22 June 2018

निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा | Nirjala Ekadashi Pauranik Katha | Ekadashi Vrat Katha in Hindi


निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा | Nirjala Ekadashi Pauranik Katha
Ekadashi Vrat Katha in Hindi


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पौराणिक कथा के अनुसार निर्जला एकादशी की प्राचीन कथा महाकाव्य महाभारत के संदर्भ में प्राप्त होती है।
पांडवों को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षकी प्राप्ति हेतु महर्षि वेदव्यासजी ने उन्हे एकादशी व्रत का संकल्प करने की आज्ञा दी थी। माता कुंती तथा द्रोपदी सहित सभी पांडव एकादशी का व्रत रखने लगे, किन्तु महाबली भीम जो कि गदा चलाने तथा खान-पान के विषयमें अत्यंत प्रसिद्ध थे अर्थात भीम बहुत ही विशालकाय तथा बलशाली तो थे किन्तु उन्हें अत्यंत भूख लगती रहती थी। भीम भूख सहन नहीं कर पाते थे, अतः उनके लिये महीने में दो दिन उपवास करना अत्यंत कठिन कार्य था। जब पूरे परिवार का उन पर व्रत के लिये दबाव आने लगा तो वे इसकी युक्ति खोजने लगे कि, भीम ऐसा उपाय खोज रहे थे की जिससे उन्हें भूखा भी न रहना हो तथा साथ में उन्हे उपवास का पुण्य भी प्राप्त हो जाए। अपने उदर पर आयी इस विपत्ति का समाधान भी उन्हे महर्षि वेदव्यासजी से ही ज्ञात हुआ। भीम व्यासजी से पुछने लगे की, “हे पितामह मेरे परिवार के सभी सदस्य एकादशी का उपवास रखते हैं तथा अब तो मुझ पर भी दबाव बनाते हैं की में भी उनके जैसे निराहार रहकर व्रत करू, किन्तु मैं धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, दानादि कर सकता हूं परंतु उपवास रखना मेरे सामर्थ्य की बात नहीं हैं, भगवन। मेरे पेट के अंदर वृक नामक जठराग्नि है, जिसे शांत करने के लिये मुझे अत्यधिक भोजन की निरंतर आवश्यकता होती है, अत: भोजन के बिना रह पाना मेरे लिए संभव नहीं है।” यह सुनकर महर्षि व्यास जी ने कहा, हे भीम, यदि तुम स्वर्ग तथा नरक में विश्वास रखते हो, तो तुम्हारे लिये भी एकादशी का व्रत करना अति आवश्यक है। इस पर भीम की चिंता और भी बढ़ गई तथा भीमने चिंतित अवस्था में व्यास जी से पुनः कहा की, हे महर्षि, कोई ऐसा उपवास बताने की कृपा करें जिसे वर्ष में एक ही बार रखने पर ही मोक्ष की प्राप्ति हो।” इस पर महर्षि वेदव्यास ने गदाधारी भीम को कहा कि, “हे वत्स, ऐसा एक उपवास है तथा यह उपवास है तो अत्यंत ही कठिन, किन्तु इसे रखने से तुम्हें सभी एकादशियों के उपवास का फल प्राप्त हो जायेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि “इस उपवास के पुण्य के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मुझे बताया है। तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करो। इसमें आचमन व स्नान के अलावा जल भी ग्रहण नहीं किया जा सकता। अत: एकादशी के तिथि पर निर्जला उपवास रखकर भगवान केशव अर्थात भगवान श्री हरि विष्णुजी की पूजा करना तथा अगले दिन स्नानादि कर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर, भोजन करवाने के पश्चयात स्वयं भोजन करना। इस प्रकार तुम्हें केवल एक दिन के उपवास से ही सम्पूर्ण वर्ष के उपवासों जितना पुण्य प्राप्त होगा।”
महर्षि वेदव्यास के बताने पर भीम ने यही उपवास रखा तथा मोक्ष की प्राप्ति की।
       भीम द्वारा उपवास रखे जाने के कारण ही निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी या भीम एकादशी तथा सभी पांडवों ने भी इस दिन का उपवास रखा अतः इस व्रत को पांडव एकादशी भी कहा जाता है।



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