• About Vinod Pandey
  • Contact Us
  • Priveacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms of Service
  • Pages

    18 November 2020

    लाभ पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 2020 Labh Panchami Puja ka Shubh Muhurat Time | Laabh Pancham Choghadiya

     लाभ पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 2020 Labh Panchami Puja ka Shubh Muhurat Time | Laabh Pancham Choghadiya

    labh panchami puja shubh muhurat
    Labh Panchami Shubh Muhurat 

    ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे,

    विष्णु पत्न्यै च धीमहि,

    तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥

     ➤

    शुभम करोति कल्याणम,

    अरोग्यम धन संपदा।

    शत्रु-बुद्धि विनाशायः,

    दीपःज्योति नमोस्तुते॥

     

    आप सभी को सपरिवार लाभ पंचमी के पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    आपके जीवन को लाभ पंचमी का पर्व सुख, समृद्धि, शांति तथा अपार खुशियाँ प्रदान करें।

     

    लक्ष्मी बीज मन्त्र

    ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥

    Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah

     

    ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।।

    Om Shreeng Mahalaxmaye Namah।।

     

    श्री गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए यह मन्त्र का जाप करना चाहिए।

    गणेश मंत्र

    लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्।

    आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम्।।

    भगवान् शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यह मन्त्र का जाप करना चाहिए।

    शिव मंत्र

    त्रिनेत्राय नमस्तुभ्यं उमादेहार्धधारिणे।

    त्रिशूलधारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम:।।

     

    सम्पूर्ण भारत में कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिवस लाभ पंचमी मनाई जाती है। लाभ पंचमी को लाभ पंचम, सौभाग्य पंचमी तथा सौभाग्य लाभ पंचमी भी कहा जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः गुजरात राज्य में मनाया जाता है। यह त्योहार व्यापारियों तथा व्यवसायियों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस दिवस भगवान के दर्शन व पूजा करने से व्यवसायियों तथा उनके परिजनों को लाभ तथा अच्छा भाग्य प्राप्त होता है।

    लाभ पंचमी के शुभ दिवस पर विशेष मंत्र जाप द्वारा भगवान श्री गणेश का आवाहन किया जाता हैं जिससे शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो जाती है। कार्यक्षेत्र, नौकरी तथा व्यवसाय में समृद्धि की कामना की पूर्ति होती है। इस दिन भगवान् श्री गणेश जी के साथ भगवान शिव का स्मरण करना विशेष शुभ फलदायी माना गया है। सुख-सौभाग्य तथा मंगल कामना को लेकर किया जाने वाला सौभाग्य पंचमी का व्रत सभी की इच्छाओं को पूर्ण करता है।

    गुजरात राज्य में अधिकतर दुकान मालिकों तथा व्यापारियों द्वारा दिवाली उत्सव के पश्चात लाभ पंचमी पर अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को दोबारा से शुरू किया जाता है। दिवाली के अगले दिवस ही गुजराती नववर्ष मनाया जाता है। अतः गुजरात में, 4 दिनों की छुट्टी के पश्चात, लाभ पंचमी नववर्ष का प्रथम कामकाजी दिवस माना जाता है। इस दिवस व्यापारी गण, नया बही-खाता भी प्रारंभ करते है जिसकी बाईं ओर शुभ तथा दाईं ओर लाभ लिखा जाता है तथा प्रथम पृष्ठ के केंद्र में एक स्वास्तिक को रेखांकित किया जाता हैं।

     

    लाभ पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 2020

    इस वर्ष, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 18 नवम्बर, बुधवार की रात्रि 11 बजकर 16 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 19 नवम्बर, गुरुवार की रात्रि 09 बजकर 59 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में, लाभ पंचमी का त्योहार 19 नवम्बर, गुरुवार के शुभ दिवस मनाया जाएगा।

     

    इस वर्ष, लाभ पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त, 19 नवम्बर, गुरुवार की प्रातः 06 बजकर 44 से 10 बजकर 22 मिनिट तक का रहेगा।

     

    लाभ पंचमी के दिवस अन्य शुभ समय

    19 नवम्बर 2020, गुरुवार

    अभिजित मुहूर्त - 11:50 से 12:34

    चौघड़िया मुहूर्त - 06:48 से 08:06 शुभ - उत्तम

    12:12 से 13:34 लाभ - उन्नति तथा

    13:34 से 14:57 अमृत - सर्वोत्तम (राहुकाल)

    सूर्योदय - 06:43 सूर्यास्त - 17:41

    चन्द्रोदय - 10:52 चन्द्रास्त - 21:49

    राहुकाल : 13:34 से 14:57

     

    दोपहर 02 बजकर 57 मिनिट से 04 बजकर 19 कालवेला का अशुभ समय होने से धनहानी हो सकती हैं, तथा हमारे द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त में पूजा करने से आपके तथा आपके परिजनों के जीवन में धन, व्यापार तथा स्वास्थ्य का लाभ होता है साथ ही आय में भी वृद्धि होती है।


    11 October 2020

    परमा एकादशी कब हैं 2020 | तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Parama Ekadashi kab hai 2020

    परमा एकादशी कब हैं 2020 | तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Parama Ekadashi kab hai 2020 

    parama ekadashi kab hai
    parama ekadashi kab hai

    वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जिसका परम पुण्यकारी व्रत करने से परम दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं। अतः अधिक मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को “परमा एकादशी” कहा जाता हैं, इस परम पुण्यदायिनी एकादशी को परम एकादशी, पुरुषोत्तमी एकादशी या हरिवल्लभा एकादशी के नाम से भी कहा जाता हैं। सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार परमा एकादशी का व्रत जो मास अधिक हो जाता हैं, उस पर निर्भर करता हैं। अतः परमा एकादशी का उपवास करने हेतु, कोई चन्द्र मास निर्धारित नहीं होता हैं। अधिक मास को मलमास, पुरुषोत्तम मास या लीप का महीना भी कहा जाता हैं। जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता हैं। किन्तु इस मास में पूजा, जप-तप एवं व्रत तथा उपवास करना अत्यंत ही शुभ माना गया हैं। अधिक मास में परम एकादशी पड़ने के कारण ही इस एकादशी का महत्व कई गुना अधिक बढ़ जाता हैं। पुराणों में परम एकादशी व्रत का पुण्यफल अश्वमेध यज्ञ के समान ही बताया गया हैं। इस शुभ दिवस भगवान विष्णु की पूजा करने से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं। यह एकादशी, धन की दाता तथा सुख-ऐश्वर्य की जननी परम पावन एवं दुख तथा दरिद्रता का दमन करने वाली एकादशी मानी गयी हैं। इस एकादशी में स्वर्ण का दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान तथा गौ-दान करना अति उत्तम माना गया हैं। परमा एकादशी का व्रत भगवान श्री हरी विष्णु जी को अति प्रिय हैं, अतः इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला व्रती जीवनपर्यंत सुख का भोग कर के मरणोपरांत विष्णु लोक को जाता हैं तथा प्रत्येक प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्या का फल भी प्राप्त करता हैं। परम एकादशी के शुभ दिवस, जो भी भक्त, भगवान विष्णु जी की विधिवत पूजा करता हैं तथा व्रत रखता हैं, उसके जीवन के प्रत्येक कष्ट स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं तथा उसे जीवन में प्रत्येक प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो जाती हैं। परमा एकादशी व्रत के दिवस भगवान विष्णु जी के “पुरुषोत्तम स्वरूप” की पूजा की जाती हैं तथा इस दिवस “सावां” अर्थात “मुन्यन्न” (तिन्नी का चावल) का सागार लेना चाहिए।

     

    परमा एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

     

    ध्यान रहे,

    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 12 अक्तूबर, सोमवार की साँय 04 बजकर 38 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 13 अक्तूबर, मंगलवार की दोपहर 02 बजकर 35 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में परमा अर्थात परम एकादशी का व्रत 13 अक्तूबर, मंगलवार के दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष, परमा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 14 अक्तूबर, बुधवार की प्रातः 06 बजकर 28 मिनिट से 08 बजकर 44 मिनिट तक का रहेगा।

    द्वादशी समाप्त होने का समय - दोपहर 11:51 

    26 September 2020

    पद्मिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Padmini Kamla Ekadashi 2020

    पद्मिनी एकादशी कब हैं 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Padmini Kamla Ekadashi 2020

    padmini ekadashi kab hai 2020
    padmini ekadashi kab hai

    वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जो की, अधिक मास के शुक्ल पक्ष में आती है, अतः मलमास में मनाई जाने वाली इस एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहा जाता हैं, इस परम पुण्यदायिनी एकादशी को कमला या पुरुषोत्तमी एकादशी के नाम से भी कहा जाता हैं। सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है, उस पर निर्भर करता है। अतः पद्मिनी एकादशी का उपवास करने हेतु, कोई चन्द्र मास निर्धारित नहीं है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास या लीप का महीना भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत भगवान श्री हरी विष्णु जी को अति प्रिय है, अतः इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला व्रती जीवनपर्यंत सुख का भोग कर के मरणोपरांत विष्णु लोक को जाता है तथा प्रत्येक प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्या का फल प्राप्त करता है। पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम स्वरूप की पूजा की जाती हैं। इस दिन तिल तथा गुड़ का सागार लेना चाहिए।

     

    पद्मिनी एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण ना किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिवस सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

     

    ध्यान रहे,

    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 26 सितम्बर, शनिवार की साँय 06 बजकर 59 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 27 सितम्बर, रविवार की साँय 07 बजकर 46 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में पद्मिनी अर्थात कमला एकादशी का व्रत 27 सितम्बर, रविवार के दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष, पद्मिनी एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 28 सितम्बर, सोमवार की प्रातः 06 बजकर 16 मिनिट से 08 बजकर 40 मिनिट तक का रहेगा।

    द्वादशी समाप्त होने का समय - 08:58


    12 September 2020

    इन्दिरा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Indira Ekadashi 2020

    इन्दिरा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Indira Ekadashi 2020

    indira ekadashi date
    indira-ekadashi

    वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। प्रत्येक एकादशी का भिन्न भिन्न महत्व होता है तथा प्रत्येक एकादशीयों की एक पौराणिक कथा भी होती है। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना जाता है। भगवानजी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती है, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, एवं रात्री जागरण करते है। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जो की श्राद्ध पक्ष की एकादशी दिन आती है, तथा इस एकादशी के व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती हैं। यह पितरों को सद्गति देनेवाली एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। जो की, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है। इस एकादशी की महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिस कारण इसका महत्व अत्यंत अधिक हो जाता है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज़ जाने-अंजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमदेव के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं, तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है तथा मृत्यु के उपरांत व्रती भी बैकुण्ठ में निवास करता है।

     

    इन्दिरा एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।

     

    ध्यान रहे,

    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 13 सितम्बर, रविवार की प्रातः 04 बजकर 13 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 14 सितम्बर, सोमवार की प्रातः 03 बजकर 16 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में इन्दिरा एकादशी का व्रत 13 सितम्बर, रविवार के दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष, इन्दिरा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 14 सितम्बर, सोमवार की दोपहर  01 बजकर 36 से सायं 04 बजकर 04 मिनिट तक का रहेगा।

    हरि वासर समाप्त होने का समय - प्रातः 08:49 

    29 July 2020

    श्रावण पुत्रदा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Shravana Putrada Ekadashi 2020

    श्रावण पुत्रदा एकादशी कब है 2020 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Shravana Putrada Ekadashi 2020 

    sawan ki putrada pavitra ekadashi 2020
    sawan ki putrada ekadashi

    वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। भगवान जी को एकादशी तिथि अति प्रिय है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती है अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्रीविष्णु की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसका व्रत करने से संतानहीन अथवा पुत्रहीन जातकों को संतान सुख की प्राप्ति अति शीघ्र हो जाती है। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले इस व्रत को पुत्रदा एकादशी का व्रत कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार जिन दम्पत्तियों को कोई पुत्र नहीं होता उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक वर्ष में 2 बार पुत्रदा एकादशी का व्रत, पौष तथा श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। अतः श्रावण तथा पौष मास की एकादशियों का महत्व एक समान ही माना जाता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी दिसम्बर या जनवरी के महीने में आती है तथा श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी जुलाई या अगस्त के महीने में आती है। श्रावण मास की शुक्ल एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है तथा इस एकादशी को पवित्रोपना एकादशी या पवित्र एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

     

    श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ति करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।

     

    ध्यान रहे,

    १. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।

    २. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही होता है।

    ३. द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

    ४. एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५. व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।

    ६. व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७. जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है।

    ८. यदि, कुछ कारणों की वजह से जातक प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 29 जुलाई, बुधवार की मध्यरात्रि 01 बजकर 15 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 30 जुलाई, गुरुवार की मध्यरात्रि 11 बजकर 49 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत 30 जुलाई, गुरुवार के शुभ दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 31 जुलाई, शुक्रवार की प्रातः 06 बजकर 02 से 08 बजकर 36 मिनिट तक रहेगा।

    द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय - रात्रि 10:42


    24 July 2020

    नाग पंचमी पूजन का शुभ मुहूर्त कब है | Nag Panchami Ka Shubh Muhurat kab hai 2020

    नाग पंचमी पूजन का शुभ मुहूर्त कब है | Nag Panchami Ka Shubh Muhurat kab hai 2020

    nag panchami ka shubh muhurat 2020
    nag panchami shubh muhurat

    श्रीगणेशाय नमः ।

    अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।

    शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥ १॥

    एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम् ।

    सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः ॥ २॥

    तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ३॥

    ॥ इति श्रीनवनागनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

     

    मंत्र अनुवाद - नौ नाग देवता के नाम अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबाला, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक तथा कालिया हैं। यदि प्रतिदिन सुबह नियमित रूप से जप किया जाता हैं, तो आप सभी बुराइयों से सुरक्षित रहेंगे तथा आपको जीवन में विजयी बनाएंगे।

     

    04 July 2020

    चन्द्र ग्रहण 2020 सूतक समय | चन्द्र ग्रहण कब लगेगा | Chandra Grahan Lunar Eclipse July 2020

    चन्द्र ग्रहण 2020 सूतक समय | चन्द्र ग्रहण कब लगेगा | Chandra Grahan Lunar Eclipse July 2020

    chandra grahan sutak kab lagega 2020
    chandra grahan 2020 july 

    ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै

     

    हिन्दु धर्म तथा चन्द्र ग्रहण

    सनातन हिन्दु धर्म के अनुसार चन्द्रग्रहण एक धार्मिक घटना हैं जिसका धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व हैं। जो चन्द्रग्रहण खुली आँखों से स्पष्ट दृष्टिगत न हो तो उस चन्द्रग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता हैं। केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण, जो कि नग्न आँखों से दृष्टिगत होते हैं, ऐसे चंद्रग्रहण धार्मिक कर्मकाण्ड हेतु विचारणीय होते हैं।

    ज्योतिष तथा खगोलीय शास्त्र में किसी भी ग्रहण को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन तथा सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन होता हैं। ज्योतिष शास्त्रियों तथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण तब होता हैं जब राहु तथा केतु सूर्य एवं चन्द्रमा का ग्रास करते हैं। स्कन्द पुराण के अवन्ति खंड के अनुसार उज्जैन राहु तथा केतु की जन्म भूमि हैं, अर्थात सूर्य तथा चन्द्रमा को ग्रसित करने वाले यह दोनों छाया ग्रह उज्जैन में ही जन्मे थे।

    कृपया ध्यान दें-

    जब चन्द्र ग्रहण मध्यरात्रि अर्थात 12 बजे से पूर्व लग जाता हैं किन्तु मध्यरात्रि के पश्चात समाप्त होता हैं अर्थात जब चन्द्र ग्रहण अंग्रेजी कैलेण्डर में दो दिनों का अधिव्यापन करता हैं, तो जिस दिन चन्द्रग्रहण अधिकतम रहता हैं उस दिन की दिनांक चन्द्रग्रहण हेतु दर्शायी जाती हैं। ऐसी स्थिति में चन्द्रग्रहण की उपच्छाया तथा प्रच्छाया का स्पर्श पिछले दिवस अर्थात मध्यरात्रि से पूर्व हो सकता हैं।

    चन्द्रग्रहण आपके नगर में दर्शनीय नहीं हो किन्तु दूसरे देशों अथवा शहरों में दर्शनीय हो तो कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता हैं। किन्तु यदि मौसम के कारण चन्द्रग्रहण दर्शनीय न हो तो ऐसी स्थिति में चन्द्रग्रहण के सूतक का अनुसरण किया जाता हैं तथा ग्रहण से सम्बन्धित सभी सावधानियों का पालन किया जाता हैं।

     

    चन्द्र ग्रहण विवरण

    इस वर्ष 05 जुलाई 2020 के रात्रि आषाढ़ पूर्णिमा का चन्द्र ग्रहण हैं।

    उपच्छाया चन्द्र ग्रहण

    प्रच्छाया में कोई ग्रहण नहीं है।

    उपच्छाया ग्रहण खाली आँख से नहीं दिखेगा।

    उपच्छाया से प्रथम स्पर्श -

    05 जुलाई 2020

    रात्रि 20:37

    परमग्रास चन्द्र ग्रहण

    रात्रि 21:59

    उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श

    रात्रि 23:21

    उपच्छाया चन्द्र ग्रहण का परिमाण

    0.35

    ग्रहण का सूतक समय - लागू नहीं है।

     

    यह चंद्रग्रहण प्रत्येक राशि के जातकों को इस प्रकार फल प्रदान करेगा।

    मेष - मिश्र            वृष    - अशुभ

    मिथुन - मिश्र        कर्क - शुभ

    सिंह - मिश्र          कन्या - अशुभ

    तुला - शुभ          वृश्चिक - मिश्र

    धनु - अशुभ         मकर - अशुभ

    कुंभ - शुभ           मीन - शुभ


    29 June 2020

    देवशयनी एकादशी कब है 2020 | तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Devshayani Ekadashi kab hai 2020 date

    देवशयनी एकादशी कब है 2020 | तिथि व्रत पारण का समय व शुभ मुहूर्त | Devshayani Ekadashi kab hai 2020 date

    devshayani ekadashi kab hai 2020
    devshayani ekadashi kab hai

    देवशयनी एकादशी विशेष हरिशयन मंत्र :-

    सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
            विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
    अर्थात - हे प्रभु! आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है तथा आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर तथा अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है तथा जागती है। आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें। श्री हरि की कृपा सभी पर सदा बनी रहे।
    हरि ॐ 🙏🙏

    वैदिक विधान कहता हैं की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, किन्तु अधिक मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। प्रत्येक एकादशी का भिन्न-भिन्न महत्व होता हैं तथा प्रत्येक एकादशियों की एक पौराणिक कथा भी होती हैं। एकादशियों को वास्तव में मोक्षदायिनी माना गया हैं। भगवान श्री विष्णु जी को एकादशी तिथि अति प्रिय मानी गई हैं चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की। इसी कारण एकादशी के दिन व्रत करने वाले प्रत्येक भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा-दृष्टि सदा बनी रहती हैं, अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं, साथ ही रात्रि जागरण भी करते हैं। किन्तु इन प्रत्येक एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी हैं, जिसमें भगवान विष्णु जी का क्षीरसागर में चार मास की अवधि के लिए शयनकाल प्रारम्भ हो जाता हैं, अतः आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता हैं। देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी तथा हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु योग-निद्रा में चले जाते हैं तथा देवशयनी एकादशी के चार मास के पश्चात प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान् विष्णु पुनः जागते हैं। अतः प्रबोधिनी एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता हैं। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास काल कहा गया हैं। अतः सम्पूर्ण वर्ष में देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक महीने की शुक्ल एकादशी अर्थात देवउठनी एकादशी तक यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, गृह निर्माण, ग्रहप्रवेश, यज्ञ आदि धर्म कर्म से जुड़े प्रत्येक शुभ कार्य करना अच्छा नहीं माना जाता हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया हैं। इस एकादशी के व्रत से मनुष्योकी समस्त मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं। व्रती के प्रत्येक पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। यह भी कहा गया हैं की, यदि जातक चातुर्मास का सच्चे वचन से, विधिपूर्वक पालन करें तो उसे मरणोपरांत मोक्ष अवश्य प्राप्त होता हैं।

     

    देवशयनी एकादशी व्रत का पारण

    एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता हैं।

     

    ध्यान रहे,

    १- एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पूर्व करना अति आवश्यक हैं।

    २- यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो रही हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही करना चाहिए।

    ३- द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना गया हैं।

    ४- एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

    ५- व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता हैं।

    ६- व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

    ७- जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पूर्व हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती हैं।

    ८- यदि जातक, कुछ कारणों से प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं हैं, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

     

    इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 जून, मंगलवार की साँय 07 बजकर 49 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 01 जुलाई, बुधवार की साँय 05 बजकर 29 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

     

    अतः इस वर्ष 2020 में देवशयनी एकादशी का व्रत 01 जुलाई, बुधवार के दिन किया जाएगा।

     

    इस वर्ष, देवशयनी एकादशी का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 02 जुलाई, गुरुवार की प्रातः 05 बजकर 51 से 8 बजकर 28 मिनिट तक का रहेगा।

     

    (द्वादशी समाप्त होने का समय- 15:16)


    19 June 2020

    सूर्य ग्रहण कब लगने वाला है 2020 सूतक समय | Surya Grahan 2020 Date and Time in India | Solar Eclipse June 2020

    सूर्य ग्रहण कब लगने वाला है 2020 सूतक समय | Surya Grahan 2020 Date and Time in India | Solar Eclipse June 2020

    surya grahan 2020 june
    surya grahan date and time

    ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै॥

     

    सनातन हिन्दु धर्म के अनुसार सूर्यग्रहण एक धार्मिक घटना हैं जिसका धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व हैं। जो सूर्यग्रहण खुली आँखों से स्पष्ट दृष्टिगत न हो तो उस सूर्यग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता हैं। 21 जून, 2020, रविवार का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि तथा मृगशिरा नक्षत्र में लगेगा। इस सूर्य ग्रहण पर, 6 ग्रह - बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु सभी एक साथ वक्री रहेंगे। इन छह ग्रह का वक्री होना अर्थात अत्यंत बड़ी हलचल।

    इसका परिमाण 0.99 होगा। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि, चन्द्रमा की छाया सूर्य का मात्र 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वलयाकार आकृति बनायेगी। इस सूर्य ग्रहण की सर्वाधिक लम्बी अवधि केवल 38 सेकण्ड की होगी।

    यह सूर्य ग्रहण अधिकांश भू-मंडल पर दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूऐई, एथोपिया तथा कोंगों में दिखाई देगा।

    देहरादून, सिरसा तथा टिहरी आदि स्थान से वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देगा।

    नई दिल्ली, चंडीगढ़, मुम्बई, कोलकाता, हैंदराबाद, बंगलौर, लखनऊ, चेन्नई, शिमला, रियाद, अबू धाबी, कराची, बैंकाक तथा काठमांडू आदि स्थान से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।

    यह सूर्य ग्रहण उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देशों तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के अधिकांश हिस्सों से दिखाई नहीं देगा। साथ ही, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन तथा कुछ अन्य यूरोपीय महाद्वीप के देशों से सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।

    इस बार का सूर्य ग्रहण, एक दुर्लभ खगोलीय घटना का निर्माण कर रहा हैं। यह ग्रहण 25 वर्षों पूर्व 24 अक्तूबर 1995 के दिन घटित हुए सूर्य ग्रहण की याद दिलाएगा। उस दिन भी ऐसे सूर्य ग्रहण के चलते दिन में ही सम्पूर्ण अंधेरा छा गया था। पक्षी अपने घोंसलों में लौट आए थे तथा हवा भी ठंडी हो गई थी। यह ग्रहण ऐसे दिन होने जा रहा हैं, जब उसकी किरणें कर्क रेखा पर सीधी गिरती हैं। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन तथा सबसे छोटी रात होती हैं।

    surya grahan june
    #SuryaGrahan

    कंकणाकृति के ग्रहण के समय सूर्य किसी कंगन की भांति दिखाई देता हैं। अतः इस ग्रहण को कंकणाकृति ग्रहण कहा जाता हैं। हालांकि कंकणाकृति होने का अर्थ यह हैं कि इस ग्रहण से विषाणुजन्य रोग नियंत्रण में आना प्रारम्भ हो जाएगा, किन्तु अन्य विषयों में यह ग्रहण अनिष्टकारी प्रतीत हो रहा हैं।

     

    आंशिक/खण्डग्रास सूर्य ग्रहण -

    इस वर्ष 21 जून 2020, रविवार के दिन सूर्य ग्रहण हैं।

     

    ग्रहण प्रारम्भ काल - 10:11

    परमग्रास - 11:52

    ग्रहण समाप्ति काल - 01:42

    अधिकतम परिमाण - 0.80

     

    ग्रहण का सूतक प्रारम्भ -

    20 जून 2020, शनिवार की रात्रि 09:54

    बच्चों, वृद्धों तथा अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ -

    21 जून 2020, रविवार की प्रातः 05:37

     

    ग्रहण का सूतक समाप्त सभी के लिए-

    21 जून 2020, रविवार की दोपहर 01:42

     

    यह सूर्य ग्रहण प्रत्येक राशि के जातकों को इस प्रकार फल प्रदान करेगा -

    मेष - मिश्र            वृष    - अशुभ

    मिथुन - मिश्र        कर्क - शुभ

    सिंह - मिश्र          कन्या - अशुभ

    तुला - शुभ          वृश्चिक - मिश्र

    धनु - अशुभ         मकर - अशुभ

    कुंभ - शुभ           मीन - शुभ

     

    पृथ्वी का चंद्रमा, आकार के अनुसार सूर्य से अत्यंत छोटा हैं। सूर्य, चन्द्र से 400 गुना बड़ा हैं। किन्तु सूर्य उतना ही चंद्रमा से अधिक दूरी पर स्थित हैं, अतः जब ग्रहण घटित होता हैं, तो दोनों का आकार हमें पृथ्वी से देखने पर एक समान ही दिखता हैं। चंद्रमा सूर्य की किरणों को पृथ्वी पर आने से रोक देता हैं। अतः ग्रहण के समय, सूर्य सम्पूर्ण रूप से ढंक जाता हैं।

    Vinod Pandey
    Pt Vinod Pandey

    सूर्य ग्रहण को भूलकर भी खाली आंखों से देखने की भूल नहीं करनी चाहिये। यह आंखों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। ऐसा करने से आपके आंखों की रोशनी जा सकती हैं। ग्रहण को देखने के लिए सदैव सोलर चश्मा पहनना अति आवश्यक हैं।