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    29 December 2016

    दुर्जन व्यक्ति का त्याग करे || श्लोक

    दुर्जन व्यक्ति का त्याग करे | 





    दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययालङ्कृतोअपि सन्।

    मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः ।।


     

     

    अर्थ :-

    विद्या से विभूषित होने पर भी दुर्जन त्याग करने योग्य है। मणि से अलङ्कृत होने पर भी वह सर्प क्या भयंकर नहीं होता है अर्थात् अवश्य होता है |

              जैसे उच्च कुल में जन्म लेने तथा महान विद्वान व् शक्तिशाली होने के बावजूद भी रावण को हिन्दू समाज ने स्वीकार नहीं किया ।

              उसी प्रकार मानव की हत्या करने वाले  आतंकवादी विचारधारा को समर्थन और सम्मान करने वाला समुदाय खुद अपना सर्वनाश रावण की तरह कर लेगा यह विश्वास रखिये ।

     

     

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