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    28 August 2022

    हरतालिका तीज व्रत, पूजा विधि, कथा, शुभ मुहूर्त समय, कब है 2022 | Hartalika Teej Vrat, Puja Vidhi, Katha Kab Hai Date

    हरतालिका तीज व्रत, पूजा विधि, कथा, शुभ मुहूर्त समय, कब है 2022 | Hartalika Teej Vrat, Puja Vidhi, Katha Kab Hai Date 

    hartalika teej vrat katha
    Hartalika Teej Vrat
    पूजन हेतु निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
    'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश जी का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।
     

    गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा के लिए इस मंत्र का जाप करें

    नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌।
    प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
    It means "O beloved consort of Lord Shiva, please bestow long life of the husband and beautiful sons to your women devotees". After Goddess Gaura, Lord Shiva, Lord Kartikeya and Lord Ganesha are worshipped.
    इसका अर्थ है "हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी, कृपया अपनी महिला भक्तों को पति की लंबी उम्र और सुंदर पुत्रों की शुभकामनाएं दें"। देवी गौरा के बाद, भगवान शिव, भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
     
     

    हरतालिका तीज व्रत

    तीज का व्रत प्रत्येक महिलाओं द्वारा मुख्यतः उत्तरी भारत के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व में अत्यंत धूमधाम तथा पूर्ण श्रद्धा से मनाया जाता हैं। श्रावण तथा भाद्रपद के मास में आने वाली तीन प्रमुख तीज इस प्रकार हैं:-
    1.    हरियाली तीज,
    2.    कजरी तीज, तथा
    3.    हरतालिका तीज
    इन तीजों के अतिरिक्त सम्पूर्ण वर्ष में आने वाली अन्य प्रमुख तीज इस प्रकार हैं- आखा तीज, जिसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं तथा गणगौर तृतीया हैं।
    हरतालिका तीज के व्रत को हरतालिका तीजा भी कहा जाता हैं। हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि तथा हस्त नक्षत्र के शुभ दिवस किया जाता हैं। हरतालिका तीज हरियाली तीज से एक माह के पश्चात आती हैं तथा मुख्यतः गणेश चतुर्थी के एक दिन पूर्व मनाई जाती हैं। यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। प्रत्येक सौभाग्यवती स्त्री इस व्रत को रखने में अपना परम सौभाग्य समझती हैं। हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी तथा भगवान श्रीगणेश जी की पूजा का विशेष महत्व हैं।
     

    हरतालिका तीज व्रत का महत्व

    उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार तथा झारखंड में हरतालिका तीज का व्रत करवाचौथ से भी कठिन माना गया हैं, क्योंकि जहां करवाचौथ में चन्द्र दर्शन करने के पश्चात व्रत सम्पन्न कर दिया जाता हैं, वहीं हरतालिका तीज व्रत में सम्पूर्ण दिवस निराहार एवं निर्जल व्रत किया जाता हैं तथा व्रत के अगले दिवस पूजन के पश्चात ही व्रत का समापन किया जाता हैं। साथ ही एक बार यह व्रत रखने पश्चात जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना अति आवश्यक हैं। यदि व्रती महिला गर्भवती हो या अत्यंत गंभीर रोग की स्थिति में हो तो उसके स्थान पर अन्य कोई महिला या उसका जीवनसाथी भी इस व्रत को रख सकते हैं। गुजरात एवं महाराष्ट्र में भी इस व्रत का पालन किया जाता हैं तथा अगले दिवस गणेश चतुर्थी के पर्व पर गणेश स्थापन किया जाता हैं। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में हरतालिका तीज को गौरी हब्बा” के नाम से जाना जाता हैं व माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु गौरी हब्बा के दिन दक्षिण भारत की महिलाएँ “स्वर्ण गौरी व्रत” रखती हैं तथा माता गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
     
    हरतालिका तीज व्रत की पूजा विधि

    हरतालिका पूजा हेतु प्रातः काल का समय सर्वोत्तम माना गया हैं। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल पूजा कर पाना संभव नहीं हैं तो प्रदोषकाल में भगवान शिव तथा माता पार्वती के साथ देव गणपति की पूजा करनी चाहिए। हरतालिका तीज की पूजा प्रातः स्नान के पश्चात, नए व सुन्दर वस्त्र पहनकर प्रारम्भ की जाती हैं। हरतालिका व्रत के दिवस कुंवारी कन्याएं तथा सौभाग्यवती महिलाएँ, भगवान शिव तथा माता पार्वती की मिट्टी या रेत के द्वारा अस्थाई प्रतिमा बनाकर गौरी-शंकर की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं तथा सुखी वैवाहिक जीवन तथा संतान की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करती हैं। उसके पश्चात हरतालिका व्रत की कथा को सुना जाता हैं। हरतालिका व्रत के दिवस व्रती महिला को शयन करना निषेध हैं, अतः उसे रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। प्रातः काल स्नान करने के पश्चात श्रद्धा व भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, खाद्य सामग्री, फल, मिष्ठान तथा यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए।
     

    हरतालिका तीज की पौराणिक व्रत कथा

    हरतालिका तीज की उत्पत्ति व इसके नाम का महत्व पौराणिक कथा में प्राप्त होता हैं। हरतालिका शब्दहरत  आलिका से मिलकर बना हैं, जिसका अर्थ क्रमशः अपहरण  स्त्रीमित्र अर्थात सहेली होता हैं। हरतालिका अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, माता गौरी के पार्वती माँ के स्वरूप में वे भगवान शिव जी को अपने जीवनसाथी के रूप में चाहती थी, जिस कारण पार्वती माँ ने अत्यंत कठोर तपस्या की थी। पार्वतीजी की सहेलियां उनका अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। ताकि पार्वतीजी की इच्छा के विरुद्ध उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें। अतः भगवान शिव जैसा जीवनसाथी प्राप्त करने हेतु कुंवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं साथ ही इस व्रत को करने वाली विवाहित स्त्रियां भी पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक वैवाहिक जीवन व्यतीत करके अंत में उन्हें शिवलोक की प्राप्ति हो जाती हैं।
     

    हरतालिका तीज पूजा का शुभ मुहूर्त 2022

    इस वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 29 अगस्त, सोमवार की दोपहर 03 बजकर 20 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 30 अगस्त, मंगलवार की दोपहर 03 बजकर 32 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
     
    अतः इस वर्ष 2022 में हरतालिका तीज का व्रत 30 अगस्त, मंगलवार के दिन किया जाएगा।
     
    इस वर्ष, हरतालिका तीज व्रत के प्रातःकाल पूजा का शुभ मुहूर्त, 30 अगस्त, मंगलवार की प्रातः 06 बजकर 04 मिनिट से 08 बजकर 41 मिनिट तक का रहेगा।

    21 August 2022

    अजा एकादशी व्रत कब है 2022 | पारण समय तिथि व शुभ मुहूर्त | Aja Ekadashi Vrat kab hai 2022 date

    अजा एकादशी व्रत कब है 2022 | पारण समय तिथि व शुभ मुहूर्त | Aja Ekadashi Vrat kab hai 2022 date 

    aja ekadashi vrat kab hai
    Aja Ekadashi Vrat

    वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। भगवान जी को एकादशी तिथि अति प्रिय हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसका व्रत करने मन निर्मल बनता हैं, ह्रदय शुद्ध होता हैं तथा आप सदमार्ग की ओर प्रेरित होते हैं। भाद्रपद की कृष्ण एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस व्रत को अजा एकादशी के व्रत के नाम से जाना जाता हैं। गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में यह व्रत श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन आता हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार अजा एकादशी का व्रत अगस्त या सितम्बर के महीने में आता हैं। अजा एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के पापों का नाश करने वाला माना गया हैं। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश जी की पूजा विधि-विधान तथा सच्चे मन से एवं पवित्र भावना के साथ करते हैं तथा रात्रि जागरण करते हैं उन्हे इस जन्म एवं पूर्व-जन्म के समस्त पाप-कर्मो से मुक्ति प्राप्त होती हैं तथा मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

    अजा एकादशी व्रत का पारण

            एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

     

    ध्यान रहे,

    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 22 अगस्त, सोमवार की प्रातः 03 बजकर 35 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 23 अगस्त, मंगलवार की प्रातः 06 बजकर 06 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2022 में अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त, मंगलवार के दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष, अजा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 24 अगस्त, बुधवार की प्रातः 06 बजकर 08 से 08 बजकर 28 मिनिट तक का रहेगा।

    (द्वादशी तिथि समाप्त होने समय :- 08:30 AM)

    अजा एकादशी व्रत का महत्व

    समस्त उपवासों में अजा एकादशी के व्रत श्रेष्ठतम कहे गए हैं। एकादशी व्रत को रखने वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता हैं। अजा एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता हैं। यह व्रत प्राचीन समय से यथावत चला आ रहा हैं। इस व्रत का आधार पौराणिक, वैज्ञानिक और संतुलित जीवन हैं। इस उपवास के विषय में यह मान्यता हैं कि इस उपवास के फलस्वरुप मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते हैं। यह उपवास, मन निर्मल करता हैं, ह्रदय शुद्ध करता हैं तथा सदमार्ग की ओर प्रेरित करता हैं।


    10 August 2022

    रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2022 Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai

    rakhi bandhan rakhi bandhne muhurat 2022
    Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat 

     रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2022 Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai

    रक्षाबन्धन मन्त्रः (Raksha Bandhan Mantra)

    येन बद्धो वली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
    तेन त्वा रक्षबध्नामी रक्षे माचल माचल ॥
    Yen Baddho bali raja danvendro mahabal,
    ten twam RakshBadhnami rakshe machalmachal.
    The meaning of Raksha Mantra - "I tie you with the same Raksha thread which tied the most powerful, the king of courage, the king of demons, Bali. O Raksha (Raksha Sutra), please don't move and keep fixed throughout the year."
     

    🌷 रक्षाबंधन 🌷

    सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् ।
    सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत्।।
     
    🙏🏻 इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है ।इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्षभर मनुष्य रक्षित हो जाता हैं। (भविष्य पुराण)
     
    रक्षाबंधन का पर्व सनातन भारतवर्ष में मनाये जाने वाले पवित्र तथा प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अतुल्य स्नेह के प्रतीक के स्वरूप में भक्ति एवं उत्साह के साथ मनाया जाता हैं, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं साथ ही अपने भाई की दिर्ध आयु के लिए प्रार्थना करती हैं तथा भाई अपनी बहनकी रक्षा करने का वचन देता हैं। हिंदुओ में रक्षाबंधन का पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ, धूमधाम से मनाया जाता हैं। साथ ही सिख, जैन, तथा लगभग सभी भारतीय समुदायों में यह पर्व बिना किसी रुकावट के तथा प्रेम-भाव के साथ मनाया जाता हैं। रक्षाबंधन के पर्व में रक्षा सूत्र अर्थात राखीका सबसे अधिक विशेष महत्व होता हैं। माना जाता हैं की राखीबहन का अपने भाई के प्रति स्नेह व आदर का प्रतीक होती हैं। रक्षाबंधन का त्योहार सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं जो की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर के महीने में आता हैं। रक्षा बंधन के ठीक आठ दिन के पश्चात भगवान् श्री कृष्ण का जन्मदिन अर्थात श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं।
    रक्षाबंधन के शुभ दिवस पर प्रत्येक जातक को चाहिए की वह रक्षा सूत्र को भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष अर्पित कर 108 या उस से भी अधिक बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें या शिव के पंचाक्षरी तथा अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करें तथा उसके पश्चात ही रक्षा सूत्र को अपने भाईयों की कलाई पर बांधे। ऐसा करने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती हैं। क्योंकि श्रावण का पवित्र मास सम्पूर्ण प्रकार से भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता हैं।
     

    रक्षाबन्धन का शुभ मुहूर्त 2022

    इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त, गुरुवार के दिन 10 बजकर 38 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 12 अगस्त, शुक्रवार की प्रातः 07 बजकर 05 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
     
    अतः इस वर्ष 2022 में रक्षा-बंधन का पर्व 11 अगस्त, गुरुवार के शुभ दिवस मनाया जाएगा। 
     
    इस वर्ष, रक्षाबंधन के त्योहार पर राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त 11 अगस्त, गुरुवार की साँय 08 बजकर 52 से 09 बजकर 12 मिनिट तक का रहेगा।
     

    यह भी ध्यान रहे की,

    १.  रक्षा बन्धन के दिन भद्रा, 11 अगस्त, गुरुवार की साँय 08 बजकर 51 मिनिट पर समाप्त हो जाने के कारण राखी बांधने का शुभ मुहूर्त साँय 08 बजकर 52 मिनिट से साँय 09 बजकर 12 मिनिट तक, तथा पुनः 12 अगस्त की प्रातः 05 बजकर 52 मिनिट अर्थात सूर्योदय होने के साथ ही प्रारम्भ हो कर प्रातः 07 बजकर 05 मिनिट तक अर्थात पूर्णिमा तिथि के समाप्ति तक का रहेगा।
    २.  वैदिक मतानुसार अपराह्न का समय राखी बांधने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त माना गया हैं, जो कि हिन्दु समय गणना के अनुसार दोपहर के पश्चात का समय होता हैं।
    ३.  यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि के कारण उपयुक्त नहीं हैं तो, प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना गया हैं।
    ४.  हिन्दु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्यों हेतु भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये। अतः भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना गया हैं।


    रक्षाबंधन पर राखी बांधने की संपूर्ण विधि (Raksha Bandhan Par Rakhi Bandhane Ki Sampurn Vidhi)

     
    1. रक्षाबंधन के दिन सबसे पहले भाई और बहन को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर लेना चाहिए।
     
    2. इसके बाद बहन एक चांदी या स्टील की थाली में रोली, चंदन, अक्षत राखी, मिठाई, घी का दीपक और पानी वाला नारियल लें। जिसके चारो तरफ रोली बंधी हुई हो।
     
    3. इसके बाद रक्षाबंधन की इस थाली में घी का दीपक प्रज्वलित करें और फिर सबसे पहले अपने ईष्ट देव की पूजा करके उनकी आरती करें।
     
    4. आरती करने के बाद अपने ईष्ट को राखी अर्पित करें। इसके बाद एक चौक बनाए और अपने भाई को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठा एक लकड़ी के पटरे पर बैठा दें।
     
    5. इसके बाद भाई अपने सिर पर कोई रुमाल या फिर साफ वस्त्र रख ले।
     
    6.इसके बाद भाई को रोली और चंदन का तिलक करें और फिर उस तिलक पर अक्षत लगाएं।
     
    7. भाई को तिलक करने के बाद उसकी दाहिनी कलाई पर राखी बांधें।
     
    8.जब आप अपने भाई को राखी बांध रही हों तो इस मंत्र को अवश्य बोलें।
    येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः|
    तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल ||
     
    9. इसके बाद अपने भाई की आरती उतारकर उसे मिठाई खिलाएं और भगवान से उनकी लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें।
     
    10. इसके बाद भाई अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ अवश्य दे और अपनी बहन के पैर अवश्य छुए।