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    17 May 2020

    अपरा एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Achala Ekadashi 2020

    अपरा एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Achala Ekadashi 2020 #EkadashiVrat

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    वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसके व्रत को करने से जातक को अपार धन-संपदा तथा प्रसिद्धि प्राप्त होती हैं। अतः ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा या अचला एकादशी कहा जाता हैं। अपरा एकादशी के प्रभाव से पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता हैं तथा इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य एवं धन में अभिवृद्धि होती हैं। यह व्रत उत्तम पुण्यों को प्रदान करने वाला तथा समस्त प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला माना गया हैं। समस्त एकादशियों में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं, वह सर्वोत्तम मानी जाती हैं, किन्तु ज्येष्ठ मास की ही कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात अपरा एकादशी या अचला एकादशी भी प्रत्येक मनुष्यों को ब्रह्म हत्या, परनिंदा तथा भूत-प्रेत योनि आदि जैसे अनेक पाप-कर्मों से मुक्ति प्रदान करने में सहायक मानी जाती हैं। अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से व्रती को अपार खुशियों की प्राप्ति हैं। अपरा एकादशी का एक अर्थ यह भी हैं की, इस एकादशी के व्रत का पुण्य भी अपार हैं। अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा की जाती हैं। इस दिन कच्चे आम अर्थात कैरी का सागार लेना चाहिए।

     

    अपरा एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

     

    ध्यान रहे,

    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 मई, रविवार की दोपहर 12 बजकर 41 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 18 मई, सोमवार की दोपहर 03 बजकर 07 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में अपरा एकादशी का व्रत 18 मई, सोमवार के दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष, अपरा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 19 मई, मंगलवार की प्रातः 05 बजकर 47 मिनिट से 08 बजकर 24 मिनिट तक का रहेगा।

    द्वादशी समाप्त होने का समय - 17:31


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