चातुर्मास 2019 | चातुर्मास व्रत के नियम | चातुर्मास व्रत विधि | Chaturmas Kya hai | Chaturmas ke Niyam
Chaturmas Kya hai |
पद्म पुराण के उत्तर खंड, स्कंद पुराण के ब्राह्म खंड एवं नागर खंड के उत्तरार्ध के अनुसार व्रत,
भक्ति तथा शुभ कर्म करने के लिए विशेष
चार मास को हिन्दू धर्म में 'चातुर्मास'
कहा जाता हैं। एक हजार अश्वमेध यज्ञ
करके मनुष्य जिस फल को पाता हैं, वही चातुर्मास व्रत के अनुष्ठान से प्राप्त कर लेता हैं। इन चार महीनों में
ब्रह्मचर्य का पालन, त्याग,
पत्तल पर भोजन, उपवास, मौन, जप, ध्यान, स्नान, दान, पुण्य आदि विशेष
लाभप्रद होते हैं। ध्यान तथा साधना करने वाले जातकों के लिए यह चार मास अत्यंत महत्वपूर्ण
होते हैं। इस दौरान शारीरिक तथा मानसिक स्थिति तो सही होती ही हैं, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता हैं।
चातुर्मास 4 मास की अवधि हैं,
जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी अर्थात देवशयनी
एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी अर्थात प्रबोधिनी तक चलता हैं।
हिंदी कैलंडर के अर्ध आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन एवं अर्ध कार्तिक मास ही चातुर मास
कहलाते हैं। इन दिनों कोई शुभ कार्य, जैसे की विवाह संबंधी कार्य, मुंडन विधि, नाम करण आदि,
करना अच्छा नहीं माना जाता, किन्तु इन दिनों धार्मिक अनुष्ठान
बहुत अधिक किये जाते हैं, जैसे भागवत कथा, रामायण,
सुंदरकांड पाठ, भजन संध्या एवं सत्य नारायण की पूजा आदि। इसके अलावा
इस समय कई तरह के दानों का भी महत्व हैं, जिसे व्यक्ति अपनी श्रद्धा एवं हैसियत के हिसाब से करता हैं।
जिन दिनों में भगवान् विष्णुजी शयन करते हैं उन्हीं चार महीनों को चातुर्मास या
चौमासा भी कहते हैं, देवशयनी एकादशी
से हरिप्रबोधनी एकादशी तक चातुर्मास के इन चार महीनों की अवधि में विभिन्न धार्मिक
कर्म करने पर मनुष्य को विशेष पुण्य लाभ की प्राप्ति होती हैं, क्योंकि इन दिनों में किसी भी जीव की ओर से
किया गया कोई भी पुण्यकर्म व्यर्थ नहीं जाता। साथ ही, देवशयन के चातुर्मासीय व्रतों में
पलंग पर सोना, स्त्री संघ करना, मिथ्या
वचन कहना, मांस, शहद, मूली, बैंगन आदि का सेवन वर्जित माना जाता हैं।
वैसे तो चातुर्मास का व्रत देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होता हैं, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में एकादशी अर्थात देवशयनी
एकादशी के दिन उपवास करके जातक भक्तिपूर्वक चातुर्मास व्रत प्रारंभ कर सकता है, किन्तु जैन धर्म में चतुर्दशी से
प्रारंभ माना जाता हैं, द्वादशी, पूर्णिमा से भी
यह व्रत प्रारम्भ किया जा सकता हैं, भगवान् को पीले वस्त्रों से श्रृंगार करें तथा सफेद रंग की शय्या पर सफेद रंग
के ही वस्त्र द्वारा ढक कर उन्हें शयन करायें।
➡ चातुर्मास के नियम
चातुर्मास या चौमासा के कई नियम बताए गए हैं, जो प्रत्येक मनुष्य अपनी मान्यता, श्रद्धा
तथा सामर्थ्य के अनुसार निभाते हैं।
1- चौमासा के दिनों में महिलायें सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करती हैं, साथ ही श्रावण एवं कार्तिक के मास में
नित्य मंदिर जा कर पूजा करती हैं। कार्तिक में कृष्ण जी एवं तुलसी जी की पूजा की
जाती हैं।
2- कई जातक सम्पूर्ण चार मास तक उपवास या एक समय भोजन कर के रात्रि
में फलाहार ग्रहण करते हैं।
3- चातुर्मास में कई जातक प्याज, लहसुन, बैंगन, मसूर जैसे भोज्य
पदार्थ का अपने भोजन में उपयोग नहीं करते हैं।
4- देखा गया हैं की, कई
जातक नव-दुर्गा के समय चप्पल भी नहीं पहन कर व्रत का पालन करते हैं।
5- श्रावण एवं नव दुर्गा के व्रत में कई पुरुष अपने बाल तथा दाढ़ी
नहीं कटवाते हैं।
6- सम्पूर्ण चौमासा गीता पाठ, सुंदर कांड का पाठ, भजन तथा रामायण का पाठ प्रत्येक जातक अपनी-अपनी श्रद्धा
तथा क्षमता के अनुसार करते हैं।
7- चातुर्मास के समय कई जातक दान पुण्य एवं धार्मिक स्थलों की यात्रा भी करते हैं।
➡ चातुर्मास में श्री विष्णु भगवान् को क्या भोग लगायें?
१. अच्छी वाणी के लिए गुड व मिश्री का भोग लगायें।
२. दीर्घायु तथा पुत्र-पौत्र आदि की प्राप्ति के लिए मुंफली तेल
का भोग लगायें।
३. अपने शत्रुओं का नाश करने के लिए कड़वे तेल अर्थात सरसों के तेल
का भोग लगाये।
४. सौभाग्य के लिए मीठे खाद्य तेल का भोग लगायें।
५. मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति के लिए पीले पुष्पों का
भोग लगावे।
इसके अलावा, व्यक्ति को चातुर्मास के इन
चार महीनों के लिए अपनी रुचि एवं श्रद्धा के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का
त्याग तथा ग्रहण करना चाहिए, जो की इस प्रकार हैं।
➡ चातुर्मास में क्या ग्रहण
करें?
१. मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए
बर्तन की जगह केले के पत्ते में भोजन करें।
२. देह शुद्धि या सुंदरता के लिए निश्चित प्रमाण के पंचगव्य का
ग्रहण करें।
३. आत्म शुद्धि के लिए पंचमेवा का सेवन
करें।
४. वंश वृद्धि के लिए नियमित रूप से गाय के दूध का सेवन करें।
५. सर्वपापक्षयपूर्वक सकल पुण्य फल प्राप्त होने के लिए एकमुक्त, नक्तव्रत,
अयाचित भोजन या सर्वथा
उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।
६. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के
लिए दिन में केवल एक ही बार भोजन करें या उपवास रखें।
➡ चातुर्मास में क्या त्याग करें?
१. प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य न करें।
२. चारपाई पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ
बोलना, मांस-मदिरा सेवन, शहद तथा दूसरे
का दिया दही-भात आदि का भोजन करना,
मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का त्याग करना
चाहिए।
३. मधुर स्वर के लिए गुड़ व मिश्री का त्याग करें।
४. दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्र आदि की प्राप्ति के लिए मुंफली तेल
का त्याग करें।
५. शत्रु नाश आदि के लिए सरसों तेल का त्याग करें।
६. सौभाग्य के लिए मीठे तेल का त्याग करें।
७. स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगो का त्याग करें।
➡ यह भी ध्यान दे - देवशयन के पश्चात चार महीनों तक
योगी व तपस्वी कही भ्रमण नहीं करते तथा एक ही स्थान पर रहकर तप करते रहते हैं। इस
समय में केवल ब्रज-नगर की यात्रा की जा सकती हैं। क्योंकि चातुर्मास के समय पृथ्वी
के सभी तीर्थ ब्रज-धाम में आकार निवास करते हैं।
पद्मपुराण के अनुसार जो मनुष्य इन चार महीनों में मंदिर में झाडू लगाते हैं
तथा मंदिर को धोकर साफ करते हैं, कच्चे स्थान को गोबर से लीपते हैं, उन्हें सात जन्म तक ब्राह्मण योनि प्राप्त होती हैं, जो भगवान को दूध, दही, घी, शहद, तथा मिश्री से स्नान कराते हैं, वह संसार में वैभवशाली होकर स्वर्ग में जाकर
इन्द्र के समान सुख भोगते हैं।
Chaturmas |
किसी भी प्रकार का दान देने जैसे- कपिला गौ का दान, शहद से भरा चांदी का बर्तन तथा तांबे के पात्र में
गुड़ भरकर दान करने, नमक,
सत्तू, हल्दी, लाल वस्त्र, तिल, जूते, तथा छाता आदि का यथाशक्ति दान करने वाले मनुष्य को
कभी भी किसी वस्तु की कमी जीवन में नहीं आती तथा वह सदा ही सर्व साधन सम्पन्न रहता
हैं।
जो व्रत की समाप्ति अर्थात उद्यापन करने पर अन्न, वस्त्र तथा शय्या का दान करते हैं वह अक्षय सुख को
प्राप्त करते हैं तथा सदा धनवान रहते हैं, वर्षा ऋतु में गोपीचंदन का दान करने वालों को सभी प्रकार के भोग एवं मोक्ष
मिलते हैं, जो नियम से भगवान्
श्री गणेशजी तथा सूर्य भगवान् का पूजन करते हैं वह उत्तम गति को प्राप्त करते हैं,
तथा जो शक्कर का दान करते हैं उन्हें
यशस्वी संतान की प्राप्ति होती हैं।
माता लक्ष्मी तथा पार्वती को प्रसन्न करने के लिए चांदी के पात्र में हल्दी भर
कर दान करनी चाहिये तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बैल का दान करना
श्रेयस्कर हैं, चातुर्मास में
फलों का दान करने से नंदन वन का सुख मिलता हैं, जो लोग नियम से एक समय भोजन करते हैं, भूखों को भोजन खिलाते हैं, स्वयं भी नियमबद्ध होकर चावल अथवा जौ का
भोजन करते हैं, भूमि पर शयन
करते हैं उन्हें अक्षय कीर्ति प्राप्त होती हैं।
इन दिनों में आंवले से युक्त जल से स्नान करना तथा मौन रहकर भोजन करना
श्रेयस्कर हैं, श्रावण अर्थात सावन
के मास में साग एवम् हरि सब्जियां, भादों में दही, आश्विन में
दूध तथा कार्तिक में दालें खाना वर्जित हैं, किसी की निंदा चुगली न करें तथा न ही किसी से धोखे
से उसका कुछ हथियाना चाहिये, चातुर्मास
में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिये तथा कांसे के बर्तन में कभी भोजन नहीं करना चाहिये।
जो अपनी इन्द्रियों का दमन करता हैं वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त करता हैं,
शास्त्रानुसार चातुर्मास एवं चौमासे
के दिनों में देवकार्य अधिक होते हैं जबकि विवाह आदि उत्सव नहीं किये जाते,
इन दिनों में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा
दिवस तो मनाए जाते हैं किन्तु नवमूर्ति प्राण प्रतिष्ठा व नवनिर्माण कार्य नहीं
किये जाते, जबकि धार्मिक
अनुष्ठान, श्रीमद्भागवत ज्ञान
यज्ञ, श्री रामायण तथा श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ, हवन यज्ञ आदि कार्य अधिक होते हैं।
गायत्री मंत्र के पुरश्चरण व सभी व्रत सावन मास में सम्पन्न किए जाते हैं,
सावन के मास में मंदिरों में कीर्तन,
भजन, जागरण आदि कार्यक्रम अधिक होते हैं, स्कन्दपुराण के अनुसार संसार में मनुष्य
जन्म तथा विष्णु भक्ति दोनों ही दुर्लभ हैं, किन्तु चार्तुमास में भगवान विष्णु का व्रत करने
वाला मनुष्य ही उत्तम एवं श्रेष्ठ माना गया हैं।
चौमासे के इन चार मासों में सभी तीर्थ, दान, पुण्य, तथा देव स्थान
भगवान् विष्णु जी की शरण लेकर स्थित होते हैं तथा चातुर्मास में भगवान विष्णु को
नियम से प्रणाम करने वाले का जीवन भी शुभ फलदायक बन जाता हैं, भाई-बहनों! चौमासे के इन चार महीनों में
नियम से रहते हुये, शुभ कार्य
करते हुये, भगवान् श्री हरि
विष्णुजी की भक्ति से जन्म जन्मांतरों के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति
करें।
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