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    25 October 2018

    कार्तिक मास स्नान का महत्व लाभ तथा तरीका | Kartik Maas Snan ka Mahatva

    ॥ कार्तिक मास ॥  

    विशेष- गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार शरद पूर्णिमा के पश्चात से अश्विन मास प्रारम्भ होता हैं।

    ॥ कार्तिक मास में वर्जित ॥
    ब्रह्माजी ने नारदजी को कहा: कार्तिक मास में चावल, दालें, बैंगन, गाजर, लौकी तथा बासी अन्न नहीं खाना चाहिए। जिन फलों में बहुत सारे बीज हों उनका भी त्याग करना चाहिए तथा संसार व्यवहार न करें।
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    ॥ कार्तिक मास में विशेष पुण्यदायक ॥
    प्रात: स्नान, दान, जप, व्रत, मौन, देव-दर्शन, गुरु-दर्शन, पूजा का अमिट पुण्य होता हैं। सवेरे तुलसी का दर्शन भी समस्त पापनाशक हैं। भूमि पर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन, दीपदान, तुलसीबन या तुलसी के पौधे लगाना लाभदायक हैं।
    भगवदगीता का पाठ करना तथा उसके अर्थ में अपने मन को लगाना चाहिए। ब्रह्माजी नारदजी को कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति के पुण्यों का वर्णन महिनों तक भी नहीं किया जा सकता।
    श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना भी विशेष लाभदायी हैं। 'ॐ नमो नारायणाय।' इस महामंत्र का जो जितना अधिक जप करें, उसका उतना अधिक मंगल होता हैं। कम से कम १०८ बार तो जप करना ही चाहिए।
    प्रात: उठकर करदर्शन करें।पुरुषार्थ से लक्ष्मी, यश, सफलता तो प्राप्त होती हैं पर परम पुरुषार्थ मेरे नारायण की प्राप्ति में सहायक हो’ – इस भावना से हाथ देखें तो कार्तिक मास में विशेष पुण्यदायक होता हैं।

    ॥ सूर्योदय के पूर्व स्नान अवश्य करें ॥
    जो कार्तिक मास में सूर्योदय के पश्चात स्नान करता हैं वह अपने पुण्य क्षय करता हैं तथा जो सूर्योदय के पूर्व स्नान करता हैं वह अपने रोग तथा पापों को नष्ट करनेवाला हो जाता हैं। पूरे कार्तिक मास के स्नान से पापशमन होता हैं तथा प्रभुप्रीति तथा सुख-दुःख व अनुकूलता-प्रतिकूलता में सम रहने के सदगुण विकसित होते हैं।
    महिलाए कार्तिक मास में प्रातः स्नान करती हैं, माताओं-बहनों के साथ मिल के भजन गातीं हैं। सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से पुण्यदायक ऊर्जा बनती हैं, पापनाशिनी मति आती हैं। कार्तिक मास का सभी लोग इस बात का लाभ लें।
    कार्तिक मास को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया हैं। पुराणों के अनुसार जो फल सामान्य दिनों में एक हजार बार गंगा स्नान का होता हैं तथा प्रयाग में कुंभ के दौरान गंगा स्नान का फल होता वही फल कार्तिक मास में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास स्नान की शुरूआत शरद पूर्णिमा से होती हैं और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता हैं।
    पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास में सूर्योदय से पूर्व उठकर नदी अथवा तालाब में स्नान करता हैं और भगवान विष्णु की पूजा करता हैं। भगवान विष्णु की उन पर असीम कृपा होती हैं। पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक मास में नियमित स्वरूप से सूर्योदय से पूर्व स्नान करके धूप-दीप सहित भगवान विष्णु की पूजा करते हैं वह भगवान विष्णु के प्रिय होते हैं। पद्मपुराण की कथा के अनुसार कार्तिक स्नान और पूजा के पुण्य से ही सत्यभामा को भगवान श्रीकृष्ण जी की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
    कथा हैं कि एक बार कार्तिक मास की महिमा जानने के लिए कुमार कार्तिकेय ने भगवान शिव से पूछा कि कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता हैं। इस पर भगवान शिव ने कहा कि नदियों में जैसे गंगा श्रेष्ठ हैं, भगवानों में विष्णु उसी प्रकार मासों में कार्तिक श्रेष्ठ मास हैं। इस मास में भगवान विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं। अतः इस मास में नदियों एवं सरोवर में स्नान करने से भगवान श्री विष्णु जीकी पूजा और साक्षात्कार का पुण्य प्राप्त होता हैं।
    भगवान विष्णु ने जब श्रीकृष्ण जी स्वरूप में अवतार लिया तब रूक्मिणी और सत्यभामा उनकी पटरानी हुई। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण की पुत्री थी। युवावस्था में ही एक दिवस इनके पति और पिता को एक राक्षस ने मार दिया। कुछ दिनों तक ब्राह्मण की पुत्री रोती रही। इसके पश्चात उसने स्वयं को भगवान श्री विष्णु जी की भक्ति में समर्पित कर दिया।
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    वह सभी एकादशी का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करती थी। बुढ़ापा आने पर एक दिवस जब ब्राह्मण की पुत्री कार्तिक स्नान के लिए गंगा में डुबकी लगायी तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसी समय विष्णुलोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की पुत्री का दिव्य शरीर विमान में बैठकर विष्णुलोक पहुंच गया।
    जब भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया तब ब्राह्मण की पुत्री ने सत्यभामा के स्वरूप में जन्म लिया। कार्तिक मास में दीपदान करने के कारण सत्यभामा को सुख और संपत्ति प्राप्त हुई। नियमित तुलसी में जल अर्पित करने के कारण सुन्दर वाटिका का सुख मिला। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में किये गये दान पुण्य का फल व्यक्ति को अगले जन्म में अवश्य प्राप्त होता हैं।

    ॥ ३ दिवस में पूरे कार्तिक मास के पुण्यों की प्राप्ति ॥
    कार्तिक मास के सभी दिवस अगर कोई प्रात: स्नान नहीं कर पाये तो उसे कार्तिक मास के अंतिम ३ दिवस त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा को 'ओमकार' का जप करते हुए प्रातः सूर्योदय से तनिक पूर्व स्नान कर लेने से महिनेभर के कार्तिक मास के स्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी हैं।

    ॥ कार्तिक मास ॥
    महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार कार्तिकं तु नरो मासं यः कुर्यादेकभोजनम्। शूरश्च बहुभार्यश्च कीर्तिमांश्चैव जायते।।जो मनुष्य कार्तिक मास में एक समय भोजन करता हैं, वह शूरबीर, अनेक भार्याओं से संयुक्त तथा कीर्तिमान होता हैं।

    ॥ कार्तिक में बैंगन तथा करेला खाना मना बताया गया हैं?
    महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 66 जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में अन्न का दान करता हैं, वह दुर्गम संकट से पार हो जाता हैं तथा मरकर अक्षय सुख का भागी होता हैं।
    शिवपुराण के अनुसार कार्तिक में गुड़ का दान करने से मधुर भोजन की प्राप्ति होती हैं।
    स्कंदपुराण वैष्णवखंड के अनुसार- मासानां कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः। तीर्थ नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।
    अर्थात मासों में कार्तिक, देवताओं में भगवान विष्णु तथा तीर्थों में नारायण तीर्थ बद्रिकाश्रम श्रेष्ठ हैं। ये तीनों कलियुग में अत्यंत दुर्लभ हैं।
    स्कंदपुराण वैष्णवखंड के अनुसार- न कार्तिसमो मासो न कृतेन समं युगम्‌। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थ गंगया समम्‌।
    अर्थात कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सतयुगके समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं तथा गंगाजीके समान कोई तीर्थ नहीं हैं।
    भगवान श्रीकृष्ण जी को वनस्पतियों में तुलसी, पुण्य क्षेत्रों में द्वारिकापुरी, तिथियों में एकादशी तथा महीनों में कार्तिक विशेष प्रिय हैं- कृष्णप्रियो हि कार्तिक:, कार्तिक: कृष्णवल्लभ:।  अतः कार्तिक मास को अत्यंत पावन तथा पुण्यदायक माना गया हैं।

    ॥ कार्तिक मास में स्नान की महिमा ॥
    विशेष- गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार शरद पूर्णिमा के पश्चात से अश्विन मास प्रारम्भ होता हैं।
    कार्तिक मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान करने की बड़ी भारी महिमा हैं तथा ये स्नान तीर्थ स्नान के समान होता हैं l
    कार्तिक हिंदी पंचाङ्ग का आँठवा मास हैं, कार्तिक के मास में दामोदर भगवान की पूजा की जाती हैं। यह मास शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता हैं, जिसके बीच में कई विशेष पर्व मनाये जाते हैं। शरद पूर्णिमा महत्त्व कथा पूजा विधि एवम कविता जानने के लिए पढ़े।
    इस मास में पावन नदियों में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान का बहुत अधिक महत्त्व होता हैं। घर की महिलायें प्रातः जल्दी उठ स्नान करती हैं, यह स्नान कुँवारी एवम वैवाहिक दोनों के लिए श्रेष्ठ हैं।
    इस मास की एकादशी जिसे प्रबोधिनी एकादशी अथवा देव उठनी एकादशी कहा जाता हैं इसका सर्वाधिक महत्त्व होता हैं, इस दिवस भगवान विष्णु चार मास की निंद्रा के पश्चात उठते हैं जिसके पश्चात से मांगलिक कार्य शुरू किये जाते हैं।
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    इस मास तप एवम पूजा पाठ उपवास का महत्त्व होता हैं, जिसके फलस्वस्वरूप जीवन में वैभव की प्राप्ति होती हैं। इस मास में तप के फलस्वस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।इस मास के श्रद्धा से पालन करने पर दीन दुखियों का उद्धार होता हैं, जिसका महत्त्व स्वयम विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा था।इस मास के प्रताप से रोगियों के रोग दूर होते हैं जीवन विलासिता से मुक्ति प्राप्त होती हैं।

    ॥ कार्तिक मास में जप ॥
    कार्तिक मास में अपने गुरुदेव का सुमिरन करते हुए जो "ॐ नमो नारायणाय" का जप करता हैं, उसे बहुत पुण्य होता हैं।

    ॥ कार्तिक मास ॥
    स्कंद पुराण में लिखा हैं: कार्तिक मास के समान कोई तथा मास नहीं हैं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं हैं तथा गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं हैं।’ – (वैष्णव खण्ड, का।मा।: १।३६-३७)
    कार्तिक स्नान कार्तिक मास की एक मुख्य धार्मिक परंपरा हैं। इस समय मास भर तक प्रतिदिन पावन नदी, तालाब या समुद्र आदि में स्नान किया जाता हैं तथा भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं।
    कार्तिक मास धार्मिक कार्य के लिए बहुत शुभ महीना होता हैं। इस मास में मंदिर में जागरण, कीर्तन, दीपदान, तुलसी तथा आंवले के पेड़ की पूजा करना श्रेष्ठ फलदायी होता हैं।
    कार्तिक के मास में कई मुख्य पर्व आते हैं जैसे करवा चौथ, तुलसी विवाह, दिवाली, कार्तिक पूर्णिमा आदि। इस मास में भगवान के निमित्त किये गए पुण्य कर्म का कभी नाश नहीं होता। कार्तिक मास में दिया गया दान अक्षय स्वरूप में प्राप्त होता हैं। सर्वाधिक महत्त्व अन्नदान का होता हैं। कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता का पाठ करना शुभ होता हैं।

    ॥ कार्तिक स्नान ॥
    कार्तिक स्नान का एक अलग ही महत्त्व हैं। यह शारीरिक, मानसिक तथा धार्मिक स्वरूप से महत्त्वपूर्ण  हैं। कार्तिक स्नान शरद पूर्णिमा आश्विन पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक किये जाते हैं।
    शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में जो लोग भोर से पूर्व उठकर नदी तालाब आदि में स्नान करके विष्णुजी की पूजा करते हैं उन पर भगवान की असीम कृपा होती हैं। भगवान विष्णु कार्तिक मास में जल में निवास करते हैं।
    जो लोग भोर से पूर्व पानी से स्नान करते हैं उन्हें सुख समृद्धि तथा स्वास्थ्य लाभ होता हैं। जो लोग कार्तिक मास में समुद्र या नदी में नहाते हैं उन्हें अश्व मेघ यज्ञ जैसा लाभ होता हैं। इस समय गंगा माता द्रव स्वरूप में नदियों, तालाबों तथा समुद्र में फैल जाती हैं।
    कार्तिक स्नान तथा पूजा के कारण ही सत्यभामा को श्रीकृष्ण की पत्नी बनने का सौभाग्य मिला था। पुराणों के अनुसार कार्तिक मास में स्नान, दान तथा व्रत आदि करने से पाप नष्ट होते हैं। इस मास में पूजा तथा व्रत से तीर्थ यात्रा के सामान शुभ फल प्राप्त होता हैं।
    जिस प्रकार का फल प्रयाग में कुम्भ स्नान से मिलता हैं उसी प्रकार का फल कार्तिक मास में किसी पावन नदी के तट पर स्नान से मिल सकता हैं।
    कार्तिक मास में स्नान का वैज्ञानिक कारण भी हैं। वर्षा ऋतु में बहुत से सूक्ष्म जीव पनप जाते हैं। बारिश के मौसम के पश्चात कार्तिक में आसमान साफ हो जाता हैं तथा सूरज की किरणें सीधे धरती पर पड़कर हानिकारण जीवों को नष्ट कर देती हैं।
    इससे वातावरण शुद्ध हो जाता हैं जो शरीर के अनुकूल तथा लाभदायक होता हैं। प्रातः हवा शुध्द होती हैं जिसमें ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में होती हैं। इससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं तथा कई सामान्य बीमारियाँ दूर रहती हैं।

    ॥ कार्तिक स्नान करने का तरीका ॥
    कार्तिक स्नान तथा व्रत करने वाले को प्रातः जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपट कर नदी, तालाब आदि के साफ पानी में प्रवेश करना चाहिए।
    आधा शरीर पानी में डूबा रहे पानी में इस प्रकार खड़े होकर स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काले तिल तथा आंवले के चूर्ण को शरीर पर मलकर स्नान करना चाहिए।
    सन्यासी को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को शरीर पर मलकर स्नान करना चाहिए। स्नान करने के पश्चात
    शुद्ध वस्त्र पहन कर विधि विधान से भगवान श्री विष्णु जीका पूजा करना चाहिए। तुलसी, केला, पीपल तथा पथवारी का दीपक जला कर पूजा करना चाहिए।
    वर्तमान में यदि नदी तालाब आदि में स्नान संभव ना हो तो घर में प्रातः भोर होने से पूर्व जब तारे दिख रहे हों तब स्नान कर लेना चाहिए। इसके पश्चात मंदिर जाकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
    भजन कीर्तन करने चाहिए तथा कार्तिक महत्तम तथा कथा सुननी चाहिए। मंदिर नहीं जा पाएं तो घर में पूजा की जा सकती हैं।
    सप्तमी, द्वितीया, नवमी, दशमी, त्रयोदशी तथा अमावस्या को तिल व आंवला से स्नान नहीं किया जाता हैं।
    कार्तिक स्नान करने वाले को कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए। केवल नरक चतुर्दशी के दिवस तेल लगाया जा सकता हैं।

    ॥ कार्तिक मास में किन चीजों का त्याग करना चाहिए ॥
    कार्तिक स्नान तथा व्रत करने वालों के लिए इस समय कुछ चीजें वर्जित होती हैं अर्थात व्रत करने वाले को कार्तिक में इनका त्याग कर देना चाहिए। कार्तिक स्नान के समय छोड़ने वाली वस्तुएं इस प्रकार हैं
    राई, खटाई तथा मादक वस्तुएं ना लें। दाल, तिल, पकवान व दान किया हुआ भोजन ग्रहण न करे।
    किसी भी जीव का मांस, पान, तम्बाकू, धूम्रपान, नींबू, मसूर, बासी या झूठा अन्न ना लें।

    ॥ कार्तिक मास से तुलसी का महत्त्व ॥
    कार्तिक में तुलसी की पूजा की जाती हैं और तुलसी के पत्ते खाये जाते हैं। इससे शरीर निरोग बनता हैं।
    ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सूर्य देवता एवम तुलसी के पौधे को जल चढ़ाया जाता हैं।
    कार्तिक में तुलसी के पौधे का दान दिया जाता हैं।

    ॥ कार्तिक मास में दान ॥
    कार्तिक मास में दान का भी विशेष महत्त्व होता हैं। इस पुरे मास में गरीबो एवम ब्रह्मणों को दान दिया जाता हैं।
    इन दिनों में तुलसी दान, अन्न दान, गाय दान एवम आँवले के पौधे के दान का महत्त्व सर्वाधिक बताया जाता हैं। कार्तिक में पशुओं को भी हरा चारा खिलाने का महत्त्व होता हैं।

    ॥ कार्तिक में भजन ॥
    कार्तिक मास में श्रद्धालु मंदिरों में भजन करते हैं। अपने घरों में भी भजन करवाते हैं।
    आजकल यह कार्य भजन मंडली द्वारा किये जाते हैं। इन दिनों रामायण पाठ, भगवत गीता पाठ आदि का भी बहुत महत्त्व होता हैं।
    इन दिनों खासतौर पर विष्णु एवम कृष्ण भक्ति की जाती हैं। अतः गुजरात में कार्तिक मास में अधिक रौनक दिखाई पड़ती हैं।

    ॥ केवल एक बार पत्तल में भोजन करना चाहिए ॥
    इसके अतिरिक्त गाजर, मूली, लौकी, काशीफल, तरबूज, मट्ठा, मसूर, प्याज, सिंघाड़ा, काँसे में भोजन, भंडारे का भोजन, सूतक या श्राद्ध का अन्न आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
    व्रत करने वाले को प्रतिपदा को कुम्हड़ा, द्वितीया को कटहल, तृतीया को तरुणी स्त्री, चतुर्थी को मूली, पंचमी को बेल, षष्ठी को तरबूज, सप्तमी को आंवला, अष्टमी को नारियल, नवमी को मूली, दशमी को लौकी, एकादशी को परवल, द्वादशी को बेर, त्रयोदशी को मठ्ठा, चतुर्दशी को गाजर, तथा पूर्णिमा को शाक यह वस्तुएं प्रयोग न करे।
    रविवार को आंवला नहीं लें।
    कार्तिक स्नान करने वाले को कड़वे वचन, झूठ बोलने तथा ईर्ष्या द्वेष आदि से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त गुरु, स्त्री, महात्मा, देवता, ब्राह्मण आदि की निंदा नहीं करनी चाहिए।

    ॥ कार्तिक मास में दान किन चीजों का करें ॥

    कार्तिक मास में अन्न दान के अतिरिक्त केला तथा आंवले का दान करना चाहिए।
    सर्दी से व्याकुलता पाने वाले गरीब को कपड़े तथा ऊनी वस्त्र दान करने चाहिए।
    राह चलकर आये थके मांदे भोजन कराना चाहिए।
    भगवान के मंदिर में कलर पेंट आदि में सहयोग करना चाहिए तथा भगवान के लिए वस्त्र आभूषण आदि देने चाहिए।

    ॥ कार्तिक पूजा विधि नियम ॥
    कार्तिक मास में कई तरह के नियमो का पालन किया जाता हैं, जिससे मनुष्य के जीवन में त्याग एवम सैयम के भाव उत्पन्न होते हैं।
    पुरे मास मास, मदिरा आदि व्यसन का त्याग किया जाता हैं। कई लोग प्याज, लहसुन, बैंगन आदि का सेवन भी निषेध मानते हैं।
    इन दिनों भूमि पर सोना उपयुक्त माना जाता हैं कहते हैं इससे मनुष्य का स्वभाव कोमल होता हैं उसमे निहित अहम का भाव खत्म हो जाता हैं।
    कार्तिक में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता हैं।
    तुलसी एवम सूर्य देव को जल चढ़ाया जाता हैं।
    काम वासना का विचार इस मास में छोड़ दिया जाता हैं। ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता हैं।
    इस प्रकार पुरे मास नियमो का पालन किया जाता हैं।

    ॥ कार्तिक कथा ॥
    कार्तिक के समय भगवान विष्णु ने देवताओ को जालंधर राक्षस से मुक्ति दिलाई थी, साथ ही मत्स्य का स्वरूप धरकर वेदों की रक्षा की थी।

    ॥ कार्तिक स्नान के अन्य व्रत ॥
    ॥ तारा भोजन व्रत ॥
    कार्तिक मास में यह व्रत करने पर रात को तारों को अर्घ्य देने के पश्चात तारों की छांव में ही भोजन किया जाता हैं।
    व्रत पूर्ण होने पर व्रत का उद्यापन किया जाता हैं।

    ॥ छोटी सांकली व्रत ॥
    छोटी सांकली के व्रत में पूर्णिमा से व्रत शुरू होता हैं। दो दिवस छोड़कर एक दिवस उपवास रखा जाता हैं।
    बीच में रविवार या एकादशी हो तो उस दिवस भी उपवास रखा जाता हैं। इस प्रकार पूरे मास व्रत करते हैं। व्रत पूरा होने पर व्रत का उद्यापन किया जाता हैं।

    ॥ बड़ी सांकली व्रत ॥
    बड़ी सांकली का व्रत पूर्णिमा से शुरू किया जाता हैं। एक दिवस छोड़कर एक दिवस उपवास रखा जाता हैं।
    बीच में रविवार तथा एकादशी आने पर उस दिवस भी उपवास रखते हैं। व्रत पूरा होने पर उद्यापन किया जाता हैं।

    ॥ चन्द्रायण का व्रत ॥
    कार्तिक लगते ही पूर्णिमा से यह व्रत शुरू किया जाता हैं। एक पाटे पर भगवान की तस्वीर रखकर बगल में जौ उगाये जाते हैं। एक मास तक अखंड दीपक जलाया जाता हैं। प्रतिदिन पूजा की जाती हैं।
    एक तुलसी का पत्ता तथा गंगाजल प्रतिदिन लिया जाता हैं। गमले में तुलसी का पौधा रखें तथा प्रतिदिन तुलसी की भी पूजा करें।
    पूर्णिमा से एक कौर बादाम के हलवे का खाकर शुरुआत करके अगले दिवस दौ कौर फिर तीन इस प्रकार हर दिवस एक कौर बढ़ाते हुआ अमावस्या तक 15 कौर खाये जाते हैं।
    इसके पश्चात एक एक कौर कम करते हुए पूर्णिमा के दिवस एक कौर लिया जाता हैं। पूर्णिमा के दिवस अच्छे से पूजा करके रात को हवन किया जाता हैं। दूसरे दिवस ब्राह्मणियों को भोजन कराके दक्षिणा आदि देकर विदा करते हैं।

    ॥ भीष्म पंचक व्रत ॥
    कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक भीष्म पंचक व्रत किया जाता हैं। पांच दिवस तक अन्न ग्रहण नहीं किया जाता हैं। शाकाहार, भूमि पर शयन तथा ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता हैं।
    प्रातः भगवान की पूजा विधि विधान से करके ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जप करते हैं। पांच दिवस तक अखंड दीपक जलाया जाता हैं।
    व्रत के पश्चात महात्मा भीष्म के लिए तर्पण किया जाता हैं तथा अर्घ्य दिया जाता हैं। अर्घ्य देने के पश्चात विधि विधान से श्रीहरि का पूजा किया जाता हैं तथा ब्राह्मण भोजन के पश्चात अन्न ग्रहण किया जाता हैं।

    ॥ कार्तिक मास के पर्व ॥
    यह सभी कार्तिक मास में आने वाले प्रमुख पर्व हैं। पूरा मास कई पर्व मनाये जाते हैं।
    कार्तिक मास में कई तरह के पाठ, भगवत गीताआदि सुनने का महत्त्व होता हैं।
    यह पूरा मास मनुष्य जाति नियमो में बंधकर प्रभु भक्ति करता हैं।

    1 करवाचौथ- कृष्ण पक्ष चतुर्थी
    2 अहौई अष्टमी एवम कालाष्टमी- कृष्ण पक्ष अष्टमी
    3 रामा एकादशी
    4 धन तेरस
    5 नरक चतुर्दर्शी
    6 दिपावली, कमला जयंती
    7 गोवर्धन पूजा अन्नकूट
    8 भाई दूज या यम द्वितीया
    9 कार्तिक छठ पूजा
    10 गोपाष्टमी
    11 अक्षय नवमी या आँवला नवमी, जगदद्त्तात्री पूजा
    12 देव उठनी एकदशी या प्रबोधिनी
    13 तुलसी विवाह

    ॥ गायत्री मंत्र के जप से बढ़ जाता हैं कार्तिक स्नान का महत्त्व ॥
    इस मास के महत्त्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्मपुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में जानकारी प्राप्त होती हैं। कार्तिक मास में किए स्नान का फल, एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान। वैशाख मास में नर्मदा नदी पर करोड़ बार स्नान के समान होता हैं।
    जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता हैं, वही फल कार्तिक मास में किसी पावन नदी के तट पर स्नान करने से मिलता हैं। इस मास में गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।
    भोजन दिवस में एक समय ही करना चाहिए। जो व्यक्ति कार्तिक के पावन मास के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।

    ॥ कार्तिक मास में स्नान व दान का महत्त्व ॥
    धार्मिक कार्यो के लिए यह मास सर्वश्रेष्ठ माना गया हैं। आश्विन शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष तक पावन नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया हैं।
    श्रद्धालु गंगा तथा यमुना में प्रातः स्नान करते हैं। जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर पाते हैं, वह प्रातः अपने घर में स्नान व पूजा पाठ करते हैं।
    कार्तिक मास में शिव, सूर्य, चण्डी तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश करने का बहुत महत्त्व माना गया हैं।
    इस मास में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए। ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता हैं।

    ॥ कार्तिक पूर्णिमा पर करना चाहिए दान ॥
    कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। कार्तिक मास की षष्ठी को कार्तिकेय व्रत का अनुष्ठान किया जाता हैं। स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं।
    इस दिवस अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए । यह दान किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता हैं।
    कार्तिक मास में पुष्कर, कुरूक्षेत्र तथा वाराणसी तीर्थ स्थान स्नान तथा दान के लिए अति महत्त्वपूर्ण माने गए हैं।

    ॥ ऐसे करें कार्तिक स्नान व पूजा ॥
    प्रातः स्नान करने के पश्चात राधा-कृष्ण का तुलसी, पीपल, आंवले आदि से पूजा करना चाहिए। सभी देवताओं की परिक्रमा करने का महत्त्व माना गया हैं।
    सायंकाल में भगवान विष्णु की पूजा तथा तुलसी की पूजा करें। संध्या समय में दीपदान भी करना चाहिए।
    ऐसा माना जाता हैं कि कार्तिक मास में सूर्य तथा चन्द्रमा की किरणों का प्रभाव मनुष्य पर अनुकूल पड़ता हैं। यह किरणें मनुष्य के मन तथा मस्तिष्क को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं।

    ॥ तुलसी, पीपल तथा भगवान श्री विष्णु जीकी होती हैं पूजा ॥
    कार्तिक मास में राधा-कृष्ण, भगवान श्री विष्णु जीतथा तुलसी पूजा का अत्यंत महत्त्व हैं। जो मनुष्य इस मास में इनकी पूजा करता हैं, उसे पुण्य फलों की प्राप्ति होती हैं।
    श्रद्धालु व्यक्ति कार्तिक मास में तारा भोजन करते हैं। पूरे दिवस भर व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं।

    व्रत के अंतिम दिवस उद्यापन किया जाता हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक मास आरम्भ होते ही पावन स्नान का भी शुभारम्भ हो जाता हैं।

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         विध्यार्थी श्लोक मन्त्र - काक चेष्टा भावार्थः सहित

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