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    27 July 2019

    कामिका एकादशी व्रत कथा | कामिका एकादशी व्रत विधि | Ekadashi Vrat Katha in Hindi | Kamika Ekadashi 2019

    कामिका एकादशी व्रत कथा | कामिका एकादशी व्रत विधि | Kamika Ekadashi 2019 | Ekadashi Vrat Katha in Hindi

    kamika ekadashi katha
    kamika ekadashi vrat katha in hindi
    वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती हैं अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसकी कथा सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता हैं। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी का नाम कामिका एकादशी हैं। गुजरात व महाराष्ट्र तथा दक्षिणी भारत में कामिका एकादशी का व्रत आषाढ़ मास के कृष्ण एकादशी के दिन किया जाता हैं। जिस व्यक्ति ने पापकर्म किया हैं, तथा उसे इसका भय उसे सताता हैं, ऐसे व्यक्ति को कामिका एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धाभाव तथा विधि-विधान से अवश्य करना चाहिए। कामिका एकादशीका व्रत भगवान विष्णु जी की अराधना एवं पूजा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ अवसर होता हैं। एकादशी के सभी व्रतों में कामिका एकादशी को सर्वोत्तम व्रत माना जाता हैं। धर्म-ग्रंथो के अनुसार, यह एकादशी उपासकों के सभी कष्टों का निवारण करने वाली तथा मनोवांछित इच्छापूर्ती करने वाली मानी गई हैं। अतः कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती हैं तथा एकादशी का व्रत करने से व्रती को उनके समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती हैं।

    कामिका एकादशी व्रत का उद्देश्य

    कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो जातक इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।
    ब्रह्माजी कहते हैं कि “हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य तथा कथा श्रद्धा-भाव से सुनने तथा पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता हैं।

    कामिका एकादशी व्रत का महत्त्व

    कामिका एकादशीके व्रत को आध्यात्मिक साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता हैं, क्योंकि यह व्रत चेतना से सभी नकारात्मकता को नष्ट करता हैं तथा मन एवं हृदय को दिव्य प्रकाश से भर देता हैं। कामिका एकादशी का व्रत करने से सबके बिगड़े कार्य शीघ्र पूर्ण हो जाते हैं। विशेष रूप से इस तिथि में विष्णु जी की पूजा-अर्चना करना अत्यंत लाभकारी माना गया हैं। कामिका एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, तथा गदाधारी श्री हरी-विष्णु जी की पूजा की जाती हैं। जो मनुष्य इस एकाद्शी को धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से भगवान श्री विष्णु जी कि पूजा करता हैं उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं।
    कामिका एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी कष्ट दूर होते हैं। उपासक को मोक्ष प्राप्ति होती हैं। इस दिन तीर्थस्थानों में स्नान करने तथा दान-पुण्य करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फलप्राप्ति होती हैं।
    यह भी मान्यता हैं कि श्रावण के पवित्र मास में भगवान विष्णुजी की पूजा करने से, सभी देवता, गन्धर्वों तथा नागों एवं सूर्य देव आदि सब पूजित हो जाते हैं। श्री विष्णुजी को यदि संतुष्ट करना हो तो उनकी पूजा तुलसी पत्र से करें। ऐसा करने से ना केवल प्रभु प्रसन्न होंगे अपितु वरती के भी सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। कामिका एकादशी व्रत की कथा सुनना वाजपेय यज्ञ करने के समान ही माना गया हैं।
    जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर पुष्कर तथा काशी में स्नान करने से तथा गोदावरी तथा गंगा नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह फल इस दिन भगवान विष्णु के पूजन से प्राप्त होता हैं।
    पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए तथा संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत तथा भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक मानी गई हैं। इस व्रत से बढ़कर पापों के नाश का कोई अन्य उपाय नहीं हैं।

    कामिका एकादशी व्रत के नियम

    कामिका एकादशी व्रत का नियम तीन दिन का होता हैं। अर्थात दशमी, एकादशी तथा द्वादशी के दिन कामिका एकादशी के नियमों का पालन होता हैं। अतः इन तीन दिनों की अवधि तक जातकों को चावल नहीं खाने चाहिए। इसके साथ ही लहसुन, प्याज तथा मसुर की दाल का सेवन भी वर्जित हैं। मांस तथा मदिरा का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिए।
    दशमी के दिन एक समय भोजन ग्रहण करना चाहिए तथा सूर्यास्त के पश्चात कुछ भी नहीं खाना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए तथा व्रत का संकल्प लेना चाहिए। एकादशी की रात को जागरण करना चाहिए। एकादशी के दिन जागरण करना भी व्रत का ही नियम हैं। द्वादशी के दिन पूजा कर पंडित को यथाशक्ति दान देना चाहिए तथा उसके पश्चात पारण करना चाहिए।
    साथ ही एकादशी के दिन दातुन नहीं करना चाहिए। अपनी उंगली से ही दांत साफ करें। क्योंकि एकादशी के दिन पेड़ पौधों को तोड़ते नहीं हैं। साथ ही इस दिन किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए।

    इस व्रत में क्या खाये

    चावल व चावल से बनी किसी भी चीज के खाना पूर्णतः वर्जित होता हैं। व्रत के दूसरे दिन चावल से बनी हुई वस्तुओं का भोग भगवानजी को लगाकर ग्रहण करना चाहिए। व्रत के दिन नमक रहित फलाहार करें। फलाहार भी केवल दो समय ही कर सकते हैं। फलाहार में तुलसी दल का प्रयोग अवश्य ही करना चाहिए। व्रत में पीने वाले पानी में भी तुलसी दल का प्रयोग करना लाभकारी होता हैं।

    कामिका एकादशी व्रत पूजन विधि

    कामिका एकादशी व्रत के दिन व्यक्तिगत एवं घर की स्वच्छता का विशेष महत्व माना गया हैं। एकादशी तिथि पर व्रती प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर सर्वप्रथम संकल्प लें तथा श्री विष्णु के पूजन-क्रिया को प्रारंभ करें। इसके पश्चात पुज्य गणेश जी पूजा करें। क्योकि किसी भी पूजा में गौरी गणेश की पूजा पहले होती हैं। तत्पश्चात भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करायें। पंचामृत से स्नान कराने से पूर्व प्रतिमा को शुद्ध गंगाजल से स्नान करना चाहिए। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद तथा शक्कर का उपयोग होता हैं। भगवान जी को स्नान कराने के पश्चात भगवान को गंध, अच्छत इंद्र जौ का प्रयोग करे तथा पुष्प चढ़ायें। धूप, दीप, चंदन आदि सुगंधित पदार्थो से आरती उतारनी चाहिए। भगवान विष्णु जी की आरती के पश्चात, एकादशी माता जी की आरती अवश्य करें। प्रभु को फल-फूल-माला, तिल, दूध, पंचामृत, इत्र, मौसमी फल, मिष्ठान, धूप, दीप आदि नाना पदार्थ निवेदित करें। नैवेध्य का भोग लगाये। नैवेध्य मे भगवानजी को मक्खन, मिश्री तथा तुलसी-पत्र अवश्य ही चढ़ाएं तथा अन्त में श्रमा याचन करते हुए भगवान को नमस्कार करें। इस दिन कामिका एकादशी व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए एवं व्रत के दिन विष्णु सहस्त्र नाम पाठ का जप अवश्य करना चाहिए। इस दिन ब्राह्मण भोज एवं दान-दक्षिणा का विशेष महत्व होता हैं। अत: ब्राह्मण को भोज करवाकर दान-दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार विधिनुसार जो भी कामिका एकादशी का व्रत रखता हैं उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

    कामिका एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ति करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

    ध्यान रहे,
    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।
    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।
    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।
    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।
    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की प्रथम एक चौथाई अवधि होती हैं।
    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

    कामिका एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

    महाभारतकाल में एक समय कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिरजी ने श्री कृष्ण ने कहा, “हे भगवन, कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का नाम तथा महत्व का वर्णन करें तथा ईसकी कथा सुनाएं।” तब श्रीकृष्णजी ने कहा कि “हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी भी देवर्षि नारद से कह चुके हैं, अतः मैं भी तुम्हें वही बताता हूं”। एकबार देवर्षि नारदजी ने ब्रह्माजी से श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की इच्छा जताई थी। उस एकादशी का नाम, विधि, कथा तथा माहात्म्य जानना चाहा।
    तब ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका एकादशी हैं"।
    जिसकी कथा इस प्रकार हैं,
    प्राचीन काल में एक गांव में एक ठाकुर जी थे। वे अत्यंत ही क्रोधित हुआ करते थे। क्रोधी ठाकुर की एक दिन किसी कारण वश एक ब्राहमण से हाथापाई हो गई तथा परिणाम स्वरूप उस ब्राहमणदेव की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राहमण की क्रिया उस ठाकुर ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में उपस्थित होने से मना कर दिया। ब्राहमणों ने बताया कि तुम पर ब्रहम हत्या का दोष हैं। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो जावों, तब हम तुम्हारे घर आएंगे व भोजन तथा अन्य पूजन-क्रिया करेंगे।
    ठाकुर जी ने एक एक विधवान मुनी से अपने पापों का निवारण करने का उपाय पूछा। इस पर मुनीजी ने उन्हें श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कमिका एकदशी का व्रत पूर्ण भक्तिभाव से करने के लिए कहा तथा एकादशी पूजन कर ब्राहमणों को भोजन कराके यथाशक्ति दश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति प्राप्त होगी ऐसा बताया। मुनिजी के बताये हुए निवारण पर कमिका एकदशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा एवं भक्तिभाव से किया। एकादशी के रात्री ठाकुरजी ने भगवान की मूर्ति के निकट सोते हुए एक सपना देखा, जिसमे भगवानजी ने ठाकुर को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रहम-हत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त हो गई हैं तथा तुम्हें क्षमा-दान दिया गया हैं।
    इस प्रकार ठाकुर जी के बड़े से बड़े पाप-कर्म का नाश हो जाता हैं।

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