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07 October 2018

नवरात्र कलश स्थापना शुभ मुहूर्त | शारदीय नवरात्र 2018 | Ghat Sthapana | Shardiya Navratra 2018 #Navratra

नवरात्र कलश स्थापना शुभ मुहूर्त | शारदीय नवरात्र 2018 | Ghat Sthapana | Shardiya Navratra 2018 #Navratra

 

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥

        जय माता दी  

जय श्री कालका माँ

नवरात्र हिन्दुओं का अत्यंत पवित्र तथा प्रमुख त्यौहार हैं। नवरात्र की पूजा नौ दिनों तक होती हैं तथा इन नौ दिनों में माताजी के नौ भिन्न-भिन्न स्वरुपों की पूजा की जाती हैं। माताजी के नौ रूप इस प्रकार हैं- माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा माँ, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, माँ महागौरी तथा सिद्धिदात्रि माँ। प्रत्येक वर्ष में दो बार नवरात्र आते हैं, तथा गुप्त नवरात्र भी आते हैं। पहले नवरात्र का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से होता हैं। तथा अगले नवरात्र शारदीय नवरात्रे कहलाते हैं, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि तक रहते हैं। इन नवरात्रों के पश्चात दशहरा या विजयादशमी पर्व मनाया जाता हैं। यह नवरात्र आश्विन मास के शरद ऋतू में आते हैं, अतः इन नवरात्रों को शारदीय नवरात्र कहा जाता हैं। यह नवरात्र को सभी नवरात्रों में सर्वाधिक प्रमुख तथा महत्वपूर्ण माना गया हैं, अतः शारदीय नवरात्रों को महा-नवरात्रि भी कहा जाता हैं। यह त्यौहार गुजरात तथा बंगाल के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत-वर्ष में अत्यंत धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। माताजी के इस त्योहार को सम्पूर्ण उत्तर भारत में नवरात्र कहा जाता हैं, वहीं पश्चिम बंगाल तथा उसके आसपास के राज्यों में इसे दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता हैं, साथ ही गुजरात में यह पर्व अत्यंत उत्साह के साथ, डांडिया तथा गरबा खेलकर, धूमधाम से मनाया जाता हैं। दोनों ही नवरात्रों में माताजी का पूजन विधिवत् किया जाता हैं। देवी के पूजन करने की विधि दोनों ही नवरात्रों में लगभग एक समान ही रहती हैं। इस त्यौहार पर सुहागन या कन्या, सभी अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या सम्पूर्ण नौ दिनों तक का व्रत रखते हैं तथा दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात व्रत खोला जाता हैं। नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में व्रत का संकल्प किया जाता हैं। अतः व्रत का संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जीतने दिन आपको व्रत रखना हैं। व्रत-संकल्प के पश्चात ही घट स्थापना की विधि प्रारंभ की जाती हैं। घट स्थापना सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में ही करना चाहिए, ऐसा करने से घर में सुख तथा समृद्धि व्याप्त रहती हैं।

हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा से पहले भगवान गणेश जी की पूजा का विधान हैं, अतः नवरात्र की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में श्री गणेश महाराज को स्थापित किया जाता हैं। नवरात्र के आरंभ की प्रतिपदा तिथि के दिन कलश या घट की स्थापना की जाती हैं। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता हैं।

आइये हम आपको बताते हैं, देवी माताजी के शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-

कलश स्थापना करते समय इन बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

कृपया ध्यान दे:-

1.     नवरात्र में देवी पूजा के लिए जो कलश स्थापित किया जाता हैं, वह सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का ही होना चाहिए। लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में नहीं करना चाहिए।

2.     नवरात्र में कलश स्थापना किसी भी समय किया जा सकता हैं। नवरात्र के प्रारंभ से ही अच्छा समय प्रारंभ हो जाता हैं, अतः यदि जातक शुभ मुहूर्त में घट स्थापना नहीं कर पाते हैं तो वे सम्पूर्ण दिवस किसी भी समय कलश स्थापित कर सकते हैं।

3.     नवरात्रों में माँ भगवती की आराधना “दुर्गा सप्तसती” से की जाती है, परन्तु यदि समयाभाव है तो भगवान् शिव रचित “सप्तश्लोकी दुर्गा” का पाठ अत्यंत ही प्रभाव शाली है एवं दुर्गा सप्तसती का पाठ सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाला है।

 

शारदीय नवरात्र 2018 के कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

10 अक्तूबर बुधवार के दिन से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हो रहा हैं। तथा यह पर्व 19 अक्तूबर शुक्रवार के दिन तक मनाया जाएगा। नवरात्र के प्रथम दिन अर्थात 10 अक्तूबर बुधवार के दिन को माता दुर्गाजी के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा होगी। पार्वती तथा हेमवती भी माँ शैलपुत्री के अन्य नाम हैं। इस वर्ष 2018 में देवी दुर्गा माताजी का आगमन नाव पर होगा तथा उनका प्रस्थान हाथी पर होगा।

इस वर्ष 2018 में, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 09 अक्टूबर, मंगलवार के दिन प्रातः 09 बजकर 16 मिनिट से आरंभ हो कर 10 अक्टूबर, बुधवार के दिन प्रातः 07 बजकर 25 तक व्याप्त रहेगी।

अतः इस वर्ष 2018 में शारदीय नवरात्र के कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त 10 अक्टूबर 2018, बुधवार के दिन प्रातः 06 बजकर 37 मिनट से 7 बजकर 25 मिनट तक का रहेगा। यदि इस, चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग के सर्वश्रेष्ट मुहूर्त में आप कलश स्थापना करेंगे तो आपके लिए यह लाभदायक एवं अत्यंत शुभ रहेगा।

आशा करता हु मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, यह जानकारी अपने दोस्तों के साथ इस विडियो के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा शेयर करे तथा हमारे चेंनल को सब्सक्राइब जरूर करे

Kalash Sthapana Muhurt 2018
Kalash Sthapana Muhurt 2018

धन्यवाद!

28 September 2018

अनंत चतुर्दशी | Anant Chaturdashi | Vrat Puja Vidhi Katha in hindi


अनंत चतुर्दशी  | Anant Chaturdashi | Vrat Puja Vidhi Katha in hindi


अनंत चतुर्दशी 2018 तारीख व पूजा मुहूर्त अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त अनंत चतुर्दशी गणेश विसर्जन कब मनाई जाती हैं ? Anant Chaturdashi Ganesh Visarjan 2018 Date and muhurt अनंत चतुर्दशी मुहूर्त्त | Anant Chaturdashi Muhurat हिन्दू धर्म में महत्व अनंत चतुर्दशी का महत्व जैन धर्म में महत्व अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम अनंत चतुर्दशी व्रत कथा एवम पूजा विधि | Anant Chaturdashi Vrat Katha Pooja Vidhi In Hindi अनंत चतुर्दशी या गणेश विसर्जन व्रत कथा एवम पूजा विधि Anant Chaturdashi or Ganesh Visarjan Vrat Katha Pooja Vidhi In Hindi अनंत चतुर्दशी पूजा विधि | Anant Chaturdashi Worship अनंत चतुर्दशी व्रत तथा पूजा विधि अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें ? Anant Chaturdashi Vrat Puja Vidhi in hindi अनंत चतुर्दशी की कथा अनंत चतुर्दशी व्रत कथा Anant Chaturdashi Vrat Katha अनंत चतुर्दशी  कथा | Anant Chaturdashi Story


अनन्तसूत्र मंत्र
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

          भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी अनन्त चतुर्दशी के रुप में मनाई जाती है। इस दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं तथा संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है। । अनंत देव भगवान विष्णु का रूप माने जाते हैं। अतः अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि की पूजा की जाती है। इस पूजा में अनंत सूत्र का महत्व होता हैं। इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुमकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे लगाकर राखी की तरह का अनंत बनाया जाता है। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँधते हैं। जिसे स्त्री बायें एवम पुरुष दायें हाथ में पहनती हैं। यह अनंतसूत्र हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है तथा सभी प्रकार के कष्टों का निवारण करता हैं। अनन्तसूत्र में बाँधी गई चौदह गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता है। इस दिन नये धागे के अनंत को धारण कर पुराने धागे के अनंत का विसर्जन किया जाता है ।
       इस दिन गणेश विसर्जन भी होता हैं, अतः यह अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं एवम जैन धर्म ने इस दिन को पर्युषण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता है, इस दिन को संवत्सरी के नाम से जाना जाता हैं। इसे क्षमा वाणी भी कहा जाता हैं।

       आज हम आपको बताएँगे अनंत चतुर्दशी व्रत का शुभ मुहूर्त्त, अनंत चतुर्दशी का महत्व, अनंत चतुर्दशी का जैन धर्म में महत्व, अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें ?, अनंत चतुर्दशी व्रत-विधि तथा अनन्तसूत्र मंत्र एवं अनंत चतुर्दशी की व्रत-कथा

 अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त्त

       भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत किया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यह तिथि सूर्योदय काल में तीन मुहूर्त्त अर्थात 6 घडी़ ग्रहण करनी चाहिए यह मुख्य पक्ष होता है। शास्त्रानुसार यह तिथि पूर्वाहरण एवं मध्याह्न व्यापिनी लेनी चाहिए तथा यह गौण पक्ष होता है। दोनों ही परिस्थितियों में भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत, पूजन तथा सूत्र बंधन के लिए शास्त्र सम्मत उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त यह तिथि सूर्योदय के पश्चात कम से कम दो मुहूर्त्त अर्थात चार घडी़ विद्यमान हो तो भी ग्रह कि जा सकती है। इस वर्ष का शुभ मुहूर्त आप विडियो के डिसकृपसन में देख सकते है।

 

अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम

1 यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।
2 यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा तथा मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

अनंत चतुर्दशी का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन तथा रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा तथा संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है। यह भी मान्यता है की, जब पाण्डव जुएमें अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्रधारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रतके प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए। अतः इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है।

अनंत चतुर्दशी का जैन धर्म में महत्व
अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तिथि है।[1] यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का आख़री दिन होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें ?

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता हैं।
  • कलश की स्थापना की जाती हैं जिसमे कमल का पुष्प रखा जाता हैं तथा कुषा का सूत्र चढ़ाया जाता हैं।
  • भगवान एवम कलश को कुम कुम, हल्दी का रंग चलाया जाता हैं।
  • हल्दी से कुषा के सूत्र को रंगा जाता हैं।
  • अनंत देव का आव्हान कर उन्हें दीप, दूप एवम भोग लगाते हैं।
  • इस दिन भोजन में पूरी खीर बनाई जाती हैं।
  • पूजा के पश्चात सभी को अनंत सूत्र बाँधा जाता हैं।
इस प्रकार अपने कष्टों को दूर करने हेतु सभी इस व्रत का पालन करते हैं। इस दिन देश के कई हिस्सों में गणेश विसर्जन किया जाता हैं। 10 दिनों तक गणपति को घर में बैठाकर इस दिन उनकी विदाई की जाती हैं। मुख्यतः यह गणेश विसर्जन महाराष्ट्र में किया जाता हैं जो पुरे देश में प्रसिद्द हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत-विधि
व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके पश्चात ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांत अनन्तसूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ तथा स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-
अनन्तसूत्र मंत्र- इस प्रकार है
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
 
       अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के पश्चात व्रत-कथा को पढें या सुनें।

अनंत चतुर्दशी की व्रत-कथा
   एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।

       भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।
 

अनन्तसूत्र मंत्र
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।