05 September 2019

अनंत चतुर्दशी 2019 | Anant Chaturdashi 2019 | Anant Chaudas ka Mahatva

अनंत चतुर्दशी 2019 | Anant Chaturdashi 2019 | Anant Chaudas ka Mahatva

anant chaudas 2019
anant chaudas ka mahatva
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता हैं। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी के रुप में मनाई जाती हैं। इस दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं तथा संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता हैं। । अनंत देव भगवान विष्णु का रूप माने जाते हैं। अतः अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि की पूजा की जाती हैं। इस पूजा में अनंत सूत्र का महत्व होता हैं। इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता हैं। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँधते हैं। जिसे स्त्री बायें एवम पुरुष दायें हाथ में पहनती हैं। यह अनंतसूत्र हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता हैं तथा सभी प्रकार के कष्टों का निवारण करता हैं। अनन्तसूत्र में बाँधी गई चौदह गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई हैं। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता हैं। इस दिन नये धागे के अनंत को धारण कर पुराने धागे के अनंत का विसर्जन किया जाता हैं ।
इस दिन गणेश विसर्जन भी होता हैं, अतः यह अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं एवम जैन धर्म ने इस दिन को पर्युषण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता हैं, इस दिन को संवत्सरी के नाम से जाना जाता हैं। इसे क्षमा वाणी भी कहा जाता हैं।
  अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त
anant chaudas 2019
anant chaudas
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता हैं। भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत किया जाता हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार यह तिथि सूर्योदय काल में तीन मुहूर्त्त अर्थात 6 घडी़ ग्रह करनी चाहिए यह मुख्य पक्ष होता हैं। शास्त्रानुसार यह तिथि पूर्वाहरण व्याएवं मध्याह्न व्यापिनी लेनी चाहिए तथा यह गौण पक्ष होता हैं। दोनों ही परिस्थितियों में भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत, पूजन तथा सूत्र बंधन के लिए शास्त्र सम्मत उपयुक्त हैं। इसके अतिरिक्त यह तिथि सूर्योदय के पश्चात कम से कम दो मुहूर्त्त अर्थात चार घडी़ विद्यमान हो तो भी ग्रह कि जा सकती हैं। इस वर्ष का शुभ मुहूर्त आप विडियो के डिसकृपसन में देख सकते हैं।


अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम

1। यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता हैं। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।

2। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान हैं। इस व्रत की पूजा तथा मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें ?
  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता हैं।
  • कलश की स्थापना की जाती हैं जिसमे कमल का पुष्प रखा जाता हैं तथा कुषा का सूत्र चढ़ाया जाता हैं।
  • भगवान एवम कलश को कुम कुम, हल्दी का रंग चलाया जाता हैं।
  • हल्दी से कुषा के सूत्र को रंगा जाता हैं।
  • अनंत देव का आव्हान कर उन्हें दीप, दूप एवम भोग लगाते हैं।
  • इस दिन भोजन में पूरी खीर बनाई जाती हैं।
  • पूजा के पश्चात सभी को अनंत सूत्र बाँधा जाता हैं।


भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता हैं। भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत किया जाता हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार यह तिथि सूर्योदय काल में तीन मुहूर्त्त अर्थात 6 घडी़ ग्रह करनी चाहिए यह मुख्य पक्ष होता हैं। शास्त्रानुसार यह तिथि पूर्वाहरण व्याएवं मध्याह्न व्यापिनी लेनी चाहिए तथा यह गौण पक्ष होता हैं। दोनों ही परिस्थितियों में भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत, पूजन तथा सूत्र बंधन के लिए शास्त्र सम्मत उपयुक्त हैं। इसके अतिरिक्त यह तिथि सूर्योदय के पश्चात कम से कम दो मुहूर्त्त अर्थात चार घडी़ विद्यमान हो तो भी ग्रह कि जा सकती हैं। इस वर्ष का शुभ मुहूर्त आप विडियो के डिसकृपसन में देख सकते हैं।
1। यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता हैं। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।
2। यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान हैं। इस व्रत की पूजा तथा मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता हैं।

हिन्दू धर्म में महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता हैं। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन तथा रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला माना गया हैं। मान्यता हैं कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता हैं, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती हैं। धन-धान्य, सुख-संपदा तथा संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता हैं। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन हैं। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती हैं। यह भी मान्यता हैं की, जब पाण्डव जुएमें अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्रधारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रतके प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए। अतः इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता हैं।

जैन धर्म में महत्व

अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तिथि हैं।[1] यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का आख़री दिन होता हैं।

इस प्रकार अपने कष्टों को दूर करने हेतु सभी इस व्रत का पालन करते हैं। इस दिन देश के कई हिस्सों में गणेश विसर्जन किया जाता हैं। 10 दिनों तक गणपति को घर में बैठाकर इस दिन उनकी विदाई की जाती हैं। मुख्यतः यह गणेश विसर्जन महाराष्ट्र में किया जाता हैं जो पुरे देश में प्रसिद्द हैं।

अनंत चतुर्दशी की व्रत विधि

व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान हैं, तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके पश्चात ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांत अनन्तसूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ तथा स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-

अनन्तसूत्र मंत्र- इस प्रकार हैं

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के पश्चात व्रत-कथा को पढें या सुनें। कथा का सार-संक्षेप यह हैं- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा

एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा हैं? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र हैं। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया हैं, यह सब उसी का फल हैं। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता हैं। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता हैं। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती हैं। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

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