आज हम आप को भगवान श्री भोले शिवशंकर जी के ३ अत्यंत
शक्तिशाली, अद्भुत तथा चमत्कारी श्लोक के बारे में बताएँगे!
जो मनुष्य,
प्रातःकाल उठकर, शिवजीका ध्यान कर, प्रतिदिन इन तीनो श्लोकोका पाठ करे, सुने या
स्मरण करने से अनेक जन्मोके संचित दुःख से मुक्ति मिलती है, जीवन कल्याणमय व्यतीत
होता है, तथा उसे मरण उपरांत शिवधाम की प्राप्ति होती हैं!
शिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम्
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्वाङ्ग शूलवरदाभय हस्तमीशं
संसार रोगहरमौषध मद्वितीयम् ॥१॥
अर्थ :- जो सांसारिक भय को हरनेवाले और सभी देवताओं के
स्वामी हैं
जो गंगा जी धारण करते हैं, जिनका वाहन वृषभ हैं, जो अम्बिका
के स्वामी हैं तथा जिनके हाथ मैं खट्वाङ्ग, त्रिशूल और वरद तथा अभय मुद्रा हैं, उन
संसार-रोगको हरने के निमित्त अद्वितीय औषधरूप महादेवजी का मैं स्मरण करता हु ॥१॥
Praatah
Smaraami Bhava-Bhiiti-Haram Suresham
Ganggaa-Dharam
Vrssabha-Vaahanam- Ambikesham |
Khattvaangga-Shoola-Varada-Abhaya-Hastam-Eesham
Samsaara-Roga-Haram-Aussadham-Advitiiyam
||1||
Meaning:
1.1
In the Early Morning, I Remember Sri Shiva, Who Destroys the Fear of Worldly
Existence and Who is the Lord of the Devas,
1.2
Who Holds River Ganga on His Head, Who has a Bull as His Vehicle and Who is the
Lord of Devi Ambika,
1.3
Who has a Club and Trident in His two Hands, And confers Boon and Fearlessness
with His other two Hands and Who is the Lord of the Universe,
1.4
Who is the Medicine to Destroy the Disease (of Delusion) of Worldly Existence
and Who is the One without a second.
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थिति प्रलय कारणमादिदेवम् ।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं
संसार रोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥२॥
अर्थ – भगवती पार्वती जिनका अध अंग हैं, जो
संसारकी सृष्टि, स्थिति और प्रलायके कारण हैं, आदिदेव हैं, विश्वनाथ हैं,
विश्व-विजयी और मनोहर हैं, सांसारिक रोगको नष्ट करने के लिए अद्वितीय और औषधरूप उन
गिरीश (भोलेनाथ) को मैं का मैं स्मरण करता हु ॥२॥
Praatar-Namaami
Giriisham Girija-Ardha-Deham
Sarga-Sthiti-Pralaya-Kaaranam-Aadi-Devam
|
Vishva-Eeshvaram
Vijita-Vishva-Manobhiraamam
Samsaara-Roga-Haram-Aussadham-Advitiiyam
||2||
Meaning:
2.1
In the Early Morning, I Salute Sri Girisha (Shiva), Who has Devi Girija
(Parvati) as Half of His Body,
2.2
Who is the Primordial Cause behind the Creation, Maintenance and Dissolution of
the Universe,
2.3
Who is the Lord of the Universe and Who Conquers the World by His Charm,
2.4
Who is the Medicine to Destroy the Disease (of Delusion) of Worldly Existence
and Who is the One without a second.
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् ।
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं
संसार रोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥३॥
अर्थ- जो अन्त से रहित आदिदेव हैं, वेदान्तसे जानने योग्य,
पापरहित एवं महान पुरुष हैं, तथा जो नाम आदि भेंदोसे रहित, छ विकारो (जन्म,
वृद्धि, स्थिरता, परिणमन, अपक्षय और विनाश) से शुन्य हैं, संसाररोगको हरनेके
निमित्त अद्वितीय औषध हैं, उन एक शिवजीको में प्रातःकाल भजता हूँ ॥३॥
Praatar-Bhajaami
Shivam-Ekam-Anantam-Adyam
Vedaanta-Vedyam-Anagham
Purussam Mahaantam |
Naama-Aadi-Bheda-Rahitam
Sshadd-Bhaava-Shoonyam
Samsaara-Roga-Haram-Aussadham-Advitiiyam
||3||
Meaning:
3.1
In the Early Morning, I Worship Sri Shiva Who is the One without a second, Who
is Boundless and Infinite and Who is Primordial,
3.2
Who is Known only by Understanding the Vedanta, Who is Sinless and Faultless,
Who is the Primeval Original Source of the Universe and Who is the Great One,
3.3
Who is Free from the Differences of Names etc and Who is Without the Six
Modifications (of Birth, Existence, Growth, Maturity and Death),
3.4
Who is the Medicine to Destroy the Disease (of Delusion) of Worldly Existence and Who is the One without a
second.
फलश्रुतिः –
प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य श्लोकांस्त्रयं येऽनुदिनं पठन्ति ।
ते दुःखजातं बहुजन्मसञ्चितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भोः ॥
अर्थ – जो मनुष्य, प्रातःकाल उठकर,
शिवजीका ध्यान कर, प्रतिदिन इन तीनो श्लोकोका पाठ करते हैं,
वे लोग अनेक जन्मोके संचित दुःखसमूह से
मुक्त होकर शिवजीके उसी कल्याणमय पदको पाते है!
कर्पूरगौरं करुणावतार संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्द भवं भवानीसहितं नमामि ॥
arpuura-Gauram
Karunna-Avataaram
Samsaara-Saaram Bhujage[a-I]ndra-Haaram |
Sadaa-Vasantam Hrdaya-Aravinde
Bhavam Bhavaanii-Sahitam Namaami ||
सदावसन्तं हृदयारविन्द भवं भवानीसहितं नमामि ॥
Samsaara-Saaram Bhujage[a-I]ndra-Haaram |
Sadaa-Vasantam Hrdaya-Aravinde
Bhavam Bhavaanii-Sahitam Namaami ||
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