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    04 May 2019

    शनैश्चरी अमावस्या विशेष | Shani Amavasya 2019

    शनैश्चरी अमावस्या विशेष | Shani Amavasya 2019

    Shani Amavasya hindi
    Shani Amavasya 2019

    शनि अमावस्या के दिवस श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं। इस वर्ष 4 मई 2019 को शनिवार के दिवस शनि अमावस्या मनाई जाएगी, यह पितृकार्येषु अमावस्या के रुप में भी जानी जाती हैं। कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का यह दुर्लभ समय होता हैं जब शनिवार के दिवस अमावस्या का समय हो जिस कारण इसे शनि अमावस्या कहा जाता हैं।

    श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो जातक के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो जातक के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का निर्णय करते हैं। इस दिवस शनिदेव का पूजा सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु अत्यंत उत्तम होता हैं। इस दिवस शनिदेव का पूजा समस्त मनोकामनाएं पूरी करता हैं।

    शनिश्चरी अमावस्या पर शनिदेव का विधिवत पूजा कर समस्त लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं। इस दिवस विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष तथा कालसर्प दोषों से मुक्ति प्राप्त की जा सकतीहैं। इसके अलावा शनि का पूजा तथा तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या तथा महादशा जनित संकट तथा आपदाओं से भी मुक्ति प्राप्त की जा सकतीहैं,

    शनि अमावस्या महत्व

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    शनि अमावस्या ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़ेसाती एवं ढ़ैय्या के दौरान शनि जातक को अपना शुभाशुभ फल प्रदान करता हैं। शनि अमावस्या अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस दिवस शनिदेव को प्रसन्न करके जातक शनि के कोप से अपना बचाव कर सकते हैं। पुराणों के अनुसार शनि अमावस्या के दिवस शनिदेव को प्रसन्न करना अत्यंत आसान होता हैं। शनि अमावस्या के दिवस शनि दोष की शांति अत्यंत ही सरलता कर सकते हैं।

    इस दिवस महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया शनि स्तोत्र का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, कंबल, नीला फूल दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते हैं। जो लोग इस दिवस यात्रा में जा रहे हैं तथा उनके पास समय की कमी हैं वह सफर में शनि नवाक्षरी मंत्र अथवा कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।मंत्र का जप करने का प्रयास करते हैं करें तो शनिदेव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती हैं।

    पितृदोष से मुक्ति

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    शनि अमावस्या पितृदोष मुक्ति के लिये उत्तम दिवस हैं। पितृ शांति के लिये अमावस्या तिथि का विशेष महत्व हैं तथा अमावस्या अगर शनिवार के दिवस पड़े तो इसका महत्व तथा अधिक बढ़ जाता हैं। शनिदेव को अमावस्या अधिक प्रिय हैं। शनिदेव की कृपा का पात्र बनने के लिए शनिश्चरी अमावस्या को समस्त को विधिवत आराधना करनी चाहिए। भविष्यपुराण के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या शनिदेव को अधिक प्रिय रहती हैं।

    शनैश्चरी अमावस्या के दिवस पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिन जातकयों की कुण्डली में पितृदोष या जो भी कोई पितृ दोष की पिडा़ को भोग रहे होते हैं उन्हें इस दिवस दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए। यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिवस किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता हैं, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बडी सहजता से हो जाता हैं।

    शनि अमावस्या पूजा

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    पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनिदेव का आवाहन तथा दर्शन करना चाहिए। शनिदेव का पर नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत अर्पण करें। शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नम:”, अथवा ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिवस सरसों के तेल, उडद, काले तिल, कुलथी, गुड शनियंत्र तथा शनि संबंधी समस्त पूजा सामग्री को शनिदेव पर अर्पित करना चाहिए तथा शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए। शनि अमावस्या के दिवस शनि चालीसा,  हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए। जिनकी कुंडली या राशि पर शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव हो उन्हें शनि अमावस्या के दिवस पर शनिदेव का विधिवत पूजा करना चाहिए।

    शनैश्चरी अमावस्या पर शनि मंत्र- स्रोत्र द्वारा उपाय

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    शनैश्चरी अमावस्या के दिवस शनि मंत्र का अधिक से अधिक जाप करना परम कल्याणकारक माना गया हैं जप से पहले शरीर तथा आसान शुद्धि के बाद निम्न विनियोग करे इसके बाद जप आरम्भ करें।

    विनियोग👉 शन्नो देवीति मंत्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषि: गायत्री छंद:, आपो देवता, शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।नीचे लिखे गये कोष्ठकों के अन्गों को उंगलियों से छुयें। अथ देहान्गन्यास:-शन्नो शिरसि (सिर), देवी: ललाटे (माथा)।अभिषटय मुखे (मुख), आपो कण्ठे (कण्ठ), भवन्तु ह्रदये (ह्रदय), पीतये नाभौ (नाभि), शं कट्याम (कमर), यो: ऊर्वो: (छाती), अभि जान्वो: (घुटने), स्त्रवन्तु गुल्फ़यो: (गुल्फ़), न: पादयो: (पैर)।अथ करन्यास:-शन्नो देवी: अंगुष्ठाभ्याम नम:।अभिष्टये तर्ज्जनीभ्याम नम:।आपो भवन्तु मध्यमाभ्याम नम:।पीतये अनामिकाभ्याम नम:।शंय्योरभि कनिष्ठिकाभ्याम नम:।स्त्रवन्तु न: करतलकरपृष्ठाभ्याम नम:।अथ ह्रदयादिन्यास:-शन्नो देवी ह्रदयाय नम:।अभिष्टये शिरसे स्वाहा।आपो भवन्तु शिखायै वषट।पीतये कवचाय हुँ।(दोनो कन्धे)।शंय्योरभि नेत्रत्राय वौषट।स्त्रवन्तु न: अस्त्राय फ़ट।ध्यानम:-नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी गृद्ध्स्थितस्त्रासकरो धनुश्मान।चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाअस्तु मह्यं वरदोअल्पगामी।।शनि गायत्री:-औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात।वेद मंत्र:- औम प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:।औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:।

    शनि बीज जप मंत्र 👉  ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम:। संख्या 23000 जाप।

    शनि स्तोत्रम

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    शनि अष्टोत्तरशतनामावलि

    ॐ शनैश्चराय नमः ॥ ॐ शान्ताय नमः ॥ ॐ सर्वाभीष्टप्रदायिने नमः ॥ ॐ शरण्याय नमः ॥ ॐ वरेण्याय नमः ॥ ॐ सर्वेशाय नमः ॥ ॐ सौम्याय नमः ॥ ॐ सुरवन्द्याय नमः ॥ ॐ सुरलोकविहारिणे नमः ॥ ॐ सुखासनोपविष्टाय नमः ॥ ॐ सुन्दराय नमः ॥ ॐ घनाय नमः ॥ ॐ घनरूपाय नमः ॥ ॐ घनाभरणधारिणे नमः ॥ ॐ घनसारविलेपाय न मः ॥ ॐ खद्योताय नमः ॥ ॐ मन्दाय नमः ॥ ॐ मन्दचेष्टाय नमः ॥ ॐ महनीयगुणात्मने नमः ॥ ॐ मर्त्यपावनपदाय नमः ॥ ॐ महेशाय नमः ॥ ॐ छायापुत्राय नमः ॥ ॐ शर्वाय नमः ॥ ॐ शततूणीरधारिणे नमः ॥ ॐ चरस्थिरस्वभा वाय नमः ॥ ॐ अचञ्चलाय नमः ॥ ॐ नीलवर्णाय नमः ॥ ॐ नित्याय नमः ॥ ॐ नीलाञ्जननिभाय नमः ॥ ॐ नीलाम्बरविभूशणाय नमः ॥ ॐ निश्चलाय नमः ॥ ॐ वेद्याय नमः ॥ ॐ विधिरूपाय नमः ॥ ॐ विरोधाधारभूमये नमः ॥ ॐ भेदास्पदस्वभावाय नमः ॥ ॐ वज्रदेहाय नमः ॥ ॐ वैराग्यदाय नमः ॥ ॐ वीराय नमः ॥ ॐ वीतरोगभयाय नमः ॥ ॐ विपत्परम्परेशाय नमः ॥ ॐ विश्ववन्द्याय नमः ॥ ॐ गृध्नवाहाय नमः ॥ ॐ गूढाय नमः ॥ ॐ कूर्माङ्गाय नमः ॥ ॐ कुरूपिणे नमः ॥ ॐ कुत्सिताय नमः ॥ ॐ गुणाढ्याय नमः ॥ ॐ गोचराय नमः ॥ ॐ अविद्यामूलनाशाय नमः ॥ ॐ विद्याविद्यास्वरूपिणे नमः ॥ ॐ आयुष्यकारणाय नमः ॥ ॐ आपदुद्धर्त्रे नमः ॥ ॐ विष्णुभक्ताय नमः ॥ ॐ वशिने नमः ॥ ॐ विविधागमवेदिने नमः ॥ ॐ विधिस्तुत्याय नमः ॥ ॐ वन्द्याय नमः ॥ ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ ॐ वरिष्ठाय नमः ॥ ॐ गरिष्ठाय नमः ॥ ॐ वज्राङ्कुशधराय नमः ॥ ॐ वरदाभयहस्ताय नमः ॥ ॐ वामनाय नमः ॥ ॐ ज्येष्ठापत्नीसमेताय नमः ॥ ॐ श्रेष्ठाय नमः ॥ ॐ मितभाषिणे नमः ॥ ॐ कष्टौघनाशकर्त्रे नमः ॥ ॐ पुष्टिदाय नमः ॥ ॐ स्तुत्याय नमः ॥ ॐ स्तोत्रगम्याय नमः ॥ ॐ भक्तिवश्याय नमः ॥ ॐ भानवे नमः ॥ ॐ भानुपुत्राय नमः ॥ ॐ भव्याय नमः ॥ ॐ पावनाय नमः ॥ ॐ धनुर्मण्डलसंस्थाय नमः ॥ ॐ धनदाय नमः ॥ ॐ धनुष्मते नमः ॥ ॐ तनुप्रकाशदेहाय नमः ॥ ॐ तामसाय नमः ॥ ॐ अशेषजनवन्द्याय नमः ॥ ॐ विशेशफलदायिने नमः ॥ ॐ वशीकृतजनेशाय नमः ॥ ॐ पशूनां पतये नमः ॥ ॐ खेचराय नमः ॥ ॐ खगेशाय नमः ॥ ॐ घननीलाम्बराय नमः ॥ ॐ काठिन्यमानसाय नमः ॥ ॐ आर्यगणस्तुत्याय नमः ॥ ॐ नीलच्छत्राय नमः ॥ ॐ नित्याय नमः ॥ ॐ निर्गुणाय नमः ॥ ॐ गुणात्मने नमः ॥ ॐ निरामयाय नमः ॥ ॐ निन्द्याय नमः ॥ ॐ वन्दनीयाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥ ॐ दिव्यदेहाय नमः ॥ ॐ दीनार्तिहरणाय नमः ॥ ॐ दैन्यनाशकराय नमः ॥ ॐ आर्यजनगण्याय नमः ॥ ॐ क्रूराय नमः ॥ ॐ क्रूरचेष्टाय नमः ॥ ॐ कामक्रोधकराय नमः ॥ ॐ कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमः ॥ ॐ परिपोषितभक्ताय नमः ॥ ॐ परभीतिहराय न मः ॥ ॐ भक्तसंघमनोऽभीष्टफलदाय नमः ॥

    इसका 108 पाठ करने से शनि सम्बन्धी समस्त पीडायें समाप्त हो जाती हैं। तथा पाठ कर्ता धन धान्य समृद्धि वैभव से पूर्ण हो जाता हैं। तथा उसके समस्त बिगडे कार्य बनने लगते हैं। यह सौ प्रतिशत अनुभूत हैं।
    इसके अतिरिक्त दशरथकृत शनि स्तोत्र का यथा सामर्थ्य पाठ भी शनि जनित अरिष्ट से शांति दिलाता हैं।

    दशरथकृत शनि स्तोत्र

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    नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
    नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।

    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2

    नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
    नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3

    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4

    नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
    सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5

    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
    नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6

    तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
    नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।7

    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
    त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9

    प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
    एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10

    शनैश्चरी अमावस्या पर शनिदेव को प्रसन्न करने के शास्त्रोक्त  उपाय।

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    ज्योतिषशास्त्र के अनुसार समस्त जातक की कुंडली में 9 ग्रह होते हैं जो अपना प्रभाव दिखाते हैं।

    इन ग्रहों की स्थिति परिवर्तन के वजह से मनुष्य को समय समय पर अच्छे व बुरे दोनों परिणाम प्राप्त होते हैं।

    इन 9 ग्रह में से केवल शनिदेव ऐसे हैं जिनके प्रभाव से मनुष्य घबरा जाता हैं।

    हिन्दू धर्मशास्‍त्रों में भी शनिदेव का चरित्र भी दण्डाधिकारी के रूप में माना गया हैं जो कि कर्म तथा सत्य को जीवन में अपनाने की ही प्रेरणा देता हैं।

    किन्तु अगर आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शास्‍त्रों में अत्यंत सारे उपाय बताए गए हैं जिससे शनिदेव प्रसन्‍न हो जाएंगे।

    शनिदेव के प्रसन्‍न होने से आपका जीवन सफल हो जाएगा। तो आइए जानते हैं उन उपायों को

    अगर आप शनि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शनैश्चरी अमावस्या के दिवस पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं तथा दोनों हाथों से पीपल के पेड़ को स्‍पर्श करें।

    इस दौरान पीपल के पेड़ की परिक्रमा करें तथा शनि मंत्र ऊं शं शनैश्‍चराय नम:का जाप करते रहना चाहिए, यह आपकी साढ़ेसाती की समस्त परेशानियों को दूर ले जाता हैं।

    साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए इस दिवस उपवास रखने वाले जातक को दिवस में एक बार नमक विहीन भोजन करना चाहिए।

       उपाय

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    अगर आपकी कोई विशेष मनोकामना हैं तो शनैश्चरी अमावस्या के दिवस आप अपने लंबाई का लाल रंग का धागा लेकर इसे आम के पत्‍ते पर लपेट दें।

    इस पत्‍ते तथा लपेटे हुए धागे को लेकर अपनी मनोकामना को मन में आवाहन करें तथा उसके बाद इस पत्‍ते तथा धागे को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इससे आपकी मनोकामना जल्‍द पूरी होगी।

       उपाय

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    अक्‍सर ऐसा होता हैं कि लोग अत्यंत संघर्ष व मेहनत करते हैं किन्तु उन्‍हें सफलता हाथ नहीं लगती या लोग जो सोचते हैं वो हो नहीं पाता ऐसे में लोग न चाहते हुए भी अपने भाग्‍य को कोसने लगते हैं।

    कहते हैं कि भाग्य बिल्कुल भी साथ नहीं देता तथा दुर्भाग्य निरन्तर पीछा कर रहा हैं।

    कहा जाता हैं कि इंसान के पिछले कर्मों के अच्छे-बुरे परिणामों का फल भी आपके भाग्‍य का निर्धारण करता हैं इसलिए आपको इन समस्त बातों को छोड़कर निष्काम भाव से सच्चे मन से प्रयास करना चाहिए।

    किन्तु आज एक उपाय जो हम आपको बताने जा रहे हैं उसे करने से आपका सोया हुआ भाग्‍य जाग जाएगा।

    शनैचरी अमावस्या से आरंभ कर लगातार 41 दिवस रोज सुबह गाय का दुध लेकर नहाने से पहले इसे अपने सिर पर थोड़ा सा रख लें।

    तथा फिर नहा लें अगर आप ऐसा रोज करेंगे तो आपका सोया हुआ भाग्‍य जाग जाएगा।

    इतना ही नहीं आप जो भी काम सोचेंगे वो पूरा हो जाएगा। आपकी जीवन में आ रही रूकावटें खत्‍म हो जाएगी। बस अधिक से अधिक संयम रखने का प्रयास करें।

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