22 November 2019

एकादशी व्रत उद्यापन की विधि | Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi in Hindi | Gyaras ka Udyapan kaise karte hain

एकादशी व्रत उद्यापन की विधि | Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi in Hindi | Gyaras ka Udyapan kaise karte hain #EkadashiVrat

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एकादशी या ग्यारस का व्रत भगवान विष्णु जी को समर्पित होता हैं। भगवान विष्णु की विशेष कृपा निरंतर प्राप्त करने का सर्वोत्तम व्रत एकादशी को ही माना गया हैं। एकादशी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता हैं, क्योंकि एकादशी का व्रत करने से सांसारिक जीवन की समस्त इच्छाएं तो पूर्ण होती ही हैं, साथ ही, इस व्रत को करने से मृत्यु के पश्चात वैकुंठ लोक की प्राप्ति भी हो जाती हैं। प्रत्येक महीने में 2 बार एकादशी का व्रत आता हैं, एक शुक्ल पक्ष का तथा दूसरा कृष्ण पक्ष का। एकादशी तिथि पर व्रत-उपवास तथा विष्णु भगवान की भक्ति का अत्यंत विशेष महत्व होता हैं। शास्त्रों के अनुसार एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों पर भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी दोनों की कृपादृष्टि समान रूप से रहती हैं। किन्तु एकादशी व्रत का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता हैं, जब इसका विधि-विधान से उद्यापन किया जाए। एकादशी व्रत के नियम का पालन करते हुए व्रती को एकादशी व्रत का उद्यापन भी करना होता हैं। किसी भी व्रत की पूर्णता तभी मानी जाती हैं, जब विधि-विधान से उस व्रत का उद्यापन किया जाए। उद्यापन करना इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि हम जो व्रत करते हैं उसके साक्षी प्रत्येक देवी-देवता, यक्ष, नाग तथा गंधर्व आदि होते हैं। उद्यापन के दौरान की जाने वाली पूजा तथा हवन से उन प्रत्येक देवी-देवताओं को उनका भाग प्राप्त होता हैं। इस दौरान किए जाने वाले दान-दक्षिणा से ही व्रत की पूर्णता सिद्ध होती हैं। एकादशी व्रत का उद्यापन तब किया जाता हैं, जब व्रत रखने वाले श्रद्धालु, स्त्री-पुरुष कुछ समय तक नियमित या वर्षों तक निश्चित संख्या में नियमित व्रत करते हैं। भगवान् को साक्षी मानकर व्रत के संकल्प की पूर्णता, अन्तिम व्रत के पश्चात व्रत के उद्यापन करने पर ही पूर्ण होती हैं। व्रतों के संकल्प का पुण्य-फल तब ही प्राप्त होता हैं, जब उसका उद्यापन अर्थात् व्रत का समापन पूर्ण विधि-विधान पूर्वक सम्पन्न किया जाता हैं, अन्यथा वह एकादशी व्रत अधूरा ही माना जाता हैं। उद्यापन किये बिना कोई भी व्रत पूर्ण नहीं माना जाता। अतः नियमित एकादशी व्रत करने वाले प्रत्येक विष्णु भक्तजनों को उद्यापन के संकल्प को सम्पूर्ण पूजन विधि सहित सम्पन्न करने के पश्चात ही, संकल्प छोड़ना चाहिए। व्रत का उद्यापन एकादशी का व्रत करने के पश्चात ही किया जाता हैं। बिना उद्यापन किए कोई भी व्रत सिद्ध नहीं होता, अतः नियमित रूप से एकादशियों का व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तजनों को किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण की देख-रेख में व्रत का उद्यापन करना चाहिए।



एकादशी व्रत का उद्यापन करने की विधि

एकादशी के व्रत का उद्यापन ग्रहण-रहित कृष्ण पक्ष की एकादशी या मार्गशीर्ष महीने की एकादशी के दिन करना शुभ माना जाता हैं। किन्तु व्रत के उद्यापन के लिए यह भी आवश्यक हैं कि, इस एकादशी के दिन तक आपकी 24 एकादशियां पूर्ण हो गई हों। अर्थात आपको ध्यान रखना चाहिए की, एकादशी व्रत के उद्यापन के लिए कम से कम आपको 24 एकादशी का व्रत करना अति आवश्यक है। एकादशी व्रत का उद्यापन करना तो आवश्यक हैं किन्तु यह पूर्णरूप से व्रती की श्रद्धा पर निर्भर करता हैं की, उद्यापन में पूजन कितना बड़ा या छोटा करना हैं या कितने ब्राह्मणों को भोजन करवाना हैं, यह सब व्रती की श्रद्धा तथा आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता हैं।
एकादशी व्रतों का उद्यापन करते समय भगवान श्री विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती हैं, साथ ही, हवन भी अनिवार्य रूप से किया जाता हैं। उद्यापन करने वाले व्रती को दशमी के दिन एक समय भोजन करना चाहिए, तथा उद्यापन वाले शुभ दिवस अपने जीवन-साथी सहित स्नानादि करके स्वच्छ सफेद या पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा-स्थल को सुंदर रूप से सजाकर तथा प्रत्येक पूजन सामग्री अपने निकट रखकर भगवान विष्णु तथा लक्ष्मीजी की षोडशोपचार से आराधना की जाती हैं। पवित्रीकरण, भूत-शुद्धि तथा शांति-पाठ के पश्चात गणेश-पूजन आदि की प्रत्येक क्रियाएं की जाती हैं।
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एकादशी व्रत के उद्यापन में 12 महीने की एकादशियों के निमित्त 12 ब्राह्मणों को पत्नी सहित निमंत्रित किया जाता हैं। एक पूजन करवाने वाले आचार्य रहते हैं, उन्हें भी पत्नी सहित आमंत्रित करना चाहिए। एकादशी व्रतोद्यापन पूजा में कलश स्थापना हेतु तांबे के कलश में चावल भरकर रखने का विधान हैं। अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी का ध्यान एवं आह्वान सहित षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता हैं। साथ ही, इस दिवस भगवान कृष्ण, श्रीराम, अग्निदेव, देवराज इंद्र, प्रजापति, विश्वदेव तथा ब्रह्माजी आदि का भी आह्वान किया जाता हैं। इसके पश्चात मंत्रों का उच्चारण करते हुए भगवान को प्रत्येक प्रकार की सेवाएं तथा पूजन सामग्री अर्पित की जाती हैं। वैदिक विधान के अनुसार भगवान की स्वर्ण प्रतिमा, स्वर्ण आभूषणों, स्वर्ण सिंहासन, छत्र, चमर, पंचरत्न, दर्जनों मेवों, अनेक प्रकार के अनाजों तथा विविध फलों आदि का प्रयोग करना चाहिए। किन्तु, भगवान की पूजा-आराधना तथा हवन में कौन सी वस्तुओं का तथा कितनी-कितनी मात्रा में प्रयोग किया जाए, यह पूर्ण प्रकार से जातक की श्रद्धा तथा सामर्थ्य पर निर्भर करता हैं।
पूजन के पश्चात हवन होता हैं तथा आचार्य सहित ब्राह्मणों को फलाहारी भोजन करवाकर पूजा में प्रयुक्त प्रत्येक वस्तुएं, पाँच प्रकार के वस्त्र, जूते, छाता, पांच बर्तन तथा पलंग एवं घरेलू उपयोग की अनेक सामग्री दक्षिणा के रूप में देने का विधान हैं। कितने ब्राह्मणों को भोजन कराया जाए तथा आचार्य एवं अन्य ब्राह्मणों को कौन-कौन सी वस्तुएं दान दी जाएं, यह आपकी भावना तथा श्रद्धा का विषय हैं।

एकादशी व्रत का उद्यापन में ध्यान देने योग्य नियम

१) 24 एकादशियां अर्थात सम्पूर्ण 1 वर्ष का व्रत पूर्ण होने पर एकादशी व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
२) मार्गशीर्ष महीने में व्रत का उद्यापन करना शुभ माना जाता हैं।
३) जिस महीने में सूर्य या चन्द्र ग्रहण ना हो, ऐसी एकादशी के व्रत के पश्चात ही व्रत का समापन करना चाहिए।
४) व्रत उद्यापन में आदर सहित पूजा कराने वाले एक आचार्य तथा कम से कम 12 (बारह) विद्वान ब्राह्मणों को पत्नी-सहित अपने घर पर आने के लिए आमंत्रित करना चाहिये।
५) ब्राह्मणों तथा आचार्य को वैदिक विष्णु भगवान के मंत्र का जप करना चाहिये तथा विधिपूर्वक पूजा तथा स्तुति करनी चाहिए।
६) हवन के लिये वेदी बनाये तथा संकल्पपूर्वक वेदोक्त मन्त्रों से हवन करना चाहिए।
७) उद्यापन की पूजा विधि आचार्य के द्वारा संपन्न कराई जाने के पश्चात प्रत्येक ब्राह्मण, आचार्य तथा उनकी पत्नियों को भोजन अवश्य कराना चाहिए।
८) भोजन कराने के पश्चात प्रत्येक अतिथि को यथायोग्य कपड़े तथा उचित दक्षिणा देकर उनका आर्शीवाद ग्रहण करना चाहिए।
९) उद्यापन विधि निर्विघ्न रूप से संपन्न होने के पश्चात किसी उचित सज्जन निर्धन व्यक्ति को धन या वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए।
१०) उद्यापन करने के पश्चात भी आप निरंतर एकादशी का व्रत कर सकते है।

20 November 2019

उत्पन्ना एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Utpanna Ekadashi Vrat 2019

उत्पन्ना एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Utpanna Ekadashi Vrat 2019 #EkadashiVrat

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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना जाता हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिस दिन स्वयं एकादशी माता जी का जन्म हुआ था। जिन्होंने मुरासूर नामक दैत्य का वध कर भगवान विष्णु जी की रक्षा की थी। अतः इसी एकादशी के दिन ही स्वयं भगवान विष्णु जी ने माता एकादशी को आशीर्वाद के रूप में एकादशी तिथि के दिन को पूजा का एक महान व्रत बताया था। अतः मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि “उत्पन्ना एकादशी” कहलाती है। प्रत्येक एकादशी का महत्व पुराणों में प्राप्त होता हैं तथा उनका फल एक समान एवम अति उत्तम होता हैं। इस एकादशी के दिन व्रत करने से जातक के अतीत तथा वर्तमान के समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस व्रत का प्रभाव जातक को प्रत्येक तीर्थों के समान प्राप्त होता है। जो जातक एकादशी के व्रत को नहीं रखते हैं तथा इस व्रत को लगातार रखने के बारें में सोच रहे हैं अर्थात जो हरी-भक्तजन प्रत्येक महीने आने वाले एकादशी के व्रत को प्रारम्भ करना चाहते है, वे मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से ही अपने एकादशी के व्रत का शुभ-आरंभ कर सकते है। क्योंकि सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में इसी एकादशी से एकादशी के दिव्य व्रत का प्रारंभ हुआ है। व्यतीपात योग, संक्रान्ति तथा चन्द्र-सूर्य ग्रहण में दान देने एवं कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसी के समान पुण्य इस एकादशी का व्रत करने से जातक को प्राप्त हो जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी में मुख्य रूप से भगवान् श्रीविष्णु तथा माता एकादशी की पूजा-अर्चना की जाती है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१.   एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२.   यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३.   द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४.   एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५.   व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६.   व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७.   जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८.   यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

इस वर्ष, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवम्बर, शुक्रवार के दिन 09 बजकर 01 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 23 नवम्बर, शनिवार की प्रातः 06 बजकर 23 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में, उत्पन्ना एकादशी का व्रत 22 नवम्बर, शुक्रवार के दिन किया जाएगा।

इस वर्ष, उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 23 नवम्बर, शनिवार की दोपहर 01 बजकर 11 मिनिट से 03 बजकर 25 मिनिट तक का रहेगा।
हरि वासर समाप्त होने का समय - 11:44 AM

साथ ही, गौण उत्पन्ना एकादशी अर्थात वैष्णव उत्पन्ना एकादशी का व्रत 23 नवम्बर, शनिवार के दिन रखा जाएगा।
जिसका पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय 24 नवम्बर, रविवार की प्रातः 06:51 से 08:48
द्वादशी सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाएगी।

07 November 2019

प्रबोधिनी एकादशी कब हैं 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Prabodhini Ekadashi 2019 | Dev Uthani Ekadashi 2019

प्रबोधिनी एकादशी कब हैं 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Prabodhini Ekadashi 2019 #EkadashiVrat | Dev Uthani Ekadashi 2019

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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना जाता हैं। भगवान श्रीविष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्री जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसमे श्री विष्णु जी क्षीरसागर में चार मास अर्थात चातुर्मास के विश्राम के पश्चात जागते हैं। भगवान विष्णु जी आषाढ शुक्ल एकादशी अर्थात देवशयनी एकादशी पर सायन आरम्भ करते हैं। अतः देव-शयन हो जाने के पश्चात से प्रारम्भ हुए चातुर्मास का समापन देवोत्थान-उत्सव होने पर ही होता हैं। अतः प्रबोधिनी एकदशी का दिन चतुर्मास के अंत का प्रतीक हैं। चातुर्मास के दिनों में केवल पूजा पाठ, तप तथा दान के कार्य ही किए जाते हैं। इन चार मास में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन संस्कार, नाम करण संस्कार आदि नहीं किये जाते हैं। किन्तु प्रबोधनी एकादशी से प्रत्येक प्रकार के मंगल कार्यो का प्रारंभ हो जाता हैं।प्रबोधिनी एकदशी को देवोतथान एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी, देवुत्थान एकादशी, देवउठनी एकादशी, देवौठनी एकादशी, देवउठनी ग्यारस, हरि प्रबोधिनी एकादशी, देव उथानी एकदशी, देवउत्थान एकादशी तथा देवतुथन एकदशी के नाम से भी जाना जाता हैं। प्रबोधिनी एकदशी को हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर में मनाया जाता हैं, जो कि अङ्ग्रेज़ी कैलेंडर में अक्टूबर या नवम्बर में आता हैं। यह एकादशी का व्रत दिवाली पर्व के ग्यारहवे दिन किया जाता हैं।पौराणिक मान्यता हैं कि भगवान विष्णु ने इस दिन देवी तुलसी से विवाह किया था। अतः इस दिन तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व माना गया हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण जगत में विवाह के उत्सव प्रारम्भ हो जाते हैं।प्रबोधिनी एकदशी के दिन वैष्णव ही नहीं, किन्तु स्मार्त श्रद्धालु भी अत्यंत उत्साह तथा पूर्ण आस्था से व्रत करते हैं। प्रबोधिनी एकादशी को पापमुक्त करने वाली सर्वश्रेष्ठ एकादशी माना गया हैं। वैसे तो प्रत्येक एकादशी का व्रत पापो से मुक्त होने के लिए किया जाता हैं। किन्तु इस एकादशी का महत्व अत्यंत अधिक माना जाता हैं। राजसूय यज्ञ करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती हैं, उससे कई गुना अधिक पुण्य प्रबोधनी एकादशी के व्रत का होता हैं।


प्रबोधिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

ध्यान रहे,
१. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
२. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
३. द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
४. एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५. व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
६. व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७. जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।
८. यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।


इस वर्ष, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 07 नवम्बर, गुरुवार के दिन 09 बजकर 54 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 08 नवम्बर, शुक्रवार की दोपहर 12 बजकर 24 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2019 में प्रबोधिनी एकादशी का व्रत 08 नवम्बर, शुक्रवार के दिवस किया जाएगा।

इस वर्ष, प्रबोधिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 09 नवम्बर, शनिवार की प्रातः 06 बजकर 48 मिनिट से 8 बजकर 51 मिनिट तक का रहेगा।
ध्यान रखें: शनिवार, 9 नवंबर द्वादशी को पारण दोपहर 2.54 के पहले कर लें, क्योंकि उसके बाद रेवती नक्षत्र शुरू हो जायेगा..
शास्त्र कहते हैं रेवती नक्षत्र में पारण करने से 12 एकादशियों का फल व्यर्थ जाता है!