29 June 2020

देवशयनी एकादशी कब है 2020 | तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Devshayani Ekadashi kab hai 2020 date

देवशयनी एकादशी कब है 2020 | तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Devshayani Ekadashi kab hai 2020 date

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देवशयनी एकादशी विशेष हरिशयन मंत्र :-

सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
        विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
अर्थात - हे प्रभु! आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है तथा आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर तथा अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है तथा जागती है। आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें। श्री हरि की कृपा सभी पर सदा बनी रहे।
हरि ॐ 🙏🙏

वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जिसमें भगवान विष्णु जी का क्षीरसागर में चार मास की अवधि के लिए शयनकाल प्रारम्भ हो जाता हैं, अतः आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता हैं। देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी तथा हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु योग-निद्रा में चले जाते हैं तथा देवशयनी एकादशी के चार मास के पश्चात प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु पुनः जागते हैं। अतः प्रबोधिनी एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता हैं। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास काल कहा गया हैं। अतः सम्पूर्ण वर्ष में देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक महीने की शुक्ल एकादशी अर्थात देवउठनी एकादशी तक यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, गृह निर्माण, ग्रहप्रवेश, यज्ञ आदि धर्म कर्म से जुड़े प्रत्येक शुभ कार्य करना अच्छा नहीं माना जाता हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया हैं। इस एकादशी के व्रत से मनुष्योकी समस्त मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं। व्रती के प्रत्येक पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। यह भी कहा गया हैं की, यदि जातक चातुर्मास का सच्चे वचन से, विधिपूर्वक पालन करें तो उसे मरणोपरांत मोक्ष अवश्य प्राप्त होता हैं।

 

देवशयनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 जून, मंगलवार की साँय 07 बजकर 49 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 01 जुलाई, बुधवार की साँय 05 बजकर 29 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में देवशयनी एकादशी का व्रत 01 जुलाई, बुधवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, देवशयनी एकादशी का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 02 जुलाई, गुरुवार की प्रातः 05 बजकर 51 से 8 बजकर 28 मिनिट तक का रहेगा।

 

(द्वादशी समाप्त होने का समय- 15:16)


19 June 2020

सूर्य ग्रहण कब लगने वाला है 2020 सूतक समय | Surya Grahan 2020 Date and Time in India | Solar Eclipse June 2020

सूर्य ग्रहण कब लगने वाला है 2020 सूतक समय | Surya Grahan 2020 Date and Time in India | Solar Eclipse June 2020

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ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै॥

 

सनातन हिन्दु धर्म के अनुसार सूर्यग्रहण एक धार्मिक घटना हैं जिसका धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व हैं। जो सूर्यग्रहण खुली आँखों से स्पष्ट दृष्टिगत न हो तो उस सूर्यग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता हैं। 21 जून, 2020, रविवार का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि तथा मृगशिरा नक्षत्र में लगेगा। इस सूर्य ग्रहण पर, 6 ग्रह - बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु सभी एक साथ वक्री रहेंगे। इन छह ग्रह का वक्री होना अर्थात अत्यंत बड़ी हलचल।

इसका परिमाण 0.99 होगा। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि, चन्द्रमा की छाया सूर्य का मात्र 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वलयाकार आकृति बनायेगी। इस सूर्य ग्रहण की सर्वाधिक लम्बी अवधि केवल 38 सेकण्ड की होगी।

यह सूर्य ग्रहण अधिकांश भू-मंडल पर दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूऐई, एथोपिया तथा कोंगों में दिखाई देगा।

देहरादून, सिरसा तथा टिहरी आदि स्थान से वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देगा।

नई दिल्ली, चंडीगढ़, मुम्बई, कोलकाता, हैंदराबाद, बंगलौर, लखनऊ, चेन्नई, शिमला, रियाद, अबू धाबी, कराची, बैंकाक तथा काठमांडू आदि स्थान से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।

यह सूर्य ग्रहण उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देशों तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के अधिकांश हिस्सों से दिखाई नहीं देगा। साथ ही, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन तथा कुछ अन्य यूरोपीय महाद्वीप के देशों से सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।

इस बार का सूर्य ग्रहण, एक दुर्लभ खगोलीय घटना का निर्माण कर रहा हैं। यह ग्रहण 25 वर्षों पूर्व 24 अक्तूबर 1995 के दिन घटित हुए सूर्य ग्रहण की याद दिलाएगा। उस दिन भी ऐसे सूर्य ग्रहण के चलते दिन में ही सम्पूर्ण अंधेरा छा गया था। पक्षी अपने घोंसलों में लौट आए थे तथा हवा भी ठंडी हो गई थी। यह ग्रहण ऐसे दिन होने जा रहा हैं, जब उसकी किरणें कर्क रेखा पर सीधी गिरती हैं। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन तथा सबसे छोटी रात होती हैं।

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कंकणाकृति के ग्रहण के समय सूर्य किसी कंगन की भांति दिखाई देता हैं। अतः इस ग्रहण को कंकणाकृति ग्रहण कहा जाता हैं। हालांकि कंकणाकृति होने का अर्थ यह हैं कि इस ग्रहण से विषाणुजन्य रोग नियंत्रण में आना प्रारम्भ हो जाएगा, किन्तु अन्य विषयों में यह ग्रहण अनिष्टकारी प्रतीत हो रहा हैं।

 

आंशिक/खण्डग्रास सूर्य ग्रहण -

इस वर्ष 21 जून 2020, रविवार के दिन सूर्य ग्रहण हैं।

 

ग्रहण प्रारम्भ काल - 10:11

परमग्रास - 11:52

ग्रहण समाप्ति काल - 01:42

अधिकतम परिमाण - 0.80

 

ग्रहण का सूतक प्रारम्भ -

20 जून 2020, शनिवार की रात्रि 09:54

बच्चों, वृद्धों तथा अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ -

21 जून 2020, रविवार की प्रातः 05:37

 

ग्रहण का सूतक समाप्त सभी के लिए-

21 जून 2020, रविवार की दोपहर 01:42

 

यह सूर्य ग्रहण प्रत्येक राशि के जातकों को इस प्रकार फल प्रदान करेगा -

मेष - मिश्र            वृष    - अशुभ

मिथुन - मिश्र        कर्क - शुभ

सिंह - मिश्र          कन्या - अशुभ

तुला - शुभ          वृश्चिक - मिश्र

धनु - अशुभ         मकर - अशुभ

कुंभ - शुभ           मीन - शुभ

 

पृथ्वी का चंद्रमा, आकार के अनुसार सूर्य से अत्यंत छोटा हैं। सूर्य, चन्द्र से 400 गुना बड़ा हैं। किन्तु सूर्य उतना ही चंद्रमा से अधिक दूरी पर स्थित हैं, अतः जब ग्रहण घटित होता हैं, तो दोनों का आकार हमें पृथ्वी से देखने पर एक समान ही दिखता हैं। चंद्रमा सूर्य की किरणों को पृथ्वी पर आने से रोक देता हैं। अतः ग्रहण के समय, सूर्य सम्पूर्ण रूप से ढंक जाता हैं।

Vinod Pandey
Pt Vinod Pandey

सूर्य ग्रहण को भूलकर भी खाली आंखों से देखने की भूल नहीं करनी चाहिये। यह आंखों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। ऐसा करने से आपके आंखों की रोशनी जा सकती हैं। ग्रहण को देखने के लिए सदैव सोलर चश्मा पहनना अति आवश्यक हैं।


16 June 2020

योगिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Yogini Ekadashi 2020

योगिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Yogini Ekadashi 2020

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वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जिसका व्रत रखने से समस्त पाप-कर्मो का नाश हो जाता हैं तथा भूलोक पर परम-सुख तथा परलोक सिधारने पर मोक्ष प्रदान करता हैं। अतः असाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। योगिनी एकादशी व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समकक्ष फल प्रदान करता हैं। किसी भी श्राप से मुक्ति प्राप्त करने हेतु, यह व्रत कल्प-वृक्ष के समान हैं। योगिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से प्रत्येक प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति प्राप्त होती हैं। व्रती के जीवन में समृद्धि तथा आनन्द की प्राप्ति होती हैं।

भगवान श्री हरी विष्णुजी की कृपादृष्टि प्राप्त करने हेतु उनके प्रत्येक परम भक्तों को एकादशी व्रत करने का उपाय बताया जाता हैं। योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से, इस दिवस पूजा तथा दान आदि करने से जातक जीवन में प्रत्येक प्रकार के सुख का भोग करते हुए, अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता हैं तथा व्रती के प्रत्येक प्रकार के पाप-कर्मो का भी नाश हो जाता हैं। योगिनी एकादशी के शुभ दिवस भगवान विष्णु जी के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती हैं तथा मिश्री का सागार लिया जाता हैं, साथ ही, एकादशी व्रत के सम्पूर्ण समय ॐ नमो भगवते वासुदेवायमंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिये।

 

योगिनी एकादशी व्रत का पारण

एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

 

ध्यान रहे,

१- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

२- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 

इस वर्ष, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 16 जून, मंगलवार की प्रातः 05 बजकर 39 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 17 जून, बुधवार की प्रातः 07 बजकर 49 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में योगिनी एकादशी का व्रत 17 जून, बुधवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, योगिनी एकादशी पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 18 जून, गुरुवार की प्रातः 05 बजकर 47 से 08 बजकर 24 मिनिट तक रहेगा।

द्वादशी समाप्त होने का समय - 09:39 बजे


12 June 2020

नवीन गृह प्रवेश वास्तु हवन पूजन सामग्री लिस्ट - Navin Griha Pravesh Puja Samagri List

नवीन गृह प्रवेश वास्तु हवन पूजन सामग्री लिस्ट

Navin Griha Pravesh Puja Samagri List

        - पंडित विनोद पांडे (7878489588) http://www.vkjpandey.in

griha pravesh samagri list
griha pravesh puja samagri

1) भगवान जी प्रतिमा या तस्वीर

2) लकडी की चौकी - 1

3) केले के पत्ते

4) मिट्टी या तांबे का कलश व ढक्कन - 01

5) श्री फल/नारियल - 1 सबूत व 1 छिला हुआ

6) तुलसी-पत्र

7) लोटा - 02

8) चम्मच - 03

9) कटोरी - 05

10) थाली - 03 बड़ी

11) सुपारी - 02 बड़ी व 02 छोटी

12) लौंग व इलायची - 10 ग्राम

13) पान के पत्ते - 02 कपूरी

14) रोली - 50 ग्राम

15) मोली - 1 गोली

16) जनेऊ - 02

17) कच्चा दूध - 250 ग्राम

18) दही - 150 ग्राम

19) देशी घी - 500 ग्राम

20) शहद - 50 ग्राम

21) शक्कर/खांड - 250 ग्राम

22) गुड- 100 ग्राम

23) सबूत चावल - 3 कटोरी

24) मिठाई/प्रसाद - श्रद्धा अनुसार

25) पांच मेवा (गरी/नारियल), चिरौंजी, बादाम, छुहारा और किशमिश का मिश्रण) - 100 ग्राम

26) ऋतुफल - श्रद्धा अनुसार

27) फूल/फूल माला - एक माला

28) धूप/अगरबत्ती -1 पैकेट

29) जौ - 500 ग्राम

30) काले तिल -100 ग्राम

31) हल्दी - 50 ग्राम

32) हल्दी की गाँठ - 01 गाँठ

33) लाल चन्दन - 10 रू

34) मिट्टी/तांबे का बड़ा दीया - 02

35) मिट्टी के छोटे दीये - 02

36) रूई/बाती (सबूत) - 1 पैकेट छोटा

37) पीला/लाल कपडा - सवा मीटर

38) सफ़ेद कपडा- सवा मीटर

39) कपूर - 20 टिक्की बड़ी

40) सबूत उडद की दाल - 250 ग्राम

41) गंगाजल- 250 मिली

42) इत्र- छोटी सीसी

43) दूर्वा/दुप- थोडा सा

44) आम के पत्ते - 11 पत्ते

45) आम की लकड़ियाँ - 1.25 किलो

46) हवन कुंड - 01

47) हवन सामग्री - 1 छोटा पेक

नोट शक्कर गुड वाली होनी चाहिए। चावल टूटे हुए न हो। पंच मेवा में बादाम, छुहारे, किशमिश, मखाने, काजू पांच होने चाहिए। पंच मिठाई में बुन्दी के लड्डू, बर्फी, बेसन के लड्डू या बर्फी, मिल्क केक, कलाकन्द, नारियल की बर्फी या कोई भी सुखी मिठाई लेनी हैं। ऋतु फल मौसम के कोई भी पांच फल लेने हैं। जिसमें केला, अनार लेना जरूरी हैं। तीन फल कुछ भी मौसम वाले फल ले सकते हैं। भगवती श्रृंगार में अपने हाथ की चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी, हार, माला, कंघा, दर्पण, सैंट, जो आप उपयोग में स्वयं के लिए लाते हैं। भगवती की साड़ी काले, नीले रंग की ना हो। सुनार से चांदी की देवी की मूर्ति में सोने की बिंदी मस्तक में लगवा दे। दूध,दही, पान के पत्ते चाहिए। हलुआ के स्थान पर आटे का घी में चूर्ण (कषार, महाभोग) सूखा प्रसाद बना सकते हैं। पूजन कोई भी हो लकडी की चौकी जरूर होनी चाहिए।

 

                        - पंडित विनोद पांडे (7878489588) http://www.vkjpandey.in

गृह प्रवेश की पूजा विधि

सबसे पहले गृह प्रवेश के लिये दिन, तिथि, वार एवं नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए, गृह प्रवेश की तिथि और समय का निर्धारण किया जाता हैं। गृह प्रवेश के लिये शुभ मुहूर्त का ध्यान जरूर रखें। इस सब के लिये एक विद्वान ब्राह्मण की सहायता लें, जो विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण कर गृह प्रवेश की पूजा को संपूर्ण करता हैं।

 

इन बातों का रखें ध्यान

माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ माह को गृह प्रवेश के लिये सबसे सही समय बताया गया हैं। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, पौष इसके लिहाज से शुभ नहीं माने गए हैं। मंगलवार के दिन भी गृह प्रवेश नहीं किया जाता विशेष परिस्थितियों में रविवार और शनिवार के दिन भी गृह प्रवेश वर्जित माना गाया हैं। सप्ताह के बाकी दिनों में से किसी भी दिन गृह प्रवेश किया जा सकता हैं। अमावस्या व पूर्णिमा को छोड़कर शुक्लपक्ष 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, और 13 तिथियां प्रवेश के लिये बहुत शुभ मानी जाती हैं।


05 June 2020

5 जून से 5 जुलाई 2020 के बीच एक महीने के अंतराल में तीन बड़े ग्रहण हैं | ज्योतिष भविष्यवाणी | lunar eclipse 5 june 2020

5 जून से 5 जुलाई 2020 के बीच एक महीने के अंतराल में तीन बड़े ग्रहण हैं | ज्योतिष भविष्यवाणी 

lunar eclipse 5 june 2020
chandra grahan

हिन्दु धर्म में ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व होता हैं। जो ग्रहण नग्न आँखों से स्पष्ट दृष्टिगत न हो तो उस ग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता हैं। उपच्छाया वाले ग्रहण नग्न आँखों से दृष्टिगत नहीं होते हैं, अतः उनका पञ्चाङ्ग में समावेश नहीं होता हैं तथा कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता हैं। केवल प्रच्छाया वाले ग्रहण, जो कि नग्न आँखों से दृष्टिगत होते हैं, धार्मिक कर्मकाण्ड के लिये विचारणीय होते हैं।

यदि ग्रहण आपके स्थान पर दर्शनीय नहीं हो, परन्तु अन्य देशों अथवा नगरों में दर्शनीय हो तो कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता हैं। किन्तु मौसम के कारण ग्रहण दर्शनीय न हो तो ऐसी स्थिति में ग्रहण के सूतक का अनुसरण किया जाता हैं तथा ग्रहण से सम्बन्धित प्रत्येक सावधानियों का पालन भी किया जाता हैं।

ग्रहण एक खगोलीय घटना हैं इसका जितना महत्व विज्ञान के लिए हैं उतना ही महत्व इसका ज्योतिष के दृष्टिकोण से भी हैं। मान्यता हैं कि, जब भी ग्रहण लगता हैं, तो उसका प्रभाव प्रत्येक राशि के जातकों पर पड़ता हैं। जून से जुलाई के महीने में तीन ग्रहण लगने जा रहे हैं। 5 जून को वर्ष का दूसरा चंद्र ग्रहण लगेगा, 21 जून को सूर्य ग्रहण तथा उसके पश्चात 05 जुलाई को पुनः चंद्र ग्रहण लगेगा।

 

ग्रहण का प्रभाव क्या रहेगा? ज्योतिष भविष्यवाणी

ज्योतिष के अनुसार भी ग्रहण का लगना तथा उसके प्रभावों की भविष्यवाणी की जाती हैं। ज्योतिष अनुसार जब भी किसी महीने में दो से अधिक ग्रहण पड़े तथा उन पर किसी पापी ग्रहों का प्रभाव रहे तो वह समय जनता के लिए अत्यंत कष्टकारक सिद्ध हो जाता हैं। इस वर्ष 5 जून से 5 जुलाई के बीच तीन ग्रहण लगने जा रहे हैं। 5 से 6 जून के बीच लगने वाला ग्रहण ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अफ्रीका तथा भारत में भी दिखाई देगा। 21 जून को लगने वाला ग्रहण भारत सहित एशिया के कई अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ यूरोप तथा अफ्रीका में भी दिखाई देगा। उसके पश्चात 5 जुलाई को लगने वाला ग्रहण अफ्रीका तथा अमेरिका में भी दिखेगा। यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा।

ज्योतिष अनुसार 21 जून को लगने वाला ग्रहण अधिक संवेदनशील होगा। जो मिथुन राशि तथा मृगशिरा नक्षत्र में लगेगा। अतः मिथुन राशि वालों पर इस ग्रहण का सर्वाधिक प्रभाव रहेगा। इस ग्रहण के दौरान कुल 6 ग्रह वक्री अवस्था में होंगे। मंगल जलीय राशि मीन में स्थित होकर सूर्य, बुध, चंद्रमा तथा राहु को देखेंगे जिससे अशुभ स्थिति का निर्माण होगा। जिस कारण संपूर्ण विश्व में बड़ी उथल-पुथल मच सकती हैं।

ज्योतिष अनुसार ग्रहों के वक्री होने से प्राकृतिक आपदाओं जैसे की अत्यधिक वर्षा, समुद्री चक्रवात, तूफान, महामारी आदि से जन धन की हानि होने का खतरा हैं। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा बांग्लादेश को जून के अंतिम मास तथा जुलाई में भयंकर वर्षा से जूझना पड़ सकता हैं। इस वर्ष मंगल जल तत्व की राशि मीन में पांच माह तक रहेंगे। ऐसे में वर्षा काल में असामान्य रूप से अत्यधिक वर्षा तथा महामारी का भय रहेगा। शनि, मंगल तथा गुरु इन तीनों ग्रहों के प्रभाव से विश्व में आर्थिक मंदी का प्रभाव वर्ष भर बना रहेगा। किन्तु भारत की कुंडली के ग्रह गोचर की स्थिति के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था सही दिशा में आ जाएगी। जिससे विश्व में भारत के सम्मान में वृद्धि होगी।

 

5 जून 2020 चंद्रग्रहण

चन्द्र ग्रहण विवरण

05 जून 2020, शुक्रवार

उपच्छाया चन्द्र ग्रहण

प्रच्छाया में कोई ग्रहण नहीं हैं।

उपच्छाया ग्रहण खाली आँख से नहीं दिखेगा।

उपच्छाया से प्रथम स्पर्श -

05 जून 2020

रात्रि 11:16

परमग्रास चन्द्र ग्रहण

मध्यरात्रि 12:54

उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श

मध्यरात्रि 02:32

उपच्छाया चन्द्र ग्रहण का परिमाण

0.56

ग्रहण का सूतक समय - लागू नहीं हैं।

 

इस चंद्र ग्रहण में शुक्र वक्री तथा अस्त रहेगा गुरु एवं शनि भी वक्री रहेंगे इस प्रकार तीन ग्रह वक्री रहेंगे, जिसके कारण इसका प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर होगा। शेयर बाजार से जुड़े हुए लोग सावधान रहें। यह ग्रहण वृश्चिक राशि पर अत्यंत विपरीत प्रभाव डाल सकता हैं। किसी ख्याति प्राप्त होगी तो कसी व्यक्ति को परेशानियाँ। परिजनों के साथ वाद विवाद का सामना करना पड़ सकता हैं।

 

21 जून 2020 सूर्य ग्रहण

सूर्य ग्रहण विवरण

21 जून 2020, रविवार

ग्रहण प्रारम्भ काल - 10:10

परमग्रास - 11:52

ग्रहण समाप्ति काल - 13:42

उपच्छाया से प्रथम स्पर्श -

ग्रहण का अधिकतम परिमाण 0.80

ग्रहण का सूतक प्रारम्भ -

20 जून 2020, शनिवार की रात्रि 09:54

बच्चों, वृद्धों तथा अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ -

21 जून 2020, रविवार की प्रातः 05:37

ग्रहण का सूतक समाप्त सभी के लिए-

21 जून 2020, रविवार की दोपहर 01:42

इस सूर्य ग्रहण पर, 6 ग्रह एक साथ वक्री रहेंगे। बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु यह छह ग्रह 21 जून 2020 के दिन वक्री रहेंगे। इन छह ग्रह का वक्री होना अर्थात अत्यंत बड़ी हलचल।

21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसका परिमाण 0.99 होगा। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि, चन्द्रमा की छाया सूर्य का मात्र 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वलयाकार आकृति बनायेगी। इस सूर्य ग्रहण की सर्वाधिक लम्बी अवधि केवल 38 सेकण्ड की होगी।

यह सूर्य ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूऐई, एथोपिया तथा कोंगों में दिखाई देगा।

देहरादून, सिरसा तथा टिहरी आदि स्थान से वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देगा।

नई दिल्ली, चंडीगढ़, मुम्बई, कोलकाता, हैंदराबाद, बंगलौर, लखनऊ, चेन्नई, शिमला, रियाद, अबू धाबी, कराची, बैंकाक तथा काठमांडू आदि स्थान से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।

यह सूर्य ग्रहण उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देशों तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के अधिकांश हिस्सों से दिखाई नहीं देगा। साथ ही, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन तथा कुछ अन्य यूरोपीय महाद्वीप के देशों से सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।

 

5 जुलाई 2020 चंद्रग्रहण

चन्द्र ग्रहण विवरण

05 जुलाई 2020, रविवार

उपच्छाया चन्द्र ग्रहण

प्रच्छाया में कोई ग्रहण नहीं हैं।

उपच्छाया ग्रहण खाली आँख से नहीं दिखेगा।

उपच्छाया से प्रथम स्पर्श -

05 जुलाई 2020

08:37

परमग्रास चन्द्र ग्रहण

09:59

उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श

11:21

उपच्छाया चन्द्र ग्रहण का परिमाण

0.35

ग्रहण का सूतक समय - लागू नहीं हैं।

 

इस चन्द्र ग्रहण में, मंगल तथा सूर्य का राशि परिवर्तन, गुरु का धन राशि में वापसी होगी किन्तु गुरु वक्री रहेंगे। शुक्र मार्गी रहेंगे। प्राकृतिक आपदाएं आयेगी। विश्व युद्ध जैसे समस्त वैश्विक शक्तियां लड़ने के लिए हावी तथा तत्पर होगी। किसी को ख्याति प्राप्त होगी तो कई यशस्वी कीर्तिमान राजनेता को परेशानी प्राप्त हो सकती हैं। कुछ स्थान पर आपसी लड़ाईया हो सकती हैं। जल प्रलय का संकट आ सकता हैं।

इस प्रकार यह तीनों ग्रहण के कारण विश्व में उथल-पुथल हो सकती हैं, अतः मांसाहार का त्याग करें, धार्मिक आस्था बनाए रखे, अच्छे कर्म करें, अन्यथा भयंकर परिणाम आपको भुगतने पड़ सकते हैं।


03 June 2020

वट पूर्णिमा व्रत पूजन शुभ मुहूर्त | वटपौर्णिमा पूजा टाइम | Vat Purnima Vrat Puja kab hai 2020

वट पूर्णिमा व्रत पूजन शुभ मुहूर्त | वटपौर्णिमा पूजा टाइम | Vat Purnima Vrat Puja kab hai 2020

vat purnima vrat kab hai 2020
vat pornima vrat 

जय माता दी।

सर्वप्रथम आपको वट सावित्री व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपको माताजी सुख-सौभाग्य के साथ-साथ संस्कारी संतान प्रदान करें।

 

सनातन हिन्दू धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। किन्तु, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा अन्य प्रत्येक पूर्णिमा में अति पावन मानी जाती हैं। अतः भारत वर्ष में सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के शुभ दिवस वट पूर्णिमा का दिव्य व्रत मनाया जाता हैं। यह व्रत, वट सावित्री व्रत के समान ही किया जाता हैं। स्कंद पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण के अनुसार तो वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को रखा जाता हैं। गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में विशेष रूप से महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखती हैं। उत्तर भारत में यह ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्नान-दान आदि के लिये अत्यंत महत्व हैं तथा यह पूर्णिमा भगवान भोलेनाथ के लिए भी जानी जाती हैं। भगवान शंकर के भक्त, अमरनाथ की यात्रा के लिये गंगाजल लेकर, इसी शुभ दिवस पर अपनी यात्रा का प्रारम्भ करते हैं। मान्यता हैं कि इस दिन गंगा स्नान के पश्चात पूजा-अर्चना कर, दान दक्षिणा देने से समस्त मनोकामनाएं शीघ्र पूरी हो जाती हैं।

वट पूर्णिमा व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विधान हैं। मान्यता के अनुसार वटवृक्ष के नीचे सती सावित्री ने अपने पातिव्रत के बल से यमराज से अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था। उस समय से ही वट-पूर्णिमा नामक यह व्रत मनाया जाने लगा था। इस दिवस महिलाएँ अपने अखण्ड सौभाग्य तथा जीवन के कल्याण हेतु यह व्रत करती हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में मनाया जाता हैं अतः वट सावित्री व्रत पूजा विधि के अनुसार ही वट पूर्णिमा का व्रत किया जाता हैं।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु तथा डालियों एवं पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता हैं। वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से व्रती के प्रत्येक  पाप नष्ट होते हैं, दुःख, समस्याएँ तथा रोग दूर हो जाते हैं। अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य का संचय होता हैं। वैशाख तथा ज्येष्ठ आदि जैसे पुण्य मासों में इस वृक्ष की जड में जल अर्पण करने से प्रत्येक पापों का नाश होता हैं तथा विविध प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती हैं। वट पूर्णिमा व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं तथा वट की पूजा के पश्चात सती सावित्री की कथा अवश्य ही सुनती, सुनाती या पढ़ती हैं। यह कथा सुनने, सुनाने तथा वाचन करने मात्र से ही सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की मनोकामना पूर्ण होती हैं।

 

ज्येष्ठ पूर्णिमा (वट पूर्णिमा व्रत) पूजा मुहूर्त 2020

इस वर्ष, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि 05 जून, शुक्रवार की प्रातः 03 बजकर 15 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 05 जून, शुक्रवार की ही मध्यरात्रि 12 बजकर 41 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2020 में, ज्येष्ठ पूर्णिमा व वट पूर्णिमा उपवास 05 जून, शुक्रवार के दिन रखा जायेगा।

 

इस वर्ष, वट पूर्णिमा पूजन करने का शुभ मुहूर्त 05 जून, शुक्रवार के दिन मध्याह्नपूर्व 09:04 से 10:43 तथा गोधूलि बेला में 12:27 से 14:07 तक का रहेगा।

 

वट पूर्णिमा व्रत के अन्य महत्वपूर्ण समय इस प्रकार हैं-

05 जून 2020, शुक्रवार

अभिजित मुहूर्त:-  11:59 से 12:53

राहुकाल:-  10:44  से 12:26

सूर्योदय:- 05:40    सूर्यास्त:- 19:11

चन्द्रोदय:- 06:50 चन्द्रास्त:- अगले दिन 05:59