28 September 2019

नवरात्र कलश स्थापना शुभ मुहूर्त | शारदीय नवरात्र 2019 | Ghat Sthapana | Shardiya Navratra 2019 #Navratra

नवरात्र कलश स्थापना शुभ मुहूर्त | शारदीय नवरात्र 2019 | Ghat Sthapana | Shardiya Navratra 2019 #Navratra

navratra muhurat 2019
navratri ghat sthapana muhurat 2019
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥
        जय माता दी  
जय श्री कालका माँ
नवरात्र हिन्दुओं का अत्यंत पवित्र तथा प्रमुख त्यौहार हैं। नवरात्र की पूजा नौ दिनों तक होती हैं तथा इन नौ दिनों में माताजी के नौ भिन्न-भिन्न स्वरुपों की पूजा की जाती हैं। माताजी के नौ रूप इस प्रकार हैं- माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा माँ, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, माँ महागौरी तथा सिद्धिदात्रि माँ। प्रत्येक वर्ष में दो बार नवरात्र आते हैं, तथा गुप्त नवरात्र भी आते हैं। पहले नवरात्र का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से होता हैं। तथा अगले नवरात्र शारदीय नवरात्रे कहलाते हैं, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि तक रहते हैं। इन नवरात्रों के पश्चात दशहरा या विजयादशमी पर्व मनाया जाता हैं। यह नवरात्र आश्विन मास के शरद ऋतू में आते हैं, अतः इन नवरात्रों को शारदीय नवरात्र कहा जाता हैं। यह नवरात्र को सभी नवरात्रों में सर्वाधिक प्रमुख तथा महत्वपूर्ण माना गया हैं, अतः शारदीय नवरात्रों को महा-नवरात्रि भी कहा जाता हैं। यह त्यौहार गुजरात तथा बंगाल के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत-वर्ष में अत्यंत धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। माताजी के इस त्योहार को सम्पूर्ण उत्तर भारत में नवरात्र कहा जाता हैं, वहीं पश्चिम बंगाल तथा उसके आसपास के राज्यों में इसे दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता हैं, साथ ही गुजरात में यह पर्व अत्यंत उत्साह के साथ, डांडिया तथा गरबा खेलकर, धूमधाम से मनाया जाता हैं। दोनों ही नवरात्रों में माताजी का पूजन विधिवत् किया जाता हैं। देवी के पूजन करने की विधि दोनों ही नवरात्रों में लगभग एक समान ही रहती हैं। इस त्यौहार पर सुहागन या कन्या, सभी अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या सम्पूर्ण नौ दिनों तक का व्रत रखते हैं तथा दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात व्रत खोला जाता हैं। नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में व्रत का संकल्प किया जाता हैं। अतः व्रत का संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जीतने दिन आपको व्रत रखना हैं। व्रत-संकल्प के पश्चात ही घट स्थापना की विधि प्रारंभ की जाती हैं। घट स्थापना सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में ही करना चाहिए, ऐसा करने से घर में सुख तथा समृद्धि व्याप्त रहती हैं।

हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा से पहले भगवान गणेश जी की पूजा का विधान हैं, अतः नवरात्र की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में श्री गणेश महाराज को स्थापित किया जाता हैं। नवरात्र के आरंभ की प्रतिपदा तिथि के दिन कलश या घट की स्थापना की जाती हैं। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता हैं।
आइये हम आपको बताते हैं, देवी माताजी के शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-

कलश स्थापना करते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

कृपया ध्यान दे:-
1  नवरात्र में देवी पूजा के लिए जो कलश स्थापित किया जाता हैं, वह सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का ही होना चाहिए। लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में नहीं करना चाहिए।
2. नवरात्र में कलश स्थापना किसी भी समय किया जा सकता हैं। नवरात्र के प्रारंभ से ही अच्छा समय प्रारंभ हो जाता हैं, अतः यदि जातक शुभ मुहूर्त में घट स्थापना नहीं कर पाते हैं तो वे सम्पूर्ण दिवस किसी भी समय कलश स्थापित कर सकते हैं।
3नवरात्रों में माँ भगवती की आराधना “दुर्गा सप्तसती” से की जाती है, परन्तु यदि समयाभाव है तो भगवान् शिव रचित “सप्तश्लोकी दुर्गा” का पाठ अत्यंत ही प्रभाव शाली है एवं दुर्गा सप्तसती का पाठ सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाला है।

शारदीय नवरात्र 2019 के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

29 सितम्बर रविवार के शुभ दिवस से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हो रहा हैं। तथा यह पर्व 08 अक्तूबर मंगलवार के दिन तक मनाया जाएगा। नवरात्र के प्रथम दिन अर्थात 29 सितम्बर रविवार के दिन को माता दुर्गाजी के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा होगी। पार्वती तथा हेमवती भी माँ शैलपुत्री के अन्य नाम हैं। इस वर्ष 2019 में देवी दुर्गा माताजी का आगमन हाथी पर होगा तथा उनका प्रस्थान चरणायुध पर होगा।
इस वर्ष, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 28 सितम्बर, शनिवार के रात्रि 11 बजकर 56 मिनिट से आरंभ हो कर 29 सितम्बर, रविवार की रात्रि 08 बजकर 14 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2019 में शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त 29 सितम्बर, रविवार की प्रातः 06 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 42 मिनट तक का रहेगा। यदि इस, चित्रा नक्षत्र के सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में आप कलश स्थापना करेंगे तो आपके लिए यह लाभदायक एवं अत्यंत शुभ रहेगा।
आशा करता हु मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, यह जानकारी अपने दोस्तों के साथ इस विडियो के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा शेयर करे तथा हमारे चेंनल को सब्सक्राइब जरूर करे
धन्यवाद!

24 September 2019

Karva Chauth Vrat Katha in English | Karwa Choth Pooja Story in the English Language

Karva Chauth Vrat Katha in English | Karwa Choth Pooja Story in the English Language 

Karwa Choth Pooja Story in the English
Karva Chauth Vrat Katha in English 
Karva Chauth may be a one-day festival celebrated by Hindu girls from some regions of Asian nation, four days when purnima (a full moon) within the month of Kartika. Dates disagree in line with the Gregorian calendar that is tabular and doesn't seem to be supported constellations. Like several Hindu festivals, Karva Chauth is predicated on the calendar that accounts for all astronomical positions, particularly positions of the moon that is employed as a marker to calculate necessary dates.


On Karva Chauth, the married girls, particularly in Northern The Asian nation, quick from sunrise to moonrise for the security and longevity of their husbands. The Karva Chauth quick is historically celebrated within the states of Rajasthan, Prayagraj Uttar Pradesh, Himachal Pradesh, city MADHYA PRADESH, Haryana, Punjab, Old Delhi and as Atla Tadde in Andhra Pradesh. The competition falls on the fourth day when the total moon, within the Hindu calendar month of Kartik. traditionally, Karva Chauth was celebrated as a prayer for the long lifetime of troopers within the war, and by extension nowadays refers to the long life of a married husband.


Karva Chauth Vrat Katha in English

"A long very long time past, there lived an attractive patrician by the name of Veeravati. once she was of the mature age, Veeravati was married to a king. On the occasion of the primary Karva Chauth when her wedding, she visited her parents’ house."

"After sunrise, she determined a strict quick. However, the queen was too delicate and couldn’t stand the rigours of fast. By evening, Veeravati was too weak and fainted. Now, the queen had seven brothers World Health Organization idolized her dearly. They couldn’t stand the plight of their sister and determined to finish her quick by deceiving her. They created a hearth at the close hill and asked their sister to visualize the glow. They assured her that it absolutely was the moonlight and since the moon had up, she may break her quick."

"However, the instant the gullible queen Ate her dinner, she received the news that her husband, the king, was dead. The queen was sorrowful and rush to her husband’s palace. On the way, she met Lord Shiva and his consort, god Hindu deity. Hindu deity up on her that the king had died as a result of the queen had broken her quick by looking at a false moon. However, once the queen asked her for forgiveness, the god granted her the boon that the king would be revived however would be sick."

"When the queen reached the palace, she found the king lying unconscious with many needles inserted in his body. Each day, the queen managed to get rid of one needle from the king’s body. Next year, on the day of Karva Chauth, only 1 needle remained embedded within the body of the unconscious king."

"The queen determined a strict quick that day and once she visited the market to shop for the karva for the puja, her maid removed the remaining needle from the king’s body. The king regained consciousness and mistook the maid for his queen. once the important queen came back to the palace, she was created to function a maid."

"However, Veeravati was faithful to her religion and religiously determined the Karva Chauth vrat . Once the king was aiming to another kingdom, he asked the important queen (now turned maid) if she wished something. The queen asked for a combination of identical dolls. The king duty-bound and also the queen unbroken singing a song " Roli ki Goli holmium gayi... Goli ki Roli holmium gayi " (the queen has become a maid and also the maid has become a queen)."

"On being asked by the king on why did she keep continuation that song, Veeravati narrated the whole story. The king repented and rehabilitated the queen to her royal standing. it absolutely was solely the queen’s devotion and her religion that won her husband’s feeling and also the blessings of the god Hindu deity."

16 September 2019

विश्वकर्मा जी की आरती | Vishwakarma Aarti in English with meaning | विश्वकर्मा पूजा 2019

विश्वकर्मा जी की आरती | Vishwakarma Aarti in English with meaning | विश्वकर्मा पूजा 2019

Vishwakarma aarti in hindi and English
Vishwakarma aarti with meaning 
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,

जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि मे विधि को,
श्रुति उपदेश दिया ।
जीव मात्र का जग मे,
ज्ञान विकास किया ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।

ध्यान किया जब प्रभु का,
सकल सिद्धि आई ।
ऋषि अंगीरा तप से,
शांति नहीं पाई ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।

रोग ग्रस्त राजा ने,
जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर,
दूर दुःखा कीना ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।

जब रथकार दंपति,
तुम्हारी टेर करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना,
विपत हरी सगरी ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।

एकानन चतुरानन,
पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज,
सकल रूप साजे ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।

ध्यान धरे तब पद का,
सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विविधा मिट जावे,
अटल शक्ति पावे ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।

श्री विश्वकर्मा की आरती,
जो कोई गावे ।
भजत गजानांद स्वामी,
सुख संपाति पावे ॥

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा॥

Vishwakarma Arti In English

Jai shri vishwakarma prabhu, jai shri vishwakarma |
Sakal srishti ke karta, rakshak stuti dharma ||
Aadi srishti me vidhi ko shruti updesh diya |
Jeev matra ka jag me, gyan vikas kiya ||
Rishi angira tap se, shanti nahin pai |
Rog grast raja ne jab aashraya leena |
Sankat mochan bankar door duhkha keena ||
Jai shri vishwakarma.
Jab rathkaar dampati, tumhari ter kari |
Sunkar deen prarthna, vipat hari sagari ||
Ekanan chaturanan, panchanan raje |
Tribhuj chaturbhuj dashbhuj, sakal roop saje ||
Dhyan dhare tab pad ka, sakal siddhi aave |
Mann dvividha mit jave, atal shakti pave ||
Shri vishwakarma ki aarti jo koi gave |
Bhajat gajanand swami, sukh sampati pave ||
|| Jai shri Vishwakarma ||

According to Hindu Mythology singing Vishwakarma Aarti on an everyday basis once the worship of God Vishwakarma is that the best thanks to please God Vishwakarma and acquire his blessing.

How to chant Vishwakarma Aarti

To get the most effective the result you ought to sing Vishwakarma Aarti early morning once taking tub and before of God Vishwakarma Idol or image. you ought to initial perceive the Vishwakarma Aarti that means in Hindi to maximise its impact.

Benefits of Vishwakarma Aarti

Regular recitation of Vishwakarma Aarti offers peace of mind and keeps away all the evil from your life and causes you to healthy, affluent and prosperous.

Vishwakarma Puja 2019: Date, Times, Puja Vidhi, Shubh Mahurat and everyone you would like to know

Vishwakarma Puja 2019: Date, Times, Puja Vidhi, Shubh Mahurat and everyone you would like to know

vishwakarma puja vidhi
vishwakarma puja 2019
Vishwakarma Puja calculations are done in step with Bisuddhasidhanta. Vishwakarma Puja falls on the day of reckoning of the Bengali month Bhadra that is additionally called Bhadra Sankranti or Kanya Sankranti.

Vishwakarma Puja or Vishwakarma Jayanti is a vital competition for folks of Hindu community to honour and celebrate Lord Vishwakarma, WHO is thought to be the Lord of creation.
Hindu scriptures say that Lord Vishwakarma was born throughout the blessed Magha Shukla Trayodashi, due to that, he's thought of to be associate degree incorporation of Lord Shiva.

Vishwakarma is thought because the world's initial creator and engineer, WHO helped build tons of structures and arranged the muse stone once the universe was developing. it's additionally same that Lord Vishwakarma is that the one WHO created heaven, Dwapar, and even Hastinapur. Before beginning or inaugurating a manufactory, Lord Vishwakarma is usually loved. Hence, the day has special significance for those within the line of producing and machine trade. Artists, craftsmen, industrialists, businessmen, and manufactory homeowners and operators pay special regard and hold a puja in their specific work premises. it's believed that go to Lord Vishwakarma will increase business.
The day is widely known for the most part in states of Uttar Pradesh, Bihar, Delhi, geographic area, province, and Mysore. Vishwakarma Jayanti is going to be celebrated on day, that falls on a weekday.

If you're a bourgeois reaching to celebrate and honour Lord Vishwakarma here is all you would like to understand:

Shubh muhurat for the puja
Vishwakarma Puja falls throughout the blessed day of Kanya Sankranti, that is taken into account extremely auspicious. The Sankrant starts from 7:27 am and puja will be controlled anytime once this.

Here square measure the puja date and vidhi to be unbroken in mind:
Vishwakarma Puja Date on Tuesday, September 17, 2019
Vishwakarma Puja Sankranti Moment - 01:19 PM
Kanya Sankranti on Tuesday, September 17, 2019

Vishwakarma Puja Vidhi


The puja is often done by a private or as a few within the plant premises or institution wherever you're employed. The puja ought to solely be done when taking a shower within the morning.

First, it's vital to embellish and love the idols within the puja Ghar with flowers and tilak. Apply cinnabar, tilak, and akshat on all the tools within the work yet and so provide some flowers and place a Kalash close to the idol. you'll be able to conjointly use deep, incense, betel nut, etc. whereas go to.

Taking flowers, rice in hand and meditating on Lord Vishwakarma, worshipper ought to sprinkle flowers and rice within the house and institution. Folding your hands in worship, provide prayers and recite the subsequent mantra:
"Om Prithivai Namah Om Anantham Namah Om Qumayi Namah Om Shri Srishtanaya Sarvasiddhaya Vishwakarmaaya Namo Namah"

ओम आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम:
ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:

You can additionally recite the mantras whereas worshipping the tools and therefore the machines. Some individuals additionally perform a havan on this auspicious day.
  
After this, Prashad or sweet ought to be offered to God. If at the geographical point, you'll additionally prefer to perform aarti with the workers and distribute Prashad. you'll additionally tie a sacred red thread on the correct hand and ask for blessings.


शारदीय नवरात्रि कब है | Navratri kab hai 2019 | Durga Puja | Ghat Sthapana | Shardiya Navratra 2019 #Navratri

शारदीय नवरात्रि कब है | Navratri kab hai 2019 | Durga Puja | Ghat Sthapana | Shardiya Navratra 2019 #Navratri

2019 Durga Puja
Navratri kab hai 2019 Durga Puja
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥
        जय माता दी  
जय श्री कालका माँ
नवरात्र हिन्दुओं का अत्यंत पवित्र तथा प्रमुख त्यौहार हैं। नवरात्र की पूजा नौ दिनों तक होती हैं तथा इन नौ दिनों में माताजी के नौ भिन्न-भिन्न स्वरुपों की पूजा की जाती हैं। माताजी के नौ रूप इस प्रकार हैं- माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा माँ, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, माँ महागौरी तथा सिद्धिदात्रि माँ। प्रत्येक वर्ष में दो बार नवरात्र आते हैं, तथा गुप्त नवरात्र भी आते हैं। पहले नवरात्र का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से होता हैं। तथा अगले नवरात्र शारदीय नवरात्रे कहलाते हैं, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि तक रहते हैं। इन नवरात्रों के पश्चात दशहरा या विजयादशमी पर्व मनाया जाता हैं। यह नवरात्र आश्विन मास के शरद ऋतू में आते हैं, अतः इन नवरात्रों को शारदीय नवरात्र कहा जाता हैं। यह नवरात्र को सभी नवरात्रों में सर्वाधिक प्रमुख तथा महत्वपूर्ण माना गया हैं, अतः शारदीय नवरात्रों को महा-नवरात्रि भी कहा जाता हैं। यह त्यौहार गुजरात तथा बंगाल के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत-वर्ष में अत्यंत धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। माताजी के इस त्योहार को सम्पूर्ण उत्तर भारत में नवरात्र कहा जाता हैं, वहीं पश्चिम बंगाल तथा उसके आसपास के राज्यों में इसे दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता हैं, साथ ही गुजरात में यह पर्व अत्यंत उत्साह के साथ, डांडिया तथा गरबा खेलकर, धूमधाम से मनाया जाता हैं। दोनों ही नवरात्रों में माताजी का पूजन विधिवत् किया जाता हैं। देवी के पूजन करने की विधि दोनों ही नवरात्रों में लगभग एक समान ही रहती हैं। इस त्यौहार पर सुहागन या कन्या, सभी अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या सम्पूर्ण नौ दिनों तक का व्रत रखते हैं तथा दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात व्रत खोला जाता हैं। नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में व्रत का संकल्प किया जाता हैं। अतः व्रत का संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जीतने दिन आपको व्रत रखना हैं। व्रत-संकल्प के पश्चात ही घट स्थापना की विधि प्रारंभ की जाती हैं। घट स्थापना सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में ही करना चाहिए, ऐसा करने से घर में सुख तथा समृद्धि व्याप्त रहती हैं।

हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा से पहले भगवान गणेश जी की पूजा का विधान हैं, अतः नवरात्र की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में श्री गणेश महाराज को स्थापित किया जाता हैं। नवरात्र के आरंभ की प्रतिपदा तिथि के दिन कलश या घट की स्थापना की जाती हैं। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता हैं।
आइये हम आपको बताते हैं, देवी माताजी के शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-

कलश स्थापना करते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

कृपया ध्यान दे:-
1.     नवरात्र में देवी पूजा के लिए जो कलश स्थापित किया जाता हैं, वह सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का ही होना चाहिए। लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में नहीं करना चाहिए।
2.     नवरात्र में कलश स्थापना किसी भी समय किया जा सकता हैं। नवरात्र के प्रारंभ से ही अच्छा समय प्रारंभ हो जाता हैं, अतः यदि जातक शुभ मुहूर्त में घट स्थापना नहीं कर पाते हैं तो वे सम्पूर्ण दिवस किसी भी समय कलश स्थापित कर सकते हैं।
3.     नवरात्रों में माँ भगवती की आराधना “दुर्गा सप्तसती” से की जाती है, परन्तु यदि समयाभाव है तो भगवान् शिव रचित “सप्तश्लोकी दुर्गा” का पाठ अत्यंत ही प्रभाव शाली है एवं दुर्गा सप्तसती का पाठ सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाला है।

शारदीय नवरात्र 2019 के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

29 सितम्बर रविवार शुभ के दिवस से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हो रहा हैं। तथा यह पर्व 08 अक्तूबर मंगलवार के दिन तक मनाया जाएगा। नवरात्र के प्रथम दिन अर्थात 29 सितम्बर रविवार के दिन को माता दुर्गाजी के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा होगी। पार्वती तथा हेमवती भी माँ शैलपुत्री के अन्य नाम हैं। इस वर्ष 2019 में देवी दुर्गा माताजी का आगमन हाथी पर होगा तथा उनका प्रस्थान चरणायुध पर होगा।
इस वर्ष, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 28 सितम्बर, शनिवार के रात्रि 11 बजकर 56 मिनिट से आरंभ हो कर 29 सितम्बर, रविवार की रात्रि 08 बजकर 14 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
अतः इस वर्ष 2019 में शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त 29 सितम्बर, रविवार की प्रातः 06 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 42 मिनट तक का रहेगा। यदि इस, चित्रा नक्षत्र के सर्वश्रेष्ट मुहूर्त में आप कलश स्थापना करेंगे तो आपके लिए यह लाभदायक एवं अत्यंत शुभ रहेगा।
आशा करता हु मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, यह जानकारी अपने दोस्तों के साथ इस विडियो के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा शेयर करे तथा हमारे चेंनल को सब्सक्राइब जरूर करे
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 नवरात्र तिथि | Dates of Navratra

पहला नवरात्र, प्रथमा तिथि, 29 सितम्बर 2019, दिन रविवार
दूसरा नवरात्र, द्वितीया तिथि, 30 सितम्बर 2019, दिन सोमवार.
तीसरा नवरात्र, तृतीया तिथि, 1 अक्तूबर 2019, दिन मंगलवार.
चौथा नवरात्र, चतुर्थी तिथि, 2 अक्तूबर 2019, बुधवार.
पांचवां नवरात्र पंचमी तिथि , 3 अक्तूबर 2019, बृहस्पतिवार.
छठा नवरात्र, षष्ठी तिथि, 4 अक्तूबर 2019, शुक्रवार.
सातवां नवरात्र, सप्तमी तिथि, 5 अक्तूबर 2019, शनिवार
आठवां नवरात्र, अष्टमी तिथि, 6 अक्तूबर 2019, रविवार
नौवां नवरात्र, नवमी तिथि, 7 अक्तूबर 2019, सोमवार
         दशहरा, दशमी तिथि, 8 अक्तूबर 2019, मंगलवार

07 September 2019

परिवर्तिनी एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Parivartini Ekadashi 2019 #EkadashiVrat

परिवर्तिनी एकादशी कब है 2019 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Parivartini Ekadashi 2019 #EkadashiVrat

parivartini ekadashi kab hai
parivartini ekadashi kab hai date
        वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। भगवानजी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती है, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, एवं रात्री जागरण करते है। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसमे भगवान विष्णु जी चातुर्मास की निद्रा में सोते हुए अपनी करवट बदलते हैं। अतः इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन आती है तथा यह एकादशी, पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जयझूलनी, डोल ग्यारस, पद्मा एकादशी तथा जयंती एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। पापियों के पाप का नाश करने के लिए परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से बड़ा कोई उपाय नहीं है। संसार से मोक्ष प्रदान करने वाली यह एक सर्वोत्तम एकादशी मानी गई है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान के वामन स्वरूप की पूजा करता है, उस मनुष्य को वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जैसे की आपको ज्ञात होगा की देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिये योगनिद्रा में शयन करते हैं। अतः इन चार महीनों को चतुर्मास कहा जाता है तथा धार्मिक कार्यों, ध्यान, भक्ति आदि के लिये यह समय अति उत्तम माना जाता है। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद तथा आश्विन यह चार मास धार्मिक रूप से चतुर्मास या चौमासा के नाम से जाने जाते हैं तथा ऋतुओं में यह काल वर्षा ऋतु का होता है। भगवान विष्णु चार मास की अवधि में देवशयनी एकादशी से शयन करते रहते हैं तथा परिवर्तिनी एकादशी पर अपनी करवट बदलते हैं तथा देव उठनी एकादशी के दिन ही जागृत होते हैं।


       परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण

        एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।

ध्यान रहे,
१.   एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।   
२.   यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही होता है।
३.   द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
४.   एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
५.   व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।
६.   व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
७.   जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है।
८.   यदि, कुछ कारणों की वजह से जातक प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

        इस वर्ष, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 08 सितम्बर, रविवार की रात्रि 10 बजकर 41 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 09 सितम्बर सोमवार की मध्य-रात्रि 12 बजकर 30 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
       
        अतः इस वर्ष 2019 में परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 09 सितम्बर, सोमवार के दिन किया जाएगा।
       
        इस वर्ष 2019 में, परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 10 सितम्बर, मंगलवार की प्रातः 07 बजकर 02 से 08 बजकर 46 मिनिट तक का रहेगा।

05 September 2019

अनंत चतुर्दशी 2019 | Anant Chaturdashi 2019 | Anant Chaudas ka Mahatva

अनंत चतुर्दशी 2019 | Anant Chaturdashi 2019 | Anant Chaudas ka Mahatva

anant chaudas 2019
anant chaudas ka mahatva
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता हैं। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी के रुप में मनाई जाती हैं। इस दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं तथा संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता हैं। । अनंत देव भगवान विष्णु का रूप माने जाते हैं। अतः अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि की पूजा की जाती हैं। इस पूजा में अनंत सूत्र का महत्व होता हैं। इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता हैं। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँधते हैं। जिसे स्त्री बायें एवम पुरुष दायें हाथ में पहनती हैं। यह अनंतसूत्र हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता हैं तथा सभी प्रकार के कष्टों का निवारण करता हैं। अनन्तसूत्र में बाँधी गई चौदह गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई हैं। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता हैं। इस दिन नये धागे के अनंत को धारण कर पुराने धागे के अनंत का विसर्जन किया जाता हैं ।
इस दिन गणेश विसर्जन भी होता हैं, अतः यह अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं एवम जैन धर्म ने इस दिन को पर्युषण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता हैं, इस दिन को संवत्सरी के नाम से जाना जाता हैं। इसे क्षमा वाणी भी कहा जाता हैं।
  अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त
anant chaudas 2019
anant chaudas
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता हैं। भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत किया जाता हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार यह तिथि सूर्योदय काल में तीन मुहूर्त्त अर्थात 6 घडी़ ग्रह करनी चाहिए यह मुख्य पक्ष होता हैं। शास्त्रानुसार यह तिथि पूर्वाहरण व्याएवं मध्याह्न व्यापिनी लेनी चाहिए तथा यह गौण पक्ष होता हैं। दोनों ही परिस्थितियों में भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत, पूजन तथा सूत्र बंधन के लिए शास्त्र सम्मत उपयुक्त हैं। इसके अतिरिक्त यह तिथि सूर्योदय के पश्चात कम से कम दो मुहूर्त्त अर्थात चार घडी़ विद्यमान हो तो भी ग्रह कि जा सकती हैं। इस वर्ष का शुभ मुहूर्त आप विडियो के डिसकृपसन में देख सकते हैं।


अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम

1। यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता हैं। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।

2। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान हैं। इस व्रत की पूजा तथा मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें ?
  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता हैं।
  • कलश की स्थापना की जाती हैं जिसमे कमल का पुष्प रखा जाता हैं तथा कुषा का सूत्र चढ़ाया जाता हैं।
  • भगवान एवम कलश को कुम कुम, हल्दी का रंग चलाया जाता हैं।
  • हल्दी से कुषा के सूत्र को रंगा जाता हैं।
  • अनंत देव का आव्हान कर उन्हें दीप, दूप एवम भोग लगाते हैं।
  • इस दिन भोजन में पूरी खीर बनाई जाती हैं।
  • पूजा के पश्चात सभी को अनंत सूत्र बाँधा जाता हैं।


भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता हैं। भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत किया जाता हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार यह तिथि सूर्योदय काल में तीन मुहूर्त्त अर्थात 6 घडी़ ग्रह करनी चाहिए यह मुख्य पक्ष होता हैं। शास्त्रानुसार यह तिथि पूर्वाहरण व्याएवं मध्याह्न व्यापिनी लेनी चाहिए तथा यह गौण पक्ष होता हैं। दोनों ही परिस्थितियों में भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत, पूजन तथा सूत्र बंधन के लिए शास्त्र सम्मत उपयुक्त हैं। इसके अतिरिक्त यह तिथि सूर्योदय के पश्चात कम से कम दो मुहूर्त्त अर्थात चार घडी़ विद्यमान हो तो भी ग्रह कि जा सकती हैं। इस वर्ष का शुभ मुहूर्त आप विडियो के डिसकृपसन में देख सकते हैं।
1। यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता हैं। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।
2। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान हैं। इस व्रत की पूजा तथा मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता हैं।

हिन्दू धर्म में महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता हैं। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन तथा रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला माना गया हैं। मान्यता हैं कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता हैं, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती हैं। धन-धान्य, सुख-संपदा तथा संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता हैं। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन हैं। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती हैं। यह भी मान्यता हैं की, जब पाण्डव जुएमें अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्रधारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रतके प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए। अतः इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता हैं।

जैन धर्म में महत्व

अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तिथि हैं।[1] यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का आख़री दिन होता हैं।

इस प्रकार अपने कष्टों को दूर करने हेतु सभी इस व्रत का पालन करते हैं। इस दिन देश के कई हिस्सों में गणेश विसर्जन किया जाता हैं। 10 दिनों तक गणपति को घर में बैठाकर इस दिन उनकी विदाई की जाती हैं। मुख्यतः यह गणेश विसर्जन महाराष्ट्र में किया जाता हैं जो पुरे देश में प्रसिद्द हैं।

अनंत चतुर्दशी की व्रत विधि

व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान हैं, तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके पश्चात ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांत अनन्तसूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ तथा स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-

अनन्तसूत्र मंत्र- इस प्रकार हैं

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के पश्चात व्रत-कथा को पढें या सुनें। कथा का सार-संक्षेप यह हैं- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा

एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा हैं? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र हैं। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया हैं, यह सब उसी का फल हैं। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता हैं। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता हैं। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती हैं। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।