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    09 May 2019

    संत श्री सूरदास का जन्मोत्सव | Surdas ki Jivani Parichay in Hindi | सूरदास जीवनी | सूरदास जी का जीवन परिचय

    संत श्री सूरदास का जन्मोत्सव | Surdas ki Jivani Parichay in Hindi | सूरदास जीवनी | सूरदास जी का जीवन परिचय

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    सूरदास जिसने जगत को दिखाई श्री कृष्णलीला
    महाकवि सूरदास जिन्होंने जन-जन को प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से परिचित करवाया। जिन्होंनें जन-जन में वात्सल्य का भाव जगाया। नंदलाल व यशोमति मैया के लाडले को बाल गोपाल बनाया। कृष्ण भक्ति की धारा में सूरदास का नाम सर्वोपरि लिया जाता हैं। सूरदास जिन्हें बताया तो जन्मांध जाता हैं लेकिन जो उन्होंने देखा वो कोई न देख पाया। गुरु वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग पर सूरदास ऐसे चले कि वे इस मार्ग के जहाज तक कहाये। अपने गुरु की कृपा से प्रभु श्रीकृष्ण की जो लीला सूरदास ने देखी उसे उनके शब्दों में चित्रित होते हुए हम भी देखते हैं। वैशाख शुक्ल पंचमी को सूरदास जी की जयंती मनाई जाती हैं।

    सूरदास का संक्षिप्त जीवन परिचय:-

    सूरदास का संपूर्ण जीवन कृष्ण भक्ति में बीता हैं। उन्होंने कृष्ण की लीलाओं पर पद लिखे व गाये। यह जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी उनके गुरु वल्लभाचार्य ने। सूरदास के जन्म को लेकर विद्वानों के मत भिन्न-भिन्न हैं। कुछ उनका जन्म स्थान गाँव सीही को मानते हैं जो कि वर्तमान में हरियाणा के फरीदाबाद जिले में पड़ता हैं तो कुछ मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम को उनका जन्मस्थान मानते हैं। मान्यता हैं कि 1478 ई. में इनका जन्म हुआ था। सूरदास एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इनके पिता रामदास भी गायक थे। इनके जन्मांध होने को लेकर भी विद्वान एकमत नहीं हैं। देखा जाये तो इनकी रचनाओं में जो सजीवता हैं जो चित्र खिंचते हैं, जीवन के विभिन्न रंगों की जो बारीकियां हैं उन्हें तो अच्छी भली नज़र वाले भी बयां न कर सकें इसी कारण इनके अंधेपन को लेकर शंकाएं जताई जाती हैं। इनके बारे में प्रचलित हैं कि ये बचपन से साधु प्रवृति के थे। इन्हें सगुन बताने कला वरदान रूप में प्राप्त हुई थी। शीघ्र ही ये अत्यंत प्रसिद्ध भी हो गए थे। लेकिन इनका मन वहाँ नहीं लगा तथा अपने गाँव को छोड़कर समीप के ही गाँव में तालाब किनारे रहने लगे। शीघ्र ही ये वहाँ से भी चल पड़े तथा आगरा के पास गऊघाट पर रहने लगे। यहां ये शीघ्र ही स्वामी के रूप में प्रसिद्ध हो गए। यहीं पर इनकी मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई। उन्हें इन्हें पुष्टिमार्ग की दीक्षा दी तथा श्रीकृष्ण की लीलाओं का दर्शन करवाया। वल्लभाचार्य ने इन्हें श्री नाथ जी के मंदिर में लीलागान का दायित्व सौंपा जिसे ये जीवन पर्यंत निभाते रहे।

    कैसे हुई सूरदास की मृत्यु:-
    मान्यता हैं कि इन्हें अपने देहावसान का आभास पहले से ही हो गया था। इनकी मृत्यु का स्थान गाँव पारसौली माना जाता हैं। मान्यता हैं कि यहीं पर प्रभु श्रीकृष्ण ने रासलीला की थी। श्री नाथ जी की आरती के समय जब सूरदास वहाँ मौजूद नहीं थे तो वल्लाभाचार्य को आभास हो गया था कि सूरदास का अंतिम समय निकट हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए इसी समय कहा था कि पुष्टिमार्ग का जहाज़ जा रहा हैं जिसे जो लेना हो ले सकता हैं। आरती के बाद सभी सूरदास जी के निकट आये। तो अचेत पड़े सूरदास जी में चेतना आयी। कहते हैं कि जब उनसे सभी ज्ञान ग्रहण कर रहे थे तो चतुर्भुजदास जो कि वल्लाभाचार्य के ही शिष्य थे ने शंका प्रकट की कि सूरदास ने सदैव भगवद्भक्ति के पद गाये हैं गुरुभक्ति में कोई पद नहीं गाया। तब उन्होंने कहा कि उनके लिये गुरु व प्रभु में कोई अंतर नहीं हैं जो प्रभु के लिये गाया वही गुरु के लिये भी। तब उन्होंने भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो नामक पद गाया। इसके बाद चित्त तथा नेत्र की वृति को लेकर विट्ठलनाथ जी द्वारा पूछे प्रश्न पर बलि बलि हों कुमरि राधिका नंद सुवन जासों रति मानी तथा खंजन नैन रूप रस माते पद गाये। यही उनके अंतिम पद भी थे जो उन्होंने गाये। इसके बाद पुष्टिमार्ग का जहाज़ गोलोक को गमन कर गया।

    कब मनाई जाती हैं सूरदास जी की जयंती :-

    सूरदास की जन्मतिथि को लेकर पहले मतभेद था, लेकिन पुष्टिमार्ग के अनुयायियों में प्रचलित धारणा के अनुसार सूरदास जी को उनके गुरु वल्लाभाचार्य जी से दस दिन छोटा बताया जाता हैं। वल्लाभाचार्य जी की जयंती वैशाख कृष्ण एकादशी को मनाई जाती हैं। इसके गणना के अनुसार सूरदास का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को माना जाता हैं। इस कारण प्रत्येक वर्ष सूरदास जी की जयंती इसी दिन मनाई जाती हैं। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार वर्ष 2019 में सूरदास जयंती 9 मई को हैं।
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    पं. विनोद पांडे

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