता पार्वती
नें क्रोधित हो कर शिवजी को अपनी शक्ति से गणेश को दोबारा जीवित करने के लिए कहा।
शिवजी बोले –
हे पार्वती में गणेश को जीवित तो कर सकता हूँ पर किसी भी अन्य जीवित
प्राणी के सीर को जोड़ने पर ही। माता पार्वती रोते-रोते बोल उठी – मुझे अपना पुत्र किसी भी हाल में जीवित चाहिए।
यह सुनते ही
शिवजी नें माता को प्रसन्न करने हेतु, नंदी को आदेश दिया की जाओ नंदी
इस संसार में जिस किसी भी जीवित प्राणी का शीष तुमको सर्वप्रथम प्राप्त हो उसे काट
कर ले आना। जब नंदी शीश खोज रहा था तो सबसे पहले उससे एक गज अर्थात हाथी दिखा तो
वो उसका शीष काट कर ले आया।
भगवान शिव नें
उस शीष को गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया तथा गणेश को जीवन दान दे दिया। अतः गज का सिर
जुड़ने के कारण ही शिवजी नें उस बालक का नाम गजानन रख दिया। समस्त देवताओं नें
उन्हें वरदान दिया की इस दुनिया में कोई भी नया कार्य करेगा तो सर्वप्रथम श्री
गणेश जी का स्मरण अवश्य करेगा।
Ganesh Pujan Mantra | गणेश पूजन मंत्र
ऊँ गं गणपतये नमः
गणेश गायत्री मंत्र | Ganesh Gayatri Mantra
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।
गणेश कुबेर मंत्र | Ganesh Kuber Mantra
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
तांत्रिक गणेश मंत्र | Tantrik Ganesh Mantra
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति। करों दूर क्लेश।।
आसन व शरीर शुद्धि मन्त्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
(हरिभक्तिविलस ३।३७, गरुड़ पुराण)
क्षमा प्रार्थना मन्त्र | Apologies Mantra
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं।
यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव।
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं।
पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं।
No comments:
Post a Comment